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balarishta yoga in kundali-अल्पायु योग

कुण्डली में अल्पायु योग-

(balarishta yoga in kundali) – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति की आयु को तीन भागों में विभक्त किया गया है | प्रथम बालारिष्ट या अल्पायु, द्वितीय मध्य आयु और तृतीय पूर्ण आयु इन तीन प्रकार से ज्योतिष शास्त्र के आधार पर व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है | हमने अपने पिछले लेख में बताया था कि ज्योतिष के 7 विभाग करके ज्योतिष सीखेंगे | जिससे अपने को सीखने में काफी आसानी होगी और बहुत जल्दी समझ में भी आएगा | आज के लेख में विचार करेंगे अल्पायु योग के बारे में कुंडली में कितने प्रकार के अल्पायु योग होते हैं इस पर हम चर्चा करते हैं तो सर्वप्रथम जानते हैं ….|

बालारिष्ट योग-

आज हम इस बालारिष्ट योग में अर्थात अल्पायु योग में जानेंगे 12 वर्ष तक की आयु देने वाले योग |  

यदि चंद्रमा लग्न में और पाप ग्रह केंद्र में हो तथा शुभ ग्रह के साथ में ना हो तो जातक का 1 वर्ष 2 वर्ष तथा 12 वर्ष की आयु तक अरिष्ट होता है | यदि बृहस्पति लग्न में हो शुक्र और बुध मिथुन अथवा तुला में हो और शुक्र मिथुन में बुध तुला में और अष्टमस्थ अष्टम स्थान में बैठा हुआ ग्रह पाप ग्रह से दृष्ट हो तो एक या 8 वर्ष की आयु होती है |

यदि लग्न में बलि चंद्रमा या बली सूर्य हो और केंद्र अथवा त्रिकोण या अष्टम में पाप ग्रह हो और यदि सूर्य चंद्रमा और शुक्र किसी राशि में एक साथ हो तो जातक की मृत्यु 1 वर्ष के अभ्यंतर होती है |

यदि शनि लग्न में हो और उसके साथ पाप ग्रह हो और वह पाप ग्रह से दृष्ट हो तो भय होता है | परंतु यदि ऐसा शनि तुला, मकर व कुंभ का हो तो अरिष्ट नहीं होता |

2 वर्ष की आयु का विचार-

यदि शनि वक्री होकर मंगल के घर में, केंद्र में, शत्रु के घर में, अथवा अष्टम स्थान में हो और उस पर बलि मंगल की पूर्ण दृष्टि हो तो बालक की आयु 2 वर्ष की होती है |

यदि वक्री शनि मेष अथवा वृश्चिक राशिगत हो और मंगल केंद्र, छठे अथवा आठवें स्थान में हो और मंगल पर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो जातक 2 वर्ष तक ही जीता है |

यदि षष्ठेश और अष्टमेश केंद्र में और वक्री शनी मेष अथवा वृश्चिक राशि में हो और शनि पर बली मंगल की दृष्टि हो तो जातक 2 वर्ष तक जीता है |

3 वर्ष की आयु का विचार-

यदि गुरु बारहवें स्थान में हो और लग्नेश किसी पाप ग्रह के साथ केंद्र में अथवा तीसरे स्थान में अथवा छठे स्थान में अथवा नवम स्थान में हो तो जातक 3 वर्ष तक जीता है |

यदि गुरु वृश्चिक अथवा मेष राशि का होकर अष्टम स्थान में हो और उस पर सूर्य, चंद्र, मंगल और शनि की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु 3 वर्ष के अभ्यंतर होती है | मतांतर से यह भी पाया जाता है कि गुरु शुक्र से दृष्ट ना हो यदि वक्री शनी केंद्र में मेष अथवा वृश्चिक राशि का अथवा यदि वक्री शनि अष्टम या छठे स्थान में हो और उस पर बली मंगल की दृष्टि पढ़ती हो तो बालक की मृत्यु 3 वर्ष में होती है |

यदि गुरु केंद्र या बारहवें स्थान में हो और लग्नेश पाप ग्रह के साथ होकर नवम छठे अथवा तीसरे स्थान में हो तो जातक की आयु 3 वर्ष की होती है |

यदि लग्न में मंगल कर्क राशि का हो और चंद्रमा उसके साथ हो तथा केंद्र एवं आठवें स्थान ग्रह रहित हो तो 3 वर्ष की आयु होती है |

सूर्य शुक्र की दृष्टि से हीन और गुरु, चंद्रमा, मंगल और शनि से दृष्ट यदि मंगल के क्षेत्र में अष्टमस्थ हो तो 3 वर्ष की आयु होती है |

यदि सूर्य और चंद्र तृतीय स्थान में पाप दृष्ट हो और तीसरा स्थान क्रूर राशि का तो हो तो 3 वर्ष की आयु होती है |

4 वर्ष की आयु का विचार-  

यदि मंगल अस्त होकर केंद्र में बैठा हो और उसके साथ शनी हो या उस पर शनि की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु 4 वर्ष में होती है |

यदि छठे अथवा आठवें स्थान में बुध हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो बालक की आयु 4 वर्ष की होती है |

यदि निर्बल चंद्र छठे, आठवें, बारहवें में हो या निर्बल ना हो परंतु पाप ग्रह के साथ होकर दुस्थान का हो और उस पर शुभ ग्रह और पाप ग्रह की दृष्टि हो तो 4 वर्ष, और यदि केवल शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो 8 वर्ष, और केवल पाप ग्रह की दृष्टि हो तो बालक की कुछ भी आयु नहीं होती |

यदि कर्क का बुध छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो और चंद्रमा की उस पर दृष्टि हो तो बालक की आयु 4 वर्ष की होती है |

5 वर्ष की आयु का विचार-

यदि सूर्य, चंद्रमा, मंगल, गुरु साथ में होकर किसी एक घर में हो अथवा सूर्य, चंद्र, मंगल, शनि एक घर में हो या शनि, चंद्र, मंगल, गुरु एक घर में हो तो ऐसे योग में जातक की आयु 5 वर्ष की होती है |

यदि अष्टम भाव का स्वामी लग्न में हो और लग्नेश अष्टम में हो तो 5 वर्ष की आयु होती है |

यदि राहु लग्न में हो और उसके साथ कोई पाप ग्रह हो अथवा उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो और कुल शुभ ग्रह दृश्य चक्र में हो तो ऐसे जातक की मृत्यु 5 वर्ष में होती है | और मत अंतर से यह भी पाया जाता है कि पाप ग्रहों को अदृश्य चक्र में होना चाहिए |

6 वर्ष की आयु का विचार- (balarishta yoga in kundali) 

यदि लग्नेश लग्न में हो और उसके साथ पाप ग्रह हो और उस पर शनि की दृष्टि पड़ती हो तथा गुरु अष्टम गत ना हो और जन्म लग्न संधि में पढ़ता हो तो जातक 6, 8 अथवा 12 वर्ष तक जीता है |

यदि शुक्र सिंह अथवा कर्क राशि गत होकर छठे, आठवें अथवा बारहवें स्थान में बैठा हो और उस पर पाप तथा शुभ दोनों ग्रहों की दृष्टि हो तो बालक की आयु 6 वर्ष की होती है |

यदि शनि चंद्रमा के नवांश में हो और उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो और लग्नेश पर भी चंद्र की दृष्टि हो तो जातक की आयु 6 वर्ष की होती है |

7 वर्ष की आयु का विचार-

यदि सूर्य, मंगल और शनि लग्न में हो और निर्बल चंद्रमा वृषभ अथवा तुला राशि का सप्तम स्थान में हो और उस पर बृहस्पति की दृष्टि ना पड़ती हो तो बालक की मृत्यु सात या आठवें वर्ष में होती है | सारावली में लिखा पाया जाता है उपर्युक्त योग में वृषभ का चंद्रमा उच्च होता है, इस कारण निर्बल का अर्थ क्षीण चंद्रमा है | परंतु एक दूसरे पुस्तक में सूर्य, मंगल, शनि लग्न में हो बुध सप्तम में हो और क्षीण चंद्रमा गुरु से नहीं देखा जाता हो ऐसा योग पाया जाता है |

यदि लग्न और सातवें भाव में पाप ग्रह हैं तथा लग्न में चंद्रमा भी हो और लगनाधिपती पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो जातक की आयु 7 वर्ष की होती है |

8 वर्ष की आयु का विचार- (balarishta yoga in kundali)

यदि चंद्रमा निर्बल हो और अष्टम स्थान में पाप ग्रह हों तो जातक की आयु 8 वर्ष की होती है |

यदि पांचवें तथा नौवें भाव में पाप ग्रह स्थित हो और छठे और आठवें स्थान में शुभ ग्रह हो और पंचम तथा नवम भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो बालक की मृत्यु 8 वर्ष में होती है |  

9 वर्ष की आयु का विचार-( (balarishta yoga in kundali) )

यदि सूर्य और चंद्रमा और मंगल पंचम स्थान में हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह ना हो और ना ही उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो बालक की मृत्यु 9 वर्ष में होती है |

लग्नेश जिस स्थान में बैठा हो यदि उस स्थान से आठवें स्थान में निर्बल चंद्र हो और उस पर सब पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो बालक की 9 वर्ष के पूर्व ही मृत्यु हो जाती है |

यदि लग्नेश पाप ग्रह हो और चंद्रमा के स्थान से बारहवें स्थान में बैठा हो और उस पर लग्नेश के अतिरिक्त किसी अन्य पाप ग्रह की दृष्टि हो और इसी प्रकार यदि लग्नेश पाप ग्रह होकर चंद्रमा से द्वादशस्थ  हो और लग्नेश चंद्रमा के नवांश में हो तो ऐसे योग में जातक की आयु 9 वर्ष की होती है |

यदि लगनाधिपति और चंद्र राशि अधिपति अस्त होकर छठे, आठवें या बारहवें स्थान में बैठे हो तो जिस राशि पर लगनाधिपति और राशि अधिपति बैठा हो तो उसी की संख्या वाले वर्ष में जातक की मृत्यु होगी |

यदि चंद्रमा मिथुन या कन्या राशि गत हो और साथ में सूर्य और मंगल बैठे हो और शुभ ग्रह की दृष्टि से वंचित हो अर्थात यदि सूर्य, चंद्र और मंगल तीनों ग्रह मिथुन अथवा कन्या राशि का हो तो और शुभ ग्रह की दृष्टि उन पर ना पड़ती हो तो जातक की मृत्यु नौवें वर्ष में होती है |

यदि लग्नेश सूर्य हो और उसके साथ शनि भी हो और चंद्रमा से दृष्ट हो तो 9 वर्ष की आयु होती है |

यदि चंद्रमा सूर्य और शनि अष्टम स्थान में हो तो 9 वर्ष के अभ्यंतर ही मृत्यु होती है |

10 वर्ष की आयु का विचार-(balarishta yoga in kundali)

यदि राहु सप्तम स्थान में हो और उस पर सूर्य और चंद्र की दृष्टि पढ़ती हो और शुभ ग्रह की दृष्टि ना पढ़ती हो तो बालक की मृत्यु दसवें या 12 वर्ष में होती है |

यदि शनि मकर के नवांश में हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो ऐसे बालक की आयु 10 वर्ष की होती है और जन्म से ही लोग उससे शत्रुता करते हैं |

11 वर्ष की आयु का विचार-

यदि सूर्य और गुरु एक साथ हो और उन पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक की आयु 11 वर्ष की होती है |

12 वर्ष की आयु का विचार- (balarishta yoga in kundali)

यदि सप्तम स्थान में राहु हो और उस पर शनि, सूर्य आदि ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक 12 वर्ष तक जीता है |

यदि चंद्रमा सिंह राशि में हो और सूर्य शनि के साथ आठवें स्थान में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो बालक 12 वर्ष तक जीवित रहता है |

यदि लग्नेश और चंद्र लग्न से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में बैठे हो और सूर्य के साथ हो तथा शुभ ग्रह से दृष्ट अथवा युक्त ना हो तो बालक की मृत्यु 12 वर्ष में होती है |

यदि शनि वृश्चिक के नवांश में हो और उस पर केवल सूर्य की दृष्टि पड़ती हो तो बालक की मृत्यु 12 वर्ष में होती है, और पिता का प्रेम भाव उस बालक पर नहीं रहता |

यह 12 वर्ष तक की आयु के अरिष्ट योग बताए अगले लेख में जानेंगे अरिष्ट भंग योग इसी 12 वर्ष तक की आयु के जो अरिष्ट योग बताए हैं इनके कुछ अरिष्ट भंग योग भी होते हैं अगले लेख में उन पर चर्चा करेंगे |

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श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ

Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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