मंगल ग्रह और ज्योतिष
Jyotish me mangal grah – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस प्रकार सूर्य को राजा कहा गया है उसी प्रकार मंगल को मंत्रीं की पदवी प्राप्त है | मंगल को भौम नाम से भी जाना जाता है | भूमि पुत्र होने के कारण इनका एक नाम भौम भी पड़ा है | मंगल को अंगारक भी कहा जाता है | मंगल का रंग जलते हुए अंगार के समान होने के कारण इसका एक नाम अंगारक भी है | मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है | यह मकर में उच्च तथा कर्क में नीच का माना जाता है | चन्द्र नक्षत्र में मृगशिरा, चित्रा और धनिष्टा नक्षत्र का स्वामी है | एक, चार, सात, आठ और बारहवें भाव में स्थित होने पर यह मंगल दोष उत्पन्न करता है |
शास्त्रों में मंगल-
हमारे शास्त्रों में मंगल की उत्पत्ति भगवान भूतभावन भोले नाथ जी से हुई बताई जाती है | शास्त्रों की माने तो एक समय भगवान शंकर जी कैलाश पर ध्यान लगाये समाधि में बैठे थे उसी समय उनके माथे से पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं | जिस जगह पसीने की बूंदें गिरीं पृथ्वी के उसी भाग से एक सुन्दर बालक की उत्पत्ति हुई | इस अद्भुत बालक की चार भुजाएं थी यह रक्तवर्ण का बड़ा ही तेजस्वी दिखाई दे रहा था | भगवान भोले नाथ की आज्ञा से पृथ्वी ने इसका पालन-पोषण किया तभी से ये भूमि पुत्र (भौम) के नाम से विख्यात हुए | कुछ बड़े होने पर मंगल ने काशी में भगवान भोले नाथ की बड़ी तपस्या की | भगवान शंकर ने तपस्या से प्रसन्न होकर मगल लोक प्रदान किया | मगल लोक शुक्र लोक से से ऊपर स्थित है | यहीं से मगल ने सूर्य की परिक्रमा करते हुए ग्रहों में स्थान प्राप्त किया |
मंगल ग्रह का कारकत्व- (Jyotish me mangal grah)
मंगल ग्रह को साहस, लघु भ्राता, सुख, पराक्रम, धैर्य, अभिमान, शत्रु, कीर्ति, वृद्धि के लिए किये जाने वाले कार्य, युद्ध, नेतृत्व, धनुर्विद्या, रोग, धातु, विद्या, रक्त विकार, शस्त्रक्रिया (ऑपरेशन), युद्ध, लड़ाई, अग्नि, प्रलय, अपनी सामर्थ्य का घमंड, सेनापति, सेना, दुर्ग, क्रूरता, विजय, भूमि, भाई, क्रोध, पित्त विकार, ऋण, सोना, कृषि, शिव भक्ति, नुक्ताचीनी करना, काम, प्रलाप, उत्साह, पर स्त्रीरत, पाप, घाव, हकीम, युवराजत्त्व, उष्ण, बाहुबल, ताम्र, मूंगा, माणिक, दण्डनीति, गृह, विष, कीट, वंश, खेर, गंधक, सिंह, व्याघ्र, विद्वेष, पकाने के बर्तन, अग्नि, अस्त्र, चोर, शत्रु, मिथ्या भाषण, मानसिक विचारों की उच्चता, पुत्र, खंग, फरसा, कुल्हाड़ी, तोप, धनुष-बाण, गंभीरता, कलंक, स्वतंत्रता, रक्त के संबंध के बंधु, उद्योग, साला, पुत्र, मसूर, गोधूम, केसर, कस्तूरी, रक्त वस्त्र, रक्त पुष्प, रक्त चंदन, रक्त वृष, गुड़ आदि मंगल के अधिकार में आते हैं |
मंगल ग्रह और शरीर अंग-
मंगल को शक्ति का कारक माना गया है इसलिए सभी स्नायु, सिर, चेहरा, मूत्राशय, गर्भाशय, गुदाद्वार, पर मंगल का अधिकार होता है | साथ ही जिव्हा का वो हिस्सा जिस हिस्से से तीखेपन का एहसास होता है और प्रोस्टेट ग्रंथि पर मंगल का अधिकार होता है |
मंगल ग्रह के रोग- (Jyotish me mangal grah)
मंगल के अग्नि तत्व होने के कारण गर्मी की बीमारियाँ, जलना, हर तरह के बुखार, फोड़े, खुजली जैसी बीमारियाँ, मुहांसे, दिमागी बीमारियाँ जैसे पागलपन, सर में खून का बहाव, गुप्त रोग, भगंदर, बवासीर (Piles), तथा योन रोग होते हैं | महिलाओं में रक्त प्रदर, हार्नियाँ आदि बीमारियाँ मंगल के अधिकार में आतीं हैं | मंगल स्नायु की बीमारियाँ, पोलियो, लकवा, वेदना, गैस (acidity), अल्सर, पेट दर्द, जहर का प्रयोग, जहरीली गैस या इन चीजों से होने वाली बीमारियाँ मंगल के आधिकार में आतीं हैं |
मंगल के व्यवसाय- (Jyotish me mangal grah)
मंगल को ग्रहों में सेनापति की उपाधि प्राप्त है इसलिए जहां सुरक्षा का सवाल हो, सेनादल, पुलिस, सुरक्षाकर्मी, जासूस, हथियार, बम, नुकीली चीजें आदि मंगल के अधिकार में आतीं हैं | साथ ही कसाई, नाई, सर्जन जैसे हथियारों का प्रयोग करने वाले कारोबार, खदानों से मिलाने वाले लोहा, तांबा जैसे धातुओं के कारोबार, भट्टियां, बायलर, भाप के इंजन, ऊर्जा प्रकल्प जैसे कारोबार, मिर्च, मसाले की सभी चीजें, दालचीनी, अदरक, लहसुन, प्याज आदि, धातुओं में लोहा, स्टील, यंत्र, तलवार, बन्दुक, बम, हर तरह के हथियारों का निर्माण, भूमि से निकालने वाला ऑक्साइड (Oxide), भस्म, भट्टी में बनाने वाली शराब ऐसी चीजें, भवन निर्माण, भवन निर्माण में उपयोग में लायीं जाने वाली सामग्री, काटेदार पेड़, ऊष्णता, शराब, तम्बाखू आदि मंगल के अधिकार में आते हैं |
मंगल के गुण, धर्म
गुण धर्म | ग्रह – मंगल | गुण धर्म | ग्रह मंगल |
जाति, वर्ण | क्षत्रिय | खनिज –धातु | तांबा, लोहा |
रंग मनुष्य का | रक्त, रक्त गौर | स्थान | अग्नि |
रंग पशु का | अति रक्त | वस्त्र | फटा हुआ |
अधिपति | कार्तिकेय | ऋतु | ग्रीष्म |
दिशा | दक्षिण | रस स्वाद | तीता (Spicy) |
शुभ या पाप | पाप | दृष्टि | ऊर्ध |
देह की घात | चर्बी | तत्व | अग्नि |
स्त्री-पुरुष | पुरुष | स्वरुप | अभिमानी |
प्रकृति | पित्त | अवस्था | जबान |
आकार | चोकोर | आत्मादि | बल |
शरीर | छोटा | स्वाभाव | शूरवीर |
नेत्र | पीले | आयु | 16 वर्ष |
बाल | ताम्र वर्ण | रत्न | मूंगा |
उदय | पृष्ठोदय | चिन्ह किस ओर | दाईं |
चर | पर्वत, वनचर | चिन्ह स्थान | पीठ |
पदवी | सेनापति | लोक | मृत्यु |
देश | अवन्ती | गति समय | डेढ मास |
वृक्ष | कांटेदार पेड़, लहसुन, तम्बाखू | इन्द्रिय | मूत्राशय, प्रोटेस्ट, गर्भाशय, नाक |
कहाँ पीड़ा करता | पीठ, पेट | रोग | पित्त |
किससे मृत्यु | शीत | ||
किसके दोष हरते हैं | राहू, बुध, शनि | किससे चिन्ह करते हैं | अग्नि या शास्त्र से |
किसका बल बढ़ता है | बुध का | राशि में कब फल देते हैं | प्रवेश समय |
दूसरी राशि में जाने के कितने दिन पहले प्रभाव | 8 दिन पहले | बल समय | दिन के अंत में |
मंगल के उपाय – (Jyotish me mangal grah)
यदि मंगल जन्म पत्रिका में अशुभ फल देने वाला हो तो, तांबे के लोटे में जल लेकर उसमे लाल सिंदूर डालकर लाल पुष्प से निम्नलिखित मन्त्र का जाप करते हुए अर्घ देना चाहिए |
भूमिपुत्र महातेजः स्वेदोद्भव पिनाकिनः ।
ऋणार्थस्त्वां प्रपन्नोऽस्मि गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥
- मंगलवार को हनुमान जी को चोला चढ़ाना चाहिए |
- मंगलवार का व्रत करना चाहिए |
- हनुमान जी के दांये पैर का सिंदूर से माथे पर तिलक लगाना चाहिए |
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?