एकादशी व्रत विधि एवं कथा
Aja ekadashi vrat katha – हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण कथा है जो भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली अजा एकादशी के व्रत से जुड़ी है। यह कथा भगवान विष्णु की महिमा और इस व्रत के महत्व को दर्शाती है।
प्रातः दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करके भगवान विष्णु पी पूजा करनी चाहिए |
पूजन में तुलसी पात्र एवं तुलसी दल का उपयोग अवश्य करना चाहिए |
व्रती को झूठ नहीं बोलना चाहिए |
कोशिस करें कि प्रत्येक एकदशी को निर्जला व्रत करना चाहिए | निर्जला न रह सकें तो सिर्फ फलाहार लेना चाहिए |
यदि आपने एकादशी का व्रत किया है और उसके बाद व्रत बंद कर दिया है तब एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए |
व्रत करने वाले को रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए |
अजा एकादशी 29 अगस्त 2024 गुरुवार को मनाई जाएगी | एकादशी का पारण (व्रत तोड़ने का समय) 30 अगस्त शुक्रवार को 07:47 ए एम् से 08:21 ए एम् तक |
अजा एकादशी व्रत की कथा (Aja ekadashi vrat katha)
अथ भाद्रपद कृष्ण पक्ष अजा (अजिता) एकादशी की कथा – युधिष्ठिर जी बोले हे भगवान भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? मैं यह सुनना चाहता हूं ! इसका आप कृपा कर वर्णन कीजिए | श्री कृष्ण महाराज बोले कि हे राजन ध्यान देकर सुनो मैं विस्तार के साथ कहता हूं | उस विख्यात एकादशी का नाम अजिता है जो सब पापों का नाश करती है | जो व्यक्ति हरि भगवान की पूजा करके व इस कथा को सुनकर जो उसके व्रत को करता है उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं |
मैं तुम्हें सत्य कहता हूं कि इससे बढ़कर इस जन्म और पर जन्म के हित करने के लिए और दूसरी कोई एकादशी नहीं है | बहुत पहले हरिश्चंद्र नाम के विख्यात चक्रवर्ती, समस्त पृथ्वी के अधिपति, सत्य प्रतिज्ञ राजा थे | किसी कर्मके फल से उन्हें राज्य भ्रष्ट होना पड़ा | उन्होंने अपने स्त्री पुत्र का तथा अपने आप का विक्रय कर डाला | वह पुण्य आत्मा राजा सत्य प्रतिज्ञ होने के कारण चांडाल का दास होकर शव वस्त्र को लेने का काम करने वाला तो हुआ किन्तु वह सत्य से विचलित नहीं हुआ | और इस प्रकार सत्य को निभाते हुए उसे अनेक वर्ष बीत गए | तब उसे दुख के कारण बड़ी चिंता उत्पन्न हुई और विचार किया कि इसके प्रतिकार के लिए मुझे क्या करना और कहां जाना चाहिए | इस प्रकार चिंतासमुद्र में डूबे हुए आतुर राजा को जानकर कोई मुनि उनके पास आए |
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ब्रह्मा ने ब्राह्मणों को परोपकार ही के वास्ते बनाया है यह समझकर उस राजा ने उन श्रेष्ठ ब्राह्मण महाराज को प्रणाम किया और उन गौतम महाराज के आगे हाथ जोड़कर खड़ा होकर अपने दुख को वर्णन किया | गौतम ने बड़े आश्चर्य से राजा के इन वचनोंको सुन इस व्रत का उपदेश किया | हे राजन भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की पुण्य फल के देने वाली अजिता एकादशी बड़ी विख्यात है | हे राजन आप उसका व्रत करें तो आपके पापों का नाश होगा और तुम्हारे भाग्य से यह आज से सातवें दिन आने वाली है | उपवास करके रात में जागरण करना इस प्रकार इस का व्रत करने से तुम्हारे सब पापों का नाश हो जाएगा | मैं तुम्हारे पुण्य प्रभाव से यहां चला आया था यह कहकर मुनि अंतर्ध्यान हो गए |
मुनि के इन मधुर वचनों को सुन राजा ने ज्यों ही व्रत किया त्योंही उसके पापों का तुरंत ही अंत हो गया | हे श्रेष्ठ राजन इस व्रत का प्रभाव सुनिए, जो बहुत वर्ष तक दुखभोगा जाना चाहिए उसका जल्दी क्षय हो जाता है | इस व्रत के प्रभाव से राजा अपने दुख से छूट गया पत्नी के साथ संयोग होकर पुत्र की दीर्घायु हुई | देवताओं के घर बाजे बजने लगे, स्वर्ग से पुष्प वृष्टि हुई |
इस एकादशी के प्रभाव से उसे अकंटक राज्य की प्राप्ति हुई | राजा हरिश्चंद्र अपनी प्रजा के साथ सब सामग्री सहित स्वर्ग में चला गया | इस प्रकार के व्रत को हे राजन जो द्वजोत्तम करते हैं वे सब पापों से मुक्त होकर अंत में स्वर्ग की यात्रा करते हैं | तथा इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेघ का फल प्राप्त होता है | यह श्री ब्रह्मांड पुराण का कहा हुआ भाद्र कृष्ण अजा नाम्नी एकादशी का महत्व पूरा हुआ |
एकादशी के व्रत करने वाले को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए । एकादशी पर श्री विष्णु की पूजा में मीठा पान चढ़ाया जाता है, लेकिन इस दिन पान खाना भी वर्जित है।
इस व्रत में नमक, तेल, चावल, अथवा अन्न नहीं खाना चाहिए | मसूर की दाल का भी त्याग करना चाहिए | चने का साग, मधु (शहद), दूसरी बार भोजन नहीं करना चाहिए | व्रती को चाहिए कि झूठ एवं मिथ्या भाषण से बचे |
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व्रत का पारण कब करना चाहिए (Aja ekadashi vrat katha )
व्रत का पारण सदैव सूर्योदय के बाद ही किया जाना चाहिए | वहीं, शास्त्रों में लिखा है कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले ही कर लें | द्वादशी तिथि समाप्त होने के बाद अगर पारण किया जाता है, तो उससे साधक को पाप लगता है |
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