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bharat ji ka mahan vrat

जासु नेम व्रत जाइ न वरना –

पिछले लेख में भगवान श्रीराम जी के दृढ़व्रत की संक्षेप में चर्चा की इस लेख में bharat जी के व्रत – नियम की संक्षेप में चर्चा करेंगे –

bharat
bharat

महामहिमामण्डित भरत जी का उज्जवल विशाल ह्रदय रत्नाकर के सामान गुण रत्नों की खान है | रघुवंश की यशस्वी परंपरा के अनुकूल उनके शास्त्र सम्मत विचार हिमगिरि के समान उच्च एवं महान हैं | भरत जी का यशस्वी उज्जवल चरित्र निष्कलंक चन्द्रमा के समान शुभ्र एवं पवित्र है | उनका चित्त आकाशवत सबके लिए प्रेम, भक्ति एवं मैत्री का शुभ पवन स्थल है तथा उनकी पवन कीर्ति गंगा जी के सामान सबका हित करने वाली है |

कीरति भनिति भूत भलि सोई | सुरसरि सम सब कहँ हित  होई ||

प्रथम पूज्यपाद श्रीतुलसीदास जी bharat जी की वंदना सर्वप्रथम करते हुए कहते हैं –

प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना | जासु नेम ब्रत जय न बरना ||

राम चरन पंकज मन जासू | लुबुध मधुप इव तजय न पासू ||

भरत जी भगवान के अंश हैं | ब्रम्हाकोटि के आत्मा हैं | अतः भगवान के समान रामानुज भक्त के चरण ब्रम्हांश होने कारण परम पूज्य एवं आराध्य हैं | कथोपनिषद्के अनुसार जीव का परम लक्ष्य व्रत, संयम, नियम का प्लान करते हुए मन बुद्धि पर नियंत्रण करके, इन्द्रिय रूपी घोड़े को वश में करके श्रेयपथ – सन्मार्ग पर चलकर विष्णुपद प्राप्त करना है | अतः जीवमात्र के लिए भरतजी महानतम आदर्श हैं | उनका  नियम व्रत सराहनीय है | उनहोंने ‘ संपति सब रघुपति के आही ‘ इस अनाशक्ति व्रतका जीवन भर पूर्ण रूपेण पालन किया | भरत जी का व्रताचरण मानव मात्र के लिए परम कल्याणप्रद है | उनके साथ अयोध्यावासी भी व्रत करते हैं —

पय अहार फल असन एक निसि भोजन एक लोग |

करत राम हित नेम ब्रत परिहरि भूषन भोग ||

व्रत में फलाहार, दुग्धाहार, अन्नत्याग एक समय भोजन इत्यादि अनेक विधान हैं | अन्नत्याग व्रत में इसलिए आवश्यक है कि अन्न के दोष गुण से रस, रक्त, मसादि प्रभावित होते हैं | अतः शरीर के दोषों को दूर करने हेतु शरीर को हल्का, स्फूर्तिदायक, स्वस्थ बनाने हेतु अन्नत्याग अत्यंत आवश्यक एवं आयुर्वेद सम्मत है |

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तीर्थ सेवन से भी सत्य एवं श्रद्धा गुणों की प्राप्ति होती है भरत जी प्रयाग में त्रवेणी संगम पर श्रद्धापूरित हृदय से परम सत्यरूप व्रत की प्राप्ति हेतु प्रार्थना लगते हैं —

अर्थ न धर्म न काम रूचि गति न चहउँ निर्बान |

जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ||

भरतजी के व्रत-नियम से प्रभावित होकर भरतद्वाजजी ने कहा —

तुम्ह तौ भरत मोर मत एहू | धरें देह जन राम सनेहू ||

अयोध्याकाण्ड द्रष्टव्य है | बार बार पठनीय, मननीय एवं आचरणीय है क्योंकि उसमें bharat जी का पवन चरित्र है | bharat जी के हृदय में सियारामजी का निवास है | अतः वे सांसारिक भोगों में कैसे फँस सकते थे ? भोग से अज्ञान की प्राप्ति होती है और मन मलिन हो जाता है |

भरत हृदय सियराम निवासु | तहँ कि तिमिर जहँ तरनि प्रकासु ||

वाल्मीकिजी ने भगवान के निवास हेतु चौदह स्थान बताए हैं जिसमें ‘ चरण राम तीरथ चली जाहीं ‘ भी एक स्थान हैं और bharat जी की दशा देखिए —

चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजु राज |

जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु ||

Bharat जी ने अयोध्या के विशाल राज को ठुकरा दिया जिसे देखकर इन्द्र भी ईर्ष्या करते हैं |

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Bharat जी के व्रत पालन के परिणम से उनका मुखमण्डल कमल के समान खिला रहता है | देह दुर्बल तो ही रही है लेकिन तेज, बल की बृद्धि हो रही है | व्रत पालन से उत्साह बढ़ता ही जा रहा है | मन की निर्मलता से श्रीरामप्रेम की पुष्टि हो रही है —

नित नव राम प्रेम पनु पीना | बढ़त धरम दलु मनु न मलीना ||

सुनि ब्रत नेम साधु सकुचाहीं | देखि दशा मुनिराज लजाहिं ||

 Bharat जी के इस व्रत को देखकर मुनि वसिष्ठजी ने आशिर्बाद देते हुए कहा —

समुझब कहब करब तुम्ह जोई | धरम सारू जग होइहि सोई ||

हनुमानजी – bharat मिलन प्रसंग कलिके जीवों के उद्धार के लिए परम स्मरणीय है | व्रतोपासना में इष्टदेव का ध्यान कैसे किया जाय ? bharat जी इसके अनुपम उदहारण हैं | हनुमानजी ने bharat जी को देखा —

बैठे देखि कुशासन जटा मुकुट कृस गात |

राम राम रघुपति जपत स्रवत नयन जलजात ||

शांत, अचल, स्थिर, कुश के आसन पर बैठे हुए bharat जी राम-रामका जप कर रहे हैं | प्रेम में गदगद हैं | आँखों से अश्रुप्रवाह हो रहा है | यदि हम भी शांतचित्त स्थिर आसनमें   बैठकर श्रीराम नाम स्मरण करें तो शीघ्र ही रामराज्य के नागरिक बन जायेंगे |

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मुनिव्रत का पालन श्रीरामजी ने जंगल में किया लेकिन bharat जी ने तो अवध-जैसे राज्य में भोगों के बीच रहकर राम प्रेम के व्रत का पालन किया | जिसे देखकर सब कह उठे —

दोउ दिसि समुझि कहत सबु लोगु | सब विधि भरत सराहन जोगु ||

पुण्यकार्य करने में बिघ्नबाधाएँ भी आती हैं | चित्रकूट यात्रा के समय इन्द्र ने सरस्वती से भरतकी मति फेरने को कहा | लेकिन सरस्वती ने इंद्र की बात नहीं मानी | देवराज इंद्र को गुरु बृहस्पतिजी ने समझाया bharat जी भक्त शिरोमणि हैं उनसे डरना उचित नहीं है | साथ ही यह भी बताया —

भरत सरिस को राम सनेही | जगु जप राम रामु जप जेही ||

 इसलिए bharat जी के चरणों में अनुराग करो | सब बिधि से मंगल होगा |

अन्तमे bharat जी के व्रत-नियम की फलश्रुति के विषय में गोस्वामीजी कहते हैं —

सियराम प्रेम पियूष पूरन होत जनम न भरत को |

मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम व्रत आचरत को ||

दुःख दाह दारिद दम्भ दूषन सुजस मिस अपहरत को |

कलिकाल तुलसी से सठन्हि हठि राम सन्मुख करत को ||

तुलसीदास जी की ज्योतिर्मयी प्रज्ञा को प्रणाम है जिन्होंने bharat प्रेम का इतना दिव्य अनुरागपूर्ण सुन्दर ढंग से विवेचन किया |

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Bharat जी के इस प्रकार के महान उदात्त तपस्या व्रत का ध्यान करते हुए अपना जीवन धन्य बनाना चाहिए ||

 इस लेख में bharat जी के व्रत-नियम की संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में  ‘श्रीहनुमानजी का सेवाव्रत’ इस सन्दर्भ में संक्षेप में चर्चा करेंगे | 

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Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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