budhwar vrat katha in hindi – बुधवार व्रत एवं कथा का महत्त्व –
पिछले लेख में पद्मपुराणानुसार मंगलवार के व्रत एवं व्रत कथा के बारे में संक्षिप्त में चर्चा की इस लेख में बुधवार व्रत ( budhwar vrat katha ) के वारे में चर्चा करेंगे |
बुधवार का व्रत करने के लिए विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार का चयन करें | विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार सहित सात बुधवार व्रत करना चाहिए |
विधि – एक बुध की प्रतिमा बनाकर कांसे के इआत्र में स्थापित करें, प्रतिमा को दो सफ़ेद वस्त्र पहनावें, तथा सफ़ेद पुष्प-पुष्प माला आदि से पूजा करें | बुध की स्थिति के अनुसार नाम मन्त्र “उद्बुध्यस्व” इस मन्त्र से पूजन करना चाहिए |
हवन के लिए घृत, तिल, पायस से होम करना चाहिए | समिधा में अपामार्ग की 108 या 28 समिधा होनी चाहिए | यह बुध की विकृतता को नष्ट करती है |
बुध के दोषों में बुध के शान्ति के और पौष्टिक कर्म करने चाहिए | बुध का वैदिक मन्त्र “ॐ उद्बुध्यास्वाग्ने” तथा “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः” यह तांत्रिक मन्त्र है | हवन सदा वैदिक मन्त्र से होना चाहिए |
इस व्रत के करने से बुध ग्रह से होने वाली पीड़ा से छुटकारा मिलता है | शिक्षा में सफलता मिलती है | व्यापार में उन्नति होती है और रोगों से भी छुटकारा मिलता है |
अथ बुधवार व्रत कथा :-
एक समय एक ब्यक्ति अपनी पत्नि को विदा करवाने के लिए अपनी ससुराल गया | वहां पर कुछ दिन रहने के पश्चात सास-ससुर से विदा करने के लिए कहा | किन्तु सभी ने कहा कि आज बुधवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते | वह ब्यक्ति किसी प्रकार न माना और हठधर्मी करके बुधवार के दिन ही पत्नि को विदा कराकर अपने नगर को चल पड़ा |
राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लग रही है | तब वह ब्यक्ति लोटा लेकर रथ से उतरकर जल लेने चला गया | जैसे ही वह ब्यक्ति पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्य से चकित रह गया कि ठीक अपनी ही जैसी सूरत तथा वैसी ही वेशभूषा में एक ब्यक्ति उसकी पत्नी के पास रथ में बैठा हुआ है | उसने क्रोध से कहा कि तु कौन है, जो मेरी पत्नि के निकट बैठा हुआ है | दूसरा ब्यक्ति बोला यह मेरी पत्नी है | मैं अभी-अभी ससुराल से विदा कराकर ला रहा हूं |
बुध देव ने की कृपा
वे दोनों व्यक्ति परस्पर झगड़ने लगे | तभी राज्य के सिपाही आकर लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ने लगे | स्त्री से पूछा तुम्हारा असली पति कौनसा है ? तब पत्नि शांत ही रही क्योंकि दोनों एक जैसे थे | वह किसे अपना असली पति कहे | वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला – हे परमेश्वर यह क्या लीला है, कि सच्चा झूठा बन रहा है | तभी आकाशवाणी हुई कि आह बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था | तूने किसी की बात नहीं मानी |
यह सब लीला बुद्धदेव भगवान की है | उस व्यक्ति ने बुद्धदेव से प्रर्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी | तब बुध देवजी अंतर्ध्यान हो गए | वह अपनी स्त्री को लेकर घर आया तथा बुधवार का व्रत वे दोनों पति-पत्नि नियमपूर्वक करने लगे | जो व्यक्ति इस कथा का श्रवण करता है तथा सुनाता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है, उसको सर्व प्रकार के सुखो की प्राप्ति जोती है | और बुध dev की कृपा सदा बनी रहती है |
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