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har bimari ka mantra,हर बीमारी का एक मन्त्र

अनेक रोग मन्त्र एक

har bimari ka mantra, मानव जीवन में होने वाली समस्याएं या त्रिविध ताप किसी न किसी प्रकार धर्म-अधर्म से जोड़कर देखे जाते हैं | और अधिकतर होता भी ऐसा ही है | आपको जो समस्या होती है, अज्ञान वश आप उसे इतफाक समझ सकते हैं किन्तु यह सत्य नहीं है | सत्य तो यह है की जो भी आपके साथ घटित होता है उसमे कहीं न कहीं से दैविक प्रकोप होता है | और इसी दैविक प्रकोप से हम पीड़ित होते हैं |

यह दैविक प्रकोप किस रूप में आप को पीड़ा पहुंचाता है इसे आप और हम समझ नहीं पाते, किन्तु यह शतप्रतिशत सत्य है कि हमारी सभी समस्याएं दैविक प्रकोप के कारण ही होतीं हैं |

इसका एक प्रमाण जिसे हम रोग समझते लेकिन यह दैविक पीड़ा नहीं तो क्या था | और यह प्रमाण श्री रामचरित मानस में स्पष्ट किया गया है | पूज्यनीय गोस्वामी तुलसी दास जी को काशी में रहते थे | वहां पर एक चरित्र हुआ | काशी में भैरवजी का बड़ा प्रभाव था | उन्होंने मन में विचार किया कि क्यों न तुलसी को एक चरित्र दिखाया जाय |

श्री रामचरित मानस

चौपाई – एक दिना निवसत तेहि काशी | एक चरित्र भयो सुखराशी ||

        भैरवनाथ प्रभाव आपरा | सो मन में अस कियो विचारा ||

भैरव नाथ जी ने मन में विचार किया तुलसीदास जी मुझे तो पूजते नहीं हैं, और पूजें भी क्यों क्योकि मेरे प्रभाव से अनिभिज्ञ हैं | इन्हें कुछ अपना प्रभाव दिखाना पड़ेगा तभी ये हमें पूजेंगे | क्योंकि “भय बिन प्रीत न होय गुसाईं” | और इस प्रकार मन में विचार करके भैरवनाथ जी ने तुलसी दास जी बांह (भुजा) में महापीर (असहनीय दर्द) उत्पन्न करदी |

चौपाई – मोहि गुसाईं पूजत नाहीं | दरशाऊँ प्रभाव यहि काहीं ||

     अस गुनि तुलसीदास के बाहू | दुसह पीर प्रगट्यो प्रददाहू ||

और तुलसीदास जी को एसी पीड़ा हुई कि तुलसीदास जी को लगने लगा कि इस पीड़ा के प्रभाव से तो अब शरीर छुट जाएगा | इस प्रकार विचार करते हुए तुलसीदास जी ने अनेक उपाय किये किन्तु उनकी तकलीफ में कोई आराम नहीं हुआ | उनकी भुजा की पीर (दर्द) नहीं गयी |

चौपाई – होत भाई अति पीर तहांहीं | छूटत जान्यो निज तनु काहीं ||

     जातन कोटि कीन्हो मति धीरा | तबहिं न मिटी बाहू की पीरा ||

अब गुसाई जी को भगवान याद आये और उन्होंने हनुमान बाहुक का निर्माण किया | अर्थात हनुमान जी का सुमरन किया | हनुमान जी ने भैरव नाथ पर क्रोध किया | तब श्री तुलसीदास जी का दर्द दूर हुआ | और भगवान भूतभावन भोलेनाथ जी ने भैरव नाथ जी से कहा तुलसीदास जी भगवान श्रीराम के आनन्य भक्त हैं | और जो श्री राम के भक्तों को दुःख नहीं देते वि मुझे प्राणों से भी ज्यादा प्यारे होते हैं |

श्री गोस्वामी तुलसीदास की रचना (har bimari ka mantra)

चौपाई – तब बाहुक को रच्यो गुसाईं | मिटगे पीर स्वप्न की नाईं ||

       भैरव पर कोप्यो हनुमाना | भैरव सो शिव वचन बखाना ||

      देहिं राम दासन दुःख नाहीं | ते मोहिं प्रिय प्रानहुते आहीं ||

इस हनुमान बाहुक में चौवालीस कवित्त हैं | और इसका महाप्रभाव है जो प्रमाणित है | इसका प्रभाव वही जान सकता है जिसने इसका उपयोग किया है | इसका प्रभाव बहुत ही जल्द मिलने लगता है |

दोहा – रच्यो कवित्त उदग्र अति, बाहुक चौवालीस |

     तासु प्रभाव प्रत्यक्ष अति, अबलों आंखनदीस ||

इसकी विधि इस प्रकार है – किसी हनुमान मंदिर में जाकर चौवालीस दिन तक पवित्र मन से हनुमान बाहुक का पाठ करने से समस्त प्रकार की समस्यों का निवारण होता है | महावीर जी तन की मन की सभी पीर नाश करते हैं |

दोहा – जो चौवालिस दिवस लगि, हनुमत मंदिर जाय |

      पाठ करे बाहुक सुचित, बैठ सनेम सुहाय ||

      तासु प्रेत बाधा सकल, तनकी मनकी पीर |

      मेट देत मारुतसुवन, यह भाषें मतिधीर ||

(har bimari ka mantra) यदि आप हनुमान मंदिर नहीं जा सकते तो अपने ही घर में दीप जलाकर हनुमान जी से प्रार्थना कर इस बाहुक का पाठ कर सकते हैं | ध्यान रखें चौवालिस दिन तक हनुमान जी के सभी नियमों का पालन करना चाहिए |

अनुष्ठान विधि (har bimari ka mantra)

इसका एक अनुष्ठान 22 दिन का भी होता है | उसकी विधि इस प्रकार है, प्रथम दिन एक पाठ, दुसरे दिन दो पाठ, तीसरे दिन तीन पाठ इस प्रकार ग्यारहवें दिन ग्यारह पाठ करने चाहिए | बारहवें दिन से एक-एक पाठ कम करते हुए 22 वे दिन पुनः एक पाठ करना चाहिए | इस प्रकार यह 22 दिन का अनुष्ठान संपन्न होता है |

इसकी एक और विधि है | इस हनुमान बाहुक के पाठ के आरम्भ में तथा अंत में एक-एक माला हनुमान मन्त्र की करना चाहिए | जिससे यह और भी प्रभावी हो जाता है |

(har bimari ka mantra) यदि आप इस पाठ को करने में किसी प्रकार से असमर्थ है तो, इस पाठ के लिये आप हमसे संपर्क कर सकते हैं | हमारे यहाँ हमारे पंडितों द्वारा उचित विधि से इसको कराया जाता है | जिसका पूर्ण फल आपको प्राप्त हो सके |

श्री हनुमान बाहुक पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें

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श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ

Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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