सूर्य की महादशा का फल
Surya Mahadasha fal – वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है | सूर्य आत्मा का कारक होता है और मस्तिष्क पर सूर्य का ही अधिअकर होता है | सूर्य से आत्म चेतना, आँखें, मस्तिष्क तथा केश आदि का विचार किया जाता है |
भावानुसार एवं राशि अनुसार गुरु महादशा का फल –
सूर्य की महादशा में कभी-कभी परदेश वास होता है, और पृथ्वी, राजद्वार, ब्राह्मण, अग्नि, शस्त्र तथा औषधी से धन की प्राप्ति होती है | इस समय जातक की रुचि यंत्र-मंत्र आदि में बढ़ जाति है, और राजाओं से अर्थात बड़े अधिकारियों से मित्रता होती है | भाई बंधुओं से शत्रुता, स्त्री, पुत्र और पिता से वियोग अथवा चिंता युक्त, अधिकारीयों, चोर, अग्नि तथा शत्रुओं से भय और दांत नेत्र तथा उदर में पीड़ा, वाहन सुख एवं नौकरी में कमी होती है |
समान रूप से सूर्य की महादशा का ऐसा फल होता है | परंतु सूर्य के उच्च, नीच आदि स्थान में स्थित होने के कारण अन्यान्य ग्रहों से युत वा दृष्ट रहने से अवस्थाओं के अनुसार फल में बहुत ही परिवर्तन होता है | फल कहने के समय इन सब बातों पर पूर्णता ध्यान देना आवश्यक है | अब ग्रहों के उच्च नीच आदि, नवांश आदि के भेद से प्रतिग्रह के फल में किस-किस प्रकार की भिन्नतायें होती है वह निम्नलिखित है |
सूर्य महादशा का विशेष फल
परम उच्च अर्थात मेष राशि के 10 अंश पर रहने से उसकी दशा में धर्म-कर्म में प्रीति होती है, और पिता का संचय किया हुआ धन तथा भूमि का लाभ होता है | स्त्री, पुत्र आदि से सुख तथा साहस, यश, राजकीय कार्यों में सफलता, मान-सम्मान की प्राप्ति, सुसंगति, भ्रमण शीलता और विजय प्राप्त होती है | उच्च का सूर्य होने से उसकी दशा में अन्न, तथा धन की वृद्धि होती है | बंधु वर्गों से झगड़ा के कारण परदेश वास और भ्रमण होता है | राज्य से से धन प्राप्ति, रति बिलास, गीत आदि में प्रेम होता है | वाहनादि का सुख भी प्राप्त होता है |
आरोही अर्थात उच्च अभिलाषी सूर्य की दशा में आनंद, मान-सम्मान और दान शीलता होती है | स्त्री, पुत्रादिक, पृथ्वी, वाहन और कृषि आदि से सुख प्राप्त होता है | अवरोही अर्थात से नीचे की ओर जाता हो तो उसकी दशा में शरीर में रोग, कष्ट, मित्र जनों से विरोध, वाहन, गृह क्लेश, भूमि से सम्बंधित विवाद और धन की हानि होती है | अधिकारियों का वेवजह क्रोध करना, चोर, अग्नि, झगड़े आदि का भय तथा परदेश वास करना पड़ता है |
Surya Mahadasha fal
परम नीच अर्थात तुला के 10 अंश पर स्थित सूर्य की महादशा में माता-पिता की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, स्त्री, पुत्र, वाहन, भूमि तथा गृह क्लेश आदि से हानि होती है तथा परदेश वास होता है, भय और मृत्यु की आशंका होती है | नीच सूर्य की दशा में राजकोप से धन तथा मान की हानि होती है | स्त्री तथा पुत्र, मित्रादि से क्लेश होता है, और अपने किसी स्वजन की मृत्यु होती है या मृत्यु तुल्य कष्ट होता है | मूल त्रिकोण में जब सूर्य रहता है तो उसकी दशा में स्त्री, पुत्र, कुटुंब, भूमि, भवन, धन और वाहन आदि से सुख प्राप्त होते हैं, तथा पद एवं मान-सम्मान की प्राप्ति होती है |
स्वगृही सूर्य की दशा में विद्या की प्राप्ति, विद्योन्नती से यस और राजकीय सम्मान की प्राप्ति होती है | भूमि के माध्यम से उन्नति, कुटुम्ब का सुख और भूमि, द्रव्य, तथा मान-सम्मान की वृद्धि होती है | अति मित्र गृही जब सूर्य होता है तो उसकी दशा में वहु सुख, आनंद, स्त्री-पुत्र और धन इत्यादि से सुख देता है | जातक को वस्त्र, आभूषण तथा वाहन आदि का भी सुख एवं कुआं-तालाब आदि खुदवाने का सौभाग्य होता है | मित्र गृही सूर्य होने से उसकी दशा में जातक को अपनी जाति द्वारा सम्मान पुत्र, मित्र तथा राज्य से सुख होता है | अपने बंधु वर्गों से प्रेम बढ़ता है, भूमि की प्राप्ति होती है और वस्त्र-आभूषण तथा वाहन आदि का सुख होता है |
भाव एवं राशि अनुसार सूर्य दशा का फल – Surya Mahadasha fal
समगृही सूर्य होने से उसकी दशा में कृषि, भूमि, भवन, और वाहन आदि से सुख प्राप्त होता है | कन्या संतान उत्पत्ति का सौभाग्य होता है अपने जनों से समभाव अर्थात ना झगड़ा ना मित्रता परंतु व्यक्ति ऋण से दुखी रहता है | शत्रु गृही सूर्य होने से उसकी दशा में संतान, स्त्री और धन की हानि होती है | स्त्री से झगड़ा संभव होता है और राजा, अग्नि एवं चोर मुकदमे बाजी से भय रहता है | जब सूर्य अतिशत्रु गृही होता है तो उसकी दशा में स्त्री, पुत्र, और संपत्ति की हानि होती है | पुत्र, मित्र तथा शत्रुओं से क्लेश और अपने जाति वर्ग से मतभेद होता है |
भावानुसार एवं राशि अनुसार चन्द्र महादशा का फल –
उच्च नवांश में जब सूर्य होता है तो उसकी दशा में जातक को साहस और पुराने विवाद से धन की वृद्धि और धनागम होता है | अनेक प्रकार से सुख प्राप्त होता है | स्त्री सम्भोग एवं स्त्री धन द्वारा लाभ भी होता है | परंतु पितृ कुल के जनों में बार-बार क्षति होती है | यदि सूर्य नीच नवांश में हो उसकी दशा में परदेश यात्रा में स्त्री, पुत्र, धन तथा भूमि की हानि होती है | ऐसी दशा में जातक मानसिक व्यथा से व्याकुल, ज्वर से पीड़ित और गुप्तेंद्रियों की वेदना से दुखी होता है |
Surya Mahadasha fal
इसी तरह उच्च राशि में स्थित सूर्य यदि नीच नवांश में हो तो उसकी दश में स्त्री की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, समीपी कुटुम्बियों को भय और संतान को आपत्ति होती है | नीच राशि में स्थित सूर्य यदि उच्च नवांश में हो तो उसकी दशा के आदि महान सुख और उच्च मान की प्राप्ति होती है | परन्तु दशा के अंत में विपरीत फल होता है |
अलग-अलग भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल –
उच्च राशि में स्थित सूर्य यदि नीच नवांश में हो तो उसकी दश में स्त्री की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, समीपी कुटुम्बियों को भय और संतान को आपत्ति होती है | नीच राशि में स्थित सूर्य यदि उच्च नवांश में हो तो उसकी दशा के आदि महान सुख और उच्च मान की प्राप्ति होती है | परन्तु दशा के अंत में विपरीत फल होता है |
Surya Mahadasha fal
उच्च ग्रह के साथ यदि सूर्य बैठा हो तो उसकी दशा को उच्चतम तीर्थ आदि भ्रमण, विष्णु पूजा, पवित्र नदियों में स्नान और देव मंदिरों के दर्शन का सुख तथा कुआं खुदवान, तालाब बनवाना एवं मकानों के बनवाने का सौभाग्य मिलता है | वह धार्मिक पुस्तकों का मनन और धार्मिक विषयों की प्राप्ति भी करता है | पाप ग्रह के साथ सूर्य हो तो उसकी दशा में कुत्सित अन्न का भोजन, जीर्ण वस्तुओं की प्राप्ति, निकृष्ट प्रकार की जीविका तथा अनिष्ट क्रियाओं के द्वारा दुःख का भाजन एवं अच्छे भोजन के अभाव के कारण शरीर दुर्बल होता है |
जानिये राशि एवं भावानुसार राहू महादशा का फल –
शुभ ग्रह के साथ यदि सूर्य हो तो उसकी दशा में पृथ्वी से धन उपार्जन, वस्त्र आदि का लाभ, मित्रों से आनंद, स्वजनों से प्रेम और विवाह आदि का सुख होता है | शुभ दृष्टि सूर्य की महादशा में जातक को विद्या जनित ख्याति, पुत्र, स्त्री और अन्य स्त्रियों से आनंद तथा सुख प्राप्त होता है | उसके माता-पिता को आनंद और उसको राज द्वार में सम्मान की प्राप्ति होती है | अशुभ दृष्टि सूर्य की दशा में अनेक प्रकार के शोक, माता-पिता को भय, स्त्री-पुत्र को दुःख, चोर अग्नि और राजदण्ड (जुर्माना) का भय होता है |
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?