नवरात्रि सप्तम दिवस माँ कालरात्रि पूजन विधि, मन्त्र, कथा और महत्त्व
Maa Kalratri Puja Vidhi – नवरात्रि की नौ दिवसीय आध्यात्मिक यात्रा का सातवाँ दिन माँ दुर्गा के सबसे रौद्र और उग्र स्वरूप माँ कालरात्रि को समर्पित है। उनका नाम सुनकर भले ही भय का अनुभव हो, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और मंगलकारी हैं। जहाँ नवरात्रि के पहले छह दिन हमें क्रमशः दृढ़ता, तपस्या, साहस और ज्ञान प्रदान करते हैं, वहीं सातवाँ दिन हमें हर तरह के भय, अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाता है।
Maa Kalratri Puja Vidhi, कालरात्रि नाम का रहस्य और पौराणिक कथा
‘कालरात्रि’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘काल’ जिसका अर्थ है मृत्यु या समय, और ‘रात्रि’ जिसका अर्थ है रात। इस प्रकार, कालरात्रि का अर्थ हुआ ‘काल का नाश करने वाली’ या ‘मृत्यु की रात’। उनका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वे सभी बुरी शक्तियों, नकारात्मकता और अज्ञानता के अंधकार का नाश करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रक्तबीज नामक एक राक्षस था, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की एक बूंद भी धरती पर गिरने से उसके जैसे ही हजारों राक्षस पैदा हो जाएंगे। इस वरदान के कारण वह बहुत शक्तिशाली और अहंकारी हो गया था। जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार करने के लिए युद्ध किया, तो रक्तबीज ने भी युद्ध में प्रवेश किया।
देवी दुर्गा ने जब रक्तबीज का वध करने का प्रयास किया, तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त की हर बूंद से सैकड़ों रक्तबीज उत्पन्न होने लगे। तब, देवी दुर्गा ने अपने क्रोध से माँ कालरात्रि के इस रौद्र स्वरूप को उत्पन्न किया। माँ कालरात्रि का यह रूप इतना उग्र था कि उन्होंने अपनी जीभ को इतना लंबा कर लिया कि रक्तबीज के शरीर से निकलने वाले रक्त की एक भी बूंद धरती पर नहीं गिर पाई। वे उस रक्त को अपनी जीभ पर ही सोख लेती थीं, जिससे रक्तबीज का अंत संभव हुआ।

Maa Kalratri Puja Vidhi और दिव्य स्वरूप
माँ कालरात्रि का स्वरूप भले ही भयानक प्रतीत हो, लेकिन यह भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी होता है।
- रंग और रूप: उनका वर्ण अंधकार के समान काला है। उनके बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है। उनके तीन नेत्र हैं, जिनसे ब्रह्मांड की सभी शक्तियाँ दिखाई देती हैं।
- चार हाथ: उनके चार हाथ हैं। दाहिने हाथ की ऊपर वाली मुद्रा अभय मुद्रा में है, जो भक्तों को हर तरह के भय से मुक्ति का आशीर्वाद देती है। दाहिने हाथ की नीचे वाली मुद्रा वरद मुद्रा में है, जो भक्तों को वरदान देने के लिए तैयार है।
- अस्त्र-शस्त्र: उनके बाएँ हाथ की ऊपर वाली मुद्रा में लोहे का काँटा है और नीचे वाले हाथ में खड़ग (तलवार) है। ये दोनों ही अस्त्र बुराई और नकारात्मकता का नाश करने के प्रतीक हैं।
- गर्दभ (वाहन): उनका वाहन गधा है, जो उनकी सहजता और कठोर परिश्रम को दर्शाता है।
Maa Kalratri Puja Vidhi, महत्व, भय से मुक्ति और तंत्र सिद्धि
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जो किसी भी प्रकार के भय, तंत्र-मंत्र और नकारात्मक शक्तियों से पीड़ित हैं।
- भय पर विजय: माँ कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार के भय, असुरक्षा और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। वे अपने भक्तों के जीवन से सभी नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर उन्हें एक निडर और आत्मविश्वासी जीवन जीने की शक्ति देती हैं।
- शनि ग्रह का प्रभाव: यह माना जाता है कि माँ कालरात्रि की पूजा से शनि ग्रह के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। उनकी कृपा से व्यक्ति को शनि के प्रकोप से राहत मिलती है।
- सहस्रार चक्र का जागरण: योग शास्त्र के अनुसार, माँ कालरात्रि का संबंध सहस्रार चक्र से है, जो हमारे सिर के सबसे ऊपरी हिस्से में स्थित होता है। यह चक्र आध्यात्मिक चेतना, ज्ञान और मोक्ष का केंद्र है। इनकी पूजा से यह चक्र जागृत होता है, जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति और परम शांति की प्राप्ति होती है।
Maa Kalratri Puja Vidhi और मंत्र: कैसे करें माँ की आराधना
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से की जाती है।
- पूजा की तैयारी: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- संकल्प और पूजा: हाथ में जल और फूल लेकर पूजा का संकल्प लें। माँ कालरात्रि को नीले या काले रंग के वस्त्र और फूल अर्पित करें।
- भोग: माँ को गुड़ से बनी वस्तुओं का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति को सभी प्रकार के दुख-दर्द से मुक्ति मिलती है।
- मंत्र और आरती: उनकी पूजा में इस मंत्र का जाप करें:
माँ कालरात्रि का बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः||
ध्यान मंत्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
माँ कालरात्रि स्तुति मन्त्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
निष्कर्ष
माँ कालरात्रि की पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन के अंधकार और भय का सामना करने के लिए हमें अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना होगा। वे हमें यह संदेश देती हैं कि भयावहता के पीछे भी एक शुभ और मंगलकारी शक्ति होती है। नवरात्रि की इस यात्रा में, माँ कालरात्रि हमें भय से मुक्ति और जीवन में शुभता का आशीर्वाद प्रदान करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. नवरात्रि के सातवें दिन किस देवी की पूजा की जाती है?
नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। इन्हें अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाली देवी माना जाता है।
2. Maa Kalratri Puja Vidhi का सही समय क्या है?
माँ कालरात्रि की पूजा सप्तमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त से शुरू कर संध्या काल तक की जाती है। अभिजीत मुहूर्त एवं प्रदोष काल भी अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
3. माँ कालरात्रि की पूजा में कौन-सा भोग अर्पित करना चाहिए?
माँ कालरात्रि को गुड़ और जौ का भोग विशेष रूप से प्रिय है। साथ ही लाल या नीले फूल, कपूर और काले तिल का प्रयोग शुभ फलदायी होता है।
4. माँ कालरात्रि की पूजा करने से क्या लाभ मिलता है?
माँ कालरात्रि की पूजा से शनि दोष, भय, तंत्र-मंत्र और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। जीवन में साहस, आत्मविश्वास और शांति की प्राप्ति होती है।
5. माँ कालरात्रि का मंत्र क्या है?
माँ कालरात्रि का प्रमुख मंत्र इस प्रकार है –
“ॐ कालरात्र्यै नमः”
इस मंत्र का जप कम से कम 108 बार करना शुभ माना जाता है।
6. क्या माँ कालरात्रि की पूजा घर पर की जा सकती है?
हाँ, उचित नियमों का पालन करते हुए घर पर भी माँ कालरात्रि की पूजा की जा सकती है। पूजा के समय मन को पवित्र रखें और देवी से निडरता, शांति एवं शक्ति की प्रार्थना करें।
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