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mahashivratri vrat katha in hindi

महाशिवरात्रि व्रत कथा

mahashivratri – श्री शिवमहापुराण के कोटिरूद्रसंहिता के चालीसवें अध्याय में कथा आई है कि वाराणशी के वन में एक भील रहता था | उसका नाम गुरुद्रह था | उसका कुटुंब बहुत बड़ा था | वह बलवान और क्रूर था | अतः प्रति दिन वन में जाकर मृगों को मारता और वहीँ रहकर नानाप्रकार की चोरियां करता था | शुभकारक महाशिवरात्रि  के दिन उस भील के माता-पिता, पत्नी और बच्चों ने भूख से पीड़ित होकर भोजन की याचना की |

mahashivratri
mahashivratri

वह तुरंत धनुष लेकर मृगों के शिकार के लिए सारे वन में घूमने लगा | देवयोग से उस दिन कुछ भी शिकार नहीं मिला और सूर्य अस्त हो गया | वह सोचने लगा – अब में क्या करूँ ? कहाँ जाऊ ? माता-पिता, पत्नी, बच्चों की क्या दशा होगी ? कुछ लेकर ही घर जाना चाहिए, वह सोचकर वह ब्याध एक जलाशय के समीप पहुंचा कि रात्रि में कोई न कोई जीव यहाँ पानी पीने अवश्य आएगा – उसी को मारकर घर ले जाऊँगा | वह ब्याध किनारे पर स्थित विल्ववृक्ष पर चढ़ गया | पीने के लिए कमर में बंधी तुम्बी में जल भरकर बैठ गया | भूख-प्यास से व्याकुल वह शिकार की चिंता में बैठा रहा |

प्रथम प्रहर की पूजा – mahashivratri

रात्रि के प्रथम प्रहर में एक प्यासी हिरणी वहां आयी | उसे देखकर व्याध को अति हर्ष हुआ तुरंत ही उसका वध करने के लिए उसने अपने धनुष पर एक वान संधान किया | ऐसा करते हुए उसके हांथों के धक्के से थोड़ा सा जल और विल्व पत्र टूटकर निचे गिर पड़े | उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग विराजमान था | वह जल और विल्व पत्र शिवलिंग पर गिर पड़ा | उस जल और विल्वपत्र से प्रथम प्रहर की शिव पूजा समाप्त हो गयी |

खडखड़ाहट की ध्वनि से हिरणी ने भय से ऊपर की ओर देखा | व्याध को देखते ही मृत्यभय से व्याकुल हो वह वोली – व्याध तुम क्या चाहते हो सच- सच बताओ | व्याध ने कहा- मेरे कुटुम्ब के लोग भूखे हैं अतः तुमको मारकर उनकी भूख मिटाऊंगा | मृगी बोली – भील मेरे मास से तुमको, तुम्हारे कुटुंब को सुख होगा, इस अनर्थकारी शारीर के लिए इससे अधिक महान पुण्य का कार्य भला और क्या हो सकता है ? परन्तु इस समय मेरे सब बच्चे आश्रम में मेरी वाट जोह रहे होंगे | में उन्हें अपनी बहन को अथवा स्वामी को सोंप कर लौट आउंगी | मृगी के सपथ खाने पर बड़ी मुश्किल से व्याध ने उसे छोड़ दिया |

रात्रि द्वतीय प्रहर की पूजा

द्वतीय प्रहर में उस हिरणी की बहन उसी की राह देखती हुई ढूढ़ती हुई जल पीने वहां आ गयी | व्याध ने उसे देखकर वान को तरकश से खींचा | ऐसा करते समय पुनः पहले की भांति शिवलिंग पर जल-विल्वपत्र गिर गए | इस प्रकार दूसरे प्रहर की पूजा संपन्न हो गई |

मृगी ने पूछा – व्याध यह क्या करते हो ? व्याध ने पूर्ववत उत्तर दिया – मैं अपने भूखे कुटुंब को तृप्त करने के लिए तुझे मारूँगा | मृगी ने कहा मेरे छोटे-छोटे बच्चे घर में भूखे हैं | अतः में उन्हें अपने स्वामी को सोंप कर तुम्हारे पास लौट आउंगी | में वचन देती हूं | व्याध ने उसे भी छोड़ दिया |

दुसरे प्रहर की पूजा – mahashivratri

व्याध का दूसरा प्रहर भी जागते-जागते बीत गया | इतने में ही एक बड़ा ह्रष्ट-पुष्ट हिरण मृगी को ढूढता हुआ आया | व्याध के वान चढाने पर पुनः कुछ जल- विल्वपत्र शिवलिंग पर गिरे | अब तीसरे प्रहर की पूजा भी हो गई | मृग ने आवाज से चोंककर व्याध की ओर देखा और पूछा – क्या करते हो ? व्याध ने कहा – तुम्हारा वध करूँगा, हिरण ने कहा मेरे बच्चे भूखे हैं | मैं बच्चों को उनकी माता को सौंपकर तथा उन्हें धैर्य बंधाकर शीघ्र ही यहाँ लौट आऊंगा |

चतुर्थ प्रहर की पूजा

व्याध बोला जो-जो यहाँ आये वे सब तुम्हारी ही तरह बातें तथा प्रतिज्ञा कर चले गए, परन्तु अभी तक नहीं लौटे | सपथ खाने पर उसने हिरण को भी छोड़ दिया | मृग -मृगी सब अपने स्थान पर मिले | तीनों प्रतिज्ञाबद्ध थे, अतः तीनों जाने के लिए हठ करने लगे | अतः उन्होंने अपने बच्चों को अपने पड़ोसियों को सौंप दिया और तीनों चल दिए | उन्हें जाते देख बच्चे भी भागकर पीछे-पीछे चले आये | उन सबको एक साथ आया देख व्याध को अति हर्ष हुआ | उसने तरकश से वान खींचा जिससे पुनः जल-विल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़े | इस प्रकार चौथे प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गयी |

mahashivratri की पूजा का प्रभाव

रात्रि भर शिकार की चिंता में व्याध निर्जल, भोजन रहित रातभर जागरण करता रहा | शिवजी का रंचमात्र भी चिंतन नहीं किया | चारों प्रहर की पूजा अनजाने में स्वतः ही हो गयी | उस दिन महाशिवरात्रि (mahashivratri) थी | जिसके प्रभाव से व्याध के सम्पूर्ण पाप तत्काल भस्म हो गए |

इतने में ही मृग और दोंनो मृगियाँ बोल उठे – व्याध शिरोमने शीघ्र कृपाकर हमारे शारीर को सार्थक करो और अपने कुटुम्ब- बच्चों को तृप्त करो | व्याध को बड़ा विस्मय हुआ | ये मृग ज्ञानहीन पशु होने पर भी धन्य हैं, परोपकारी है और प्रतिज्ञापालक हैं मैं मनुष्य होकर भी जीवन भर हिंशा, हत्या और पाप कर अपने कुटुम्ब का पालन करता रहा | मैंने जीव-हत्या कर उदर पूर्ति की अतः मेरे जीवन को धिक्कार है | व्याध ने बाण को रोक लिया और कहा – श्रेष्ठ मृगो तुम सब जाओ तुम्हारा जीवन धन्य है |

भगवान का प्रकट होना

व्याध के ऐसा कहने पर तुरंत भगवान शंकर लिंग से प्रकट हो गए और उसके शरीर को स्पर्श कर प्रेम से कहा – वर मांगो | मैंने सबकुछ पा लिया – यह कहते हुए व्याध उनके चरणों में गिर पड़ा | श्रीशिवजी ने प्रसन्न होकर उसका ‘’गुह’’ नाम रख दिया और वरदान दिया कि भगवान राम एक दिन अवश्य ही तुम्हारे घर पधारेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे | तुम मोक्ष प्राप्त करोगे | वाही व्याध श्रंगवेरपुर में निषादराज गुह बना जिसने भगवान राम का आतिथ्य किया |

mahashivratri पूजा से सभी की मुक्ति

वे सब मृग भगवान शंकर का दर्शन कर मृगयोनि  से मुक्त हो गए | शाप मुक्त हो विमान से दिव्य धाम को चले गए | तबसे अर्बुद पर्वत पर भगवान शिव व्याधेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए | दर्शन पूजन करने पर वे तत्काल मोक्ष प्रदान करने वाले हैं |

यह (mahashivratri) महाशिवरात्रि ‘’व्रतराज’’ के नाम से विख्यात है | यह शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटाने वाली है और शिवलोक को देने वाली है | शास्त्रोक्त विधि से जो इसका जागरण सहित उपवास करेंगे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी | शिवरात्रि के सामान पाप और भय मिटाने वाला दूसरा व्रत नहीं है | इसके करने मात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है |

mahashivratri की इस कथा से हमें क्या सन्देश मिलता है

1 – शिकारी का दया भाव पूरा परिवार भूखा होने पर भी पहली मृगी, दूसरी मृगी और फिर मृग को जाने दिया |

2 – वह अपनी समझ से पूजन भी नहीं कर रहा था इसलिए उसकी कोई कामना भी नहीं थी अर्थात कमाना रहित पूजा |

3 – जब मृग और उसका परिवार समर्पित भाव से आया तब उसने जीवन दान दिया |

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न – 

1 – महाशिवरात्रि व्रत के क्या नियम हैं ?

  • केवल महाशिवरात्रि में ही नहीं किसी भी व्रत के नियम प्रायः एक से ही होते हैं , प्रातः उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान आदि करके भगवान भोले नाथ का दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करना चाहिए एवं व्रती होकर “ॐ नमः शिवाय” या महामृतुन्जय मन्त्र का जाप करना चाहिए | रात्रि में भी जागरण करके चारों प्रहर पूजा करना चाहिए |

2 – महाशिवरात्रि के व्रत में क्या नहीं करना चाहिए ?

  • व्रत के दौरान अन्न नहीं खाना चाहिए यदि भूखे रहने से कोई समस्या होती है तो फलाहार का सेवन करना चाहिए | परन्तु ध्यान रखें फलाहार में नमक का उपयोग न करें |

3 – शिवरात्रि व्रत कब तोड़ सकते हैं ?

  • व्रत समापन के लिए शास्त्रों ने वर्णन आता है कि चतुर्दशी के रहते सूर्योदय के मध्य व्रत का समापन (तोड़) कर सकते हैं |

4 – क्या महाशिवरात्रि पर लड़कियां व्रत रख सकती हैं ?

  • कुंवारी कन्यायें यह व्रत मनचाहे वर प्राप्ति के लिए खासकर करतीं हैं | कन्याओं को यह व्रत अवश्य करना चाहिए | वैसे तो यह व्रत सभी को करना चाहिए इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनोकामना पूरी होती हैं |

5 – व्रत के नियम क्या है ?

  • व्रती को चाहिए कि स्नान करके व्रत का संकल्प अवश्य करना चाहिए |
  • व्रत के समापन के बाद पारण भी जरुर करना चाहिए |
  • व्रत के समय इन्द्रियों पर पूर्ण रूप से संयम रखना चाहिए |
  • व्रती को चाहिए कि असत्य भाषण से बचें और कम से कम बात करें केवल भगवान के चरित्रों का स्मरण करें |
  • व्रत के समय किसी प्रकार के गलिष्ट (भारी भोजन) को ग्रहण नहीं करना चाहिए |
  • जिस देवता का व्रत करते हैं उनके नाम या मन्त्र का निरंतर जाप करते रहना चाहिए |

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Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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