Pandit Ji

Kartik Purnima Dev Diwali

कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली 2025: त्रिपुरारी पूर्णिमा की कथा, दीपदान का महत्त्व और कार्तिक स्नान का पुण्य

Kartik Purnima Dev Diwali: स्वर्ग से पृथ्वी तक प्रकाश का महाउत्सव

भारतीय संस्कृति में पर्वों का क्रम जीवन को ऊर्जा और आध्यात्मिकता से भर देता है। इसी श्रृंखला में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima Dev Diwali) का स्थान अत्यंत पावन और दिव्य है। यह पूर्णिमा न केवल कार्तिक मास के पवित्र अनुष्ठानों की पूर्णाहुति करती है, बल्कि इसे देव दीपावली (Dev Deepawali) के नाम से भी जाना जाता है – वह दिन जब स्वर्ग के देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर खुशियाँ मनाते हैं।

देव दीपावली, प्रकाश का एक ऐसा अलौकिक उत्सव है जो वाराणसी (काशी) के गंगा घाटों पर अपनी चरम भव्यता प्राप्त करता है, जहाँ लाखों मिट्टी के दीये (दीप) एक साथ जलकर गंगा की लहरों पर तैरते हुए स्वर्गलोक का आभास कराते हैं। यह पर्व हमें बताता है कि जीवन में अंधकार पर प्रकाश की विजय और अधर्म पर धर्म की जीत कितनी महत्वपूर्ण है। यह पर्व केवल दीये जलाने का नहीं, बल्कि दान, तप, और आत्म-शुद्धि के माध्यम से अक्षय पुण्य अर्जित करने का महा-अवसर है।

तिथि का महत्व और नामकरण

कार्तिक पूर्णिमा, हिंदू पंचांग के कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह एकादशी (देव उठनी) से शुरू हुए सभी पवित्र अनुष्ठानों की समाप्ति का प्रतीक है।

Kartik Purnima Dev Diwali
Kartik Purnima Dev Diwali

इस पर्व के प्रमुख नाम:

  1. कार्तिक पूर्णिमा: यह कार्तिक मास की अंतिम तिथि होती है, और इस मास में किए गए सभी धार्मिक कार्यों का फल इस दिन पूर्णता को प्राप्त होता है।
  2. देव दीपावली: पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर दीपावली मनाते हैं। इसलिए इसे ‘देवों की दिवाली’ कहा जाता है।
  3. त्रिपुरारी पूर्णिमा: यह नाम इस पर्व के सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक घटना से जुड़ा है – भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध
  4. गुरु पर्व/गुरु नानक जयंती: सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्मदिवस भी इसी पवित्र तिथि को मनाया जाता है।

Kartik Purnima Dev Diwali की पौराणिक कथा: त्रिपुरारी पूर्णिमा का गौरव

कार्तिक पूर्णिमा के धार्मिक महत्व का मूल कारण त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली राक्षस के वध की कथा में निहित है।

त्रिपुरासुर का आतंक

प्राचीन काल में, त्रिपुरासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस हुआ करता था, जो तीन महाबली राक्षसों (विद्युन्माली, तारकाक्ष और कमलाक्ष) का समूह था। इन तीनों ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से एक अद्भुत वरदान प्राप्त किया था। उन्हें तीन अद्भुत नगर (जिसे त्रिपुर कहा जाता था) प्रदान किए गए, जो अदृश्य और अस्थिर थे। यह नगर कभी भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते थे। उन्हें वरदान मिला था कि इन नगरों को केवल वही व्यक्ति नष्ट कर सकता है, जो केवल एक ही बाण से उन्हें तब नष्ट करे, जब वे तीनों नगर एक सीध में आ जाएं।

वरदान की शक्ति पाकर त्रिपुरासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया और धर्म की हानि करने लगा। उसके आतंक से सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में गए।

भगवान शिव की विजय

देवताओं के अनुरोध पर, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने एक विशेष रथ तैयार किया, जिसका पहिया सूर्य और चंद्रमा थे, और धनुष स्वयं मेरु पर्वत था। जब कई वर्षों की प्रतीक्षा के बाद, तीनों नगर (त्रिपुर) एक सीधी रेखा में आए, तब भगवान शिव ने ‘त्रिपुरारी’ रूप धारण किया और एक ही बाण (पिनाक धनुष से) छोड़कर तीनों नगरों को ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार, त्रिपुरासुर का अंत हुआ।

इस महान विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने शिव को त्रिपुरारी’ नाम दिया और स्वर्गलोक में भव्य उत्सव मनाया। तभी से, इस विजय के उपलक्ष्य में, कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाने लगी।

Kartik Purnima Dev Diwali का मुख्य अनुष्ठान: दीपदान

देव दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान दीपदान (दीपक जलाना) है। दीपदान का अर्थ है देवताओं को, पवित्र नदियों को और प्रकृति को प्रकाश अर्पित करना।

दीपदान का महत्व:

  1. पापों का शमन: माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  2. लक्ष्मी और विष्णु की कृपा: दीप, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। दीपदान करने से घर में धन-धान्य और अक्षय समृद्धि आती है।
  3. पितरों को शांति: यह पर्व पितरों को शांति प्रदान करने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। नदी में दीपदान करने से पितरों का मार्ग प्रकाशित होता है।

Kartik Purnima Dev Diwali पर दीपदान कहाँ करें?

  • नदी के घाट (सबसे महत्वपूर्ण): गंगा, यमुना, गोदावरी या किसी भी पवित्र नदी के किनारे लाखों दीये जलाना।
  • मंदिरों में: सभी देवी-देवताओं के समक्ष दीपक जलाना।
  • तुलसी के पास: तुलसी के पौधे के सामने दीप जलाकर उसकी पूजा करना।
  • घरों में: घर के प्रवेश द्वार पर और आंगन में दीपक जलाना।

वाराणसी (काशी) में भव्यता: वाराणसी के गंगा घाटों पर देव दीपावली का दृश्य अद्वितीय होता है। लाखों दीये जलने से घाटों की सीढ़ियाँ और गंगा का जल स्वर्ण के समान चमक उठता है, जिसे देखने देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।

Kartik Purnima Dev Diwali के अन्य प्रमुख अनुष्ठान

कार्तिक पूर्णिमा का पर्व दीपदान के साथ-साथ कई अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी जाना जाता है:

1. पवित्र नदियों में स्नान (कार्तिक स्नान)

  • कार्तिक मास में पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा देवोत्थान एकादशी से शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा पर इसका समापन होता है।
  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त (भोर) में गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है, जिसे कार्तिक स्नान कहते हैं।
  • मान्यता है कि इस स्नान से न केवल शरीर, बल्कि आत्मा भी शुद्ध होती है और सभी तीर्थों की यात्रा का फल मिलता है।

2. दान और पुण्य कर्म

  • कार्तिक पूर्णिमा दान-पुण्य के लिए सबसे उत्तम तिथि है। इस दिन किया गया दान अक्षय (कभी न नष्ट होने वाला) फल देता है।
  • दान की वस्तुएं: अन्न, वस्त्र, कम्बल, दूध, शहद और विशेष रूप से दीपकों का दान करना शुभ माना जाता है।
  • गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना इस दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3. सत्यनारायण व्रत और कथा

  • यह तिथि भगवान विष्णु को भी समर्पित है। कई घरों में इस दिन श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत और उनकी कथा का पाठ किया जाता है, जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

4. गुरु नानक जयंती

  • सिख समुदाय के लिए यह दिन अत्यंत पवित्र है, क्योंकि इस दिन उनके प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जाता है।
  • गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन, पाठ और लंगर का आयोजन होता है, और प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं।

Kartik Purnima Dev Diwali, व्रत विधि और पारण

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भक्तगण व्रत भी रखते हैं।

  • व्रत का संकल्प: सुबह स्नान के बाद भगवान शिव और विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है।
  • आहार: पूरे दिन फलाहार या निराहार व्रत रखा जाता है। सात्विक जीवन शैली का पालन किया जाता है।
  • पूजा: भगवान विष्णु की पूजा और भगवान शिव के त्रिपुरारी रूप का ध्यान किया जाता है।
  • पारण: पूर्णिमा तिथि समाप्त होने के बाद व्रत खोला जाता है। पारण में सबसे पहले दान-पुण्य करना और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

निष्कर्ष: प्रकाश से जीवन को प्रकाशित करने का संदेश

Kartik Purnima Dev Diwali का पर्व हमें सिखाता है कि अधर्म और बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म के प्रकाश के सामने उसे एक दिन नष्ट होना ही पड़ता है। यह पर्व जीवन में आशा और सकारात्मकता का संचार करता है।

लाखों दीपकों का जलना न केवल एक सुंदर दृश्य है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक आह्वान भी है कि हम अपने मन, वचन और कर्म से अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान और भक्ति के प्रकाश को अपनाएं।

आइए, हम भी इस महापर्व पर दीपदान करें, पवित्र स्नान करें, और दान के माध्यम से अपने जीवन को अक्षय पुण्य से भर लें, और देवताओं के इस उत्सव में सच्चे मन से शामिल हों।

Kartik Purnima Dev Diwali: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. देव दीपावली क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?


👉 देव दीपावली हिंदू धर्म का एक पवित्र त्योहार है जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। इस पर्व को अधर्म पर धर्म की विजय और प्रकाश के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।


2. देव दीपावली कब मनाई जाती है?

👉 यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के लगभग पंद्रह दिन बाद आती है।


3. देव दीपावली का संबंध कार्तिक पूर्णिमा से क्यों है?

👉 क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा देव उठनी एकादशी से आरंभ हुए सभी धार्मिक अनुष्ठानों का समापन दिवस है। इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।

4. त्रिपुरारी पूर्णिमा की कथा क्या है?
👉 इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था जिसने तीन लोकों में आतंक मचा रखा था। भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों पुरों को नष्ट किया, जिससे उनका नाम ‘त्रिपुरारी’ पड़ा।

5. देव दीपावली पर दीपदान क्यों किया जाता है?
👉 दीपदान का अर्थ है देवताओं, पवित्र नदियों और पितरों को प्रकाश अर्पित करना। इससे पापों का शमन, लक्ष्मी-विष्णु की कृपा और पितरों की मुक्ति प्राप्त होती है।


6. देव दीपावली पर कहाँ दीपदान करना सबसे शुभ माना जाता है?

👉 वाराणसी (काशी) के गंगा घाटों पर दीपदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अलावा घर, मंदिर और तुलसी के पौधे के पास भी दीपक जलाया जा सकता है।

7. कार्तिक पूर्णिमा के दिन कौन-कौन से पुण्य कर्म किए जाते हैं?
👉 इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, दान-पुण्य, सत्यनारायण व्रत, भगवान विष्णु और शिव की पूजा, तथा गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है।

8. देव दीपावली और दीपावली में क्या अंतर है?
👉 दीपावली माता लक्ष्मी और भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी में मनाई जाती है, जबकि देव दीपावली भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय और देवताओं की खुशी का प्रतीक है।

9. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान का क्या महत्व है?
👉 ब्रह्म मुहूर्त में गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इसे कार्तिक स्नान कहा जाता है।

10. देव दीपावली के दिन कौन-कौन सी पूजा करनी चाहिए?
👉 इस दिन भगवान शिव के त्रिपुरारी रूप, भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा करनी चाहिए। शाम के समय दीप जलाकर दीपदान अवश्य करें और गरीबों को दान दें।

इन्हें भी देखें :-

जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?

जानें कैसे कराएँ ऑनलाइन पूजा ?

श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ से लाभ

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top