जन्मस्थ ग्रहों के ऊपर से मंगल का गोचर –
(mangal gocharfal) सूर्य आदि ग्रहों का जन्म कालीन ग्रहों पर तथा उनसे कुछ विशिष्ट स्थानों पर से गोचर, और उसका स्थिति तथा दृष्टि के प्रभाव द्वारा क्या फल होता है |
जन्म कुंडली के ग्रहों पर से जब गोचरवश ग्रह विचरण करते हैं, तो स्थान और राशि के अनुसार विशेष शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं | प्रस्तुत लेख में इसी विचरण से संबंधित कुछ उपयोगी जानकारी आप लोगों को दी जाएगी |
जन्मस्थ सूर्य के ऊपर मंगल का गोचर –
जन्म कुंडली में स्थित सूर्य पर से अथवा उससे सातवें, छठे भाव, तथा दसवें स्थान पर से जब भी गोचर का मंगल जाता है, तब उस अवधि में टाइफाइड, मलेरिया बुखार, तथा अन्य पित्त जनित रोगों से कष्ट होता है | खर्च बहुत बढ़ जाता है | व्यवसाय में अनेक प्रकार की अड़चनें आती है | कार्यालय में भी वरिष्ठ अधिकारी खुश नहीं रहते | आंखों में अक्सर कष्ट बना रहता है | कभी-कभी तो पेट के ऑपरेशन की संभावना भी बन जाती है | पिताजी को कष्ट पहुंचता है, तथा उनको चोट भी लगने का भय रहता है |
जन्मस्थ चन्द्र के ऊपर मंगल का गोचर – (mangal gocharfal)
जन्म के समय कुंडली में स्थित चंद्रमा पर से या उससे सातवें, छठे तथा दसवें स्थान पर जब भी गोचर वश मंगल आता है, तो शारीरिक चोट की संभावना रहती है | क्रोध अधिक आता है | भाइयों द्वारा कष्ट पहुंचता है | धन का बहुत नुकसान होता है | हां यदि जन्म कुंडली में मंगल बलवान हो, राजयोग कारक हो या अन्य किसी प्रकार से शुभ हो तो धन आदि का विशेष लाभ कराता है |
जन्मस्थ मंगल के ऊपर मंगल का गोचर –
जन्म के समय कुंडली में स्थित मंगल के ऊपर से अथवा उससे सातवें तथा दसवें स्थान में गोचर वश जब-जब मंगल आता है, तो यदि वह जन्म कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, आठवें, नवे अथवा बारहवें स्थान में हो, और विशेष बलवान ना हो तो धन हानि, कर्ज, नौकरी छूट जाना, बल में कमी आना, भाइयों से कष्ट होना, लड़ाई झगड़े आदि देता है | इस गोचर काल में चेचक, खसरा, फोड़े, सूखा, रक्त विकार जैसे अनेक प्रकार की बीमारियां भी उत्पन्न होती है |
जन्मस्थ बुध के ऊपर मंगल का गोचर – (mangal gocharfal)
जन्मस्थ बुध के ऊपर से अथवा उससे सातवें और दसवें भाव से गोचर के मंगल का विचरण सामान्यता अशुभ फल करता है | बड़े व्यापारियों के दो नंबर के खाते किसी शत्रु द्वारा शिकायत के कारण इसी गोचर में पकड़े जाते हैं | झूठी गवाही या जाली हस्ताक्षरों से संबंधित मुकदमे चलते हैं | लोग निंदा करते हैं | लेखकों का प्रकाशकों से वाद विवाद होता है | उनकी पुस्तकों की सराहना नहीं होती | व्यापार में हानि होती है, तथा विशेषकर मातृ पक्ष के संबंधों को कष्ट होता है |
जन्मस्थ गुरु के ऊपर मंगल का गोचर –
जन्म के समय कुंडली में स्थित गुरु के ऊपर से अथवा उससे सातवें तथा दसवें भाव से गोचर वश जब मंगल जाता है, तो प्रायः शुभ फलदाई होता है | जातक का अधिकार क्षेत्र बढ़ जाता है | कई प्रकार से उन्नति के नए-नए अवसर प्राप्त होते हैं, तथा लाभ होता है | धार्मिक कार्यों में, अध्यापन तथा वकालत इत्यादि कार्यों से लाभ होता है | तथा कार्यों में रुचि बढ़ती है | परंतु संतान को कष्ट होता है |
जन्मस्थ शुक्र के ऊपर मंगल का गोचर – (mangal gocharfal)
जन्मस्थ शुक्र के ऊपर से और उससे सातवें, छठवें अथवा दसवें भाव से जब गोचर वश मंगल जाता है, तो उस अवधि में कामवासना तीव्र हो जाती है | स्त्री के संग के कारण योन रोग होने की भी संभावना रहती है | आंखों में कष्ट की, तथा पत्नी को कष्ट या स्वास्थ्य दोष की भी संभावना रहती है |
जन्मस्थ शनि के ऊपर मंगल का गोचर –
जन्म के समय कुंडली में स्थित शनि के ऊपर से अथवा उससे सातवें तथा दसवें भाव में जब गोचर का मंगल आता है, तो यदि जन्म कुंडली में शनि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम तथा द्वादश भाव में शत्रु राशि में स्थित हो तो उस गोचर काल में दुख और कष्ट बहुत होते हैं | भूमि, व्यवसाय के द्वारा या अन्य प्रकार से हानि होती है | झगड़े मुकदमे बहुत खड़े होते हैं | स्त्री वर्ग से भी हानि होती है | निम्न स्तर के लोगों, नौकर-चाकरों आदि से हानि होती है | यदि जन्म कुंडली में शनि और मंगल दोनों की स्थिति शुभ हो तो विशेष नुकसान नहीं होता | बल्कि जमीन संबंधी स्थायित्व का कोई कार्य होता है | परंतु मानसिक तनाव बना रहता है |
जन्मस्थ राहु-केतु के ऊपर मंगल का गोचर – (mangal gocharfal)
राहु और केतु एक छाया ग्रह है और इनकी अपनी कोई राशि नहीं होती, इसीलिए शायद ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को गोचर में नहीं लिया गया | फिर भी जो अनुभव में आया है, उसके अनुसार राहु केतु के ऊपर जब गोचर वश मंगल आता है, तब विशेषकर राहु के ऊपर का गोचर दुर्घटनाएं कराता है | तथा केतु के ऊपर का गोचर व्यक्ति को मानसिक तनाव देता है |
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