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Guru Mahadasha fal – गुरु की महादशा का फल

गुरु की महादशा का फल

Guru Mahadasha fal – गुरु की महादशा में जातक को राज्य शासित अधिकारियों से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है | देवार्चन, धर्म युक्त, श्रेष्ठ कर्म करने वाले, वेद शास्त्रों के जानने वाले, यज्ञ आदि कर्मों में रुचि रखने वाले, भूमि और वस्त्र का लाभ प्राप्त करने वाले, वाहन आदि से सुखी होते हैं | कुल में श्रेष्ठ, विचार शील, बुद्धिमान, नम्र स्वाभाव वाले, धनी तथा उत्तम मनुष्यों की संगति करने वाले होते हैं | ऐसे जातक को कभी-कभी गले में दाहादि पीड़ा होती है |

Guru Mahadasha fal
Guru Mahadasha fal

साधारणतः गुरु की महादशा में जातक ग्राम का मुखिया, शहर अथवा किसी प्रांत का अधिपति अर्थात उन पर अधिकार करने वाला होता है | जातक मेधावी, विनीत और चित्त आकर्षित करने वाला अर्थात सुन्दर होता है | परंतु नीच राशि या शत्रु ग्रह की युति या दृष्ट इत्यादि की दशा में दुष्ट फल प्राप्त होते हैं |

वृहस्पति की महादशा का विशेष फल (Guru Mahadasha fal)

Guru Mahadasha fal – गुरु की महादशा के विशेष फल जानने के लिए निम्न बिंदुओं पर विचार करना आवश्यक है | परम उच्च राशि में स्थित गुरु की दशा में धन, समृद्धि, महान सुख, कीर्ति, वाहन और घोड़े तथा पालकी आदि की सवारी, राज्याभिषेक तथा कुल पर अधिपत्य होता है | उच्च राशि में स्थित गुरु की महादशा के अंत में धन की प्राप्ति, राज्य की ओर से मान-सम्मान की प्राप्ति, विदेश यात्रा, कोई बड़ी नौकरी अथवा आधिपत्य प्राप्त होता है | परंतु अंदरूनी दुःख से मन खिन्न रहता है | आरोही गुरु की महादशा में धन, और भूमि की प्राप्ति, संगीत से प्रेम, राज्य, स्त्री तथा संतान से सुख एवं स्वकीय यश और प्रताप की प्राप्ति होती है |

अवरोही गुरु की महादशा में कभी किंचित सुख और अंत में दुख होता है | यश की हानि, आकर्षित करने वाला स्वरूप प्राप्त होता है और राज्य से सम्मान होता है | परंतु अंत में इन सभी का अभाव हो जाता है | परम नीच गुरु की दशा में जातक के गृह और द्वार आदि भग्न (खंडित) हो जाते हैं | प्रायः सभी से मतभेद रहता है, कृषि का नाश तथा दूसरों की नौकरी करनी पड़ती है | मूल त्रिकोण राशि में स्थित गुरु की दशा में राज्य, पृथ्वी संपत्ति, पुत्र, स्त्री और वाहन आदि की प्राप्ति होती है | भुजा अर्जित बहुत धन मिलता है, धार्मिक यज्ञ आदि कर्मों का करने वाला और मनुष्यों से पूजनीय होता है |

स्वगृही गुरु की महादशा में राज्य, पृथ्वी, वस्त्र, उत्तम भोजन आदि अनेक वाहनों के सुख की प्राप्ति होती है | काव्य कुशलता, वेद शास्त्रों में प्रवृत्ति, पुण्य और पुण्य कार्यों का उदय होता है |

शत्रु आदि ग्रहों की राशि में स्थित गुरु महादशा का फल

अति शत्रुगृही गुरु की महादशा में सुख-दुख भूमि आदि विषयक में विवाद होता है | स्त्री, पुत्र और धन की हानि, राज्य को तथा नेत्र पीड़ा होती है | शत्रु गृही गुरु की महादशा में धन, पृथ्वी, खेती, वस्त्र आदि राज्य सम्मान और आनंद की प्राप्ति होती है, परंतु स्त्री, पुत्र, भाई तथा नौकरों से जातक आर्त रहता है अर्थात दुखी रहता है | अति मित्र ग्रही गुरु की महादशा में राजा से सम्मान होता है और सर्वदा उच्च पदाधिकारी होने के कारण संग्राम भूमि में प्रवेश के लिए तत्पर रहता है, तथा दूरस्थ जगहों से अनेक प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति होती है | मित्र गृही गुरु की महादशा में राजा से मित्रता, कीर्ति, अन्न, उत्तम भोजन और वस्त्र आदि की प्राप्ति होती है, तथा वह विद्या विवाद में विजय पाता है |

समग्रही गुरु की महादशा में राजा से साधारण मान की प्राप्ति, धन, कृषि और द्रव्य का सुख होता है, तथा जातक वस्त्र आभूषण एवं विचित्र वस्त्र आदि से अलंकृत रहता है | उच्च ग्रह के साथ गुरु के रहने से उसकी दशा में जातक को मंदिर, पोखरा, कुआँ और अन्य प्रकार के लाभकारी ग्रहों धर्मशाला, विद्यालय इत्यादि का निर्माण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तथा राज्य से सम्मान पाता है | नीच ग्रह के साथ गुरु के रहने से उसकी दशा में निम्न दर्जे की नौकरी, अपवाद, मन में अशांति और स्त्री पुत्र आदि से मतभेद होता है | पाप ग्रह के साथ बृहस्पति के रहने से उसकी दशा में जातक के मन में बुरे विचार उठते हैं, बुरे ख्याल आते हैं परंतु बाहरी दिखावटी शुभ होते हैं और इसकी दशा में स्त्री पुत्र भूमि तथा धन का आनंद होता है |

शुभ ग्रह नवांश आदि में स्थित गुरु की महादशा का फल (Guru Mahadasha fal)

शुभ ग्रह के साथ गुरु के रहने से उसकी दशा में राजा के साथ सवारी में चलने फिरने का सौभाग्य, दान व राजा के सम्मान से धन, यश प्राप्ति और यज्ञ आदि उत्तम कार्य से विशेष लाभ होता है | शुभ गृह से दृष्ट गुरु की महादशा में राजा से धन की प्राप्ति, देवार्चन, गुरु पूजन और तर्पण आदि में रुचि तथा पुण्य नदियों में स्नान का सौभाग्य प्राप्त होता है | पाप गृह से दृष्ट गुरु की महादशा में आनंद किंचित मात्र या समय-समय पर यश कुछ धन का लाभ और चोरों से हानि होती है | उच्च नवांश में स्थित गुरु के रहने से इसकी दशा के अंत में राज्य तुल्य धन, सुख, रत्न आदि और सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है |

नीच नवांश में स्थित गुरु के रहने से उसकी दशा में राजा से भय, पद से च्युति, बंधु वर्गों से विरोध, चोर, अग्नि और कुल के लोगों से भय तथा प्लीहा एवं चर्म रोग आदि होते हैं | जन्म कुंडली में गुरु उच्च का हो और यदि नवांश कुंडली में नीच राशि में स्थित हो तो उसकी दशा में जातक को बहुत धन की प्राप्ति होती है, परंतु तुरंत ही उसका नाश भी हो जाता है और स्त्री पुत्र से विछोह, चोर और राजा से भय होता है | जन्म कुंडली में गुरु नीच का हो और यदि नवांश कुंडली में उच्च का हो तो ऐसी दशा में जातक का धन पुनः-पुनः नाश होता है और जातक पुनः उसका उपार्जन करता है, उसको राजा से सुख, विद्या बुद्धि तथा इसकी उन्नति होती है, हो सकता है कि वह किसी देश का अधिपति हो जाए |

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Pandit Rajkumar Dubey

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