भावानुसार एवं राशि अनुसार गुरु की महादशा का फल
Guru mahadasha ka fal – इस लेख में जानेंगे गुरु अलग-अलग भागों में स्थित होकर अपनी दशा में जातक को क्या फल देता है | प्रथम भाव में स्थित गुरु की महादशा में जातक धन राज्य और स्त्री से सुख प्राप्त करता है, तथा मनुष्यों के भरण पोषण करने वाला और मुखिया होता है | त्रिकोण गत गुरु की महादशा में धन-धान्य, अन्न, स्त्री, पुत्र, उत्तम भोजन, उत्तम वस्तु, और वाहन आदि का सुख प्राप्त होता है | लग्न में गुरु के रहने से उसकी दशा में जातक को सुख, वस्त्र और आभूषण आदि प्राप्त होते हैं, तथा जनता जातक को बड़े समारोह से जुलूस के साथ ले जाता है |
द्वितीय भाव में स्थित गुरु की महादशा में राज्य सम्मान और धन की प्राप्ति होती है, सभा सोसाइटी में उत्तम प्रकार से विद्या विवाद करता है, परोपकारी, निर्भय, सुखी और विजयी होता है, एवं राज्य से धन, भाई अथवा किसी स्त्री द्वारा भूमि की प्राप्ति होती है | जातक बुद्धिमान और उपकारी होता है, तथा अनेक प्रकार के वस्त्र एवं आभूषण आदि से शुशोभित रहता है | तृतीय भाव में स्थित गुरु की महादशा में भाइयों से धन और राज्य से सुख की प्राप्ति है तथा मनचाही जगह पर भ्रमण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | चतुर्थ स्थान में स्थित गुरु की महादशा में राज्य द्वार से प्रेम और धन की प्राप्ति होती है | यदि जातक को राजयोग लगा हो तो राजा अथवा राजा के ऐसा अधिकार प्राप्त होता है, अगर स्वयं राजा ना हो जाए तो तीन प्रकार की सवारी से सुसज्जित होता है |
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पंचम स्थान में स्थित गुरु की महादशा में मंत्र विद्या की ओर जातक की रुची होती है | राज्य से मान सम्मान प्राप्त करता है पुत्र उत्पन्न होने का सौभाग्य बहुत सुखी और वेद पुराण आदि के श्रवण में रुचि होती है | छठे स्थान में स्थित गुरु की महादशा के आदि में स्वास्थ्य और स्त्री पुत्र आदि की प्राप्ति होती है, परंतु अंत में चोर और स्त्री से भय होता है | सप्तम स्थान में स्थित गुरु की दशा में स्त्री पुत्र आदि से सुख, विदेश भ्रमण और विजय प्राप्त करता है | जातक ईश्वर भजन तथा पुण्य कार्यों में लीन रहता है | अष्टम स्थान में स्थित गुरु की महादशा होने से दशा के आरंभ में सुख होता है | दशा के अंत में स्थान से च्युत होता है |
नवम भाव में स्थित गुरु की महादशा में विदेश यात्रा होती है और बंधु जनों से वियोग होता है, परंतु अंत में स्त्री पुत्र तथा राजा से सम्मानित होता है | दशम स्थान में स्थित गुरु की दशा में जातक को राज्य और धन की प्राप्ति, राजयोग रहने पर राज्य अथवा धन, स्त्री पुत्र तथा शुभ कार्य की प्राप्ति होती है | जातक राजा के तुल्य सुख भोगता है और अधिकार पूर्ण होता है | ग्यारहवें भाव में स्थित गुरु होने से उसकी दशा में जातक को धन व राज्य की प्राप्ति तथा पुत्र सुख प्राप्त होता है, परन्तु राजा तथा अपने बंधु जनों में द्वेष उत्पन्न हो जाता है | बारहवें भाव में स्थित गुरु होने से उसकी दशा में नाना प्रकार के कष्ट और विदेश यात्रा होती है, परंतु वाहन से सुख होता है |
राशि अनुसार गुरु महादशा का फल (Guru mahadasha ka fal)
12 राशियों में स्थित गुरु की महादशा का फल – मेष राशि में स्थित गुरु के रहने से उसकी दशा में विशेष धन का लाभ और बहुत लोगों का नायक होता है, और स्त्री एवं पुत्र आदि के सुख से संपन्न रहता है | वृषभ राशि में स्थित गुरु होने से उसकी दशा में जातक अत्यंत दुखी, आनंद रहित, धनहीन और विदेश वासी होता है, परंतु साहसी होता है | मिथुन राशि में स्थित गुरु की महादशा में जातक को शरीर की पवित्रता की ओर ध्यान रहता है | स्त्री से कलह, माता और कुटुंब जनों से विरोध तथा मन में संताप होता है | कर्क राशि में स्थित गुरु की महादशा में कुल पर प्रधानता नाम की ख्याति और बड़े लोगों से मित्रता होती है | यश, वैभव प्राप्त होता है |
सिंह राशि में स्थित गुरु होने पर उसकी दशा में जातक धनवान, दाता, राजा से प्रतिष्ठित और स्त्री पुत्र तथा बंधू-बांधवों से आनंदित रहता है | कन्या राशि में स्थित गुरु की महादशा में जातक राज द्वार में मान और प्रतिष्ठा पाने वाला तथा स्त्री पुत्र आदि से सुखी होता है, एवं सूद्र आदि नीची जातियों से उसे कलह होती है | तुला राशि में स्थित गुरु की महादशा में जातक अविवेकी, उत्साह रहित, स्त्री पुत्रों से शत्रुता करने वाला और अल्प भोजन करने वाला होता है |
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वृश्चिक राशि में स्थित गुरु की महादशा में जातक कार्य करने में समर्थ, विद्वान, बुद्धिमान, बिनीत और ऋण रहित होता है | ऐसे जातक को पुत्र उत्सव का सुख प्राप्त होता है, परंतु जातक नियम विहीन अथवा अव्यवस्थि चित्त का होता है | धनु राशि में स्थित गुरु की महादशा में यदि 13 अंश तक का गुरु हो अर्थात मूलत्रिकोण का हो तो जातक राजा, मंडल आदि अर्थात जमींदार अथवा राज्य मंत्री और स्त्री के वचनों का पालन करने वाला होता है | यदि 13 अंश से अधिक गुरु हो तो ऐसे जातक कृषि में मन लगाते हैं, चतुर्पदों से उसे सुख होता है और जातक की यज्ञ आदि उत्तम कार्यों में अभिरुचि होती है |
मकर राशि में स्थित गुरु यदि नीच नवांश में हो तो उसकी दशा में जातक को धन की चिंता और बंधु जनों से वियोग होता है | और जातक अन्य किसी मनुष्य का कार्य करने वाला होता है | उसके पेट में, गुप्त स्थान में रोग होता है | यदि मकर राशि में स्थित गुरु नीच नवांश में ना हो तो कृषि और मल्लाह आदि से धन तथा वृक्ष आदि से पतन का भय होता है, एवं छल से धन उपार्जन के कारण पीड़ा भोगता है | कुंभ राशि में स्थित गुरु होने से उस की महादशा में जातक सर्वदा स्त्री विलास में रत, कलाओं का जानने वाला, धनी और बुद्धिमान होता है | तथा उसे विद्या जनित प्रसन्नता होती है | मीन राशि में स्थित गुरु होने से उसकी दशा में जातक पुत्र स्त्री आदि से सुखी, राजद्वार से धन प्राप्त करने वाला, बुद्धिमान तथा प्रतिष्ठित होता है |
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गुरु की महादशा का फल प्रथम एक बटे तीन खंड में आनंद और मर्यादा की प्राप्ति, मध्यम खंड में स्त्री पुत्र आदि से सुख तथा अंतिम खंड में दुख आदि का आगमन कार्य की हानि एवं पीड़ा अवश्य होती है |
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