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shri ram ka Satya vrat

shri ram का सत्य व्रत – सत्यसंध दृढ़व्रत रघुराई –

भगवान shri ram ने सत्यव्रत का दृढ़ संकल्प लिया

भगवान श्री राम  जी के आदर्श चरित्र में उनका दृढ़व्रत मूलतः अधिष्ठित है | श्री राम मानवीय मर्यादा के प्रतीक पुरुष हैं और गोस्वामी तुलसीदास जी के श्रीरामचरितमानस में इस मर्यादा का आधार उनके दृढ़व्रत है |

shri ram
shri ram

व्रत शब्द का कोशगत अर्थ धार्मिक कृत्य, धार्मिक अनुष्ठान, नियम, संयम और प्रतिज्ञा है | जो आपत्ति में भी धर्म न छोड़े वह दृढ़व्रत कहलाता है | श्रीवाल्मीक जी shri ram  के असंख्य गुणों का उल्लेख करते हुए दो अभिव्यक्तियों का उपयोग करते हैं – सतयवाक्य तथा दृढ़व्रत |

गोस्वामी तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस में कहते हैं कि श्रीरामगुणग्राम श्रीसीतारामजी के प्रति प्रेम की उतपत्ति के लिए जननी और जनक हैं तथा सब व्रत, धर्म और नियमों के बीज हैं –

जननि जनक सिय राम प्रेम के | बीज सकल व्रत धरम नेम के ||

अर्थात श्रीरघुनाथ जी सभी व्रतों के बीज हैं | उनके प्रतिकूल जितने व्रत, धर्म और नियम हैं वे सब निर्मूल हैं निष्फल हैं | श्री राम जी ने अपने चरित्रद्वारा समस्त व्रतों, धर्मो और नियमो का पालन करके एक आदर्श स्थापित किया है |

भगवान का शरणागत पालन व्रत – (shri ram)

श्री राम  का जीवन दृढ़व्रत पर्याय है | वाल्मीकि रामायण में shri ram  जी कहते हैं – सीते ! में तुम्हें छोड़ सकता हूँ, लक्ष्मण को छोड़ सकता हूँ, अपने प्राणों का परित्याग कर सकता हूँ  परन्तु जो मेने प्रतिज्ञा की है विशेषतः ब्राम्हणों के प्रति उसे में कभी नहीं छोड़ सकता —

अप्यहं जीवतं जह्मा त्वां वा सीते सलक्ष्मणाम ||

न तु प्रतिज्ञा संश्रुत्य ब्राम्हणेभ्यो विशेषतः |(वा० रा० ३ | १० | १८-१९ )

इसी प्रकार अन्यत्र भी श्री राम  के दृढ़व्रत की प्रशंसा करते हुए वाल्मीकि जी कहते हैं – राम सत्य पराक्रम वाले हैं | उनके प्राण भले ही चले जायँ, वे कभी झूठ नहीं बोलते, सदा सत्य भाषण करते हैं | वे देना ही जानते हैं लेना नहीं —

दद्यान्न प्रतिगृह्णीयात सत्यं ब्रूयान्न चानृतम |

अपि जीवितहेतोर्हि रामः सत्यपराक्रमः ||( वा० रा० ५ | ३३ | २५ )

ऐसे shri ram  के दृढ़व्रत के दो मूल आधारभूत तत्व हैं– शरणागतवत्सलता और अभयदान | वाल्मीकिरामायण भगवान श्रीराम का स्पष्ट उद्घोष है —

सकृदेव  प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते |

अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद व्रतं  मम ||( वा० रा० ६ | १८| ३३  )

अर्थात जो एक बार भी शरण में आकर ” मैं तुम्हारा हूँ ” – ऐसा कहकर मुझसे रक्षा की प्रार्थना करता है उसे मैं समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूँ | यह मेरा सदा के लिए व्रत है |

जरुर जानें व्रत के ये नों भेद

इस प्रकार अयोध्याकी क्रीड़ाभूमि हो या जनकपुर की रंगभूमि, अरण्यकी की लीला भूमि हो अथवा लंका की युद्धभूमि shri ram  का व्रत कहीं खण्डित नहीं होता |

ऐसे दृढ़व्रती, शरणागतवत्सल, अभयतदाता shri ram  जी की कृपा से ही उनकी शरण ग्रहण कर भयवीत और संत्रस्त जीव भवसागर से तर सकता है ऐसी दृढ़ोक्ति मानस में काकभुशुण्डिजी कहते हैं —

अस सुभाउ कहुँ सुनउँ न देखउँ | केहि खगेस रघुपति सम लेखउँ ||

साधक सिद्ध विमुक्त उदासी | कबि कोबिद कृतग्य सन्यासी ||

जोगी सूर सुतापस ज्ञानी | धर्म निरत पण्डित विज्ञानी ||

तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी | राम नमामि नमामि नमामी ||

इस लेख में भगवान shri ram  जी के दृढ़व्रत की संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में भारत जी के व्रत नियम की संक्षेप में चर्चा करेंगे — {” जासु नेम व्रत जाइ न वरना ”}   ||

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Pandit Rajkumar Dubey

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