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bhagwan kaha milte hain

भगवान कहाँ मिलते हैं

bhagwan kaha milte hain-मित्रो हमारे सभी के मन में एक विचार सदा बना रहता है कि भगवान कहाँ मिलेंगे । और भगवान की खोज में भगवान की प्राप्ति के लिए हम अनेक साधनाएँ करते रहते हैं | भगवान की मूर्ति के सामने आँख खोलकर माला लेकर भगवान के नाम का निरंतर जाप करते रहते हैं | भगवान को प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार के भोग अनेक प्रकार के चढ़ावा या सही मायने में अनेक प्रकार के लोभ भगवान को देते हैं | की शायद हमारे किसी लोभ में आकर भगवान हमें दर्शन देंगे | किन्तु हर संभव प्रयास करने के बाद भी भगवान हमें नहीं मिलते क्या भगवान वहां नहीं होता या हमारे उस आहंकारी भोग के लोभ में नहीं आते |

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तो भगवान कहाँ मिलते हैं | वैसे तो ये कोई नहीं जानता किंतु कुछ द्रष्टांत के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि भगवान कहँ मिलेंगे। तथा ये भी जान सकते हैं कि भगवान को खोजना बहुत ही आसान है। या यों कहें कि भगवान से मिलना बहुत आसान है। तो सबसे पहले जानते हैं भगवान के बारे में |

हम सभी ये जानते हैं कि हम सब भगवान की संतान हैं । जिसका प्रमाण हमारे शास्त्र हैं | शात्रानुसार सृष्टि का निर्माण भगवान ने किया । उन्हीं से ऋषि मुनि उत्पन्न हुए और उन्हीं ऋषियों की हम संतान हैं । हम जो अपना गोत्र बताते हैं उसमें किसी न किसी ऋषि मुनि का नाम लेते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि हम भगवान की संतान हैं । तो अब चलते हैं प्रश्न को ओर कि भगवान कहा मिलते हैं । इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह द्रष्तांत जरूरी है ।

कहानी – bhagwan kaha milte hain

एक दिन शाम के समय कुछ अंधेला शुरु हुआ ही था कि एक बूढ़ी माताराम आपनी झोपड़ी के बाहर कुछ खोज रहीं थीं। उन्हें कुछ खोजते हुए देखकर उनकी सहायता के लिए कुछ लोग एकट्ठे हुए उन्होंने माताराम से पूछा माताराम क्या ढूड़ रही हो ? माताराम ने जबाब दिया बेटा हमारी सुई गुम गई है उसे ही ढूड़ रही हूँ।

कुछ लोग माताराम की सुई ढूड़ने में मदद करने लगे। सभी ने काफी प्रयास किया परन्तु सफलता नहीं मिली | धीरे – धीरे अंधेरा बढ़ने लगा और माताराम अधिक चिंतित होने लगीं ओअर कहने लगीं शायद हमारी सुई नहीं मिलेगी | तभी उसी भीड़ में से एक सज्जन ने पूछा कि माताराम से पूछो कि सुई गिरी कहाँ है। माताराम से पूछने पर उन्होंने जबाब दिया बेटा में अपनी झोपडी में गुदरी सिल रही थी वहीं हमारी सुई गिर गई।

सज्जन ने पुनः कहा अरे माताराम आपकी सुई झोपड़ी के अंदर गिरी और आप उसे बाहर ढूड़ रही हो! माताराम बोलीं बेटा उस समय अंदर अधेरा था किंतु बाहर कुछ उजाला था सो में बाहर ढूड़्ने आ गई। माताराम की बात सुनकर सभी हतप्रभ रह गए | मन में सोचने लगे माताराम जबसे मेहनत करा रहीं हैं | सुई गिरी अन्दर और ढूढ़ बाहर रहे हैं | आखिर सुई मिले तो मिले कैसे |

तभी जिन सज्जन ने पहले प्रश्न किया था उनकी आवाज आई | सज्जन बोले माताराम जब सुई अंदर गिरी है तो वो बाहर कैसे मिलेगी ! माताराम बोलीं बेटा अंदर तो अंधेरा है तो अंधेरे में सुई कैसे मिलेगी उसे तो उजाले में ही ढूड़ना पड़ेगा । सज्जन फिर बोले माताराम लेकिन सुई है तो अंदर । जब सुई अन्दर गिरी है तो वह बाहर कैसे मिलेगी |

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कुछ देर मौन रहने के बाद माताराम बोली बेटा यही तो समझाना चाहते हैं, कि (bhagwan kaha milte hain) तुम भगवान को उजाले में ढूड़ते हो वहाँ नहीं खोजते जहाँ वह बैठा है । भगवान आपके अन्दर बैठा है और आप उसे बाहर के उजाले में ढूँढ़ रहे हो तो वह आपको कैसे मिलेगा |

मित्रो बात समझ में आ गई होगी। हम भगवान की संतान हैं भगवान हमारे अंदर है उसे कहीं खोजने की जरूरत नहीं है। बाबा तुलसीदास कहते हैं।

हरि ब्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रकट होहिं में जाना॥

हम अन्दर भगवान को खोजें कैसे | बहुत ही सरल है मित्रो जिस प्रकार हम खुली आँखों से बाहर की दुनिया देखते है | उसी प्रकार हम बंद आँखों से अन्दर की दुनिया देख सकते हैं | हमारे अन्दर भी एक दुनिया है लेकिन उसे बहुत जल्दी नहीं देख सकते उसमे थोडा समय लगेगा | आपको चोबीस घंटे में जब भी समय मिलता है एक समय निश्चित कर लें | उस निश्चित समय में आँखे बंद करके अन्दर देखने की कोशिस करना है | कुछ समय लगेगा किन्तु दिखेगा अवश्य | पहले आपको कुछ अँधेरा दिखेगा फिर धीरे-धीरे कुछ प्रकाश दिखने लगेगा |

उपवास के नियम 

कभी-कभी वह प्रकाश पुंज इतना अधिक तेज दिखाई देगा की आपकी आँखे चौंधिया जायेंगी | घबराएँ नहीं स्थिरता बनायें रहें | उसी प्रकाश पुंज में आपको आपके इस्ट के दर्शन होंगें | और जिस दिन आपको आपके इस्ट के दर्शन हुए समझ लीजिये कि आपकी मेहनत सफल हो गयी और आपको भगवान के दर्शन हो गए | महामुनी सुतीक्षण को भी पहले भगवान के दर्शन अन्दर हुए थे | जब तक आपको भगवान के दर्शन अन्दर नहीं होंगे तब तक आपको बाहर दर्शन नहीं हो सकते |

यथार्थ में यदि भगवान के दर्शन करना चाहते हैं तो पहले अपने अन्दर भगवान को खोजें फिर बाहर तो अपने आप ही मिल जायेंगे | bhagwan kaha milte hain का आशय समझ में आ गया होगा |

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