पूर्णिमा व्रत कैसे करना चाहिए
Purnima Vrat ki Vidhi – आज हम जानेंगे पूर्णिमा व्रत की क्या विधि होती है, इसे किस प्रकार करना चाहिए, पूर्णिमा व्रत में किसकी पूजा की जाती है, पूर्णिमा व्रत की पूजा की क्या विधि है और पूर्णिमा व्रत में हमें क्या खाना चाहिए | उपरोक्त सभी बातों के बारे में जानेंगे और साथ ही पूर्णिमा व्रत के लाभ एवं पूर्णिमा व्रत का महत्व, इस लेख के माध्यम से इन सारी बातों के बारे में जानते हैं | सबसे पहले जानते हैं पूर्णिमा व्रत का परिचय, हमारे हिंदू माह में शुक्ल पक्ष की जो अंतिम तिथि होती है उस अंतिम तिथि को पूर्णिमा कहते हैं | और इसी पूर्णिमा का व्रत करने का शास्त्र का आदेश है |
हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा शुक्ल पक्ष की अंतिम 15 वीं तिथि होती है इस दिन चंद्रमा आकाश में पूर्ण रुप से दिखाई देता है | पूर्णिमा व्रत का हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक चंद्रमा बलवान माना जाता है | शास्त्रों के अनुसार देखें तो पूर्णिमा तिथि चंद्रमा को सर्वाधिक प्रिय होती है | पूर्णिमा के दिन पूजा-पाठ दान स्नान आदि करना चाहिए | वैसे तो सभी पूर्णिमा पूजनीय मानी गई है एवं मनुष्य को 12 माह की पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए |
यदि किसी कारण वस 12 मास की पूर्णिमा का व्रत आप नहीं कर पाते हैं तो वैशाख, कार्तिक और माघी पूर्णिमा को अवश्य व्रत करना चाहिए | संभव हो तो तीर्थ स्थल पर स्नान और दान करना चाहिए, और यदि संभव ना हो तो पूर्णिमा के दिन जल में तीर्थ जल मिलाकर स्नान करना बहुत पुण्य फलदाई होता है |
पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि
purnima vrat ki puja vidhi – पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर प्रातः काल संकल्प लेकर पूर्ण विधि-विधान से चंद्र देव की पूजा करनी चाहिए | चंद्रमा की पूजा करते समय मनुष्य को चंद्रमा के इस विशेष मंत्र ॐ सोम सोमाय नमः या अन्य किसी चंद्र मंत्र का उच्चारण करना चाहिए | इसी नाम मंत्र से चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए | शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा का भगवान भोलेनाथ से भी घनिष्ठ संबंध माना जाता है | शास्त्रों की मानें तो भगवान शिव ने चंद्रमा को अपनी जटाओं में धारण कर रखा है, इसलिए इस दिन यदि चंद्रमा की पूजा के अतिरिक्त भगवान भूत भावन भोलेनाथ की पूजा भी की जाए तो अनंत गुना फल प्राप्त होता है |
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखे तो चंद्रमा स्त्री ग्रह है इसलिए मां पार्वती का भी प्रतीक माना गया है | यदि भगवान शिव के साथ मां पार्वती एवं संपूर्ण शिव परिवार की पूजा की जाए तो अत्यंत शुभ फलदाई माना जाता है | वृती को चाहिए कि जिस दिन व्यक्ति व्रत करता है उस दिन पूर्ण नियम संयम के साथ अपने आराध्य के नाम का स्मरण करता रहे | व्रत निराहार भी होता है निर्जला अर्थात बिना जल ग्रहण किए निराहार अर्थात किसी भी प्रकार का आहार ना लें | और तीसरा होता है फलाहार अर्थात फलों का सेवन कर सकते हैं | जिनसे निर्जला, निराहार या फलाहार में भी व्रत नहीं चलता वह एक बार संध्या के समय नमक रहित भोजन ले सकते हैं |
पूर्णिमा व्रत में क्या खाना चाहिए (Purnima Vrat ki Vidhi)
purnima vrat me kya khana chahiye – वैसे तो ऊपर बताया कि किसी भी व्रत में निराहार ही व्रत करना चाहिए परंतु यदि निराहार व्रत नहीं चलता तो एक समय नमक रहित भोजन का विधान है | पूर्णिमा के व्रत में संध्या को चंद्रमा के दर्शन कर चंद्रमा को अर्घ देना चाहिए, तत्पश्चात भगवान भोलेनाथ माता पार्वती गणेश जी तथा कार्तिकेय इन सब की पूजा करने के बाद नमक रहित मीठा भोजन करना चाहिए | भोजन मौन धारण करके करें | प्रत्येक मास की पूर्णिमा को इसी प्रकार चंद्रमा की एवं भगवान भोलेनाथ के साथ उनके परिवार की पूजा करनी चाहिए | इससे व्यक्ति को सभी सुखों के साथ-साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है |
पूर्णिमा व्रत के लाभ –
purnima vrat ke labh – वैसे तो पूर्णिमा तिथि शिवपूजन और समस्त धार्मिक कार्यों के लिए अच्छी मानी गई है | कुछ पौराणिक कथाओं की माने तो इन कथाओं के अनुसार यह राहु ग्रह की जन्मतिथि भी मानी गई है | यदि हम पूर्णिमा का व्रत करते हैं और चंद्रमा सहित भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना करते हैं तो राहु के दुष्प्रभाव भी कम होते हैं | पूर्णिमा तो सभी महत्वपूर्ण है परंतु माघ, कार्तिक, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा को दान के लिए बहुत ही उत्तम बताया गया है | यदि समस्त पूर्णिमा का व्रत करना संभव ना हो तो कम से कम कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा का व्रत अवश्य करना चाहिए |
पूर्णमासी का व्रत करने वाली स्त्रियों को आजीवन सौभाग्य की प्राप्ति होती है | पूर्णिमा के व्रत के बारे में जितना बताया जाए उतना ही कम है | फिलहाल यही कहेंगे कि यथाशक्ति व्रत अवश्य करना चाहिए | पूर्णिमा व्रत से परिवारिक कलह मन की अशांति दूर होती है | विशेषकर जिन व्यक्तियों की कुंडली में चंद्र ग्रह पीड़ित हो, चंद्रमा के कारण जीवन में कोई समस्या आ रही है तो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए | जिन लोगों को अकारण भय बना रहता है, मानसिक चिंता अधिक सताती है उन्हें भी पूर्णिमा का व्रत करना लाभदायक रहेगा | दांपत्य जीवन में यदि कलह हो रही हो तो पति या पत्नी या दोनों पूर्णिमा का व्रत कर सकते हैं इससे भी दांपत्य जीवन मधुर रहेगा | पूर्णिमा के समय पपीता, केला, संतरा, अंगूर आदि कई फलों का सेवन किया जा सकता है |
पूर्णिमा व्रत का महत्व – (Purnima Vrat ki Vidhi)
purnima vrat ka mahatva – इस व्रत का शास्त्रों में अनेक महत्व बताए गए हैं | इस व्रत को यदि कुंवारी कन्या करती है तो उसे उत्तम वर की प्राप्ति होती है | कोई स्त्री इस व्रत को करती है तो उसे आजीवन सौभाग्य की प्राप्ति होती है | पति-पत्नी दोनों मिलकर इस व्रत को यदि करते हैं को दांपत्य जीवन सुखी एवं मधुर होता है, तथा उत्तम संतान की प्राप्ति होती है | किसी की कुंडली में यदि चंद्रमा कमजोर हो और वह जातक यदि इस व्रत को करता है तो चंद्रमा के दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं | राहु के दुष्प्रभाव भी कम करने के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता है | घर में सुख-शांति, यस वैभव बना रहे इसके लिए भी व्यक्ति को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए |
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