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Gopashtami Vrat Katha

गोपाष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के ‘गोपाल’ बनने की कथा और गौमाता पूजन विधि

Gopashtami Vrat Katha – भारतीय संस्कृति में त्योहार केवल परंपराएं नहीं, बल्कि जीवन दर्शन को समझने का एक माध्यम हैं। इन्हीं पवित्र पर्वों में से एक है गोपाष्टमी। यह वह शुभ दिन है, जब स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गायों को चराना आरंभ किया और ‘गोपाल’ कहलाए।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार, गौ माता के प्रति हमारी अटूट श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक है। इस विशेष दिन गौ माता का पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। आइए, इस ब्लॉग में गोपाष्टमी के महत्व, इसकी अद्भुत कथा और इसकी सरल पूजा विधि को विस्तार से समझते हैं, ताकि आप भी इस दिन भगवान श्री कृष्ण और गौमाता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

Gopashtami Vrat Katha
Gopashtami Vrat Katha

गोपाष्टमी कब है? (Gopashtami Date-Gopashtami Vrat Katha)

हिंदू पंचांग के अनुसार, गोपाष्टमी का पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

Gopashtami Vrat Katha, महत्व: गौमाता में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास

गोपाष्टमी का महत्व केवल एक दिन की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गौ-सेवा के सनातन धर्म को स्थापित करता है।

1. गौमाता – साक्षात् देवत्व का स्वरूप

शास्त्रों में कहा गया है कि गाय के भीतर 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। गौमाता को पृथ्वी पर कामधेनु के रूप में देखा जाता है। उनकी सेवा करने से समस्त देवी-देवताओं की पूजा का फल एक साथ प्राप्त होता है।

2. दरिद्रता का नाश और समृद्धि का आगमन

मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गौ माता के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर धारण करने से तीर्थ यात्राओं के समान पुण्य मिलता है। यह सौभाग्य को आकर्षित करता है और घर से दरिद्रता को दूर करता है।

3. भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद

यह पर्व सीधे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा है, जो स्वयं गोपाल (गायों के पालक) कहलाते हैं। इस दिन गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं।

4. वैज्ञानिक महत्व

आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान भी गौ माता के महत्व को स्वीकार करते हैं। गौ मूत्र, गोबर और दूध से बने पंचगव्य का उपयोग न केवल खेती में, बल्कि विभिन्न रोगों के उपचार में भी किया जाता है, जो गौमाता को स्वास्थ्य और पवित्रता का प्रतीक बनाता है।

गोपाष्टमी की पौराणिक कथा: कृष्ण कैसे बने ‘गोपाल’? (Gopashtami Vrat Katha)

गोपाष्टमी की कथा भगवान श्री कृष्ण की एक मनमोहक बाल लीला से जुड़ी हुई है, जिसने उन्हें गोपाल’ नाम से अमर कर दिया।

बाल कृष्ण की हठ

जब भगवान श्री कृष्ण लगभग पाँच वर्ष के थे, तब वह केवल बछड़ों को चराने वन में जाया करते थे। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उनकी इच्छा हुई कि अब वे बछड़ों के साथ नहीं, बल्कि बड़ी गायों को चराने के लिए वन में जाएंगे।

उन्होंने अपनी मैया यशोदा से यह हठ की। यशोदा मैया ने कहा, “लल्ला, तुम अभी छोटे हो। बड़ी गायों को चराने में तुम्हें बहुत कष्ट होगा।” लेकिन कृष्ण तो ठहरे हठी, उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिए ज़िद पकड़ ली।

नंद बाबा और ऋषि शांडिल्य

मैया यशोदा ने कृष्ण को नंद बाबा के पास भेज दिया। नंद बाबा भी प्रेमवश कृष्ण को टालना नहीं चाहते थे। उन्होंने विचार किया और श्री कृष्ण से कहा, “लल्ला! तुम बड़े हो गए हो, लेकिन बड़ी गायों के लिए गोचारण का मुहूर्त निकलवाना होगा।”

इसके लिए नंद बाबा ने ऋषि शांडिल्य को बुलाया और गोचारण का शुभ मुहूर्त जानने को कहा। ऋषि शांडिल्य ने पंचांग देखा और बताया कि हे नंदराय जी! गोचारण के लिए आज कार्तिक शुक्ल अष्टमी से उत्तम कोई मुहूर्त नहीं है। यदि आप इसे टालते हैं, तो अगले एक वर्ष तक कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिलेगा।”

पहला गौ-चारण

ऋषि की बात सुनकर नंद बाबा अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसी दिन गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर कृष्ण और बलराम को गायों को चराने की जिम्मेदारी सौंप दी। यह दिन ब्रजवासियों के लिए एक महाउत्सव का दिन बन गया।

  • सभी ग्वालों ने कृष्ण को गौ-चारण के लिए श्रृंगारित किया।
  • नंद बाबा ने अपने पुत्रों का तिलक किया और उन्हें आशीर्वाद दिया।
  • कृष्ण और बलराम ने अपनी प्रिय गायों की पूंछ पकड़कर पहली बार वन की ओर प्रस्थान किया।

बस, तभी से इस शुभ तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, और श्री कृष्ण का नाम गोपाल’ (गो=गाय, पाल=पालक) पड़ गया।

गोपाष्टमी पर पूजा विधि और अनुष्ठान (Gopashtami Puja Vidhi-Gopashtami Vrat Katha)

गोपाष्टमी का पूजन अत्यंत सरल, लेकिन भाव से भरा होता है। आप इन चरणों का पालन करके गौमाता और भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकते हैं:

सुबह का अनुष्ठान (प्रातःकाल)

  1. जल्दी उठें और स्नान करें: गोपाष्टमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  2. गौशाला की सफाई: अपने घर या आस-पास की गौशाला (या गौमाता) को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
  3. गौमाता का श्रृंगार: गायों को स्नान कराएं। उन्हें रोली, अक्षत, हल्दी और फूलों से सजाएँ। गायों के सींगों पर वस्त्र या चुनरी बांधें और उन्हें मेहंदी लगाकर श्रृंगार करें।
  4. पूजा और परिक्रमा:
    1. हाथ में फूल और जल लेकर गोपाष्टमी व्रत का संकल्प लें।
    1. धूप-दीप प्रज्वलित करें और गौमाता की आरती उतारें।
    1. उन्हें गुड़, हरा चारा, या अपनी सामर्थ्यनुसार विशेष भोजन कराएँ।
    1. गौमाता के पैर छूकर आशीर्वाद लें और उनकी सात बार परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय अपने मन में मनोकामनाएं दोहराएं।

विशेष कार्य (पूरे दिन)

  • ग्वालों का सम्मान: इस दिन ग्वालों (जो गायों की देखभाल करते हैं) का भी विशेष सम्मान किया जाता है। उन्हें दान-दक्षिणा दें या उन्हें वस्त्र आदि भेंट करें।
  • गो-ग्रास: घर में भोजन बनने के बाद पहली रोटी गाय के लिए निकालें, जिसे ‘गो-ग्रास’ कहते हैं।
  • गौ-सेवा का संकल्प: इस दिन गौमाता की सेवा, उनकी सुरक्षा और संवर्धन का संकल्प लें।
  • मंदिर दर्शन: श्री कृष्ण मंदिरों में जाकर दर्शन करें और उन्हें बांसुरी भेंट करें।

सांयकाल का अनुष्ठान (शाम)

  • गौधूलि वेला: शाम के समय, जब गायें चरकर वापस घर लौटती हैं, जिसे गौधूलि वेला कहते हैं, उस समय गायों को धूप-दीप दिखाकर नमस्कार करें।
  • गौ-रज (मिट्टी) का तिलक: गायों के खुरों से उड़कर आई मिट्टी (गौ-रज) को अपने माथे पर तिलक के रूप में लगाएं। इसे अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना जाता है।

गोपाष्टमी के दिन क्या करें और क्या न करें?

क्या करें

गौ सेवा: गौमाता को हरा चारा, गुड और फल खिलाएं

दान: अपने सामर्थ्य के अनुसार गौशाला में धन, चारा या गाय को खिलने की वस्तुएं दान करें |

गौ परिक्रमा: बछड़े सहित गाय की कम से कम सात बार परिक्रमा करें |

गौ मूत्र का प्रयोग: यदि संभव हो तो सुबह गौ मूत्र का छिड़काव करके घर को पवित्र करें |

क्या न करें:

गौमाता को कष्ट: गायों को किसी भी तरह से मारें या कष्ट न दें |

मांसाहार: इस पवित्र दिन मांस, मदिरा या तामसिक भोजन का सेवन न करें |

क्रोध: गौशाला या घर में किसी भी प्राणी पर क्रोध न करें |

उपेक्षा: गौमाता के महत्त्व की उपेक्षा न करें |

Gopashtami Vrat Katha का निष्कर्ष: गौमाता ही समृद्धि की कुंजी

गोपाष्टमी का यह पावन पर्व हमें याद दिलाता है कि गाय केवल एक पशु नहीं है, बल्कि हमारा पोषण करने वाली माँ है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गायों की सेवा करके गोपाल’ का सर्वोच्च पद प्राप्त किया।

इस गोपाष्टमी पर, आइए हम सब गौमाता के प्रति सम्मान का भाव रखें, उनकी रक्षा का संकल्प लें और उनकी सेवा करके अपने जीवन को सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करें। गौमाता का आशीर्वाद आपके घर में हमेशा बना रहे।

🙏 गौमाता की जय! गोविंद की जय! 🙏

गोपाष्टमी से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQ on Gopashtami Vrat Katha)

1. गोपाष्टमी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?

गोपाष्टमी एक पवित्र हिंदू पर्व है जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम गौचारण दिवस की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण ने गायों को चराना प्रारंभ किया था और तभी से वे ‘गोपाल’ कहलाए। यह पर्व गौमाता की सेवा और उनके प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है।

2. गोपाष्टमी कब मनाई जाती है?

गोपाष्टमी का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर माह में आती है।

3. गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व क्या है?

गोपाष्टमी का महत्व इस बात में निहित है कि गाय को देवी स्वरूप माना गया है और उसमें 33 कोटि देवताओं का वास है। इस दिन गौमाता की सेवा करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है तथा जीवन में समृद्धि आती है।

4. गोपाष्टमी पर गाय की पूजा कैसे की जाती है?

गोपाष्टमी की सुबह गायों को स्नान कराकर, हल्दी, रोली, चंदन और फूलों से उनका श्रृंगार करें। फिर दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित करके उनकी सात बार परिक्रमा करें और उन्हें हरा चारा, गुड़, फल आदि खिलाएँ।

5. क्या बिना गाय के घर पर गोपाष्टमी मनाई जा सकती है?

हाँ, यदि आपके पास गाय नहीं है, तो आप श्रीकृष्ण और गौमाता की तस्वीर या प्रतिमा के सामने पूजा कर सकते हैं। साथ ही नज़दीकी गौशाला में दान या सेवा कार्य करना सबसे शुभ माना गया है।

6. गोपाष्टमी के दिन कौन-से कार्य शुभ माने जाते हैं?

इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद गौमाता की पूजा, गोशाला में दान, ग्वालों का सम्मान, और घर में गौ-ग्रहण (पहली रोटी गाय के लिए निकालना) अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।

7. गोपाष्टमी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

गोपाष्टमी पर मांसाहार, मदिरापान, झूठ, क्रोध और किसी भी जीव को कष्ट देना वर्जित है। गौमाता के प्रति अपमानजनक व्यवहार से भगवान श्रीकृष्ण अप्रसन्न हो जाते हैं।

8. गोपाष्टमी का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

गाय के दूध, गोबर और मूत्र से बने पंचगव्य में औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह पर्यावरण को शुद्ध करता है, कृषि में सहायक है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसीलिए गाय को ‘धरती की माँ’ कहा गया है।

9. गोपाष्टमी पर कौन-सा दान सबसे शुभ माना गया है?

गौशाला में हरा चारा, गुड़, वस्त्र, गौमूत्र या आर्थिक सहयोग का दान अत्यंत शुभ है। यदि सामर्थ्य हो तो गाय का दान (गोदान) भी सबसे श्रेष्ठ कर्म माना गया है।

10. गोपाष्टमी के दिन श्रीकृष्ण की पूजा कैसे करें?

गोपाष्टमी पर श्रीकृष्ण को गौमाता के साथ पूजें। उन्हें बांसुरी, पीला वस्त्र, मक्खन और तुलसीदल अर्पित करें। शाम को गौधूलि बेला में दीप जलाकर “गोविंद दामोदर माधवेति” मंत्र का जप करें। इससे भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर भक्त को जीवनभर की कृपा प्रदान करते हैं।

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