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व्रत एवं उपवास पूर्ण शास्त्रीय विधि (upvas)

व्रत एवं उपवास (upvas) पूर्ण शास्त्रीय विधि से संपन्न होने चाहिए

upvas – पिछले लेख में हमने ” व्रत अनुष्ठान की महिमा ” इस बारे में संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में ” व्रत एवं उपवास पूर्ण शास्त्रीय विधि से संपन्न होने चाहिए ” इस विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |

भारत महोत्सव प्रधान देश

धर्मप्राण भारत महोत्सव प्रधान देश है | हमारे सभी अवतार, देवी देवता और ऋषि मुनि व्रत महोत्सवों को भरी महत्त्व देते हैं | जीवन से लेकर मृत्यु संस्कार तक हमारे यहां महोत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है | सनातन धर्मी हिन्दू के घर जब वच्चा जन्म लेता है तो उसके उपलक्ष में तरह- तरह के संस्कार उत्सव के रुप में मनाये जाते हैं | नामकरण, यज्ञोपवीत, वाग्दन, विवाह और अंत में पूरी आयु प्राप्त कर मृत्यु को प्राप्त होने वाले की मृत्यु भी उत्सव के रूप में मनाई जाती रही | प्रत्येक कार्य पूर्ण शास्त्रीय विधि से समपन्न किया जाता रहा |

upvas-1

पुराणों के अनुसार upvas

गरुड़ पुराण में वृत धारी के लिए क्रोध, लोभ तथा मोह को सर्वथा त्याज्य बताया गया है | भविष्य पुराण में कहा गया है —

क्षमा सत्यं दया दानं शौचमिन्द्रियनिग्रहः |

देवपूजाग्निहवनं  संतोषः स्तेयवर्जनम ||

व्रताचरण के दौरान क्षमा, दया, दान, शौच, इन्द्रियनिग्रह, देवपूजा, अग्निहोत्र और संतोष का आचरण करने से ही व्रत का पुण्य प्राप्त होता है |

upvas के समय नियम

व्रत के दौरान दूसरे का अन्न फल आदि ग्रहण न करने, अनर्गल वार्तालाप न कर प्रायः मौन रहकर प्रभु के नाम का स्मरण करते रहने, ईश्वर का चिंतन करने तथा सत्यसाहित्य का अध्यन करने का शास्त्रों ने आदेश दिया है |

व्रत के दौरान यदि भगवती भागीरथी गंगा, यमुना, नर्मदा या सरयूजी के अति पवन तट पर हों तो नदियों की पवित्रता बनाये रखने का पूरा ध्यान रखना चाहिए | स्नान करते समय तेलसाबुन का भूलकर भी प्रयोग नहीं करना चाहिए | संत- महात्माओं का सत्संग, धर्मशास्त्रों का अध्यन व्रत उपवास को और भी सार्थक बनाने वाला सिद्ध होता है |

शंकराचार्य स्वामी जी का upvas

महंत बीतराग संत शंकराचार्य स्वामी श्रीकृष्णबोधाश्रमजी महाराज तो व्रत उपवास के दौरान कठोर संयम वरतने, चौबीस घंटे में केवल एक बार अल्पाहार के रूप में फल – दूध ग्रहण करने तथा सांसारिक कार्यो से सर्वदा निर्लिप्त रहने की प्रेरणा देते हैं |

परम्पराएं न त्यागें

आधुनिकता तथा विज्ञान की चकाचौंध में फसे हुए कुछ उपदेशक कहते सुईं जाते हैं कि एकादशी का अर्थ उपवास नहीं अपितु ग्यारह नियमो का पालन करना ही एकदशी कहा गया है | किन्तु हमें उनकी इस  प्रकार की बातों पर ध्यान न देकर धर्मशास्त्रों तथा प्राचीन परंपरा के अनुसार ही व्रत उपवास रखने चाहिए | यह ठीक है कि दुष्प्रवृत्तियाँ त्याग कर सद्गुणों का पालन करना भी एक प्रकार का संकल्प- व्रत ही है | असत्य, हिंसा, निंदा, चुगली आदि केवल एकादशी या व्रत के दिन ही वर्जित नहीं है अपितु इनका तो जीवन में सर्वथा- सर्वथा त्याग करना चाहिए | व्रत उपवासों के माध्यम से लोक- परलोक दोनों का कल्याण होता है |

पाश्चात्य देशों का अनुकरण

हमारे यहां बच्चों के जन्मदिवस पर उन्हें बृद्धजनों से आशीर्वाद, संतमहात्माओं के दर्शन कराकर उनके आशीर्वाद की परंपरा थी | किन्तु अब पाश्चात्य देशों का अनुकरण कर केक कटवाया जाने लगा | मोमबत्तियां जलाकर उन्हें बच्चों से फूंक लगवाकर उन्हें बुझवाया जाता है | दीपक जलने के बजाय दीपक या मोमबत्ती बुझावना स्पष्ट रूप से पाश्चात्य सभ्यता नहीं तो क्या है |

यह भी ध्यान रखें

हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे वास्तविक धर्माचार्य, संत-महात्मा तथा गुरु वे ही हो सकते हैं जो हमें धर्मशास्त्रानुसार चलने की प्रेरणा देकर हमारा जीवन सफल बनाने का मार्ग प्रसस्त करें | धर्मशास्त्रों के विपरीत मनमाने ढंग से स्वयं जीवन बिताने वाले तथा हमें मनमाने ढंग से मर्यादाहीन जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले हमारे सच्चे धर्मगुरु या मार्ग दर्शक कैसे हो सकते हैं | 

इस लेख में हमने ” व्रत एवं उपवास पूर्ण शास्त्रीय विधि से संपन्न होने चाहिए ” इस बारे में संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में ” तीन महाव्रत ” इस विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |

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