Pandit Ji

Akhand samrajya yoga

Akhand samrajya yoga,अखंड साम्राज्य योग

कैसे बनता है अखण्ड साम्राज्य योग

(Akhand samrajya yoga)अखंड साम्राज्‍य योग वो योग है जो कुंडली में होने पर आपकी सूरत बदल देता है। अखंड साम्राज्य योग होने पर अन्य सभी बुरे ग्रहों के प्रभाव स्वतः समाप्त हो जाते हैं। नौकरी, व्यापार, शिक्षा के क्षेत्रों में उच्च श्रेणी की सफलता दिलवाता है।

वैदिक ज्योतिष में अनेक शुभ योगों का वर्णन किया गया है, लेकिन एक ऐसा योग भी है जिसके बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। वह है अखंड साम्राज्य योग। ज्योतिष शास्त्र में इसे दुर्लभ योगों की श्रेणी में रखा गया है। यह जन्मकुंडली में लग्न और ग्रहों की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण निर्मित होता है।

जिस कुंडली में यह योग होता है वह अनंत संपत्ति और धन का स्वामी होता है। उसकी समृद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। माना जाता है कि 75 वर्ष तक इस योग का प्रभाव रहता है। आइये अब जानते हैं यह योग बनता कैसे है…

वैदिक ज्योतिष में 12 राशियां होती हैं जो तीन समूहों में विभाजित होती हैं। प्रत्येक समूह में चार-चार राशियां आती हैं, जिन्हें चर, स्थिर और द्विस्वभाव राशियां कहा जाता है। अखंड साम्राज्य केवल उन कुंडलियों में बनता है जो स्थिर लग्न वाली होती है। स्थिर लग्न वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ होते हैं।

अखण्ड साम्राज्य योग –(Akhand samrajya yoga)

एकादशेश, नवमेश तथा द्वातीयेश इनमे से कोई एक भी ग्रह चन्द्र लग्न से अथवा लग्न से केंद्र स्थान में स्थित हो और साथ भी यदि गुरु भी द्वतीय, पंचम अथवा एकादश भाव का स्वामी होकर उसी प्रकार केंद्र में स्थित हो तो अखण्ड साम्राज्य नामक योग बनता है | यह योग स्थाई साम्राज्य तथा धनादि प्रदान करने वाला महान योग है |

यह योग द्वतीयेश, नवमेश, एकादशेश तथा एक विशिष्ट प्रकार के गुरु द्वारा बना है | द्वातीयेश पर जब हम विचार करते हैं तो यदि द्वतीय भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि, निज राशि अथवा मित्र राशि में स्थित हो अथवा पारावातांश आदि शुभ वर्ग में स्थित हो तो सैकड़ों पर शासन करता है |

द्वतीय भाव का स्वामी यदि उच्च राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तो राज्य की प्राप्ति होती है | तात्पर्य यह है कि द्वतीय स्थान का शासन से घनिष्ट सम्बन्ध है और द्वातीयेश का केंद्रादि में स्थित होकर बलवान होना राज्य की प्राप्ति करवाता है |

Akhand samrajya yoga

इसी प्रकार जब हम नवमेश पर विचार करते हैं तो एक ऐसे सर्वोत्तम शुभ ग्रह पर विचार करते हैं जो भाग्य का प्रतिनिधि होने से समस्त राज्य, बल, धन आदि की खान है | अथवा नवमाधिपति का केंद्र में वलवान होकर स्थित होना राज्य  दे दे तो अतिश्योक्ति नहीं है | इसके अतिरिक्त नवम भाव राज्य कृपा का भाव भी माना गया है नवम भाव के स्वामी के बली होने से राज्य कृपा की प्राप्ति अथवा राज्य प्राप्ति का होना युक्तियुक्त है | इसी प्रकार एकादशेश भी हर प्रकार के लाभ का धोतक है उसका बली होना भी हर प्रकार का लाभ का सूचक है |

गुरु की बात करें तो वह तो धन कारक राज्य कृपा कारक ग्रह है ही जब वह धन अथवा लाभ का स्वामी बनेगा तो धन तथा राज्य कृपा का और भी अधिक बली प्रतिनिधि बन जाएगा | ऐसे मूल्यवान ग्रह का केंद्र में स्थित होना लग्न अथवा चन्द्र को भी धन तथा राज्यप्रद शुभता का देने वाला होगा |

कुण्डली नं 1

देखिये यह कुण्डली गुरु यहाँ एकादशेश और द्वतीयेश होकर प्रमुख दशम केंद्र में है और नवमेश शुक्र भी उसी प्रमुख केंद्र में है | ये दोनों न केवल लग्न से प्रमुख केंद्र में हैं अपितु लग्नेश से भी हैं | अतः साम्राज्य, धन सबका सुख लग्न को पंहुचा रहा है | गुरु शुक्र पर पापमध्यत्व के कारण इस योग का फल जातक को देर से प्राप्त होगा परन्तु प्राप्ति अवश्य होगी |

यह दूसरी कुण्डली देखिये इस कुंडली में एकादशाधिपति बुध लग्न से केंद्र में तथा द्वातीयाधिपति गुरु भी लग्न से केंद्र में स्थित है | इस प्रकार गुरु और बुध इस योग को पूरा करते हैं |

प्रथम कुण्डली में लग्न में शनि एवं राहु की युति बनती है | इस कारण अखण्ड साम्राज्य योग के कारण राज्य, धन, वैभव आदि तो प्राप्त हुए किन्तु लग्नेश शनि लग्न में होकर राहु के साथ होने के कारण यह व्यक्ति कठोर स्वभाव का हुआ | और शनि का लग्न में होने के कारण इसे अखण्ड साम्राज्य योग के फल भी देर से प्राप्त हुए |

मित्रो यह जानकारी आपको कैसी लगी हमे अवश्य बताएं | और आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे शेयर अवश्य करें | यदि आपके मन में कोई सवाल उठ रहा हो तो आप हमसे प्रश्न कर सकते हैं | हम जल्द ही आपके प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करेंगे |                         धन्यवाद

जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?

जानें कैसे कराएँ ऑनलाइन पूजा ?

श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top