वरलक्ष्मी व्रत कथा (varalakshmi vrat katha)
varalakshmi vrat katha – यह वरलक्ष्मी व्रत श्रावण शुक्लपक्ष शुक्रवार को किया जाता है
पूजा विधि –
ध्यान – क्षीर समुद्र में उत्पन्न हुई, क्षीर के वर्ण के समान प्रभावाली, क्षीर के वर्ण के समान वस्त्र पहने हुए, हरि की प्यारी लक्ष्मी जी का ध्यान करती/ करता हूँ |
आवाहन – ब्राम्ही हंश पर चढ़ी हुई, अक्ष और कमंडल लिए हुई, vishnu के तेज से भी अधिक जो वर देने वाली देवी हैं वह मेरी सदा रक्षा करें |
आसन – हे महादेवी आपका बड़ा भरी एश्वर्य है आप ब्रम्हाणी तथा ब्रम्हा की प्यारी हो आसन ग्रहण करें |
अर्घ्य दें – पाप के संहार करने वाले महा दिव्य तीर्थ के जलों से अर्घ्य स्वीकार करें |
आचमन – हे असुरों को मारने वाली ! हे वरों को देने वाली ! देवपूज्ये देवी ! हे असंख्य आयुधों को हांथों में रखने वाली ! विष्णु को साथ रखने वाली वैष्णवी आचमन कीजिए |
पंचामृत स्नान – हे भगवान की प्यारी पद्मे ! हे वरदे ! हे शक्ति सम्भुते ! ही वरप्रिये ! शुद्ध पंचामृत से स्नान करता हूँ |
स्नान मन्त्र बोलें –
स्नान – गंगाजलम
वस्त्र – चांदी के पर्वत के समान दिव्य तथा क्षीरसागर की सी चमक वाला चांदी की चाँदनी जैसा वस्त्र हे देवी इसे स्वीकार करें |
मंगलसूत्र – मान्गल्यमणि
गन्ध – चन्दन – हरिद्रा – कुमकुम – पुष्प – पुष्पमाला – फल – मिष्ठान्न – उपहार भेंट आदि यथा शक्ति पूजन करें |
तत्पश्चात क्षमा प्रार्थना – हे वरलक्ष्मी ! हे महादेवी ! हे सब कामो को देने वाली ! जो मैंने व्रत किया है, वह आपकी कृपा से पूरा हो जाय इस प्रकार प्रार्थन करनी चाहिए |
मीठे पकवानों के साथ तुझे वायना देती/देता हूँ | इस प्रकार वायने के साथ दक्षिणा मिलाकार ब्राम्हण को दान दें, फिर कथा श्रवण करें |
वरलक्ष्मी व्रत कथा – (varalakshmi vrat katha)
सब देवों से सेवित कैलाश के शिखर पर महादेव गौरी के साथ पांसों से खेल रहे थे | वे दोनों एक दुसरे से कहने लगे कि, मैंने तुम्हे जीत लिया, यह उनका एक विवाद हो गया | चित्रनेमी से पूछा तो वह झूठ बोला कि; शिवाजी ने | इससे गौरी ने क्रोध में आकर शाप दे डाला | हे झूठे ! तु कुष्ठी हो जा | चित्रनेमी हतप्रभ हो गया |
पीछे शिवाजी बोले कि, मैंने झूठ के बराबर पाप कहीं देखा सुना नहीं है | परम बुद्धिमान चित्रनेमी कभी झूठ नहीं बोलता सत्य कहता है, हे दिवि ! आप इस पर कृपा करें | दयालु होकर मात ने उससे शाप मोक्ष कहा कि, जब सुन्दर सरोवर पर यह व्रत पवित्र अप्सराएं करेंगीं, और एकाग्र मन से तुतुझे सब कहेंगी उस समय उस व्रत के करने से तुम शाप मुक्त हो जाओगे |
चित्रनेमी का पतन –
इतना कहते ही चित्रनेमी वहां से उसी समय गिर गया | उस सरोवर पर चित्रनेमी कोढ़ी होकर रहने लगा | वहां उसने स्वर्ग की विलासनियों को देखा, वे सब dev पूजन में लगीं हुईं थीं | उन्हें प्रणाम कारके पूछने लगा कि, हे महाभागो ! किसकी पूजा कराती हो और क्या चाहती हो ? और मै क्या करूँ जिसका यहाँ और वहाँ दोंनो जगह फल हो, आप ऐसा कोई व्रत कहें |
ऐसा चित्रनेमी ने विलासनियों से पूछा, कि जिसके किये से में बहुत दिनों के दुखदाई गिरिजा के शाप से छुट जाऊं | वे बोलीं कि, तुम इस श्रेष्ठ व्रत को करो वह सब काम और समृद्धि देने वाला दिव्य (varalakshmi vrat katha) वरलक्ष्मी व्रत है | जब सूर्य कर्क राशि पर हों, नदी के किनारे उसी श्रावण मास के शुक्लपक्ष के शुक्रवार के दिन संयमी होकर महालक्ष्मी का व्रत करना चाहिए |
व्रत की साज सज्जा
देवी की चतुर्भुज प्रतिमा बनावे, तोरण-बन्दनवार से घर को सजाकर घर के पूर्व भाग में विशेषकर ईशान दिशा में भूमि को गोबर से लीपकर उसके ऊपर चावल रखें | पद्म पर कलश रखें, उसमे तीर्थ जल भरें | उस पर फल रखकर पञ्च पल्लव डालकर वस्त्र से ढँक दें | प्रतिमा को उस पर स्थापित कर पूजन करें | शिवा का यथा शक्ति पूजन कर नैवैद्ध चढ़ावें पीछे वर मांगे | देवी का ध्यान करटे हुए नाच गाने के साथ श्री की प्रार्थना करें |
उन स्वर्ग की बिलासनियों ने उसे इस प्रकार (varalakshmi vrat katha) की व्रत विधि कही कि, यह करके विधि से पांच वायन दें और यत्न के साथ कथा सुनें | मौन होकर पांह आरतियों से पूजें | व्रत करने वाले को चाहिये कि, एक सुपारी लेकर चूर्ण रहित नागवल्ली के एक पत्ते को सावधानी से चावाये, तत्पश्चात उसे एक कपडे में बांधकर प्रातः काल देखे यदि वो अच्छी तरह लाल हो जाय तो समझे की व्रत सफल हुआ | अन्यथा पुनः व्रत करे |
चित्रनेमी ने दिया वचन
सभी समृद्धियों को देने वाले इस व्रत को अप्सराओं ने अच्छी तरह किया | वे पूजा के अंत में चित्रनेमी को देखने लगीं कि, वह धूप के धुंआ को सुंघ घृत के दीपक के प्रभाव से कुष्ठ रहित हो, सूचि एवं सोने सा दीख रहा है | एवं उसका मन उस व्रत में लगा हुआ है | इस सब सिद्धिदाता व्रत को यत्न से करूँगा, ऐसा चित्रनेमी ने सबी देवियों से कहा | उसी समय उसने वस्त्र अलंकर से भूषित सोने की मूर्ति बनवाई, पहले कहे हुए विधान के अनुसार पूजा की |
पांच वांस के पात्र दक्षिणा समेत फल और अन्न से तथा इक्कीस पकवानों से भरकर पांच वायने दिए | इस प्रकार नमस्कार करके घर चला गया | घर जाकर चूर्ण रहित नागवल्ली का एक दल तथा सुपारी खाकर कपडे में बाँध प्रातःकाल देखा, जब वह लाल हो गया तो भक्ति से साथ व्रत किया | आज में देवी के दर्शन करने से शाप मुक्त हो गया हूँ, मैंने इस व्रत को भक्ति भाव से किया है | चित्रनेमी व्रत करके भगवान शंकर के स्थान कैलाश पर पहुंचा |
कैलाश पर मिला स्थान
वहां आदर के साथ देवेश और देवी को प्रणाम किया | पार्वती जी चित्रनेमी से बोलीं कि, हे चित्रनेमी ! अपने पुत्र की तरह तु मेरा पालनीय है, यह तु सत्य समझ | चित्रनेमी बोला कि, हे हरिवल्लभे ! वरलक्ष्मी की कृपा से आपके चरण देख सका हूँ | पवित्र व्रत वाले चित्रनेमी से महादेव जी बोले कि, आज से आप इस कैलाश पर यथेष्ठ भोग भोगें, पीछे इस व्रत के प्रभाव से वैकुण्ठ चले जाओगे | पुत्र के लिए पहले पार्वती जी ने इस व्रत को किया था |
इस (varalakshmi vrat katha) के प्रभाव से उन्हें स्वामी कार्तिक पुत्र मिला | नन्द और विक्रमादित्य इससे राज्य पा गए, तथा स्त्री रहित नन्द को सुलक्ष्णा स्त्री मिली | उसने भी इस व्रत को पुत्र संतान के लिये किया था | इससे उसने ऐसे पुत्र को जन्म दिया जो कि, तीनों लोको का पालन कर सके | तथा बड़े-बड़े सुन्दर भोग भोगे | उस दिन से यह वरलक्ष्मी व्रत प्रचिलित हुआ | जो कोई स्त्री व पुरुष इस उत्तम व्रत को करता है, वह बड़े-बड़े भोगों को भोगकर अंत में शिवपुर जाता है |
जो कोई इसे एकाग्र होकर सुनेगा और सुनाएगा, वह वरलक्ष्मी की कृपा से शिवपुर चला जाएगा | यह भविष्य पुराण का कहा हुआ श्रावण शुक्रवार के दिन होने वाला वरलक्ष्मी व्रत समपन्न हुआ ||
इन्हें भी देखें :-
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?