Narak Chaturdashi Puja Vidhi: रूप चौदस और छोटी दीपावली की कथा, महत्व व पूजा विधि
परिचय: पंचपर्व का मध्य बिंदु
Narak Chaturdashi Puja Vidhi – दीपावली का पाँच दिवसीय महापर्व, जिसे पंचपर्व कहते हैं, भारतीय संस्कृति और धर्म का सार है। इस पाँच दिवसीय उत्सव का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अस्वच्छता पर शुद्धता की विजय का प्रतीक है।
यह चतुर्दशी कई नामों से पूजी जाती है, और प्रत्येक नाम एक विशेष अनुष्ठान तथा महत्व को दर्शाता है: छोटी दीपावली, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी, यम चतुर्दशी, और काली चौदस। यह दिन हमें नरक के भय से मुक्ति, पापों के निवारण और आत्मिक शुद्धता का मार्ग दिखाता है।
नरक चतुर्दशी क्यों कहलाती है? (नामकरण का रहस्य)
इस तिथि को नरक चतुर्दशी कहने के पीछे दो प्रमुख और शक्तिशाली पौराणिक कथाएँ हैं, जो इस पर्व के उद्देश्य को स्पष्ट करती हैं:

1. नरकासुर वध: अधर्म के ‘नरक’ का अंत
- प्राचीन काल में, नरकासुर नामक एक अत्यंत क्रूर राक्षस था, जो स्वयं को धरतीपुत्र मानता था। अहंकार में अंधा होकर, उसने पृथ्वी पर भयानक अत्याचार फैला दिया था।
- अपराध: नरकासुर ने इंद्र समेत सभी देवताओं को पराजित कर दिया था और सबसे बड़ा दुस्साहस यह किया कि उसने 16,100 राजकुमारियों और महिलाओं को बंदी बनाकर अपनी राजधानी प्रागज्योतिषपुर में कैद कर लिया। उसके आतंक से संपूर्ण पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर रही थी।
- विजय: देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करने का निर्णय लिया।
- वध का विधान: चूंकि नरकासुर को एक स्त्री के हाथों ही मृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिए कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ युद्ध में गए। सत्यभामा ने स्वयं युद्ध में कृष्ण की सारथी बनकर अपने बाणों से नरकासुर का वध किया।
- महत्व: नरकासुर के अत्याचारों का ‘नरक’ समाप्त हुआ और 16,100 महिलाओं को स्वतंत्रता मिली। इस विजय और अंधकार के नाश के उपलक्ष्य में, उस दिन हर जगह दीपमालाएँ सजाई गईं। इसी कारण यह तिथि नरक चतुर्दशी कहलाई—अधर्म के नरक से मुक्ति दिलाने वाली चौदस।
2. यमराज और दीपदान: नरक की यातनाओं से मुक्ति
- दीपदान की प्रथा: इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा और उनके लिए दीपदान करने का विशेष विधान है।
- पौराणिक आधार: गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि इस दिन यमराज के निमित्त दीपदान करने वाले को न केवल अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है, बल्कि मृत्यु के उपरांत उसे नरक की यातनाओं से भी मुक्ति मिलती है।
- यह दीपदान व्यक्ति को जीवन भर किए गए जाने-अनजाने पापों से मुक्ति दिलाकर सद्गति प्रदान करता है, इसलिए इसे यम चतुर्दशी भी कहा जाता है।
पर्व के अन्य नाम और उनका विशेष महत्व
नरक चतुर्दशी की परंपराएँ अलग-अलग क्षेत्रों में पर्व के अलग-अलग नामों के माध्यम से प्रकट होती हैं:
1. रूप चौदस (रूप चतुर्दशी): सौंदर्य और स्वास्थ्य का पर्व
‘रूप चौदस’ नाम इस पर्व के एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान से जुड़ा है, जो शारीरिक स्वास्थ्य और सौंदर्य की शुद्धि पर केंद्रित है।
- कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद, उसके रक्त के छींटे लगने के कारण अपने शरीर पर लगे मैल को हटाने के लिए तेल से स्नान किया था, जिससे उनका रूप और अधिक निखर गया।
- अनुष्ठान: अभ्यंग स्नान:
- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तिल का तेल लगाकर स्नान करना अनिवार्य माना जाता है। इसे अभ्यंग स्नान कहते हैं।
- अभ्यंग स्नान करने से पहले शरीर पर हल्दी, चंदन और उबटन (बेसन, तेल, चंदन का मिश्रण) लगाया जाता है।
- मान्यता है कि अभ्यंग स्नान से त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं, शरीर की नकारात्मकता समाप्त होती है, और व्यक्ति को उत्तम रूप व सौंदर्य प्राप्त होता है।
2. Narak Chaturdashi Puja Vidhi, छोटी दीपावली: प्रकाश और उत्सव का आरंभ
- यह नाम मुख्य दीपावली से एक दिन पहले होने के कारण पड़ा है।
- महत्व: इस दिन से ही घरों में दीयों की संख्या बढ़ जाती है। छोटी दीपावली की रात को घरों के भीतर और बाहर 14 दीपक जलाए जाते हैं। यह पर्व मुख्य दीपावली के महा-उत्सव के लिए मंच तैयार करता है।
3. काली चौदस: शक्ति और जादू-टोने से मुक्ति
- क्षेत्रीय महत्व: यह नाम विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
- अनुष्ठान: काली चौदस की रात में, भक्त देवी महाकाली की विशेष पूजा करते हैं, जो नकारात्मक शक्तियों, बुरी आत्माओं और जादू-टोने के भय से मुक्ति दिलाती हैं। यह रात तांत्रिक साधना के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
Narak Chaturdashi Puja Vidhi और अनुष्ठान
इस दिन दो प्रमुख अनुष्ठान अलग-अलग समय पर किए जाते हैं:
I. प्रातःकाल अनुष्ठान: अभ्यंग स्नान
यह अनुष्ठान सूर्योदय से पूर्व, ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए।
- उबटन मालिश: तिल के तेल या सरसों के तेल में हल्दी और बेसन मिलाकर बने उबटन से शरीर की मालिश करें।
- अपामार्ग का प्रयोग: स्नान के जल में थोड़ी सी अपामार्ग (चिरचिरा) की पत्तियाँ डालें। कुछ क्षेत्रों में अपामार्ग की टहनी को सिर के ऊपर से तीन बार घुमाकर पापों के निवारण की कामना की जाती है।
- स्नान मंत्र: स्नान करते समय निम्न मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है:
दत्तं च दीपं च चतुर्दश्यां नरकाय च।
चतुर्दश्यां नरकस्य निवारणम्।।
- यमराज को अर्घ्य: स्नान के बाद, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यमराज से प्रार्थना करते हुए तीन अंजलि जल अर्पित करें। यह वर्ष भर के पापों के नाश के लिए किया जाता है।
संध्याकाल अनुष्ठान: यम दीपदान
यह अनुष्ठान सूर्यास्त के तुरंत बाद प्रदोष काल में किया जाता है।
- दीपकों की संख्या: इस रात कम से कम 14 दीपक जलाए जाते हैं, जो घर के कोने-कोने को प्रकाशित करते हैं।
- यम दीपक: सभी दीपकों में सबसे महत्वपूर्ण होता है ‘यम दीपक’।
- एक चौमुखा दीपक (चार मुख वाला) लें और उसमें तिल का तेल या सरसों का तेल डालें।
- इस दीपक को घर के मुख्य द्वार से बाहर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, अनाज (जैसे गेहूँ या चावल) के ढेर पर रखें।
- यह दीपक घर के सबसे बड़े सदस्य द्वारा जलाया जाता है, और इसे जलाने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा जाता।
- अन्य स्थान: इसके अलावा, रसोई घर, पानी रखने के स्थान (जल कलश), तुलसी के पौधे के पास और तिजोरी के पास भी दीपक जलाए जाते हैं।
नरक चतुर्दशी का संदेश और Narak Chaturdashi Puja Vidhi
नरक चतुर्दशी हमें केवल धार्मिक क्रियाएँ करने का ही संदेश नहीं देती, बल्कि यह हमें आंतरिक और बाह्य शुद्धि का महत्व सिखाती है।
- आंतरिक शुद्धि: यम दीपदान हमें अहंकार, क्रोध, और लोभ जैसे आंतरिक अंधकार को त्यागकर सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
- बाह्य शुद्धि: अभ्यंग स्नान और घरों की सफाई हमें स्वास्थ्य और स्वच्छता के महत्व को बताती है, जो दीपावली के पर्व का मूल आधार है।
इस प्रकार, नरक चतुर्दशी का पर्व हमें भय, अंधकार और अस्वच्छता को दूर कर, मुख्य दीपावली के महा-उत्सव में शामिल होने के लिए तैयार करता है।
Narak Chaturdashi Puja Vidhi: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
❓1. नरक चतुर्दशी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या छोटी दीपावली भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर के वध की स्मृति में मनाई जाती है। इस दिन अंधकार और पाप के नाश का प्रतीक रूप में दीपदान किया जाता है।
❓2. नरक चतुर्दशी की पूजा विधि (Narak Chaturdashi Puja Vidhi) क्या है?
उत्तर: इस दिन प्रातः स्नान के पश्चात् तेल, उबटन और सुगंधित जल से स्नान करें। तत्पश्चात् यमराज, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करें। संध्या में दीपक जलाकर यम दीपदान करें, जिससे मृत्यु भय दूर होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
❓3. नरक चतुर्दशी की व्रत कथा (Narak Chaturdashi Vrat Katha) क्या है?
उत्तर: पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस नरकासुर ने देवताओं और मनुष्यों को आतंकित किया। भगवान श्रीकृष्ण ने माता सत्यभामा के साथ युद्ध कर उसका वध किया। उसी दिन से यह तिथि अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाई जाती है।
❓4. रूप चौदस क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: नरक चतुर्दशी को ही रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन अभ्यंग स्नान, उबटन और तेल मालिश करने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। इसे रूप-सौंदर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
❓5. यम दीपदान (Yama Deep Daan) क्या होता है?
उत्तर: नरक चतुर्दशी की संध्या को घर के मुख्य द्वार के बाहर एक दीपक जलाकर यमराज को अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि यह दीपक अकाल मृत्यु और संकट से रक्षा करता है तथा पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
❓6. नरक चतुर्दशी और काली चौदस (Kali Chaudas) में क्या अंतर है?
उत्तर: उत्तर भारत में यह दिन रूप चौदस और नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जबकि पश्चिम भारत (विशेषकर गुजरात) में इसे काली चौदस कहा जाता है। इस दिन माता काली की विशेष पूजा और तांत्रिक साधना की जाती है।
❓7. क्या नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली (Chhoti Diwali) भी कहा जाता है?
उत्तर: हाँ, नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली कहा जाता है क्योंकि यह दीपावली के एक दिन पहले आती है। इस दिन घरों में दीप जलाए जाते हैं और अंधकार निवारण के लिए विशेष पूजा की जाती है।
❓8. नरक चतुर्दशी के दिन कौन-कौन से उपाय (Upay) करने चाहिए?
उत्तर: इस दिन तिल तेल का दीपक जलाना, गरीबों को वस्त्र दान, काली तिल से स्नान, और भगवान श्रीकृष्ण के नाम का जाप करना शुभ माना जाता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में सौभाग्य बढ़ता है।
❓9. नरक चतुर्दशी पूजा के समय कौन से मंत्र बोलने चाहिए?
उत्तर: पूजा के समय निम्न मंत्र का जाप शुभ माना जाता है –
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ श्री कृष्णाय नमः ||
इस मंत्र के जाप से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
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