शास्त्रों एवं ज्मेंयोतिष में चन्द्रमा का महत्व
jyotish me chandrama – हमारे शास्त्रों में चंद्रमा का विशेष महत्व माना गया है | चंद्रमा का एक नाम सोम भी है | पुराणों में चंद्रमा से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है | चंद्रमा को देवतुल्य मानकर ऋषियों द्वारा इनकी स्तुति भी की गई है | चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी के मानस पुत्र अत्रि ऋषि एवं माता अनुसुइया से तीन पुत्र हुए | जिनमें दुर्वासा, दत्तात्रेय, और सोम इन्हीं को चंद्रमा के नाम से जाना जाता है | चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ |
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा की इन्हीं 27 पत्नियों को नक्षत्र के रूप में स्थापित किया गया है | मत्स्य पुराण के अनुसार चंद्रमा के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार मिलता है | श्वेत वर्ण, श्वेत वस्त्र धारी, तथा श्वेत अश्वों से युक्त रथ में विराजमान है | नारद पुराण के अनुसार चंद्रमा को सुंदर नेत्रों वाला, मृदुभाषी एवं वात-पित्त प्रकृति का कहा गया है |
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा (jyotish me chandrama)
हमारे ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को काल पुरुष का मन कहा गया है | “चंद्रमा मनसो जायत” मन्त्र वेदों में प्राप्त होता है | चंद्रमा जातक की जन्मकुंडली में जिस राशि में स्थित होता है वही जातक की जन्म की राशि मानी जाती है | गोचर विचार भी चंद्र राशि से ही किया जाता है |
चंद्रमा से विचारणीय विषय (jyotish me chandrama)
jyotish me chandrama ka mahatva – चंद्रमा की रोशनी मनभावन होती है | मन को आनंद देने वाली होती है | और चन्द्रमा मन का कारक होता है इसलिए चंद्रमा की इसी विशेषता के कारण स्नेह के लिए अर्थात प्रेम के लिए चंद्रमा को देखा जाता है | यदि स्नेह की बात करते ही मां का चेहरा सामने आ जाता है, इसलिए चंद्रमा से माँ का विचार किया जाता है | जैसे माँ का सुख प्राप्त होगा या नहीं आदि-आदि |
चंद्रमा सबसे अधिक गति वाला ग्रह है और उसकी गति में हमेशा परिवर्तन होता है | इसलिए जहां गति से जुड़ी हुई बातें आ जाएं वहां चंद्रमा का विचार अवश्य किया जाता है | पृथ्वी पर सबसे अधिक गतिमान कोई वस्तु है तो वः है मन इसलिए चंद्रमा को मन का कारक माना गया है | मन को बेहद खुशी या गम हो तो आंखों से आंसू बहने लगते हैं | इसलिए तरल पदार्थ जैसे पानी, दूध, सरवत, जैसी बहने वाली चीज चंद्रमा के अधिकार में आतीं हैं | पानी के साथ-साथ पानी से जुड़े पौधे, मछली, सभी तालाब, सागर आदि सभी का कारक चंद्रमा माना गया है |
चन्द्रमा मन का कारक है और मन का स्थान छाती में होता है | इसलिए छाती से सम्बंधित रोगों का विचार चन्द्रमा से ही करना चाहिए | चन्द्रमा तरल पदार्थ का करक है और शरीर में खून, सर्दी, खांसी, आँखों से आंसू बहना आदि रोग चन्द्रमा से ही देखे जाते हैं | रात्री में कुदरती रोशनी चन्द्रमा से मिलती है | रतोंदी नमक बीमारी का विचार भी चन्द्रमा से ही करना चाहिए | चन्द्रमा से विशेषकर मन के रोग देखे जाते हैं जैसे उन्मादी रोग, डिप्रेशन, चिडचिडापन, आदि के शिकार होना चन्द्रमा के ही अधिकार में आता है |
चन्द्रमा के व्यापार
चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है | और चन्द्रमा एक जलीय ग्रह भी है इसलिए शीतलता, ठंडा पानी, ठंडाई से जुड़े हुए व्यापार चन्द्रमा से देखने चाहिए | चन्द्रमा शीघ्र गति वाला ग्रह होने के कारण जल्दी फल देने वाला होता है | कुदरती कुंडली में चन्द्रमा की कर्क राशि चतुर्थ भाव् में आती है और चतुर्थ भाव से माता, भूमि, भवन, वाहन सुख, विद्द्या आदि का विचार किया जाता है | चतुर्थ भाव से भूमि एवं माता का विचार किया जाता है इसलिए मातृभूमि से प्रेम अर्थात देशप्रेम चन्द्रमा से देख जाता है | चन्द्रमा एक जलीय ग्रह होने के कारण सिंचाई विभाग, जल विभाग, मछली, नौसेना आदि का की नौकरी-कारोबार आदि चन्द्रमा से ही देखे जाते हैं | भूमि का कारक होने के कारण भूमि से निकालने वाले तरल पदार्थ जैसे केरोसिन, पेट्रोल आदि चन्द्रमा से देखे जाते हैं | दूध वाले वृक्ष, फूल वाले रसदार वृक्ष आदि के कारोबार चन्द्रमा से देखे जाते हैं | और अधिक जानकारी के लिए चन्द्रमा के कारकत्व निचे दिए गए हैं | जिनके अनुसार अपनी बुद्धि विवेक से कारकत्वों के अनुसार नौकरी, व्यपार आदि का, हानि लाभ आदि का विचार करना चाहिए |
चंद्रमा का कारकत्व
मातृ, शौक, सौंदर्य, यश प्राप्ति, ज्योतिष विद्या की रूचि, दूर का प्रयास, जल, मन, बुद्धि, स्वास्थ, राज एश्वर्य, संपत्ति, सुगंधित वस्तुओं का शौक, वाहन सुख, द्रव्य संचय, धंधे में उन्नति, प्रजापक्ष, जनता, सामान्य लोग, जनता की वृद्धि, प्रजा पक्षीय, नेताओं के मन की स्थिति तथा स्त्री मन, आनंद, चांदी, चेहरा, कीर्ति, दूध, यात्रा, वस्त्र, जल, कृषि, धन, लज्जा, मणि, संग, विनय, पुष्प, रस, धातु, दीप्ति, संतोष, समुद्र, स्नान, सफेद चादर, छत्र, पंखा, कोमलता, मुक्ती प्राप्ति, कांसा, शंख, भोजन, प्रसन्नता, राजा, दया, ह्रदय की चेतना शक्ति, बुद्धि, राज कृपा, ब्राह्मण, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, श्वेत चावल, श्वेत पुष्प, व्रत, दही, कपूर, बैल, गेहूं, लवण, वंश पात्र आदि का कारक है |
चन्द्र के गुण, धर्म
गुण धर्म | ग्रह – चन्द्रमा | गुण धर्म | ग्रह चन्द्रमा |
जाति, वर्ण | वैश्य | खनिज –धातु | मणि- चांदी |
रंग मनुष्य का | स्वेत, गौर | स्थान | जल स्थान |
रंग पशु का | विचित्र स्वेत | वस्त्र | कठोर |
अधिपति | पार्वती | ऋतु | वर्षा |
दिशा | वायव्य | रस स्वाद | नमकीन |
शुभ या पाप | क्षीण-पाप पूर्ण –शुभ | दृष्टि | सम |
देह की घात | रुधिर | तत्व | जल |
स्त्री-पुरुष | स्त्री | स्वरुप | शोभायमान |
प्रकृति | वात, कफ | अवस्था | मध्यम |
आकार | स्थूल | आत्मादि | मन |
शरीर | गोल | स्वाभाव | श्रेष्ठ बुद्धि |
नेत्र | कमल | आयु | 70 वर्ष |
बाल | घुघराले काले | रत्न | मोती |
उदय | शीर्षोदय | चिन्ह किस ओर | बाँई |
चर | जलचर | चिन्ह स्थान | सिर |
पदवी | राजा | लोक | पितृ |
देश | यवन | गति समय | सवा दो दिन |
वृक्ष | लता वाले, दूध, फूल, जड़ी बूटी | इन्द्रिय | बाँई आँख, मुख, स्वाद |
कहाँ पीड़ा करता | छाती, गला | रोग | वातकफ़, अतिसार |
किससे मृत्यु | जल | ||
किसके दोष हरते हैं | मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू | किससे चिन्ह करते हैं | सींग वाले, सींग मारने से, काटने से |
किसका बल बढ़ता है | शुक्र का | राशि में कब फल देते हैं | अंत में |
दूसरी राशि में जाने के कितने दिन पहले प्रभाव | 3 घड़ी पहले से | बल समय | रात्रि के शुरू भाग में |
चन्द्रमा के उपाय
jyotish me chandrama ka mahatva, रोहिणी, हस्त और श्रवण ये तीन नक्षत्र चन्द्रमा के अधिकार में आते हैं | जिन जातकों का जन्म इन तीन नक्षत्रों में होता है उनकी जन्म के समय महादशा चन्द्र की ही चलती है | चन्द्र कर्क राशि का स्वामी है | वृषभ में उच्च तथा वृश्चिक में नीच का माना जाता है |
यदि क्षीण चन्द्रमा हो तो अशुभ फल देने वाला होता है | और पूर्ण चन्द्रमा अर्थात बलवान चन्द्रमा हो तो शुभ फल देने वाला होता है | यदि चन्द्रमा निर्बल है तो चन्द्र का जप करना चाहिए | शिवजी की पूजा करनी चाहिए | चांदी का एक चोकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखना चाहिए | सोमवार को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए | मोती रत्न धारण करना चाहिए | सफ़ेद वस्तुओं का दान करना चाहिए | चन्द्र यंत्र धारण करना चाहिए |
चंद्रमा के मन्त्र (jyotish me chandrama)
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः | – ॐ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नमः | – ॐ श्रां श्रीं चन्द्रमसे नमः |
एकाक्षरी मन्त्र
ॐ सौं सोमाय नमः |
उपरोक्त मन्त्रों में से किसी भी मन्त्र का जप कर सकते हैं | जप संख्या 40,000 होनी चाहिए | जप के पश्चात् दशांश (4,000) हवन करना चाहिए | यदि जप शिवजी की मंदिर में किया जाय या किसी समुद्र गामिनी नदी के किनारे किया जाय तो सबसे अच्छा रहेगा | यदि जप स्वयं न कर सकें तो किसी ब्रम्हाण से करवा सकते हैं |
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?