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स्वामी विवेकानन्द जी के विचार (swami vivekananda ke vichar)

swami vivekananda जी के उत्कृष्ट विचार

पिछले लेख में हमने  ” व्रतों के आदि उपदेष्टा भगवान वेदव्यास और उनकी व्रतचर्या  ” के बारे में संक्षेप में चर्चा की इस लेख में ” व्रतपर्वोत्सव पर (swami vivekananda ke vichar) स्वामी विवेकानन्द जी के विचार ” इस विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |

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महर्षि कणाद के गुरुकुल में प्रश्नोत्तर चल रहे थे | उस समय जिज्ञासु उपगुप्त ने पूछा – देव भारतीय संस्कृति में व्रतों तथा जयंतियों भरमार है इसका क्या कारण है ? महर्षिं कणाद बोले – तात व्रत व्यक्तिगत जीवन को अधिक पवित्र बनाने के लिए है और जयंतियां महामानवों से प्रेरणा ग्रहण करने के लिए हैं | उस दिन उपवास, ब्रम्हचर्य, एकांतसेवन, मौन, आत्मनिरीक्षण आदि की विद्द्या संपन्न की जाती है | दुर्गुण छोड़ने और सद्गुण अपनाने के लिए देवपूजन करते समय संकल्प किए जाते हैं  एवं संकल्प के आधार पर व्यक्तित्व ढाला जाता है |

व्यक्ति को अध्यात्म का मर्म समझाने, गुण, कर्म और स्वभाव का विकास करने की शिक्षा देने, सन्मार्ग  चलाने का ऋषिप्रणीत मार्ग है – धार्मिक कथाओं का कथन – श्रवण द्वारा सत्संग एवं पर्व विषयों पर सोद्देश्य मनोरंजन | त्यौहार और व्रतोत्सव यही प्रयोजन पूरा करते हैं |

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने उद्बोधन में एक बार भारतीय संस्कृति की पर्व – परंपरा की महत्ता बताते हुए कहा था – वर्ष में प्रायः 40 पर्व पड़ते हैं युगधर्म के अनुरूप इनमे से दस का भी निर्वाह बन पड़े तो उत्तम है | उन प्रमुख दस पर्वों के नाम और उद्देश्य इस प्रकार हैं —

मुख्य पर्वों की दी सलाह :-

दीपावली – लक्ष्मी जी के उपार्जन और उपयोग – मर्यादा का बोध | गोसंवर्धन के सामूहिक प्रयत्न से अंधेरी रात को जगमगाने का उदहारण | वर्षा के उपरांत समग्र सफाई |

गीता जयन्ती – गीता के कर्मयोग का समारोहपूर्वक प्रचार प्रसार |

वसंतपंचमी – सदैव उल्लसित, हल्की मनः स्थति बनाये रखना तथा साहित्य, संगीत एवं कला को सही दिशाधारा देना |

महाशिवरात्रि – शिव के प्रतीक जिन सत्प्रवृत्तियों की प्रेरणा का समावेश है उनक रहस्य समझना – समझाना |

होली – नवान्न का सामूहिक वार्षिक यज्ञ, प्रह्लाद कथा का स्मरण, सत्वृत्ति का संवर्धन और दुष्वृत्ति का उन्मूलन |

गंगादशहरा – भगीरथ के उच्च उद्देश्य तप की सफलता से प्रेरणा, सद्बुद्धि हेतु दृढ़संकल्प और सत्प्रयास |

व्यासपूर्णिमा ( गुरु पूर्णिमा ) – स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था, गुरुतत्व की महत्ता और गुरु के प्रति श्रद्धा भावना की अभिवृद्धि |

रक्षाबंधन ( श्रावणी ) – भाई की पवित्र दृष्टि- नारी रक्षा, पापों के प्रायश्चित हेतु  हेमान्द्रिसंकल्प, यज्ञोपवीत धारण, ऋषिकल्प पुरोहित से व्रतशीलता में बंधना |

पितृविसर्जन – पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति के लिए श्राद्ध तर्पण, अतीत महामानवों को श्रद्धांजलि अर्पण |

विजय दशमी – स्वास्थ्य, शस्त्र  एवं शक्ति संगठन की आवश्यकता का स्मरण, असुरातपर देवत्व की विजय, इनके अतिरिक्त रामनवमीं, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हनुमानजयंती और गणेश चतुर्थी  क्षेत्रीय पर्व हैं, जिनमें कई  तरह की शिक्षाएं और प्रेरणाएं सन्निहित हैं |

इस लेख में हमने  ” व्रतपर्वोत्सव पर (swami vivekananda) स्वामी विवेकानन्द जी के विचार  ” इस बारे में संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में ” व्रत अनुष्ठान की महिमा ” के विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |

इन्हें भी देखें :-

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)

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Pandit Rajkumar Dubey

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