जन्मस्थ ग्रहों के ऊपर से गुरु का गोचर –
(guru gocharfal) सूर्य आदि ग्रहों का जन्म कालीन ग्रहों पर तथा उनसे कुछ विशिष्ट स्थानों पर से गोचर, और उसका स्थिति तथा दृष्टि के प्रभाव द्वारा क्या फल होता है |
जन्म कुंडली के ग्रहों पर से जब गोचरवश ग्रह विचरण करते हैं, तो स्थान और राशि के अनुसार विशेष शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं | प्रस्तुत लेख में इसी विचरण से संबंधित कुछ उपयोगी जानकारी आप लोगों को दी जाएगी |
जन्मस्थ सूर्य के ऊपर गुरु का गोचर –
जन्म के समय कुंडली में स्थित सूर्य के ऊपर से अथवा उससे सप्तम, पंचम तथा नवम भाव से जब भी गोचर वश गुरु जाता है | और यदि जन्म के समय चंद्र लग्न के स्वामी का मित्र है, तो यह गोचर राज्य, सम्मान, अधिकारी वर्ग व उच्च वर्ग से लाभ, उत्तम स्वास्थ्य, धन सुख में संतोष देगा | यदि गुरु साधारण बली है तो साधारण फल होगा, और यदि गुरु चंद्र लग्नेश का शत्रु तथा शनि राहु अधिष्ठित राशियों का स्वामी है | तो यह गोचर ह्रदय रोग, आंखों का कष्ट राज्य से हानि, अधिकारी वर्ग का रोष, नौकरी छूट जाना जैसे कुछ अनिष्ट फल दे सकता है |
जन्मस्थ चन्द्र के ऊपर गुरु का गोचर–(guru gocharfal)
जन्म के समय के चंद्र के ऊपर से अथवा इससे सप्तम तथा नवम भाव में गोचर वश आया हुआ गुरु विशेषकर अशुभ फल ही करता है | यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा दो,तीन,छः,सात,दस और ग्यारहवीं राशि में हो, और गुरु शनि अथवा राहु अधिष्ठत राशि का स्वामी हो तो ऐसा गोचर का गुरु रोग देता है | तथा माता-पिता से वियोग कराता है | धन का नाश तथा व्यवसाय में हानि होती है | कर्ज के कारण बहुत मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है | प्रायः ऐसे गुरु का गोचर कष्टदायक होता है, तथा घर से दूर भी करता है |
जन्मस्थ मंगल के ऊपर गुरु का गोचर –
जन्म के समय कुंडली में स्थित मंगल के ऊपर से अथवा उससे सप्तम और नवम भाव में गोचर वश आया हुआ गुरु प्रायः शुभ फल करता है | इस गोचर में शारीरिक और मानसिक उत्साह की वृद्धि होती है | जातक से वरिष्ठ अधिकारी उसके कार्यों से प्रसन्न रहते हैं | वृद्धि तथा ऊहापोह शक्ति में सात्विकता तथा व्यापकता आती है | यदि कुंडली में गुरु ! राहु या शनि अधिष्ठत राशियों का स्वामी हो तो, रक्त विकार, दुर्घटना, भाइयों से विवाद आदि अशुभ घटनाएं घटती हैं |
जन्मस्थ बुध के ऊपर गुरु का गोचर –
जन्म के समय के बुध के ऊपर से अथवा उससे सप्तम, पंचम अथवा नवम भाव में आया हुआ गोचर का गुरु कुछ इस प्रकार फल देता है |
1 – बुध यदि अकेला हो और किसी ग्रह के प्रभाव में ना हो तो विद्या में बढ़ोतरी, संबंधियों से लाभ, व्यापार का प्रसार, लेखन कला में पारंगतता, भाषण दक्षता तथा धन देता है |
2 – यदि बुध पर गुरु के मित्र ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो, गोचर के गुरु का वही फल होगा जो उन उन ग्रहों पर गुरु की शुभ दृष्टि का होता है | स्पष्ट है कि यह अशुभ फल होगा |
3 – यदि बुध अधिकांशतः आसुरी श्रेणी के ग्रहों से प्रभावित हो तथा गुरु, शनि और राहु अधिष्ठत राशियों का स्वामी हो, तो गुरु के गोचर फल में कुछ हद तक शुभता आ सकती है |
जन्मस्थ गुरु के ऊपर गुरु का गोचर – (guru gocharfal)
जन्म के समय कुंडली में स्थित गुरु के ऊपर से अथवा उससे सप्तम और नवम भाव में गोचर वश आया हुआ गुरु शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है | यदि यह जन्म कुंडली में तीन, छः, आठ अथवा बारहवें भाव में शत्रु राशि में स्थित हो, या पाप युक्त पाप दृष्ट हो | शनि तथा राहु अधिष्ठता राशि का स्वामी हो तो ऐसी स्थिति में वह गोचर में विपरीत फल अर्थात धन नाश, राज्य कृपा में कमी, पुत्रों से कष्ट आदि अनिष्ट फल देता है | यदि गुरु जन्म समय में शुभ और बलवान हो तो शुभ फल होता है |
जन्मस्थ शुक्र के ऊपर गुरु का गोचर –
जन्म के समय की शुक्र के ऊपर से और इससे सप्तम अथवा नवम भाव में जब गोचर वश गुरु आता है तो शुभ फल देता है | यदि शुक्र जन्म कुंडली में बलवान हो अर्थात द्वि,तीय चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा बारहवें भाव में स्थित हो | और यदि शुक्र जन्म कुंडली में अन्यत्र हो और गुरु भी पाप दृष्ट, पाप युक्त हो तो गोचर का गुरु शत्रुता, विद्वानों से अनबन उत्पन्न करता है | तथा राज्य कर्मचारियों से वैमनस्य उत्पन्न करता है | सुख तथा भोग के साधनों में कमी लाता है | पत्नी को कष्ट में डालता है तथा व्यापार में मंदी लाता है |
जन्मस्थ शनि के ऊपर गुरु का गोचर – (guru gocharfal)
जन्म के शनि के ऊपर से अथवा इससे सप्तम, पंचम और नवम भाव में गोचर वश जब भी गुरु आता है तो शुभ फल करता है | यदि शनि जन्मकुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, दशम अथवा एकादश भाव में हो तो इस अवधि में डूबा हुआ धन पुनः मिलता है | भूमि की प्राप्ति होती है | कुटुम्ब, बिरादरी आदि में मान सम्मान की वृद्धि होती है | सुख में वृद्धि होती है | यदि जन्म का शनि अन्य भावों में हो और शत्रु राशि में हो तो आर्थिक व सामाजिक स्थिति बहुत साधारण रहती है | बल्कि हानि प्रद भी सिद्ध हो सकती है |
जन्मस्थ राहु-केतु के ऊपर गुरु का गोचर –
राहु और केतु एक छाया ग्रह है और इनकी अपनी कोई राशि नहीं होती, इसीलिए शायद ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को गोचर में नहीं लिया गया | फिर भी जो अनुभव में आया है, उसके अनुसार राहु केतु के ऊपर जब गोचर वश गुरु आता है, तो विशेषकर ज्ञान की हानि करता है | पूजा-पाठ में मन नहीं लगता | कान से सम्बंधित रोग और गैस आदि उत्पन्न करना है |
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