जया एकादशी व्रत कथा: फल, विधि एवं महत्व
Jaya Ekadashi Vrat Katha – जया एकादशी व्रत हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष में आता है। जया एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
जया एकादशी व्रत – Jaya Ekadashi Vrat Katha
युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन ! आपने माघ मासकृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी के बारे में बताया, अब कृपा करके यह बताइए की शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी होती है | उसकी विधि क्या है ? तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है |
भगवान श्रीकृष्ण बोले – राजेंद्र बतलाता हूं सुनो, माघ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है उसका नाम जया है | वह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है | पवित्र होने के साथ ही पापों का नाश करने वाली है, तथा मनुष्यों को भोग और मोक्ष प्रदान करती है | इतना ही नहीं ब्रह्म हत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करने वाली है | इसका व्रत करने पर मनुष्य को कभी प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ता | इसलिए राजन प्रयत्न पूर्वक जया नाम की एकादशी का व्रत करना चाहिए |
जया एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है स्वर्ग लोक में देवराज इंद्र राज्य करते थे | देवगण पारिजात वृक्षों से भरे हुए नंदन वन में अप्सराओं के साथ बिहार कर रहे थे | 50 करोड़ गंधर्वों के नायक देवराज इंद्र ने स्वेच्छा अनुसार वन में बिहार करते हुए बड़े हर्ष के साथ नृत्य का आयोजन किया | उसमें गंधर्व गान कर रहे थे | जिनमें पुष्पदन्त, चित्रसेन तथा उसका पुत्र यह तीन प्रधान थे | चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था | मालिनी से एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवंती के नाम से विख्यात थी | पुष्पदंत गंधर्व का एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यावन कहते थे | माल्यवान पुष्पवंती के रूप पर अत्यंत मोहित था | यह दोनों भी इंद्र के संतोषार्थ नृत्य करने के लिए आए थे |
इन दोनों का गान हो रहा था, उनके साथ अप्सराएँ भी थीं | परस्पर अनुराग के कारण ये दोनों मोह के वशीभूत हो गए | चित्त में भ्रांति आ गई | इसलिए वे शुद्ध गान न गा सके | कभी ताल भंग हो जाता तो कभी गीत भंग हो जाता था | इन्द्र ने इस प्रमाद पर विचार किया और इसमें अपना अपमान समझा कर वे कुपित हो गए | अतः इन दोनों को श्राप देते हुए बोले – ओ मूर्खो तुम दोनों को धिक्कार है ! तुम लोग पतित और मेरी आज्ञा भंग करने वाले हो, तथा पति-पत्नी के रूप में रहते हुए पिशाच हो जाओ |
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इंद्रके इस प्रकार श्राप देने पर इन दोनों की बड़ा दुख हुआ | वे हिमालय पर्वत पर चले गए और पिशाच योनि को पाकर भयंकर दुख भोगने लगे | शारीरिक पातकसे उत्पन्न ताप से पीड़ित होकर दोनों ही पर्वत की कंदराओं में विचरते रहते थे | एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी पिशाची से कहा – हमने कौन सा पाप किया है, जिससे यह पिशाच योनि प्राप्त हुई ? नरक का कष्ट अत्यंत भयंकर है तथा पिशाच योनि भी बहुत दुख देने वाली है | अतः पूर्ण प्रयत्न करके पाप से बचना चाहिए |
इस प्रकार चिंतामग्न होकर वे दोनों दुख के कारण सूखते जा रहे थे | योग से उन्हें माघ मास की एकादशी प्राप्त हो गई | जो जया नाम से विख्यात तिथि जो सब तिथियां में उत्तम मानी जाती है | उस दिन उन दोनों ने सब प्रकार से आहार त्याग दिए | जलपान तक नहीं किया | किसी जीव की हिंसा नहीं की, यहां तक की फल भी नहीं खाया | निरंतर दुख से युक्त होकर भी वे एक पीपल के समीप बैठ रहे | सूर्यास्त हो गया | उनके प्राण लेने वाली भयंकर रात उपस्थित हुई | उन्हें नींद नहीं आई वे रति या और कोई सुख भी नहीं पा सके | सूर्योदय हुआ | द्वादशी का दिन आया | उन पिशाचों के द्वारा जया एकादशी के उत्तम व्रत का पालन हो गया | उन्होंने रात में जागरण भी किया था |
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उसे व्रत के प्रभाव से तथा भगवान विष्णु की शक्ति से उन दोनों की पिशाचिता दूर हो गई | पुष्पवंती और माल्यावन अपने पूर्व रूप में आ गए | उनके हृदय में वही पुराना स्नेह उमड़ रहा था | उनके शरीर पर पहले ही जैसे अलंकार शोभा पा रहे थे | वे दोनों मनोहर रूप धारण करके विमान पर बैठे और स्वर्ग लोक में चले गए | वहां देवराज इंद्र के सामने जाकर दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया, उन्हें इस रूप में उपस्थित देखकर इंद्र को बड़ा विष्मय हुआ | उन्होंने पूछा – बताओ कि पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का पिशाचत्व दूर हुआ है | तुम मेरे शाप को प्राप्त हो चुके थे, फिर किस देवता ने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है |
माल्यावन भोला – स्वामिन ! भगवान वासुदेव की कृपा तथा जया नामक एकादशी के व्रत से हमारी पिशाचता दूर हुई है |
इंद्र ने कहा – तो अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधापन करो | जो लोग एकादशी के व्रत में तत्पर और भगवान श्री कृष्ण के शरणागत होते हैं, वह हमारे भी पूजनीय होते हैं |
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – राजन ! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए | नृपश्रेष्ठ ! जया एकादशी ब्रह्म हत्या का पाप भी दूर करने वाली है | जिसने जया एकादशी का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिए और संपूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया | इसमें महात्म के पढ़ने और सुनने से कई यज्ञों का फल मिलता है |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: Jaya Ekadashi Vrat Katha
1 – जया एकादशी व्रत कथा क्या है?
जया एकादशी व्रत कथा पद्म पुराण में वर्णित है। यह कथा राजा युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच संवाद के रूप में है। राजा युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से जया एकादशी व्रत के महत्व और विधि के बारे में पूछते हैं। भगवान कृष्ण उन्हें व्रत की विधि और कथा बताते हैं।
2 – जया एकादशी व्रत कथा का सार क्या है?
जया एकादशी व्रत कथा में, नंदन वन में गंधर्व और अप्सराओं के बीच उत्सव का वर्णन है। उत्सव के दौरान, अप्सरा पुष्यवती और गंधर्व माल्यवान एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं। वे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण खो देते हैं और अपवित्र कार्य करते हैं। इस अपराध के लिए, इंद्र उन्हें पिशाच बनने का शाप देता है।
पिशाच योनि में जन्म लेने के बाद, पुष्यवती और माल्यवान को पश्चाताप होता है। वे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और जया एकादशी व्रत रखते हैं। व्रत के पुण्य प्रभाव से, वे पिशाच योनि से मुक्त होकर स्वर्गलोक प्राप्त करते हैं।
3 – जया एकादशी व्रत का महत्व क्या है?
जया एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक तरीका है। जया एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से, व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4 – जया एकादशी व्रत की विधि क्या है? Jaya Ekadashi Vrat Katha
जया एकादशी व्रत दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद शुरू होता है और द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद समाप्त होता है। व्रत के दौरान, व्यक्ति को निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए:
- उपवास रखें,यानी पानी और फलाहार भी न करें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें।
- रात्रि जागरण करें।
- दान-पुण्य करें।
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2 thoughts on “Jaya Ekadashi Vrat Katha”
धन्यवाद ऐसा ब्लॉग लिखने के लिए,आपका ये ब्लॉग बहुत ही अच्छा या प्रेरणादायक है इसे हमे अच्छी बातें सीखने को मिलती है, आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया है। आपका अनुभव सहजता से सिखने को प्रेरित करता है। आपकी बातें मुझे सोचने पर मजबूर करती हैं और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।
धन्यवाद पंडित जी