कोडियों का महत्व
kaudi ke totke -कोड़ी जल में पाए जाने वाले जीव का घर है | मुख्यतः कौडियाँ समुद्र में पायी जाती हैं | और उसी समुद्र से माता लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था | इसलिए कौड़ियों को भी माता लक्ष्मी जी ही स्वरुप माना जाता है | आज भी दीपावली की पूजन में कौड़ियो की पूजा की जाती है | तथा उन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता है | कुछ लेखों के अनुसार कुछ समय पहले कौड़ियों को मुद्रा के रूप में माना जाता था | विशेषज्ञों के अनुसार पुरे विश्व में 165 प्रकार की कौड़ियाँ पायीं जाती हैं |
कौड़ियों का हमारे हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है | कुछ समय से कौड़ियों का प्रचलन कुछ कम अवश्य हुआ है परन्तु ख़त्म नहीं हुआ | आज भी भारतीय कोड़ी को समृद्धि एवं लक्ष्मी का प्रतीक मानकर ह्रदय में प्रतिष्ठित किये हुए हैं | बंगाल में तो लक्ष्मी पूजा के अवसर पर एक एसी टोकरी को पूजा जाता है जो सब ओर से कोडियों से सजी होती है | इस टोकरी में माला, धागा, कंघा, शीशा, सिंदूर, लोहे का कड़ा आदि होता है | इस टोकरी को “लोखी झापा” या “लक्ष्मी की टोकरी” कहते हैं |
कौड़ी माता का मंदिर-(kaudi ke totke)
भारत में उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में एक मंदिर एसा भी है, जहां प्रसाद के रूप में कौड़ी चढ़ती है और कौड़ी ही मिलती है | इसे कौड़ी माता का मंदिर कहा जाता है | यही नहीं कौड़ी माता का स्नान भी कौड़ी से ही कराया जाता है | लोग कौड़ी माता को प्रसन करने के लिए उनके चरणों में कौड़ियाँ समर्पित करके आशीर्वाद लेते हैं | यहाँ पर विशेषकर दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालु ही अधिकांशतः दर्शन के लिए आते हैं | ये दर्शनार्थी कौड़ी लेकर आते हैं और चढाते हैं | बदले में प्रसाद स्वरूप उन्हें कौड़ी ही दी जाती है | जिसे श्रद्धालु सुख-समृद्धि का प्रतीक मानकर अपने घर के पूजा स्थान पर रखते हैं |
कौड़ियों को लेकर अनेक प्रकार की मान्यताएं हैं | दीपावली को कौड़ी को किसी दीपक में तेल में डुबो दिया जाता है | दीपक जलता रहता है | इस बात की सावधानी रखनी पड़ती है कि उस कौड़ी को कोई ले न जाए | एसी मान्यता है कि जो उस कौड़ी को जेब में रखकर जुआ खेलने जाता है वह जीतकर ही आता है | उसकी जुआ में हार नहीं होती |
pili kaudi ke totke
दसहरा के अवसर पर कन्याएं अपने घर के दरवाजे के पास गोबर से देवी की प्रतिमा बनातीं हैं और उसे कौड़ियों से सजाती हैं | गोबर्धन पूजा के अवसर पर भी गोबर के द्वारा गोबर की जो मूर्ति बनाई जाती है उसे भी कौड़ियों से सजाया जाता है |
विवाह के अवसर पर भी कौड़ियों का महत्वपूर्ण माना जाता है | वर-वधु के कंकड़ (कंगन) में कौड़ी बाँधी जाती है | विवाह में मंडप के नीचे जिस पटे पर वर-वधु बैठते हैं, उस पर भी कौड़ी बाँधी जाती हैं | मंडप के नीचे कलश में अन्य वस्तुओं के साथ कौड़ी भी डाली जाती है | देश के हर प्रांत में कौड़ियों का प्रयोग अलग-अलग तरीके से किया जाता है | उड़ीसा में विवाह के अवसर पर वधु के माता-पिता वधु को एक टोकरी भेंट करते हैं जिसे “जगथी पड़ी” कहा जाता है | इस टोकरी में रोजमर्रा के काम आने वाली हर एक वस्तु होती है जिसमें कौड़ी जरुर होती है | आंध्र प्रदेश में भी यही रिवाज है यहाँ इस टोकरी को “कविडा पेट्टे” कहा जाता है |
श्रंगार के रूप में कौड़ियों का उपयोग –
कौड़ी भारत के लगभग सभी राज्यों में स्त्रियों के श्रंगार के रूप उपयोग में लायीं जातीं हैं | जैसे गले में कौड़ियों की माला आदि, घरों में सजावट के लिए भी कौड़ियों का स्तेमाल किया जाता है | यादव समाज में कौड़ियों का विशेष महत्व है | दीपावली को इनके नृत्य को अहीर नृत्य कहते हैं | ये अपने पारंपरिक वेश-भूसा में श्रंगार करके नृत्य करते हैं | ये जिस घर में जाते हैं वहां पर उनका टीका करके सम्मान किया जाता है | उनके जो पारंपरिक वस्त्र होते हैं उनमे कौड़ियों का विशेष प्रयोग किया जाता है |
कौड़ी हामरे जीवन के प्रत्येक कार्य-कलाप से जुडी हुई हैं | इसकी पूजा भी की जाती है, इससे औषधि भी बनती है और इसे श्रंगार के रूप में भी उपयोग किया जाता है |
सुख समृद्धि के अनेक उपाय हमारे तंत्र शास्त्र में वर्णित हैं जिनमे कौड़ियों का विशेष प्रयोग किया जाता है | इन कौड़ियों को मन्त्रों द्वारा शुभ मुहूर्त आदि में सिद्ध किया जाता है जिसके प्रभाव से ये और भी शक्तिशाली हो जातीं हैं | नीचे कौड़ियों के कुछ प्रयोग (kaudi ke totke) दिए जा रहे हैं |
kaudi ke prayog
- दीपावली की रात्रि में ग्यारह अभिमंत्रित कौडियाँ लाल रेशमी वस्त्र में बाँधकर उनकी विधिवत पूजन कर धन रखने के स्थान पर रखने से माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है |
- आपका व्यापार चलते-चलते कम होने लगा है तो आप सात अभिमंत्रित कौडियाँ लें | एक डिब्बी लें शुक्रवार से आरम्भ कर गुरुवार तक एक-एक कौड़ी रोज उस डिब्बी में डालते जाएँ | डिब्बी को अपने पूजन स्थान में रखें जिससे उसकी भी प्रतिदिन पूजा होती रहे | दुसरे शुक्रवार को वह डिब्बी ले जाकर अपने व्यापर स्थल के पूजा स्थान में या पैसा रखने की जगह में जहां पर आप पूजा करते हों वहां रख दीजिये | कुछ ही समय में आपका व्यापार पहले से भी अच्छा चलने लगेगा |
- यदि आपके पास पैसा आता है पर रुकता नहीं है तो आप पांच अभिमंत्रित कौडियाँ लेकर किसी कटोरी में रखकर उसके ऊपर पीला रेशमी वस्त्र विछाकर उसी कटोरी में बैठी हुई चांदी की लक्ष्मी जी की मूर्ति को स्थापित कर उनका पूजन किया करें | कुछ ही दिनों में आपको असातीत लाभ दिखने लगेगा |
- यदि कोई लम्बे समय से अस्वस्थ चल रह है तो उसके लिए यह प्रयोग लाभकारी होगा | ग्यारह अभिमंत्रित कौडियाँ किसी वर्तन में रखकर उसमे गंगाजल भर दें | यह क्रिया शाम को करें | प्रातः उस गंगाजल को लोटे में निकालकर उसमे और जल मिलकर शिवजी का अभिषेक करें | अभिषेक के पश्चात् थोडा सा निर्माल्य रोगी को पिला दें या उसके ऊपर छिड़क दें | बहुत ही जल्दी रोगी स्वस्थ होने लगेगा |
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