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kaal sarp yog

Kaal Sarp Yog-कल सर्प योग

कैसे बनता है काल सर्प योग

Kaal Sarp Yog – जब कुंडली में ग्रहों का एक विशेष स्थिति में उदय होता है, या इसे एसा भी कह सकते हैं कि ग्रहों का एक स्थान में स्थित होना एक योग का निर्माण करते हैं | और हमारे ज्योतिष शास्त्र में योगों का बड़ा महत्त्व माना गया है | किसी व्यक्ति कि जन्मकुंडली में जब सभी ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते हैं, तो एसी ग्रह स्थिति को कालसर्प योग कहते हैं |

कालसर्प योग एक भयानक योग होता है | ज्योतिष शास्त्र में इस योग के बिपरीत परिणाम देखने में आते हैं | जिस प्रकार ग्रहों के अनेक स्थितियों के अनुसार अनेक प्रकार योग बनते है | जैसे अनफा, सुनफा, दुर्धरा, केमद्रुम, विषयोग, चांडाल योग, गजकेशरी आदि लगभग 300 प्रकार के योगों का निर्माण होता है | इनमे से कुछ योग शुभ फल देने वाले तथा कुछ योग अशुभ फल देने वाले होते हैं | इसी प्रकार काल सर्प योग भी जातक को बहुत ही भयानक परिणाम देता है | इसमे कुछ कालसर्प योग एसे भी होते हैं जो शुभ फल भी देते हैं | या इसे कालसर्प भंग योग भी कह सकते हैं |

राहू और केतु एक छाया ग्रह हैं इसे नाकारा नहीं जा सकता | किन्तु विचार करें राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतु का जन्म नक्षत्र अश्लेषा है | राहू के जन्म नक्षत्र के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र अश्लेषा के देवता सर्प माने जाते हैं | राहू केतु के जो फलित परिणाम मिलते हैं उनको राहू-केतु के नक्षत्र देवताओं के नाम से जोड़कर काल सर्प योग कहा जाता है |

राहु-केतु के गुण (Kaal Sarp Yog)

राहू के गुण-अवगुण शनि जैसे हैं | शनि अध्यात्मिक चिंतन, दीर्घ विचार एवं गणित के साथ आगे बढ़ने का गुण अपने पास रखता है | यही बात राहु की है | राहु की युति किस ग्रह के साथ है वह किस स्थान का अधिपति है यह भी देखना चाहिए | इसी प्रकार केतु में मंगल के गुण धर्म मिलते हैं | कहते हैं ( शनिवत राहू कुजवत केतु ) अर्थात शनि के समान राहू और मंगल के सामान केतु फल देते हैं |

जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प योग होता है | इनको अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है | इसके बाद भी इच्छित और प्राप्त होने वाली प्रगति में रुकावटें आतीं रहतीं हैं | ऐसे जातकों को बहुत ही विलंब से यश प्राप्त होता है | मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से ऐसे जातक सदैव परेशान रहते हैं |

कालसर्प योग जिन व्यक्तियों की कुंडली में होता है उन जातकों के भाग्य का प्रवाह राहु केतु अवरुद्ध करते हैं | इस कारण जातक की उन्नति नहीं होती | उसे कामकाज नहीं मिलता | कामकाज मिल भी जाए तो उसमें अनेक अड़चनें उपस्थित होती हैं | परिणाम स्वरूप उसे अपनी जीवनचर्या चलाना मुश्किल हो जाता है | ऐसे जातकों का विवाह नहीं होता, विवाह हो भी जाए तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है|  वैवाहिक जीवन भी तनावपूर्ण रहता है | कर्ज का बोझ बना रहता है, और जातक को नाना प्रकार के दुख भोगने पड़ते हैं |

तमोगुणी और पापी ग्रहों के बीच ग्रह (Kaal Sarp Yog)

दो तमोगुणी एवं पापी ग्रहों के बीच में अटके हुए सभी ग्रहों की स्थिति अशुभ ही रहती है | कालसर्प योग के परिणाम स्वरूप जातक का अल्पायु होना, उसका जीवन संघर्ष से ओत-प्रोत रहना, एवं अर्थाभाव रहना, भौतिक सुखों का अभाव रहना ऐसे फल प्राप्त होते हैं | नक्षत्र पद्धति के अनुसार राहु या केतु के साथ जो ग्रह हो और वह ग्रह एक ही नक्षत्र में हो तो परिणामों की तीव्रता में कमी आती है | राहु केतु के छाया ग्रह होते हुए भी नवग्रहों में उनको स्थान दिया गया है | दक्षिण भारत में तो राहुकाल सभी शुभ कार्यों के लिए निषिद्ध माना है |

किसी भी जन्मकुंडली में राहु केतु के मध्य जब सभी ग्रह आते हैं, तब यह योग बनता है | राहु या केतु के बीच एकाध ग्रह आ जाने से योग भंग नहीं होता | सभी ग्रह-राहु केतु की एक ही बाजू में होने पर यह योग होता है | सभी ग्रह राहु केतु के बाजू में हो और एकाध ग्रह अलग हो तो कालसर्प योग नहीं बनता | इस योग का वास्तववादी मूल्यांकन होना अनिवार्य है |

जिनकी कुंडली में कालसर्प योग होता है, ऐसे व्यक्ति नियति या प्रारब्ध के हाथ में खिलौना ही है | पुरुषार्थ से भी बढ़कर प्रारब्ध ही इनके जीवन में स्मरणीय प्रसंग लाता है | यह पुरुषार्थ करें पर उसकी फलश्रुति राहु केतु के द्वारा ही होगी | इनके पूर्व संचित कर्मों की, भोगों की लगाम राहु-केतु के हाथों में होती है | राहु-केतु की महादशा, अंतर्दशा एवं गोचर भ्रमण उस नजर से महत्वपूर्ण होता है |

कब होते हैं ज्यादा नकारात्मक प्रभाव (Kaal Sarp Yog)

नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव जब प्राप्त होते हैं जब चतुर्थ, अष्टम या व्यय स्थान में राहु हो, और कुंडली में काल सर्प योग हो तो वह अधिक नकारात्मक होगा | इस योग से अधिक से अधिक फल राहु की महादशा या अंतर्दशा या किसी अन्य ग्रह की महादशा में राहु की अंतर्दशा चल रही होगी, ऐसे समय में मिलेंगे | इसके अलावा राहु अशुभ गोचर भ्रमण काल में भी हैरानी होती है | कालसर्प योग सकारात्मक हो तो जन्मस्थ राहू के ऊपर से गोचर के राहू का भ्रमण होगा तब या राहू कि अठारह वर्ष के दशाकाल में श्रेष्ठ फल की होती है |

बड़े-बड़े पैसों से समृद्ध लोगों में कालसर्प योग के साथ ही राहु, चंद्र की युति या अंशात्मक केंद्र योग हो, तो राहु की महादशा में या गोचर राहु के भ्रमण काल में उनकी बर्बादी होती देखी गई है |

किसी भी जन्म कुंडली में कालसर्प योग यदि राहु से प्रारंभ हो रहा है, तो वह ज्यादा खतरनाक होता है | केतु से लेकर राहु पर्यंत तक दिखाई देने वाला योग इतना खतरनाक नहीं होता | एक बात सदैव याद रखना चाहिए कि कालसर्प योग पुत्र संतान के लिए विशेष रूप से तभी बाधक होता है, जब वह पंचमस्थ राहु से बनता हो | जन्म कुंडली के जब सारे ग्रह राहु और केतु के बीच में पूर्ण रूप से कैद हो जाते हैं तब पूर्ण कालसर्प योग बनता है | ऐसी स्थिति में जिस भाव में राहु होगा उस भाव के सुख से जातक को वंचित करेगा | राहु केतु की कैद में से एकाध ग्रह बाहर निकल जाए तो आंशिक कालसर्प योग बनता है | और आंशिक कालसर्प योग का फल आधा होता है पर होता जरूर है |

बारह प्रकार के कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog)

जानिये बारह प्रकार के कल सर्प योगों के बारे में | कौनसा काल सर्प योग कितना हानिकारक होता है | और कौनसा कालसर्प योग किस प्रकार कि समस्या को उत्पन्न करता है | इन योगों कि शान्ति के लिए जातक को क्या उपाय करना चाहिए |

  1. अनंत कालसर्प योग
  2. कुलिक कालसर्प योग
  3. वासुकी कालसर्प योग
  4. शंखपाल कालसर्प योग
  5. पद्म कालसर्प योग
  6. महापद्म कालसर्प योग
  7. तक्षक कालसर्प योग
  8. कारकोटक कालसर्प योग
  9. शन्खचूर्ण कालसर्प योग
  10. घातक कालसर्प योग
  11. विषधर कालसर्प योग
  12. शेषनांग कालसर्प योग

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