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sri suktam benefits-श्री सूक्त पाठ एवं फायदे

श्री सूक्त पाठ की सही विधि एवं फायदे

sri suktam benefits – धन वृद्धि के उपाय में सर्वप्रथम यदि कोई उपाय में सबसे पहले आता है तो वह है श्रीसूक्त का पाठ करना | श्री सूक्त भी दो प्रकार के होते हैं | एक पुराणोक्त श्री सूक्त और दूसरा वेदोक्त श्री सूक्त | पुराणोक्त श्री सूक्त धन वृद्धि के लिए रामबाण सिद्ध होता है और वेदोक्त श्री सूक्त का पाठ श्री यंत्र को सिद्ध करने के लिए किया जाता है |

पुराणोक्त श्री सूक्त – इस श्री सूक्त का पाठ करने की विधि इस प्रकार है | सर्व प्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए | तत्पश्चात माता लक्ष्मी की मूर्ति, फोटो जो भी उपलब्ध हो, को लकड़ी के पाटे पर स्वेत वस्त्र विछाकर फूलों का आसन देकर स्थापित करें | उसके बाद दांये हाँथ में जल लेकर अमुक नाम, अमुक पिता, अमुक गोत्र, स्थान आदि बोलकर मम स कुटुम्वस्य स परिवारस्य नित्य कल्याण प्राप्ति अर्थं अलक्ष्मी विनाशापूर्वकं दशविध लक्ष्मी प्राप्ति अर्थं श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थ यथा शक्ति श्री सूक्त पाठे विनियोगः | हाँथ में लिए हुआ जल वहीँ पृथ्वी पर छोड़ दें |

तत्पश्चात विनियोग, फिर माता लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए | उसके बाद पुराणोक्त श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए | सुख समृद्धि के अनेक उपाय की जानकरी यहाँ प्राप्त करें |

विनियोग – (sri suktam benefits)

विनियोगः- ॐ हिरण्य – वर्णामित्यादि-पञ्चदशर्चस्य श्रीसूक्तस्याद्यायाः ऋचः श्री ऋषिः तां म आवहेति चतुर्दशानामृचां आनन्द-कर्दम-चिक्लीत-इन्दिरा-सुताश्चत्वारः ऋचयः, आद्य-मन्त्र-त्रयाणां अनुष्टुप् छन्दः, कांसोऽस्मीत्यस्याः चतुर्थ्या वृहती छन्दः, पञ्चम-षष्ठयोः त्रिष्टुप् छन्दः, ततोऽष्टावनुष्टुभः, अन्त्या प्रस्तार-पंक्तिः छन्दः । श्रीरग्निश्च देवते । हिरण्य-वर्णां बीजं । “तां म आवह जातवेद” शक्तिः । कीर्तिसमृद्धिं ददातु मे” कीलकम् । मम श्रीमहालक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यानः- (sri suktam benefits)

या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी पद्म-पत्रायताक्षी,

गम्भीरावर्त्त-नाभि-स्तन-भार-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया ।

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गन्ध-मणि-गण-खचितैः स्नापिता हेम-कुम्भैः,

नित्यं सा पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता ।।

अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः-पुञ्ज-वर्णा, कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च ।

मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैः सकल-भुवन-माता ,सन्ततं श्रीः श्रियै नः ।।

देव्यभिषेके पौराणं श्रीसूक्तम् –

हिरण्यवर्णां हिमरौप्यहारां चन्द्रां त्वदीयां च हिरण्यरूपाम् ।

लक्ष्मीं मृगीरूपधरां (१) श्रियं त्वं मदर्थमाकारय जातवेदः ॥ १॥

यस्यां सुलक्ष्म्यामहमागतायां हिरण्यगोऽश्वात्मजमित्रदासान् ।

लभेयमाशु ह्यनपायिनीं तां मदर्थमाकारय जातवेदः ॥ २॥

प्रत्याह्वये तामहमश्वपूर्वां देवीं श्रियं मध्यरथां समीपम् ।

प्रबोधिनीं हस्तिसुबृंहितेनाहूता मया सा किल सेवतां माम् ॥ ३॥

कांसोस्मितां तामिहद्मवर्णामाद्रां सुवर्णावरणां ज्वलन्तीम् ।

तृप्तां हि भक्तानथ तर्पयन्तीमुपह्वयेऽहं कमलासनस्थाम् ॥ ४॥

लोके ज्वलन्तीं यशसा प्रभासां चन्द्रामुदामुत देवजुष्टाम् ।

तां पद्मरूपां शरणं प्रपद्ये श्रियं वृणे त्वों व्रजतामलक्ष्मीः ॥ ५॥

वनस्पतिस्ते तपसोऽधिजातो वृक्षोऽथ बिल्वस्तरुणार्कवर्णे ।

फलानि तस्य त्वदनुग्रहेण माया अलक्ष्मीश्च नुदन्तु बाह्याः ॥ ६॥

उपैतु मां देवसखः कुबेरः सा दक्षकन्या मणिना च कीर्तिः ।

जातोऽस्मि राष्ट्रे किल मर्त्यलोके कीर्तिं समृद्धिं च ददातु मह्यम् ॥ ७॥

क्षुत्तृट्कृशाङ्गी मलिनामलक्ष्मीं तवाग्रजां तामुतनाशयामि ।

सर्वामभूतिं ह्यसमृद्धिमम्बे गृहाञ्च (गृहाच्च) निष्कासय मे द्रुतं त्वम् ॥ ८॥

केनाप्यधर्षाम्मथ गन्धचिह्नां पुष्टां गवाश्वादियुतां च नित्यम् ।

पद्मालये सर्वजनेश्वरीं तां प्रत्याह्वयेऽहं खलु मत्समीपम् ॥ ९॥

लभेमहि श्रीमनसश्च कामं वाचस्तु सत्यं च सुकल्पितं वै ।

अन्नस्य भक्ष्यं च पयः पशूनां सम्पद्धि मय्याश्रयतां यशश्च ॥ १०॥

मयि प्रसादं कुरु कर्दम त्वं प्रजावती श्रीरभवत्त्वया हि ।

कुले प्रतिष्ठापय में श्रियं वै त्वन्मातरं तामुत पद्ममालाम् ॥ ११॥

स्निग्धानि चापोऽभिसृजन्त्वजस्रं चिक्लीतवासं कुरु मद्गृहे त्वम् ।

कुले श्रियं मातरमाशुमेऽद्य श्रीपुत्र संवासयतां च देवीम् ॥ १२॥

तां पिङ्गलां पुष्करिणीं च लक्ष्मीमाद्रां च पुष्टिं शुभपद्ममालाम् ॥

चन्द्रप्रकाशां च हिरण्यरूपां मदर्थमाकारय जातवेदः ॥ १३॥

आद्रां(आद्रीं) तथा यष्टिकरां सुवर्णां तां यष्टिरूपामथ हेममालाम् ।

सूर्यप्रकाशां च हिरण्यरूपां मदर्थमाकारय जातवेदः ॥ १४॥

यस्यां प्रभूतं कनकं च गावो दास्यस्तुरङ्गान्पुरुषांश्च सत्याम् ।

विन्देयमाशु ह्यनपायिनीं तां मदर्थमाकारय जातवेदः ॥ १५॥

श्रियः पञ्चदशश्लोकं सूक्तं पौराणमन्वहम् ।

यः पठेज्जुहुयाच्चाज्यं श्रीयुतः सततं भवेत् ॥ १६॥

|| इति पौराणीकम् श्रीसूक्तं समाप्तम् ||

लक्ष्मी प्राप्ति के अचूक उपाय (sri suktam benefits)

धन वृद्धि के लिए श्री सूक्त रामबाण उपाय है | यदि कुछ दिन आप इसे करते हैं तो आपको चमत्कारिक लाभ दिखेगा | यह प्रयोग शास्त्र सम्मत एवं अनुभूत है | यदि आप इसे करने में स्वयं सक्षम न हों तो आप इसे किसी ब्रम्हाण से अपने घर पर या हमारे यहाँ भी करा सकते हैं |

हमारे यहाँ श्री सूक्त का पाठ करने के लिए आपको अपना नाम, पिता/पति का नाम, अपना गोत्र तथा आपका वर्तमान स्थान जहां अभी आप रह रहे हैं | हमारे whats aap नंबर पर भेज कर करा सकते हैं | हमारे यहाँ विधिवत पाठ किया जाता है | जिससे आपको पूर्ण फल प्राप्त हो सके |

ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त –(sri suktam benefits)

यह ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त का पाठ विशेषकर श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा के लिए किया जाता है | श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त का पाठ किया जाता है जिसके प्रभाव से श्री यंत्र आपको पूर्ण फल दे सके | श्री यंत्र के बारे में हमारे शास्त्र तो यहाँ तक कहते हैं कि विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र जी घर में होता है उस घर की कौन कहे आस पड़ोस के घर तक इसका प्रभाव रहता है | जिस घर में प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र स्थापित होता है उस घर में कभी भी धनाभाव नहीं होता | वह परिवार सुख समृद्धि, पुत्र-पौत्रादि से समपन्न रहता है |

प्राण प्रतिष्ठित श्री यंत्र यहाँ से प्राप्त करें

आइये जानते हैं श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा की विधि – सर्व प्रथम उपरोक्त बताये गए दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर किसी शुभ मुहूर्त में जैसे – रविपुष्य, गुरु पुष्य, धन त्रयोदशी, दीपावली, एकादशी, त्रयोदशी, शुक्रवार के दिन शुभ नक्षत्र में, चारों नवरात्रों में (शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि या गुप्त नवरात्रि अषाढ़ नवरात्रि, माघ नवरात्रि) या कोई ग्रहण के समय तथा होली आदि में भी इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है |

प्राण प्रतिष्ठा कैसे करें – जिस प्रकार हम किसी देवता की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं उसी प्रकार यंत्रों की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है | प्राण प्रतिष्ठित यंत्र उस देवता का स्वरुप होता है जिसके समक्ष हम अपनी प्रार्थना करते हैं | और यदि कोई भी यंत्र या भगवान की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित नहीं है तो हमारी प्रार्थना कौन सुनेगा |   

प्राण प्रतिष्ठा के लिए सर्वप्रथम दांये हाँथ में जल लेकर विनियोग पढ़ें –

विनियोग – ॐ अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रम्हा विष्णु महेश्वर ऋषयः ऋग्यजु सामाथार्वणी छान्दासि क्रियामयवपुः प्राणाख्या देवता | ॐ वीजं क्रौं कीलकं अस्यां नूतन मूर्तौ प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः ||

उपरोक्त मन्त्र बोलते हुए हाँथ का जल वहीँ पृथ्वी पर छोड़ दें |

अपना बांया हाँथ अपने ह्रदय पर और दांये हाँथ से यंत्र का स्पर्श करें और इस मन्त्र को बोलें –

प्राण प्रतिष्ठा मंत्र- (sri suktam benefits)

 ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहम्‌ प्राणा इह प्राणाः।

ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः जीव इह जीव स्थितः।

ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः सर्वेंद्रियाणि इह सर्वेंद्रियाणि।

वाङ्‌मनस्त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण वाक्प्राण पाद्‌पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।

ॐ (15 बार) मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम्‌ इत्युक्त्वा।

विधि- जिस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा करना हो पहले उसका षोडषोपचार पूजन करें फिर हाथ मे जल लेकर संकल्प करें फिर उपरोक्त विधि से प्राण प्रतिष्ठित करें फिर षोडषोपचार पूजन करें इस प्रकार प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न होगा।

इस प्रकार श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करके उस यंत्र की नियमित पूजन करने से परिवार में सुख समृद्धि सदा बनी रहती है |

ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त – (sri suktam benefits)

ॐ ॥ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ ३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ ८॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीꣳ सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ १०॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ ११॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।

श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥

विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र प्राप्त करने के लिये यहाँ जाएँ |

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श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ

Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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