maharishi ved vyas – पिछले लेख का शेष भाग :-
maharishi ved vyas – व्यासजी व्रतचर्या के सम्बन्ध में बताते हैं – व्रती को चाहिए कि वह सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय करे | अपनी शक्ति के अनुसार हवन करे | प्रति दिन स्नान तथा परिमित भोजन करे गुरु देवता तथा ब्राम्हणों का पूजन करे और व्रत के स्वमी देवता की प्रार्थना – पूजा करे | व्रत के अंत में व्रत की पूर्णता के लिए यथाविधि पारण करे |
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वेदव्यास रचित भविष्यपुराण तो व्रतों का कोष ही है | इसका अधिकांश भाग व्रतों से परिपूर्ण है | प्रारम्भ में ही वेदव्यास जी व्रत उपवास की महिमा बताते हुए कहते हैं कि व्रत, उपवास, नियम, विविध प्रकार के दान से देवता, ऋषि- महर्षि आदि उन व्रतियों पर प्रसन्न होते हैं | फिर देवता की जो तिथि है उस पर उपवास करने पर तो देवता अवश्य ही प्रसन्न होते हैं —
भविष्यपुराण ब्रा० १६ | १३ -१४ -(maharishi ved vyas)
व्रतोपवास नियमैर्नानादानैस्तथा नृप |
देवदयो भवन्त्येव प्रीतास्तेषां न संशयः ||
विशेषादुपवासेन तिथौ किल महीपते |
प्रीता देवादयस्तेषां भवन्ति कुरुनन्दन ||
और भविष्यपुराण में प्रतिपत कल्प से व्रतों का आरम्भ किया गया है | प्रतिपत कल्प में सर्वप्रथम तिथियों के प्रादुर्भाव का आख्यान है | ब्रम्हाजी ने जिस दिन श्रष्टि का प्रारम्भ किया उसक नाम प्रतिपद रखा इसलिए प्रतिपदा पहली तिथि है | प्रतिपदा को ब्रम्हाजी का पूजनोत्सव तथा व्रत किया जाता है | आगे द्वतीया कल्प, तृतीयाकल्प- इस प्रकार के व्रतों का वर्णन किया है | द्वतीय कल्प में महर्षि च्यवन की कथा आई है तथा पुष्प द्वतीया व्रत का वर्णन आया है |
इसी प्रकार अशून्य शयनव्रत का विधान वर्णित है | तृतीया कल्प में गौरी व्रत, चतुर्थी कल्प में गणेश चतुर्थी व्रत, पंचमी कल्प में नागपंचमी व्रत का विस्तार से वर्णन है | षष्ठी कल्प में षष्ठी तिथि के अधिष्ठाता भगवान कार्तिकेय के साथ षष्ठी व्रत का वर्णन है | सप्तमी तिथि भगवान सूर्य की है | इसलिए सप्तमी कल्प में भगवान सूर्य सम्बन्धी विभिन्न सप्तमी व्रतों का विस्तार से वर्णन है – रथसप्तमी, सूर्यकी रथयात्रा, फलसप्तमी, रहस्यसप्तमी, सिद्धार्थसप्तमी, विजयसप्तमी का वर्णन है | तदनन्तर द्वादस रविवार व्रतों का एवं आदित्यवार व्रत का वर्णन है | इसी प्रकार आगे जयंत सप्तमी, जयासप्तमी, महाजयासप्तमी, नन्दाप्तमी, मार्तण्ड सप्तमी, कामदा सप्तमी, और निक्षुभार्क सप्तमी का विधान उपदिष्ट है | भविष्य पुराण में भी सत्यनारायण कथा आई है जो स्कन्दपुराण रेवाखण्ड की कथा से भिन्नता रखती है |
भविष्यपुराण के सम्पूर्ण उत्तर पर्व में तो व्रत ही व्रत
maharishi ved vyas जी ने भविष्यपुराण के सम्पूर्ण उत्तर पर्व में तो व्रत ही व्रत हैं जिनमे सम्बतसर प्रतिपदा व्रत, अशोकव्रत, जातिस्मरभद्र व्रत, रम्भा तृतीया व्रत, गोष्पद तृतीया व्रत, हरकाली व्रत, ललिता तृतीया, उमामहेश्वर व्रत, सौभाग्य शयन, अक्षय तृतीया, सरस्वती व्रत, श्रीपंचमी, कमलषष्ठी, मन्दारषष्ठी, ललिताषष्ठी, मुक्ताभरण सप्तमी, अचलासप्तमी, बुधाष्टमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, दुर्वाष्टमी, श्रीवृक्ष नवमी, दशावतारव्रत, और आशादशमी मुख्य है | तदनन्तर विभिन्न द्वादशी व्रतों तथा उनके आख्यान का वर्णन है |
व्रत तथा उनके आख्यान
गोवत्सद्वादशी, देवशयनी एवं देवोत्थानी एकादशी- का वर्णन है | भीष्म पंचक व्रत, वामनद्वादशी, शिव चतुर्दशी व्रत, अनंत चतुर्दशी, पूर्णमासी तथा अमावस्या व्रतों का वर्णन है | सावित्री व्रत में सत्यवान सावित्री की कथा तथा वट वृक्ष पूजन की महिमा वर्णित है | इसके बाद वारव्रतों तथा नक्षत्र व्रतों का वर्णन है | भद्रा तिथि का आख्यान आया है | शनैश्चेर व्रत में पिप्लाद का आख्यान आया है | उत्तरपर्व के 129 वे अध्याय में लगभग शताधिक प्रकीर्ण तीर्थों का वर्णन आया है |
पद्मपुराण की विशेष महिमा
पुराणों में पद्मपुराण की विशेष महिमा है | इसके श्रष्टि खण्ड में तिथि, मास तथा नक्षत्रों में होने वाले रुद्रव्रत, नीलव्रत, प्रीतिवृत, गौरीव्रत, शिवव्रत, सोम्यव्रत, सौभाग्य व्रत, सारस्वातव्रत, साम्यव्रत, आनंदव्रत, अहिंसाव्रत, सूर्यव्रत, विष्णुव्रत, शीलव्रत, देवीव्रत, वैनायक व्रत, सौर व्रत, भवानी व्रत, मोक्ष व्रत, सोमव्रत, आदि का वर्णन व्यासजी ने किया है | उत्तरखण्ड में वर्ष भर की 26 एकादशी व्रतों का विधान तथा उनके माहात्म्य की कथाएं विस्तार से आयीं हैं | साथ ही चातुर्मास्य का भी वर्णन है |
स्कन्द पुराण में विस्तार से विभिन्न व्रतों की चर्चा आई है | घर-घर में कही सुनी जाने वाली श्रीसत्यनारायण कथा की प्रसिद्ध कथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड के नाम से प्रसिद्ध है |
maharishi ved vyas द्वारा व्रतों का विधान
मत्स्यपुराण में व्यासजी ने विस्तार से व्रतों का विधान बतलाया है | यथा- नक्षत्र शयन व्रत, आदित्य शयन व्रत, श्रीकृष्णा अष्टमी, रोहिणी चन्द्र दर्शन, सौभाग्यशयन, अनन्त तृतीया, रसाकल्याणिनी व्रत, आनंदकरी तृतीया, अक्षय तृतीया, सारस्वत व्रत, भीमद्वादशी, अशून्यशयन, अंगारक व्रत, विशोक सप्तमी, फलसप्तमी, मंदारसप्तमी, तथा विभूति द्वादशी आदि | मत्स्यपुराण के अध्याय 101 में देवव्रत, रुद्रव्रत, प्रीतिवृत आदि 60 वातो का एक साथ वर्णन है |
वराहपुराण के व्रत प्रकरण में सर्वप्रथम प्रतिपदा से अमावस्य तथा पुनः पूर्णिमा तिथियों की उत्पत्ति की कथा है और प्रत्येक तिथि के देवता का निरूपण है| तदनन्तर मत्स्य, कूर्म आदि दशावतारों के द्वादशी व्रतों की कथाएं हैं और फिर प्रकीर्ण व्रतों में शुभव्रत, धन्यव्रत, सौभाग्य आदि व्रतों का वर्णन है
मानसिक व्रतों की चर्चा करते हुए व्यासजी बताते हैं कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय ( चोरी न करना ) तथा ब्रम्हचर्य का पालन ये सब मानस व्रत हैं | सभी व्रतों में इनका पालन आवश्यक है |
वाराहपुराण
अहिंसा सत्य मस्तेयं ब्रम्हचर्य मकल्मषम |
एतानि मानसान्याहुरव्रतानि व्रत धारिणी ||
इस प्रकार व्यासजी द्वारा प्रतिपादित व्रत बहुत विशाल हैं | महाभारत में भी व्रतों के लंबे अध्याय हैं | एक विशेष बात यह भी है कि व्रतों का जितना परवर्ती वाग्ङमय है सब व्यासजी से उपकृत है | यथा – कृत्यकल्पतरु, हेमन्द्रिका व्रतखण्ड, स्मृतितत्व, वर्षकृत्यकौमुदी, निर्णयसिन्धु, भगवंत-भास्करका समयमयूख, संस्कारमयूख, वीरमित्रोदयका, परिभाषा प्रकाश, ,व्रतप्रकाश, धर्मसिन्धु, व्रतकल्पद्रुम, व्रतराज, व्रतार्क, व्रतकौस्तुभ, मुक्तकसंग्रह, एवं उद्दापन सम्बन्धी – उद्दापन कौमुदी, उद्दापन चन्द्रिका, आदि इन सभी व्रत ग्रंथों में प्रधान रूप से वेदव्यास रचित पुराणों के वचन ही संगृहीत हैं | इनमे एक स्थान पर ही सभी पुराणों में आए व्रत उपवास संबन्धी वचन मिल जाते हैं | व्रतनिधि भगवान वेदव्यास व्रतों के आदि उपदेष्टा हैं | और सभी व्रत कर्ताओं के आदर्श हैं | भारतीय जनमानस सदा उनका ऋणी रहेगा | इन विशाल वृद्धि वाले भगवान वेदव्यास जी को बार-बार नमन करते हैं |
इस लेख में हमने ” व्रतों के आदि उपदेष्टा भगवान वेदव्यास और उनकी व्रतचर्या ” के बारे में संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में ” व्रतपर्वोत्सव पर स्वामी विवेकानन्द जी के विचार ” इस विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |
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