Pandit Ji

Sharad Purnima Puja Vidhi

शरद पूर्णिमा: अमृत वर्षा की दिव्य रात – महत्व, वैज्ञानिक रहस्य और पूजा विधि

Sharad Purnima Puja Vidhi – हिंदू पंचांग में शरद पूर्णिमा का स्थान किसी चमत्कारी रात्रि से कम नहीं है। यह पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह पूरे वर्ष की वह एकमात्र रात है जब चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं (कलाओं) से पूर्ण होता है। अपनी दिव्य चाँदनी से वह पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है।

शरद पूर्णिमा को कई नामों से जाना जाता है—कोजागर पूर्णिमा (को जाग रहा है?), रास पूर्णिमा, और कौमुदी व्रत। यह रात्रि न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि वैज्ञानिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह त्योहार देवी महालक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण के रास-लीला से जुड़ा हुआ है।

sharad purnima puja vidhi
sharad purnima puja vidhi

आइए, इस अद्भुत और दमकती रात के गहरे महत्व, इससे जुड़े वैज्ञानिक रहस्यों, पूजा के सम्पूर्ण विधान और व्रत कथा पर एक विस्तृत नज़र डालते हैं।

1. Sharad Purnima Puja Vidhi, पौराणिक और धार्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक बहुआयामी पर्व है, जो कई महत्वपूर्ण पौराणिक घटनाओं से जुड़ा है:

(क) महालक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन (कोजागर व्रत)

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। ‘कोजागर’ का अर्थ है, कौन जाग रहा है?”

  • मान्यता: शास्त्रों के अनुसार, इस रात धन और समृद्धि की देवी, माँ महालक्ष्मी, पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। वह हर घर के आसपास घूमकर देखती हैं कि कौन भक्त जागकर, पूर्ण श्रद्धा से उनका स्मरण और पूजा कर रहा है।
  • लाभ: जो भक्त पूरी रात जागकर (जागरण करके) देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी अक्षय धन, वैभव और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं। यही कारण है कि यह रात विशेष रूप से व्यापारी वर्ग और धन की इच्छा रखने वालों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।

(ख) भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला

ब्रज क्षेत्र और वैष्णव संप्रदाय के लिए यह रात रास पूर्णिमा के रूप में जानी जाती है।

  • कथा: माना जाता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योग माया से वृंदावन के वनों में राधा और गोपियों के साथ दिव्य महारास लीला की थी। चंद्रमा की शीतल चांदनी में हुआ यह रास दिव्य प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जो आत्मा के परमात्मा से मिलन को दर्शाता है। यह कथा भक्तों को निःस्वार्थ प्रेम और पूर्ण समर्पण का संदेश देती है।

(ग) चन्द्रमा की सोलह कलाएँ और अमृत वर्षा

वर्षभर में, केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं (phases) से पूर्ण होता है, जिससे उसकी किरणें सबसे अधिक ऊर्जावान और शीतल होती हैं।

  • धारणा: इस रात्रि को चन्द्रमा से निकलने वाली किरणें केवल प्रकाश नहीं होतीं, बल्कि उनमें अमृत के समान दिव्य औषधीय गुण होते हैं। इसलिए, भक्त इस रात्रि में खीर बनाकर उसे चाँदनी में रखते हैं, ताकि वह अमृत से युक्त हो जाए।

2. Sharad Purnima Puja Vidhi, वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी रहस्य

धार्मिक महत्व के साथ-साथ, शरद पूर्णिमा का विधान आयुर्वेद और ज्योतिष में गहरे वैज्ञानिक आधार रखता है:

(क) औषधीय गुणों से युक्त चन्द्र किरणें

  • आयुर्वेदिक मत: आयुर्वेद के अनुसार, शरद ऋतु में पित्त (शरीर की गर्मी) का प्रकोप बढ़ जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, और उसकी शीतल किरणें शरीर के पित्त दोष को शांत करने, तनाव कम करने और पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करती हैं।
  • रावण का अभ्यास: ऐसा माना जाता है कि लंकाधिपति रावण भी अपनी पुनर्योवन शक्ति को बढ़ाने के लिए शरद पूर्णिमा की रात में दर्पण के माध्यम से चन्द्र किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण करता था।

(ख) Sharad Purnima Puja Vidhi और खीर का वैज्ञानिक आधार

चाँदनी में खीर रखने की परंपरा के पीछे भी एक तर्कसंगत कारण है:

  1. ऊर्जा अवशोषण: खीर में चावल (कार्बोहाइड्रेट) और दूध (लैक्टोज) होता है। ये दोनों ही तत्व चंद्रमा की ऊर्जा और शीतलता को अवशोषित करने में सहायक होते हैं।
  2. बैक्टीरिया का नाश: शरद पूर्णिमा से वर्षा ऋतु का अंत और शीत ऋतु का आरंभ होता है। वर्षा के बाद कीटाणुओं की अधिकता होती है। चंद्रमा की किरणें, जिनमें पराबैंगनी (Ultra Violet) और इन्फ्रारेड (Infrared) किरणें संतुलित रूप में होती हैं, खीर को रात भर सुरक्षित रखने में और उसके औषधीय गुणों को बढ़ाने में मदद करती हैं।
  3. स्वास्थ्य लाभ: अगली सुबह इस खीर का सेवन करने से आँखों की रोशनी, साँस की बीमारियों और त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।

(ग) ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष में चंद्रमा को मन, माता, धन और भावनाओं का कारक माना जाता है। इस दिन चंद्रमा का पूर्ण होना कुंडली में कमजोर चंद्रमा वाले जातकों के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस रात चंद्र देव की पूजा करने से मानसिक कष्ट दूर होते हैं और मन को शांति मिलती है। जिन व्यक्तियों का चन्द्र कमजोर हो उन्हें पूरी रात चंद्रमा के किसी मन्त्र का जाप करना चाहिए |

3. Sharad Purnima Puja Vidhi और व्रत का सम्पूर्ण विधान

शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन करने से माँ लक्ष्मी और चंद्र देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

व्रत और पूजा की तैयारी:

  1. ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में या घर पर ही गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें।
  2. संकल्प: स्वच्छ वस्त्र धारण कर, मन में व्रत और पूजा का संकल्प लें।
  3. सजावट: पूजा स्थल को साफ कर, चावल के आटे से अल्पना (रंगोली) बनाएं और दीयों से घर को सजाएँ।
  4. देव स्थापना: चौकी पर भगवान विष्णु (या श्रीकृष्ण), माँ लक्ष्मी और चंद्र देव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

पूजन विधि:

  1. देवों का आह्वान: भगवान विष्णु/कृष्ण और माँ लक्ष्मी का आवाहन कर उन्हें षोडशोपचार (16 प्रकार की सामग्री) से पूजन करें।
  2. खीर निर्माण: गाय के दूध में चावल, चीनी और मेवे डालकर खीर तैयार करें।
  3. निशिता काल में पूजा: मध्यरात्रि (निशिता काल) के समय माँ लक्ष्मी के श्री सूक्त और लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें।
  4. चंद्र पूजा: चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर, उन्हें दूध और जल मिश्रित अर्घ्य दें।
  5. खीर का अर्पण: खीर का भोग लगाने के बाद, उसे एक साफ और पतले कपड़े से ढककर खुले आसमान के नीचे (चाँदनी में) रखें।
  6. जागरण: रात भर भजन-कीर्तन करें, द्यूत क्रीडा (शर्त लगाना या जुआ खेलना) करें—जो प्रतीकात्मक रूप से लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जोखिम लेने को दर्शाता है।

व्रत का पारण:

अगले दिन सुबह, चाँदनी में रखी हुई अमृतमयी खीर को प्रसाद के रूप में पहले परिवार में बाँटें और फिर स्वयं ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

4. शरद पूर्णिमा व्रत कथा: अधूरा व्रत का परिणाम

इस पावन पर्व से जुड़ी एक प्रचलित कथा है, जो व्रत को पूर्ण करने के महत्व को बताती है:

प्राचीन काल में एक नगर में एक साहूकार रहता था, जिसकी दो पुत्रियाँ थीं। दोनों ही पूर्णिमा का व्रत रखती थीं।

  • बड़ी पुत्री पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से पूरा व्रत करती थी।
  • छोटी पुत्री व्रत करती तो थी, किन्तु वह अधूरा रखती थी और संध्या होते ही भोजन कर लेती थी।

समय के साथ दोनों पुत्रियों का विवाह हुआ। बड़ी पुत्री को स्वस्थ और सौभाग्यशाली संतानें हुईं, जबकि छोटी पुत्री की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं। इसे ज्योतिष शास्त्र में मृतवत्सा योग कहते हैं |

दुखी होकर छोटी पुत्री ने कई पंडितों को बुलाकर अपनी विपदा का कारण पूछा। पंडितों ने बताया, तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, यह उसी का दोष है। यदि तुम पूर्णिमा का विधि-विधान से पूर्ण व्रत करोगी, तभी तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।”

छोटी पुत्री ने पंडितों के कहने पर पूर्णिमा का पूरा व्रत रखा। कुछ समय बाद उसे पुत्र हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने अपने मृत पुत्र को एक पीढ़े पर लिटा दिया और उसे एक कपड़े से ढक दिया।

उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और कहा, “दीदी! तुम इस पीढ़े पर बैठ जाओ।” जब बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने लगी, तो उसके वस्त्र मृत शिशु को छू गए। वस्त्र छूते ही शिशु जीवित होकर रोने लगा!

यह देख बड़ी बहन क्रोधित हुई और बोली, “तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी! मेरे बैठने से शिशु मर जाता!”

तब छोटी बहन ने अपनी बहन से कहा, यह तो पहले से ही मरा हुआ था। यह तुम्हारे पुण्य और पूर्ण व्रत के प्रताप से जीवित हुआ है। मैं अधूरा व्रत रखती थी, उसी दोष से मेरी संतानें मर जाती थीं।”

इस घटना के बाद, छोटी बहन ने पूरे नगर में यह बात कहलाई कि सभी लोग पूर्णिमा का व्रत पूरी निष्ठा और विधि-विधान से करें।

5. उपसंहार

शरद पूर्णिमा हमें स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक जागृति का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में पूर्णता और समर्पण का क्या महत्व है। चाहे आप माँ लक्ष्मी की कृपा चाहते हों या भगवान कृष्ण के दिव्य प्रेम में लीन होना चाहते हों, यह रात अपनी दिव्य ऊर्जा से हर कामना को पूरा करने की शक्ति रखती है।

इस साल, आप भी रात भर जागकर, भक्ति में लीन होकर, चंद्रमा की अमृतमयी किरणों को अपने जीवन में समाहित करें और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।

Sharad Purnima Puja Vidhi औरअक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. शरद पूर्णिमा को ‘कोजागर पूर्णिमा’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: ‘कोजागर’ शब्द संस्कृत के को जागर्ति’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है कौन जाग रहा है?”। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और यह देखने के लिए भक्तों के घरों के आसपास घूमती हैं कि कौन जागकर उनकी पूजा और स्मरण कर रहा है। जो भक्त रातभर जागकर आराधना करते हैं, उन्हें माँ लक्ष्मी धन-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इसी कारण इसे कोजागर पूर्णिमा कहते हैं।

2. शरद पूर्णिमा की खीर को चाँदनी में क्यों रखा जाता है? इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण है?

उत्तर: खीर को चाँदनी में रखने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं।

  • धार्मिक कारण: माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है। खीर अमृत को सोख लेती है।
  • वैज्ञानिक कारण: आयुर्वेद के अनुसार, इस रात चंद्रमा की किरणें अत्यधिक शीतल और औषधीय गुणों से युक्त होती हैं। खीर में मौजूद दूध और चावल चंद्रमा की इन विशेष ऊर्जाओं को अवशोषित करते हैं। यह खीर पित्त दोष को शांत करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और श्वसन रोगों में लाभ पहुँचाने का कार्य करती है।

3. शरद पूर्णिमा की रात जागरण करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर: जागरण (रातभर जागना) करना कोजागर पूजा का मुख्य विधान है। यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है:

  1. माँ लक्ष्मी की कृपा: रातभर जागकर पूजा करने से भक्त देवी लक्ष्मी के आगमन के लिए अपनी तत्परता दिखाते हैं, जिससे उन्हें देवी का धन और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  2. ऊर्जा का अवशोषण: ज्योतिष और स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार, पूर्णिमा की रात चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी कम होती है। रातभर जागकर चाँदनी में रहने से शरीर चंद्रमा की शीतल और सकारात्मक ऊर्जा को सीधे अवशोषित करता है, जो मन और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

4. शरद पूर्णिमा पर मुख्य रूप से किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?

उत्तर: शरद पूर्णिमा पर मुख्य रूप से तीन देवों की पूजा का विधान है:

  1. माँ महालक्ष्मी: धन और ऐश्वर्य की देवी।
  2. चंद्र देव: इस दिन 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण इनकी विशेष पूजा की जाती है।
  3. भगवान श्रीकृष्ण (या भगवान विष्णु): रास लीला और सृष्टि के पालक होने के कारण।

5. क्या शरद पूर्णिमा का व्रत अधूरा छोड़ने पर कथा में बताई गई समस्या हो सकती है?

उत्तर: शरद पूर्णिमा की व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि किसी भी धार्मिक व्रत या कार्य को श्रद्धा और पूरे विधान के साथ करना चाहिए। कथा का सार यही है कि अधूरा या खंडित व्रत करने से उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता और जीवन में बाधाएँ आ सकती हैं। इसलिए, व्रत करने का संकल्प लें तो उसे पूर्ण निष्ठा के साथ पूरा करना चाहिए।

6. शरद पूर्णिमा पर खीर के अलावा और कौन सा विशेष भोग लगाना चाहिए?

उत्तर: खीर के अलावा, माँ महालक्ष्मी और भगवान विष्णु को भोग लगाने के लिए आप निम्नलिखित चीजें भी शामिल कर सकते हैं:

  • पान का बीड़ा (ताम्बूल)
  • कमल का फूल
  • मखाना
  • सफेद रंग की मिठाई
  • फल (जैसे केला, सिंघाड़ा)

इन्हें भी देखें :-

जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?

जानें कैसे कराएँ ऑनलाइन पूजा ?

श्री मद्भागवत महापूर्ण मूल पाठ से लाभ

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top