भिन्न-भिन्न भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल
Mangal Mahadasha ka fal – भिन्न-भिन्न भावगत मंगल के रहने से वह अपनी दशा में क्या फल देता है इस लेख में जानते हैं |
पहले, दुसरे, तीसरे भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल
यदि मंगल प्रथम भाव में स्थित हो और उसकी दशा हो तो इस दशा में जातक अपराधियों और विषाक्त वस्तुओं आदि से भय, कलह, शत्रुता, तथा परदेश वास करना पड़ता है | द्वितीय स्थान में स्थित मंगल की महादशा में जातक को कौटुम्बिक संपत्ति की प्राप्ति, भूमि और वैभव प्राप्त होता है | परंतु राज्य से दंडित, मुख तथा नेत्र में रोग होने का भय रहता है | तृतीय स्थान में स्थित मंगल की दशा होने से आनंद, धैर्य, राज्य शासित कार्यों में सफलता, धन, संतान, स्त्री और भाई से सुख होता है |
चौथे, पांचवे, छटवें भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल (Mangal Mahadasha ka fal)
चतुर्थ स्थान में स्थित मंगल की दशा होने से व्यक्ति को स्थान से च्युत, बंधुओं से विरोध, चोर और अग्नि से भय, राजकोप के कारण सघन जंगल आदि में भ्रमण करने वाला वा दुर्दशा में पड़ जाने वाला होता है | यदि पंचम स्थान में स्थित मंगल हो तो उसकी दशा में पुत्र को मृत्यु तुल्य कष्ट, नेत्र रोग, बुद्धि की भ्रांति और जड़ता होती है | यदि पंचमेश मंगल शत्रु ग्रह न हो तो भाइयों को दुख और जातक को कठिन रोग का तथा नेत्र रोग होता है | वैसे अनुभव में आया है कि पंचमस्थ मंगल कीर्ति और विवेक प्रदान करता है और इसकी दशा में कलह होती है |
छटें स्थान में स्थित मंगल की दशा में जातक कामातुर, शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला, अपने कार्य में तत्पर, बलि मनुष्यों में प्रधान, बंधू-बांधवों पर विजय प्राप्त करने वाला, भू-संपत्ति विशिष्ट होता है | परन्तु शत्रुओं से विवाद होता है और वात शूलादी रोग से पीड़ित रहता है |
सातवें, आठवें, नवमे भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल (Mangal Mahadasha ka fal)
सप्तम स्थान में स्थित मंगल की दशा में स्त्री की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, गुदारोग और मूत्र कृच्छ रोग होता है | परंतु यदि मंगल के साथ कोइ उच्च ग्रह हो अथवा चंद्र उच्च हो तो ऐसा फल नहीं होता | अष्टम स्थान में स्थित मंगल की दशा में दुख और महा भय होता है | जातक स्थान से च्युत होता है, विदेश की यात्रा करनी पड़ती है | अन्न से उसे अरुचि हो जाती है तथा विस्फोटक रोग से होता है | नवम भाव में स्थित मंगल की दशा होने से जातक को पद से च्युत होना पड़ता है अथवा उसमें परिवर्तन होता है | परिवार में वृद्ध जनों को कष्ट और ईश्वर के प्रति प्रेम में विघ्न उत्पन्न होता है |
दशवें, ग्यारहवें, बारहवें भाव में स्थित मंगल की महादशा का फल
दशम स्थान में स्थित मंगल की दशा में कार्य में असफलता, उद्योग में हानि, कीर्ति की अवनति, स्त्री, पुत्र, धन, विद्या और मान-सम्मान इत्यादि की हानि होती है | एकादश स्थान में स्थित मंगल की दशा में राज्य से सम्मान, धन और सुख का लाभ होता है | विवाद में विजय, परोपकार में दत्त चित्त और कीर्तिमान होता है | बारहवें भाव में स्थित मंगल होने से उसकी दशा में धन की हानि, अधिकारीयों से भय, पुत्र, स्त्री और जमीन आदि में हानि तथा भाइयों का परदेश वास होता है |
राशि अनुसार मंगल दशा फल (Mangal Mahadasha ka fal)
मेष, वृषभ, मिथुन राशि में स्थित मंगल की महादशा का फल
यहां जानते हैं भिन्न-भिन्न राशि मंगल की दशा का फल – मंगल यदि मेष राशि में स्थित हो और उसकी दशा चल रही हो तो अनेक मंगल कार्य होते हैं | संतान की उत्पत्ति का सुख और साहस प्राप्त होता है, परंतु अग्नि तथा शत्रु से भय होता है | वृषभ राशि में स्थित मंगल की दशा में जातक को बड़ा आनंद होता है | वह बड़ा वाचाल होता है ईश्वर आदि से प्रीति बढ़ती है और आदर के साथ दूसरे का उपकार करता है | मिथुन राशि में स्थित मंगल की दशा हो तो परदेश यात्रा, बहुत खर्च, मित्रों से विरोध, कलाओं में प्रवीणता, अनेक प्रकार की बातों का ज्ञान प्राप्त होता है | परन्तु बात, पित्त रोग से पीड़ित होता है |
कर्क, सिंह, कन्या राशि में स्थित मंगल की महादशा का फल (Mangal Mahadasha ka fal)
कर्क राशि में स्थित मंगल की दशा हो तो कीर्ति की ख्याति होती है | संपूर्ण गुण युक्त, बली और चौपाया वाह आदि का सुख प्राप्त होता है | परंतु गुप्त स्थान में अकस्मात व्याधि उत्पन्न होती है | पर मंगल यदि कर्क के नीच नवांश में हो तो जातक को जंगल के पदार्थों से तथा अग्नि की क्रिया द्वारा धन का लाभ तो होता है परंतु स्त्री, पुत्र आदि से दूर रहने के कारण दुखी और बल हीन होता है | सिंह राशि में स्थित मंगल की दशा हो तो जातक बहुत मनुष्यों का नायक होता है, परंतु स्त्री, पुत्र से वियोग और शस्त्र तथा अग्नि से भय रहता है | कन्या राशि में स्थित मंगल की दशा होने से मनुष्य आचार-विचार शील होता है | यज्ञ आदि उत्तम कार्यों में उसकी रुचि होती है एवं स्त्री, पुत्र, भूमि और धन-धान्य से सुखी होता है |
तुला, वृश्चिक, धनु राशि में स्थित मंगल की महादशा का फल
तुला राशि में स्थित मंगल होने से उसकी दशा में जातक धन और स्त्री से रहित, वाद-विवादों से व्याकुल तथा शरीर से विकल होता है एवं जातक को वाहनादि का अभाव रहता है | वृश्चिक राशि में स्थित मंगल की दशा होने से जातक धन का संग्रह करने वाला, कृषि कार्यों में रूचि रखने वाला और बड़ा वाचाल होता है | परंतु वह बहुतों से द्वेषभाव भी रखता है | धनु राशि में स्थित मंगल की दशा में जातक के मनोरथ की सिद्धि बड़े अधिकारी से होती है | ईश्वर से प्रेम होता है, परंतु कलह के कारण उदासीन रहता है |
मकर, कुम्भ, मीन राशि में स्थित मंगल की महादशा का फल
मकर राशि में स्थित मंगल की दशा होने से कुल अनुसार धन की वृद्धि होती है | विवाद आदि में विजय प्राप्त करता है, स्वर्ण रत्न आदि तथा चौपाया वाहनों का सुख प्राप्त होता है | कुंभ राशि में स्थित मंगल होने से उसकी दशा में जातक आचार-विचार हीन, धन से व्यथित, पुत्र आदिकों से चिंतित और उद्विग्न चित्त होता है | मीन राशि में स्थित मंगल होने से उसकी दशा में बहुत व्ययी, ऋणी, रोगी, परिवार को लेकर चिंतित और परदेश में वास करना पड़ता है | चर्म रोग अर्थात दद्दू (दाद) आदि से कष्ट पाता है | पुनः यदि वर्गोत्तम (मीन राशि में मीन ही के नवांश में हो) नवांश में हो तो उसकी दशा में बाद-विवाद में विजय, गुण संपन्न, बल सम्पन्न और नाना प्रकार की वस्तुओं का लाभ प्राप्त करने वाला होता है |
मंगल की महादशा के प्रथम खंड में नाना प्रकार से धन और माल की हानि होती है | उसके द्वितीय खंड में राज भय होता है, तथा अंतिम खंड में भाई, संतान, स्त्री और धन इत्यादि की कमी प्लीहा एवं मूत्र स्थली जनित रोग होते हैं | पाठांतर से यदि मंगल गोचर में भी बुरा हो तो बुरा फल होता है अन्यथा नहीं |
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