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ketu mahadasha ka fal

Ketu Mahadasha ka Fal-केतु की महादशा का फल

केतु की महादशा का फल

Ketu Mahadasha ka Fal – केतु की महादशा के साधारण फल – केतु की महादशा में सुख की बहुत ही कमी होती है | जातक दीन, विवेक हीन और रोग ग्रस्त होता है | दुख में जीवन व्यतीत करता है, शारीरिक कष्ट की वृद्धि, स्त्री पुत्र का विनाश, राजा से पीड़ित, विद्या तथा धन आगमन में अवरोध, राजा, चोर, विष, जल, अग्नि, शस्त्र, और मित्रों से व वाहन आदि से पतन, परदेशवास, कलि जनित पापों में अभिरुचि, कृषि का नाश, और मन में संताप होता है | उसकी स्त्री और संतान की मृत्यु होती है |

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यदि विशेष फल की बात करें तो यदि केतु शुभ दृष्ट है, शुभ ग्रहों से दृष्ट है और केतु की महादशा चल रही है तो उसमें सुख, राज्य से अर्थ की प्राप्ति, ग्रह में शांति का आविर्भाव, चित्त में दृढ़ता एवं राजा से अनुगृहीत होता है | यदि केतु के ऊपर पांच ग्रहों की दृष्टि है तो उस महादशा में पिता की मृत्यु, दुख का भाजन और अतिसार ज्वर, जननेंद्रिय रोग एवं चर्म रोगों से पीड़ित होता है |

भावानुसार केतु महादशा का फल (Ketu Mahadasha ka Fal)

भिन्न-भिन्न भावों में स्थित केतु महादशा का फल – केंद्रवर्ती केतु की महादशा में निष्फल सा धन, संतान, स्त्री और राज्य का नाश तथा विरक्ति होती है | लग्न में स्थित केतु की महादशा में नाना प्रकार के भय और ज्वर, अतिसार, प्रमेय, जननेंद्रिय के रोग तथा चेचक आदि चर्म रोगों से पीड़ित होता है | द्वितीय भाव में स्थित केतु की महादशा में धन का क्षय, वचन में कठोरता, मन में दुख, कुत्सित अन्य की प्राप्ति एवं सिर व्यथा होती है | तृतीय भाव में स्थित केतु की महादशा में बहुत सुख, परंतु भ्राताओं से मतभेद और मन में विकलता रहती है |

चतुर्थ भाव में स्थित केतु की महादशा में शुक्र की हानि, स्त्री पुत्र आदि को भय, परंतु अन्न, पृथ्वी एवं गृह आदि की प्राप्ति होती है | पंचम स्थान में केतु हो तो उसकी दशा में संतान की हानि, चित्त में भ्रांति एवं राज्य द्वारा धन की हानि होती है | छठे स्थान में स्थित केतु की महादशा में चोर और अग्नि से नाना प्रकार का भय और जातक ऋण ग्रस्त होता है | सप्तम स्थान में स्थित केतु की दशा में भय, स्त्री पुत्र का नाश और मूत्र रोग से पीड़ा होती है |

अष्टम स्थान में स्थित केतु की महादशा में पिता की मृत्यु और श्वांश, कफ, संग्रहणी तथा छय इत्यादि रोग से पीड़ा होती है | नवम भाव में स्थित केतु की दशा में पिता और गुरु को विपत्ति, दुख तथा शुभ कर्मों का नाश होता है |

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दशम स्थान में स्थित केतु की महादशा में मानहानि, चित्त की विकलता, अपकीर्ति से पीड़ा होती है | ग्यारहवें भाव में स्थित केतु की दशा में सुख, भ्राता वर्गों को आनंद और यज्ञ दान आदि में प्रवृत्ति होती है | बारहवें भाव में स्थित केतु की महादशा में स्थान से च्युत, प्रवासी, राजा से पीड़ित और कष्ट भोगी होता है | तथा जातक के नेत्र का नाश होने का भय होता है |

केतु की महादशा के प्रथम खंड में सुख की प्राप्ति, मध्य खंड में भय और अंतिम खंड में भय मृत्यु और चिंता होती है |

शुभ फल देने में केतु से राहु अच्छा होता है परंतु केतु मुक्ति के देने में प्रबलता रखता है | स्मरण रहे कि राहु और केतु तीन प्रकार से गुण और अवगुण को संग्रह करते हैं, अर्थात जिस भाव अथवा राशि में रहते हैं उसके स्वामी के सदृश्य और जिस ग्रह के साथ रहता है उसके सदृश्य फल देते हैं |

केतु के साथ यदि कोई शुभ ग्रह हो तो उसकी दशा सुख देने वाली होती है, और यदि केतु के ऊपर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो केतु की दशा में बहुत धन की प्राप्ति होती है | परंतु यदि केतु के साथ पाप ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा में दुष्ट जनों से क्लेश एवं अपने किए हुए कर्म से धन का नाश होता है | मतान्तारसे केतु की महादशा के आरंभ में कुटुंब और गुरुजनों से द्वेष, मध्य में धन आगमन होता है और अंत में सुख होता है |

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