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surya ke upay-सूर्य के सरल उपाय

सूर्य के सरल एवं सटीक उपाय

surya ke upay – ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है | काल पुरुष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है | शरीर में मस्तिष्क पर सूर्य का अधिकार होता है |  आपकी पत्रिका में सूर्य किसी भी भाव में किसी भी राशि में स्थित हो इन उपायों से आपका सूर्य मजबूत होगा | इन उपायों से किसी प्रकार के दुष्प्रभाव जातक के ऊपर नहीं पड़ते | सिर्फ पर सिर्फ लाभ ही होगा |

उपाय 1 :-

किसी भी रविवार को जब कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र हो उसी रविवार से प्रातः स्नान करके तांवे के लोटे में शुद्ध जल, थोडा सा तीर्थ जल, थोड़ी से शहद (हनी) डालकर सूर्य को जल देना चाहिए | जल देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मन्त्र का जाप करना चाहिए |

विधि –

किसी गमले में मिट्टी डाले मिट्टी आधा गमला ही रहना चाहिए | जिसके कारण जल देते समय जल के छीटे आपके पैरों पर नहीं आने चाहिए | जल के छींटे पैरों पर आने से पुन्य की जगह पाप लगेगा | ऊपर बताये गए रविवार से आरम्भ करके इस प्रयोग को नियमित करना चाहिए | यदि आपका सूर्य निर्बल है तो बलवान होगा और यदि सूर्य आपकी कुंडली में अच्छा है तो और भी मजबूत होकर अच्छा फल देगा |    

उपाय 2 – (surya ke upay)

तांबे के सात सिक्के छेद वाले ले लें | सिक्के के आभाव में किसी वर्तन वाले या किसी सुनार की दुकान से तांबे के सात गोल टुकडे कटवाकर उसमे बीच में छेद करा लें | ये भी वही काम करेंगे |

विधि – जिस रविवार के आरम्भ में सूर्य का नक्षत्र हो (कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, या उत्तराषाढ़ा) उस रविवार से आरम्भ करना है | एक सिक्के को अपने ऊपर से सात (clockwise) बार सीधे उतार कर बहते जल में विसर्जित करना है | इस प्रकार सात रविवार यह प्रयोग करना है | इस प्रयोग में किसी भी मन्त्र की आवश्यकता नहीं होती | ध्यान रखें यदि किसी रविवार इस प्रयोग को नहीं कर पाते तो यह प्रयोग खंडित नहीं होगा | आपको कुल सात रविवार करना है | इसमे निरंतरता जरुरी नहीं है | इस प्रयोग से सूर्य मजबूत होगा और सूर्य के शुभ फल प्राप्त होंगे |

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उपाय 3-

सात लाल गुंजा को लाल धागे में पिरोकर गले में या पुरुष वर्ग को सीधे हाँथ में और स्त्री वर्ग को बाएं हाँथ में धारण करना चाहिए |

विधि – सूर्य के नक्षत्र से युक्त रविवार से आरम्भ करना चाहिए | प्रथम दिन एक गुंजा लेकर उसको सूर्य मन्त्र से 1100 बार अभिमंत्रित करके धागे में पिरोना चाहिए | द्वतीय दिवस दुसरे गुंजा को उपरोक्त रीति से पिरोते हुए शनिवार तक सात गुंजा अभिमंत्रित होकर धागे में पिरो दिए जायेंगे | रविवार को उसी मन्त्र से मन्त्र के अंत में स्वाहा लगाकर 1100 आहुति देकर धारण करना चाहिए | इस प्रयोग से भगवान भास्कर की कृपा सदा आप पर बनी रहेगी |  

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उपाय – 4

सूर्य को मजबूत बनाने का सबसे आच्छा उपाय है आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करना | नीचे बाल्मीकि रामायण के अनुसार आदित्य ह्रदय स्त्रोत दिया गया है |

विनियोग –

ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो

भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः ||

आदित्य ह्रदय स्त्रोत –

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥ 1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।

उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः ॥ 2॥

राम राम महाबाहो श‍ृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ 3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।

जयावहं जपेन्नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥ 4॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।

चिन्ताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ 5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥ 6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥ 7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥ 8॥

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः ।

वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥ 9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ॥ 10॥ या भानुर्विश्वरेता

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।

तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान् ॥ 11॥ या मार्तण्ड

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः ।

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ॥ 12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः ।

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ॥ 13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।

कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥ 14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते ॥ 15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥ 16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥ 17॥

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।

नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ॥ 18॥ या मार्तण्डाय

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे ।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥ 19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥ 20॥

तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे । या हरये विश्वकर्मणे

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥ 21॥

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः ।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥ 22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।

एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥ 23॥

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ॥ 24॥

फल श्रुति (surya ke upay)

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ 25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ 26॥

अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि ।

एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम च यथागतम् ॥ 27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा ।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥ 28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् ।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥ 29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।

सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ॥ 30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं

मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।

निशिचरपतिसङ्क्षयं विदित्वा

सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥ 31॥

॥ इति आदित्यहृदयं मन्त्रम् ॥

किसी भी रविवार से आरम्भ कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करना चाहिए | सूर्य से सम्बंधित किसी भी प्रकार की पीड़ा नहीं हो सकती | साथ भगवान की कृपा सदा आप पर बनी रहेगी | आप यदि कसी प्रकार से कोई उपाय नहीं कर पा रहे हैं तो आपको धारण करना चाहिए सूर्य यंत्र |

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श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ

Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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