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Ahoi Ashtami Vrat Vidhi

संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण विधि, कथा और महत्व

Ahoi Ashtami Vrat Vidhiअहोई अष्टमी का व्रत संतान के कल्याण के लिए माताओं द्वारा रखे जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो अक्सर दीपावली से लगभग आठ दिन पहले पड़ता है। इस दिन माताएँ अपनी संतानों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए कठोर उपवास रखती हैं और अहोई माता (देवी पार्वती का रूप) की पूजा करती हैं।

अगर आप यह व्रत पहली बार रखने जा रही हैं या इसकी सही और विस्तृत विधि जानना चाहती हैं, तो यह लेख आपके लिए ही है। यहाँ हम जानेंगे अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण विधि (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi), पूजन सामग्री, नियम और कथा।

1. अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Significance of Ahoi Ashtami)

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व संतान के साथ माता के अटूट प्रेम और विश्वास से जुड़ा है।

Ahoi Ashtami Vrat Vidhi
Ahoi Ashtami Vrat Vidhi
  • संतान का कल्याण: यह व्रत मुख्य रूप से संतान की सुरक्षा और समृद्धि के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि अहोई माता संतान की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं।
  • अहोई माता: इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती सभी माताओं की संरक्षक मानी जाती हैं।
  • संतान प्राप्ति: जिन दम्पत्तियों को संतान नहीं होती, वे भी इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से करते हैं और विशेष रूप से इस दिन राधा कुंड स्नान का अनुष्ठान करते हैं।

2. अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण विधि (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi)

अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के व्रत के समान ही कठोर होता है, जिसे मुख्य रूप से निर्जला (बिना जल) रखा जाता है।

A. व्रत की तैयारी और संकल्प

  1. सुबह का स्नान: व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. संकल्प: हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर भगवान गणेश का स्मरण करें। इसके बाद, अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें।
  3. पूजा की तैयारी: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्र करें और शाम की पूजा के लिए स्थान तैयार करें।

B. पूजन सामग्री (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi aur Puja Samagri)

पूजा के लिए निम्न सामग्री आवश्यक है, जिसे पहले से ही तैयार कर लें:

  • अहोई माता की तस्वीर/पोस्टर: पूजा के लिए अहोई माता (स्याहू माता) की तस्वीर, जिसमें उनके साथ उनके सात पुत्र बने हों।
  • कलश: जल से भरा हुआ कलश (पूजा के लिए)।
  • अक्षत और रोली: चावल और कुमकुम/रोली (तिलक और पूजा के लिए)।
  • सेंवई और पुआ: पूजा के लिए विशेष रूप से आटे की मीठी सेंवई या पुआ/मीठे पकवान बनाए जाते हैं।
  • दीपक और थाली: घी का दीपक, धूप, अगरबत्ती और आरती की थाली।
  • गहने/आभूषण: पूजा के दौरान माताएँ अपने आभूषण (गहने) माता अहोई को अर्पित करती हैं।
  • बायना (उपहार): अपनी सास या घर की बड़ी महिला के लिए कपड़े, फल और दक्षिणा सहित बायना तैयार करें।

C. Ahoi Ashtami Vrat Vidhi और शाम की पूजा विधि

  1. स्थापना: शाम के समय, पूजा के स्थान पर (दीवार पर या चौकी पर) अहोई माता की तस्वीर लगाएं। तस्वीर पर रोली और अक्षत का तिलक लगाएं।
  2. चित्र बनाना: यदि चित्र उपलब्ध न हो, तो गेरू या आटे से दीवार पर आठ कोनों वाली आकृति (अहोई माता का रूप) और स्याहू माता का चित्र बनाएं।
  3. कलश स्थापना: पूजा के स्थान पर जल से भरा कलश रखें। कलश पर स्वास्तिक बनाएं और उसके मुख पर मौली बांधें।
  4. पुआ/सेंवई का भोग: माता अहोई को पुआ, मिठाई या मीठी सेंवई का भोग लगाएं।
  5. व्रत कथा: सभी महिलाएँ एक साथ बैठकर अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनती हैं। कथा सुनते समय हाथ में अनाज (गेहूं या चावल) रखें।
  6. आरती और बायना: कथा समाप्त होने के बाद अहोई माता की आरती करें। इसके बाद, तैयार किया हुआ बायना अपनी सास या घर की सबसे बड़ी महिला को देकर आशीर्वाद लें।

D. तारों को देखकर व्रत खोलना (Vrat Paran)

  • अहोई अष्टमी का व्रत चंद्रमा के बजाय तारों को देखकर खोला जाता है।
  • शाम को तारों के निकलने का इंतजार करें।
  • जब तारे दिखने लगें, तब जल से भरा हुआ लोटा लें और तारों को अर्घ्य दें।
  • अर्घ्य देने के बाद, अपनी संतान के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना करें।
  • परिवार के बड़ों के हाथ से पानी पीकर या मिठाई खाकर व्रत का पारण (समापन) करें।
  • अंत में, पूजा में चढ़ाया हुआ गहना या माला अपनी संतान को छूकर वापस पहन लें।

3. अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)

प्राचीन काल में एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। कार्तिक मास में दीपावली से कुछ दिन पहले, साहूकारनी (साहूकार की पत्नी) जंगल में मिट्टी लेने गई, जहाँ गलती से उसने स्याहू (साही) के एक बच्चे को मार दिया।

साहूकारनी को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ, लेकिन इस पाप के कारण उसके सभी सातों बेटे एक के बाद एक चल बसे। साहूकारनी बहुत दुखी हुई। उसने रोते हुए अपनी सारी व्यथा एक गाँव की बूढ़ी महिला को बताई।

बूढ़ी महिला ने उसे बताया कि उसने स्याहू माता (अहोई माता) के बच्चे को मारा है, इसलिए उसे यह दंड मिला है। उस महिला ने साहूकारनी को अहोई अष्टमी का व्रत रखने और स्याहू माता की पूजा करने की सलाह दी।

साहूकारनी ने पूरे विधि-विधान से अहोई अष्टमी का व्रत रखा, माता से अपने पापों की क्षमा मांगी और पुत्रों की वापसी के लिए सच्चे मन से प्रार्थना की। साहूकारनी की तपस्या और पश्चाताप से प्रसन्न होकर, अहोई माता ने उसे दर्शन दिए और उसके सातों पुत्रों को पुनः जीवनदान दिया। तभी से संतान की कामना और उनके कल्याण के लिए यह व्रत रखा जाने लगा।

4. अहोई अष्टमी और राधा कुंड स्नान का संबंध

अहोई अष्टमी की तिथि को ही मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र में स्थित राधा कुंड में स्नान का विशेष अनुष्ठान किया जाता है।

राधा कुंड स्नान मुख्य रूप से निसंतान दम्पत्तियों के लिए होता है जो संतान प्राप्ति की कामना के लिए मध्यरात्रि में इस कुंड में डुबकी लगाते हैं। चूँकि दोनों अनुष्ठान एक ही तिथि पर होते हैं, इसलिए इनका महत्व आपस में जुड़ा हुआ है।

विशेष सूचना: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों के लिए अहोई अष्टमी पर किए जाने वाले राधा कुंड स्नान के बारे में विस्तार से जानने और उसकी विधि पढ़ने के लिए [राधा कुण्ड स्नान विधि]

अहोई अष्टमी के मुख्य नियम

Ahoi Ashtami Vrat Vidhi को सफल बनाने के लिए इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है:

क्या करें

  • पूरा दिन व्रत: व्रत को संतान के नाम पर पूरी निष्ठा से निर्जला रखें।
  • पूजा में आभूषण: पूजा के समय अपने गहने पहनें और पूजा के बाद माता को स्पर्श करवाकर उसे आशीर्वाद के रूप में पहनें।
  • सात्विक भोजन: व्रत खोलने के बाद प्याज, लहसुन और मांसाहार रहित केवल सात्विक भोजन ही करें।
  • बड़ों का सम्मान: अपनी सास या घर की बड़ी महिला को बायना देकर उनका आशीर्वाद ज़रूर लें।

क्या न करें (वर्जित कार्य)

  • बागवानी: इस दिन किसी भी तरह के औजार (चाकू, कैंची आदि) से ज़मीन या पेड़-पौधों को नुकसान न पहुँचाएँ।
  • सफेद वस्त्र: पूजा के समय सफेद या काले वस्त्र पहनने से बचें। शुभ रंग जैसे लाल, पीला, नारंगी पहनें।
  • झगड़ा: क्रोध, अपशब्द या झगड़ा करने से बचें। मन को शांत और शुद्ध रखें।

अहोई अष्टमी का व्रत माता और संतान के बीच के पवित्र बंधन का उत्सव है। इस विधि से व्रत करके आप निश्चित रूप से अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त करेंगी और आपकी संतान सुखी एवं दीर्घायु होगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) – Ahoi Ashtami Vrat Vidhi

प्रश्न 1: अहोई अष्टमी व्रत कब रखा जाता है?
उत्तर: अहोई अष्टमी व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत दीपावली से लगभग आठ दिन पहले आता है।

प्रश्न 2: अहोई अष्टमी व्रत कौन रखता है और क्यों रखा जाता है?
उत्तर: यह व्रत मुख्य रूप से संतानवती माताएँ रखती हैं। इसका उद्देश्य अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करना होता है।

प्रश्न 3: क्या निसंतान महिलाएँ भी अहोई अष्टमी व्रत रख सकती हैं?
उत्तर: हाँ, निसंतान महिलाएँ भी यह व्रत रख सकती हैं। माना जाता है कि अहोई माता की कृपा से उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है।

प्रश्न 4: अहोई अष्टमी का व्रत कैसे रखा जाता है?
उत्तर: इस दिन माताएँ निर्जला व्रत रखती हैं। सुबह स्नान करके संकल्प लेती हैं, दिनभर उपवास करती हैं, और शाम को अहोई माता की पूजा, कथा और आरती करती हैं। व्रत का समापन तारों को देखकर किया जाता है।

प्रश्न 5: अहोई माता की पूजा में कौन-सी सामग्री आवश्यक होती है?
उत्तर: पूजा में अहोई माता की तस्वीर, जल भरा कलश, रोली, अक्षत, दीपक, मिठाई या सेंवई, गहने, और बायना की थाली शामिल की जाती है।

प्रश्न 6: अहोई अष्टमी व्रत में चंद्रमा को देखा जाता है या तारे को?
उत्तर: अहोई अष्टमी का व्रत चंद्रमा नहीं, बल्कि तारों को देखकर खोला जाता है। तारे को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।

प्रश्न 7: अहोई अष्टमी व्रत की कथा क्या है?


उत्तर: कथा के अनुसार, एक साहूकारनी ने गलती से स्याहू (साही) के बच्चे को मार दिया, जिसके कारण उसके सातों पुत्र मर गए। बाद में उसने अहोई माता का व्रत रखकर पश्चाताप किया। माता प्रसन्न हुईं और उसके पुत्रों को जीवनदान दिया।

प्रश्न 8: अहोई अष्टमी पर कौन-से रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है?
उत्तर: इस दिन लाल, पीले या नारंगी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। सफेद और काले रंग से बचना चाहिए।

प्रश्न 9: क्या अहोई अष्टमी के दिन घर में झाड़ू-बागवानी या कटाई करना उचित है?
उत्तर: नहीं, इस दिन किसी भी औजार से खुदाई या पेड़-पौधों को काटना वर्जित है। ऐसा करने से अशुभ फल मिलता है।

प्रश्न 10: अहोई अष्टमी और राधा कुंड स्नान में क्या संबंध है?
उत्तर: अहोई अष्टमी के दिन ही मथुरा के राधा कुंड में स्नान का विशेष महत्व है। विशेष रूप से निसंतान दम्पत्ति इस दिन मध्यरात्रि में स्नान करते हैं, जिससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

प्रश्न 11: अहोई अष्टमी व्रत के पारण का सही समय क्या होता है?
उत्तर: जब आसमान में तारे दिखाई देने लगते हैं, तब माता को अर्घ्य देकर और परिवार के बड़ों के हाथ से जल या मिठाई लेकर व्रत का पारण किया जाता है।

प्रश्न 12: क्या अहोई अष्टमी व्रत में पुरुष भी भाग ले सकते हैं?
उत्तर: यद्यपि यह व्रत प्रायः माताएँ रखती हैं, परंतु यदि कोई पिता अपनी संतान के कल्याण की कामना से श्रद्धा रखता है तो वह भी पूजन में सम्मिलित हो सकता है।

प्रश्न 13: अहोई माता की आरती कब की जाती है?


उत्तर: अहोई माता की आरती व्रत कथा के बाद शाम के समय की जाती है। आरती के बाद बायना सास या घर की बड़ी महिला को दिया जाता है।

प्रश्न 14: व्रत के बाद भोजन में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर: व्रत के बाद सात्विक भोजन करें। प्याज, लहसुन, मांसाहार और नशे वाली वस्तुओं से पूर्ण परहेज़ करें।

प्रश्न 15: क्या अहोई अष्टमी के दिन कोई विशेष मंत्र या प्रार्थना बोली जाती है?
उत्तर: हाँ, माताएँ अहोई माता की पूजा करते समय यह प्रार्थना करती हैं –
अहोई माता, मेरी संतान की रक्षा करो, उसके जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि दो।”

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