नवरात्रि का तृतीय दिवस: माँ चंद्रघंटा पूजा विधि, महत्व, कथा और मंत्र
Maa Chandraghanta Puja Vidhi – नवरात्रि की नौ दिवसीय यात्रा का तीसरा दिन माँ दुर्गा के अत्यंत शक्तिशाली और सौम्य स्वरूप माँ चंद्रघंटा को समर्पित है। यदि प्रथम दिन की पूजा ने आध्यात्मिक यात्रा की नींव रखी और दूसरे दिन की तपस्या ने उसमें अनुशासन भरा, तो तीसरा दिन हमें उन सभी आंतरिक और बाहरी नकारात्मक शक्तियों से लड़ने का साहस और शक्ति प्रदान करता है जो हमारे मार्ग में बाधा बनती हैं।
कौन हैं माँ चंद्रघंटा? नाम का रहस्य और उनका स्वरूप
‘चंद्रघंटा’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘चंद्र’ यानी चाँद और ‘घंटा’ यानी घंटा। उनका यह नाम उनके माथे पर सुशोभित अर्धचंद्र से आया है, जो घंटे के आकार का दिखता है। इस अर्धचंद्र के कारण ही उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। मान्यता है कि इस घंटे की ध्वनि इतनी तीव्र है कि यह सभी दुष्ट शक्तियों को भयभीत कर देती है।

माँ चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत भव्य और प्रभावशाली है।
- वे सिंह पर सवार हैं, जो साहस, पराक्रम और निर्भयता का प्रतीक है।
- उनके दस हाथ हैं, जिनमें से हर एक में एक अस्त्र-शस्त्र सुशोभित है, जैसे तलवार, गदा, बाण, त्रिशूल, धनुष और कमल का फूल।
- उनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार है, फिर भी उनका मुख मंडल शांत और सौम्य है, जो यह दर्शाता है कि वे भक्तों के लिए हमेशा दयालु और शांत रहती हैं।
यह स्वरूप भक्तों को यह संदेश देता है कि जीवन की चुनौतियों और नकारात्मक शक्तियों का सामना साहस और शक्ति के साथ किया जाना चाहिए, लेकिन मन में हमेशा शांति और पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
पौराणिक कथा: राक्षसों का संहार और शक्ति का प्राकट्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब महिषासुर नामक राक्षस ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर इंद्र का सिंहासन छीन लिया। देवताओं को पराजित कर वह स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए सभी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाकर प्रार्थना की।
देवताओं की करुण पुकार सुनकर त्रिदेवों को अत्यंत क्रोध आया। उनके क्रोध और तेज से एक दिव्य शक्ति उत्पन्न हुई। यही शक्ति माँ चंद्रघंटा कहलाईं। माँ का यह रूप, जो युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार था, राक्षसों का नाश करने के लिए ही प्रकट हुआ था। उनके घंटे की ध्वनि से ही राक्षसों के हृदय में भय भर गया। उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्रों से दुष्टों का संहार किया और देवताओं को उनके अधिकार वापस दिलाए।
यह कथा हमें सिखाती है कि जब भी धर्म पर संकट आता है, तो माँ दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा के लिए चंद्रघंटा के रूप में प्रकट होती हैं।
पूजा का विशेष महत्व: भय पर विजय और आत्म-विश्वास की वृद्धि
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा का गहरा आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक महत्व है:
- भय से मुक्ति: माँ चंद्रघंटा की पूजा भक्तों को हर तरह के भय, चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाती है। उनके घंटे की ध्वनि मन में व्याप्त नकारात्मक विचारों को दूर करती है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करती है।
- मणिपुर चक्र का जागरण: योग शास्त्र के अनुसार, माँ चंद्रघंटा का संबंध मणिपुर चक्र से है, जो हमारे नाभि क्षेत्र में स्थित होता है। यह चक्र हमारे आत्म-विश्वास, शक्ति और नियंत्रण का केंद्र है। इनकी पूजा से यह चक्र जागृत होता है, जिससे व्यक्ति के भीतर साहस और आत्म-विश्वास का संचार होता है।
- आकर्षण और प्रभावशीलता: माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा की पूजा से व्यक्ति के व्यक्तित्व में एक विशेष आकर्षण और तेज आता है। उनकी कृपा से व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वहाँ उसे सम्मान और सफलता मिलती है।
Maa Chandraghanta Puja Vidhi और मंत्र, कैसे करें माँ की आराधना
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से की जाती है।
- पूजा की तैयारी: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और लाल या सिंदूरी रंग के वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और माँ की प्रतिमा को स्थापित करें।
- संकल्प और पूजा: हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर पूजा का संकल्प लें। माँ को लाल फूल (जैसे गुलाब) और सिंदूर अर्पित करें।
- भोग: माँ चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है। इस दिन खीर का भोग विशेष रूप से लाभकारी होता है।
- मंत्र और आरती: उनकी पूजा में इस मंत्र का जाप करें:
माँ चंद्रघंटा का बीज मंत्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघंटायै नमः ||
ध्यान मंत्र:
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
निष्कर्ष
माँ चंद्रघंटा की पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उनका सामना साहस और निडरता के साथ करना चाहिए। वे हमें यह संदेश देती हैं कि हमारी आंतरिक शक्ति और भक्ति ही हमारी सबसे बड़ी ढाल है। नवरात्रि की इस यात्रा में, माँ चंद्रघंटा हमें भय से मुक्ति और विजय का आशीर्वाद प्रदान करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: माँ चंद्रघंटा का स्वरूप कैसा है?
उत्तर: माँ चंद्रघंटा दस हाथों वाली सिंहवाहिनी हैं। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है जो घंटे के आकार का दिखता है। वे अपने भक्तों को साहस, निर्भयता और शांति का आशीर्वाद देती हैं।
Q2: नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर: नवरात्रि का तीसरा दिन साहस, शक्ति और नकारात्मकता के संहार का प्रतीक है। माँ चंद्रघंटा की पूजा से भय, चिंता और तनाव से मुक्ति मिलती है और आत्म-विश्वास बढ़ता है।
Q3: माँ चंद्रघंटा का मंत्र क्या है?
उत्तर: उनका बीज मंत्र है –
ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः॥
ध्यान मंत्र –
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
Q4: माँ चंद्रघंटा को कौन सा भोग अर्पित करना शुभ है?
उत्तर: इस दिन माँ को दूध या दूध से बनी मिठाई (विशेषकर खीर) का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
Q5: माँ चंद्रघंटा का संबंध किस चक्र से है?
उत्तर: योग शास्त्र के अनुसार माँ चंद्रघंटा का संबंध मणिपुर चक्र से है। यह चक्र आत्म-विश्वास और आंतरिक शक्ति का केंद्र है।
Q6: माँ चंद्रघंटा की पूजा में कौन से रंग का वस्त्र पहनना शुभ है?
उत्तर: नवरात्रि के तीसरे दिन लाल या सिंदूरी रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
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