अलग-अलग भाव में स्थित राहू की महादशा का फल
Rahu Mahadasha ka fal – भिन्न-भिन्न भावों में स्थित राहु की दशा का फल –
पहले, दुसरे, तीसरे भाव में स्थित राहू महादशा का फल (Rahu Mahadasha ka fal)
प्रथम भाव में स्थित राहु की दशा में बुद्धि विहीनता, विश्वासघात, अग्नि और शस्त्र से भय रहता है | बंधु वर्गों का पतन, पराजय और दुख होता है | द्वितीय भाव में स्थित राहु की दशा में विशेष रुप से पद से च्युत और धन की हानि होती है | राज्य की ओर से भय होता है | निम्न दर्जे की व्यक्ति की सेवा करनी पड़ती है | अच्छे भोजन का अभाव होता है और मन चिंतित तथा क्रोधित रहता है | तृतीय स्थान में स्थित राहु होने से उसकी दशा में संतान, स्त्री और भाइयों से सुख मिलता है | भूमि से अधिक लाभ, राज्य से सम्मान तथा विदेश में आना जाना होता है |
चौथे, पांचवे, छटवें भाव में स्थित राहू की महादशा का फल
चतुर्थ भाव में स्थित राहु की दशा में माता अथवा जातक की मृत्यु होती है या मृत्यु तुल्य कष्ट उठाना पड़ता है | राज्य की ओर से भय, पृथ्वी और धन की हानि, वाहन आदि से पतन, कोटूम्बिक व्यक्ति से भय, स्त्री पुत्र को रोग तथा उनका विनाश एवं अत्यधिक मानसिक व्यथा सहन करनी पड़ती है | पंचम स्थान में स्थित राहु की दशा में जातक को बुद्धि भ्रम अर्थात उन्माद, भोजन सुख से विहीन, झगड़ा और मुकदमे बाजी से दुख उठाना पड़ता है | राज्य से भय तथा संतान को कष्ट होता है | छठे स्थान में स्थित राहु की दशा में राज्य, अग्नि और गुप्त शत्रुओं से भय मित्रों का से विश्वासघात और नाना प्रकार के रोग (प्लीहा, क्षय, पित्त प्रकोप, चर्म रोग आदि) से पीड़ित होता है तथा मृत्यु का भी भय रहता है |
सातवें, आठवें, नौवें भाव में स्थित राहू की महादशा का फल (Rahu Mahadasha ka fal)
सप्तम स्थान में स्थित राहु की दशा में स्त्री को कष्ट, दूर देश की यात्रा, भूमि से सम्बंधित विवाद और धन की हानि होती है | नौकरों के द्वारा क्षति, संतान को महा कष्ट तथा सर्प से भय होता है | अष्टम स्थान में स्थित राहु की महादशा में मृत्यु का भय, स्त्री संतान आदि को कष्ट, शत्रुओं की वृद्धि, अग्नि के द्वारा हानि और राज्य से भय होता है | अपने कुल के लोगों के दुर्व्यौहर के कारण जंगल आदि में निवास तथा जंगली पशुओं से भय होता है | नवम भाव में स्थित राहु की दशा में पिता को मृत्यु तुल्य कष्ट, लम्बी यात्रा, बंधु वर्ग और गुरु आदि की मृत्यु, धन तथा संतान की हानि होती है | ऐसी दशा में समुद्र में स्नान का सौभाग्य प्राप्त होता है |
दशवें, ग्यारहवे, बारहवें भाव में स्थित राहू की महादशा का फल
दशम स्थान में स्थित राहु की दशा में पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन और गंगा स्नान का सौभाग्य होता है| पुनः यदि दशम स्थित राशि शुभ राशि हो तो उपर्युक्त ही फल होता है परंतु यदि पाप राशि हो तो जातक को दुख और परदेश वास होता है | यदि दसमस्थ राशि पाप राशि हो और उसके साथ पाप ग्रह भी बैठा हो तो जातक पर स्त्री गामी, ब्रह्म हत्या करने वाला तथा कलंकित होता है | एवं उसके स्त्री पुत्र को अग्नि से भय होता है | ग्यारहवें भाव में स्थित राहु की दशा में राज्य से सम्मान, धन, स्त्री, अन्न, गृह, भूमि और नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है | बारहवें भाव में स्थित राहु की दशा में देश देशांतर में भ्रमण, मनकी विकलता, स्त्री पुत्र वियोग, कृषि पृथ्वी और पशुओं की हानि होती है |
राशि अनुसार राहू दशा फल (Rahu Mahadasha ka fal)
भिन्न भिन्न राशियों में स्थित राहु की दशा का फल – मेष, वृष अथवा कर्क राशि में स्थित राहु हो और उसकी दशा हो तो धन का आगमन, विद्या की प्राप्ति, राज्य से सम्मान, स्त्री सुख, नौकरों की प्राप्ति और आत्मा की शांति होती है | परन्तु इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाए कि यदि राहू मेष राशि में स्थित है तो मंगल की स्थिति पर विचार करना आवश्यक है | मंगल यदि बहुत ही शुभ है तो ही शुभ फला प्राप्त होंगे अन्यथा अशुभ फल ही प्राप्त होंगे |
इसी तरह वृषभ और कर्क राशि के स्वामी की स्थिति पर विचार करना अनिवार्य है | क्योंकि ये सभी ग्रह राहू अधिष्ठित राशि के स्वामी होंगे | कन्या, धनु अथवा मीन राशि की दशा में जातक की स्त्री, पुत्र आदि का सुख, ग्राम आधिपत्य और पालकी इत्यादि वाहन का सुख मिलता है | परंतु अंत में उपर्युक्त सभी सुखों का नाश हो जाता है | पाप राशि गत राहु की दशा में शरीर में दुर्बलता, कुल को क्लेश देने वाला, राज्य, शत्रु और ठग से भय होता है | खांसी, क्षय रोग व मूत्र कृच्छ आदि रोग होते हैं |
राहु की दशा के प्रथम खंड दुःख, मध्यम खंड में सुख और यश की प्राप्ति होती है | तथा अंतिम खंड में माता-पिता, गुरु और स्थान का नाश अर्थात रोजगार में विघ्न बाधा उत्पन्न होती है |
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