अक्षय नवमी 2025: आंवला नवमी की पूजा विधि, महत्व, कथा और व्रत का संपूर्ण विवरण
Akshay Navami Puja Vidhi – भारतीय सनातन संस्कृति पर्वों और त्योहारों की एक अनूठी श्रंखला है, जिनमें से प्रत्येक का अपना एक विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। इसी श्रंखला में अक्षय नवमी (Akshay Navami) का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। इसे सामान्यतः आंवला नवमी (Amla Navami) के नाम से जाना जाता है, और कुछ क्षेत्रों में इसे आंवरिया नमें भी कहा जाता है। यह पर्व वास्तव में प्रकृति और ईश्वर के प्रति हमारे गहरे सम्मान का प्रतीक है, जो हमें यह सिखाता है कि जो हम देते हैं, वह कभी नष्ट नहीं होता, बल्कि कई गुना होकर वापस आता है।
‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है ‘जो कभी क्षय न हो’ या ‘जो कभी नष्ट न हो’। इसीलिए, इस दिन किए गए सभी शुभ कार्यों, पूजा, दान, और पुण्य का फल कभी समाप्त नहीं होता और वह व्यक्ति के साथ जन्म-जन्मांतर तक बना रहता है। यह पर्व हमें आध्यात्मिक निवेश का अवसर प्रदान करता है, जहाँ किया गया छोटा-सा प्रयास भी अनंत फलदायी बन जाता है।
आंवला नवमी पूजा विधि, तिथि, काल और नाम का गूढ़ रहस्य
अक्षय नवमी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि ठीक दिवाली के नौ दिन बाद आती है, और देवउठनी एकादशी से ठीक पहले आती है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, इस तिथि पर शुभ कार्यों के लिए किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह तिथि स्वयं ही एक सिद्ध और स्वयं सिद्ध मुहूर्त होती है।

विभिन्न नाम और उनका महत्व:
- अक्षय नवमी: जैसा कि बताया गया है, यह नाम इस तिथि के अक्षय पुण्य प्रदान करने की क्षमता को दर्शाता है। यह दान और पुण्य कार्यों की महत्ता पर बल देता है।
- आंवला नवमी: यह नाम इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा के केंद्रीय महत्व को रेखांकित करता है। यह वृक्ष ही इस पर्व का प्राण है।
- आंवरिया नमें: यह क्षेत्रीय नाम (विशेषकर ब्रज और उससे सटे क्षेत्रों में प्रचलित) भी सीधे तौर पर आंवला वृक्ष से जुड़ा हुआ है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस तिथि पर आंवला पूजन का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है।
सृष्टि से जुड़ा महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग (सत्ययुग) का आरंभ इसी तिथि को हुआ था। इसलिए, इसे सत्ययुगादि तिथि भी कहते हैं। सृष्टि के एक महत्वपूर्ण कालखंड के आरंभ से जुड़ा होने के कारण, इस दिन को इतना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्डक दैत्य का संहार किया था और पृथ्वी को उसकी बुराई से मुक्त किया था।
Akshay Navami Puja Vidhi, देवताओं का वास और जीवनदायिनी शक्ति
इस पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण और केंद्रबिंदु आंवला वृक्ष (Indian Gooseberry) है। इसे केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि एक कल्पवृक्ष के रूप में देखा जाता है।
Akshay Navami Puja Vidhi और धार्मिक मान्यताएं:
- भगवान विष्णु का प्रिय: आंवला वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि आंवला वृक्ष की पूजा करने से स्वयं भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है।
- समस्त देवी-देवताओं का निवास: माना जाता है कि आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है, विशेषकर इसकी जड़ में विष्णु का, ऊपरी भाग में शिव का और पत्तों में ब्रह्मा का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु, महेश—की एक साथ पूजा के समान है।
- माता लक्ष्मी का जुड़ाव: एक कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी ने इस दिन स्वयं आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु और शिव की पूजा की थी, जिससे प्रसन्न होकर दोनों देवताओं ने माता लक्ष्मी को अक्षय वरदान दिया था। इसलिए, आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा करने से धन-धान्य और अक्षय समृद्धि प्राप्त होती है।
वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व (आयुर्वेद):
- आंवला भारतीय आयुर्वेद का अमृत है। इसे विटामिन-सी (Vitamin C) का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत माना जाता है।
- यह त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करने की क्षमता रखता है।
- यह शरीर को निरोगी बनाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इस शुभ तिथि पर आंवला सेवन का विधान इसके धार्मिक महत्व के साथ-साथ शरीर को आने वाले शीतकाल के लिए तैयार करने का एक वैज्ञानिक तरीका भी है।
- इस वृक्ष के नीचे भोजन करना न केवल शुद्ध हवा में बैठकर भोजन करना है, बल्कि आंवले के औषधीय गुणों को ग्रहण करने का भी एक तरीका है।
Akshay Navami Puja Vidhi एवं अनुष्ठान
अक्षय नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा के अनुष्ठान बहुत सरल हैं, लेकिन उनका प्रभाव अत्यंत गहरा होता है। यह अनुष्ठान इस प्रकार है:
1. शुद्धिकरण और तैयारी
- व्रत रखने वाला व्यक्ति सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करे और स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- पूजन के लिए आंवला वृक्ष के पास जाएँ। यदि घर के आस-पास आंवला वृक्ष न हो, तो गमले में लगे आंवले के पौधे या मंदिर में स्थित आंवला वृक्ष का उपयोग किया जा सकता है।
- पूजन सामग्री तैयार रखें: जल, दूध, हल्दी, कुमकुम (रोली), चावल (अक्षत), पुष्प, धूप, दीप, फल, और एक कच्चे सूत का धागा।
2. वृक्ष का पूजन
- सर्वप्रथम आंवला वृक्ष की जड़ में दूध और जल अर्पित करें।
- वृक्ष को हल्दी, कुमकुम और चावल से तिलक करें।
- वृक्ष को फूलों की माला पहनाएँ और धूप-दीप प्रज्वलित करें।
- नैवेद्य के रूप में मिष्ठान्न, फल, और विशेष रूप से आंवले का भोग लगाएँ।
3. परिक्रमा और सूत्र बंधन
- यह सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। पूजा के बाद कच्चे सूत के धागे को वृक्ष के तने पर लपेटते हुए उसकी परिक्रमा की जाती है।
- यह परिक्रमा 108 या 7 बार की जाती है। धागा लपेटना, त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और प्रकृति के प्रति बंधन और समर्पण का प्रतीक है।
- परिक्रमा के दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”।
- परिक्रमा पूरी होने पर, वृक्ष के तने पर धागे को बाँध दिया जाता है।
4. आंवला वृक्ष के नीचे भोजन (सह-भोज)
- आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना अनिवार्य माना जाता है। यह इस पर्व का प्राण है।
- मान्यता है कि इस दिन वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से सारे रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं और मनुष्य को दीर्घायु प्राप्त होती है।
- भोजन में आंवले के व्यंजन (जैसे: आंवले का अचार, मुरब्बा, या सब्जी) शामिल करना शुभ होता है।
- इस भोजन में सबसे पहले ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को आमंत्रित करके उन्हें भोजन कराया जाता है, उसके बाद ही परिवार के लोग भोजन करते हैं। यह क्रिया दान और परोपकार के महत्व को दर्शाती है।
Akshay Navami Puja Vidhi और अक्षय नवमी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
आंवला नवमी के महत्व को समझाने वाली कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक मुख्य कथा इस प्रकार है:
माता लक्ष्मी और आंवला वृक्ष की कथा
एक समय की बात है, जब सृष्टि में भ्रमण करते हुए धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आई थीं। उन्होंने देखा कि पृथ्वी पर सभी देवी-देवता किसी न किसी रूप में वास करते हैं, लेकिन उन्हें एक ऐसा स्थान चाहिए था जहाँ भगवान विष्णु और शिव दोनों का एक साथ वास हो, ताकि वह दोनों की पूजा करके एक ही स्थान से अक्षय पुण्य प्राप्त कर सकें।
अपनी खोज के दौरान, उन्हें एक सुंदर आंवला वृक्ष दिखाई दिया। माता लक्ष्मी को ज्ञात हुआ कि यह वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और यह भी एक मान्यता है कि इस वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु और ऊपरी भाग में भगवान शिव निवास करते हैं।
यह जानकर माता लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने तुरंत कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन उस आंवला वृक्ष की पूजा का निर्णय लिया। उन्होंने विधिवत रूप से वृक्ष की पूजा की, उसे भोग लगाया, और वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन तैयार किया। पूजा-अर्चना के बाद, जब माता लक्ष्मी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन कर रही थीं, तभी वहाँ भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों एक साथ प्रकट हुए।
माता लक्ष्मी की निष्ठा और पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देवों ने उन्हें अक्षय वरदान दिया। उन्होंने कहा कि “हे लक्ष्मी! आज से जो भी व्यक्ति कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन इस आंवला वृक्ष की पूजा करेगा, और वृक्ष के नीचे बैठकर सह-भोज करेगा, उसे तुम्हारी कृपा से अक्षय धन, संपत्ति और समृद्धि प्राप्त होगी, और साथ ही उसे रोग-मुक्त जीवन का आशीर्वाद मिलेगा।”
तभी से यह परंपरा स्थापित हुई कि अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा और उसके नीचे भोजन करना अत्यंत शुभ और अक्षय फलदायी माना जाता है।
Akshay Navami Puja Vidhi, अक्षय दान और व्रत का विधान
अक्षय नवमी केवल पूजा का नहीं, बल्कि दान का भी महापर्व है। इस दिन दान किए गए हर वस्तु का फल कभी क्षीण नहीं होता।
- दान की वस्तुएं: इस दिन आंवले का दान करना सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि यह विष्णु प्रिय है। इसके अतिरिक्त, वस्त्र, अन्न, और गरीबों को भोजन कराना बहुत शुभ माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम न हो, तो केवल जल पिलाना या किसी जीव को भोजन देना भी अक्षय पुण्य प्रदान करता है।
- व्रत: जो लोग व्रत रखते हैं, वे इस दिन आंवला नवमी की कथा सुनते हैं और आंवला वृक्ष की पूजा के बाद ही जल ग्रहण करते हैं। व्रत का उद्देश्य आत्म-शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण होता है।
निष्कर्ष: प्रकृति प्रेम और समृद्धि का संकल्प
अक्षय नवमी या आंवला नवमी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर और प्रकृति एक-दूसरे से अभिन्न हैं। आंवला वृक्ष की पूजा करना वास्तव में प्रकृति के प्रति हमारे आभार और सम्मान को प्रकट करना है। यह पर्व हमें दान और पुण्य के महत्व को सिखाता है, जिसके फल जीवन में ही नहीं, बल्कि जन्म-जन्मांतर तक व्यक्ति के साथ रहते हैं।
आइए, हम भी इस शुभ तिथि पर आंवला वृक्ष की पूजा करें, दान करें, और अक्षय पुण्य प्राप्त करके अपने जीवन को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि से परिपूर्ण करें। यह पर्व प्रत्येक वर्ष आता है और हमें एक बार फिर जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर देता है।
शुभकामनाएं!
Akshay Navami Puja Vidhi (आंवला नवमी) – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
❓ 1. अक्षय नवमी क्या है और क्यों मनाई जाती है?
👉 उत्तर: अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला पावन पर्व है। इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा, दान और भोजन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन किया गया पुण्य कभी नष्ट नहीं होता और जन्म-जन्मांतर तक अक्षय फल देता है।
❓ 2. अक्षय नवमी 2025 में कब है?
👉 उत्तर: 31 अक्टूबर 2025 शुक्रवार को कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को मनाई जाएगी। यह तिथि दीपावली के नौ दिन बाद और देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले आती है।
❓ 3. अक्षय नवमी का धार्मिक महत्व क्या है?
👉 उत्तर: अक्षय नवमी को सत्ययुग की शुरुआत का दिन माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्डक दैत्य का संहार किया था। इसलिए इसे सृष्टि के शुभारंभ और धर्म विजय का प्रतीक माना जाता है।
❓ 4. आंवला वृक्ष की पूजा कैसे की जाती है?
👉 उत्तर: इस दिन प्रातः स्नान कर आंवला वृक्ष की जड़ में दूध और जल अर्पित करें। हल्दी-कुमकुम से तिलक करें, पुष्प और धूप-दीप अर्पित करें, और वृक्ष की परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत का धागा बांधें। अंत में वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करें।
❓ 5. अक्षय नवमी पर क्या करना शुभ होता है?
👉 उत्तर: आंवला वृक्ष की पूजा करना, ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराना, वस्त्र या अन्न दान देना, और वृक्ष के नीचे भोजन करना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
❓ 6. अक्षय नवमी पर क्या दान करना चाहिए?
👉 उत्तर: इस दिन आंवले का दान सर्वोत्तम माना गया है। इसके अलावा अन्न, वस्त्र, सोना, दक्षिणा और जलदान करना भी अक्षय फलदायी होता है। जो व्यक्ति केवल जल भी किसी प्यासे को पिलाता है, उसे भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
❓ 7. आंवला वृक्ष का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है?
👉 उत्तर: धार्मिक रूप से आंवला वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह विटामिन-C का सबसे बड़ा स्रोत है, जो शरीर को रोगों से बचाता है। इस दिन आंवला खाना और वृक्ष के नीचे भोजन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
❓ 8. अक्षय नवमी की पौराणिक कथा क्या है?
👉 उत्तर: एक कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी ने कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और शिव की पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर दोनों देवों ने उन्हें अक्षय वरदान दिया कि इस दिन जो भी व्यक्ति आंवला वृक्ष की पूजा करेगा, उसे अक्षय धन और समृद्धि प्राप्त होगी।
❓ 9. अक्षय नवमी और आंवला नवमी में क्या अंतर है?
👉 उत्तर: दोनों नाम एक ही पर्व के हैं। “अक्षय नवमी” का अर्थ है — अक्षय पुण्य देने वाली नवमी, जबकि “आंवला नवमी” नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। दोनों का उद्देश्य एक ही है — विष्णु आराधना और अक्षय फल की प्राप्ति।
❓ 10. अक्षय नवमी पर व्रत कैसे रखा जाता है?
👉 उत्तर: व्रतधारी व्यक्ति सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करे, आंवला वृक्ष का पूजन करे और कथा सुने। दिनभर व्रत रखे और पूजा के बाद आंवला युक्त भोजन ग्रहण करे। इस दिन का व्रत आत्मशुद्धि और समृद्धि दोनों प्रदान करता है।
❓ 11. अक्षय नवमी पर वृक्ष के नीचे भोजन करने का क्या महत्व है?
👉 उत्तर: आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करना इस दिन अत्यंत शुभ माना गया है। यह प्रकृति के साथ एकात्मता का प्रतीक है। इससे रोग दूर होते हैं, मन शांत होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
❓ 12. अक्षय नवमी का आध्यात्मिक संदेश क्या है?
👉 उत्तर: यह पर्व सिखाता है कि दान, सेवा और पूजा के कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाते। जो व्यक्ति सच्चे भाव से कर्म करता है, उसके पुण्य अक्षय रहते हैं। यह दिन ईश्वर, प्रकृति और मानव के बीच अटूट संबंध का प्रतीक है।
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