शुक्र की महादशा का फल
Shukra Mahadasha Fal – शुक्र महादशा का साधारण फल – शुक्र की महादशा में जातक को स्त्री, संतान, धन, समृद्धि और आभूषण वस्त्र आदि से सुख की प्राप्ति होती है | राज द्वार से सम्मान की वृद्धि होती है | विद्या लाभ, गान और नृत्य आदि में मन लगाने वाला, शुभ स्वभाव तथा दान आदि में अभिरुचि रखने वाला, एवं क्रय विक्रय में चतुर होता है | शुक्र की दशा में वाहन, पुत्र और पूर्व संचित धन आदि से सुख प्राप्त होता है, परंतु निर्बल शुक्र की दशा में घर में झगड़ा, बात प्रकोप जनित रोगों से निर्बलता, चित्त में संताप, निम्न जनों से कभी-कभी विरोध और मित्र आदि की चिंता होती है | शुक्र की दशा का यह साधारण फल है | शुक्र की अन्यान्य स्थिति के अनुसार फल का विवरण नीचे लिखा जाता है |
विशेष फल (Shukra Mahadasha Fal)
परम पूज्य शुक्र की दशा में स्त्री पुत्र और धन का सुख उत्तम वस्त्र तथा भोजन आदि की प्राप्ति होती है | चित्त में विलासिता एवं जातक भोगी होता है | उच्च स्थान में स्थित शुक्र की महादशा में स्त्री संग से धन का नाश, धर्म विरुद्ध कामों में रुचि रखने वाला, पिता को और भाई को दुख, और सिरो व्यथा होती है | परंतु राजा से सम्मान पाता है | आरोही शुक्र की महादशा में वस्त्र अलंकार अन्न और सम्मान की प्राप्ति होती है परन्तु माता को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है | इस अवधि में जातक पर स्त्री गामी होता है | अवरोही शुक्र की दशा में प्रचंड वेश्या गमन, स्त्री पुत्र और संबंधियों से मतभेद, हृदय शूल तथा स्त्री प्रसंग जनित रोग होते हैं |
परम नीच शुक्र की दशा में रोग पीड़ा से संताप, कार्य में असफलता, चित्त में भ्रांति और स्त्री पुत्र आदि से वंचित होता है | मूल त्रिकोण में स्थित शुक्र की दशा में किसी बड़े पद की प्राप्ति, क्रय-विक्रय द्वारा उन्नति, किसी स्त्री द्वारा धन की प्राप्ति, कीर्ति की ख्याति एवं विज्ञान की जानकारी होती है | स्वगृही शुक्र की महादशा में परोपकारी और स्त्री, पुत्र, धन, मित्र एवं ऐश्वर्य से सुखी, गौरवशाली तथा सर्वदा सुख भोग करने वाला होता है | मित्र राशि में स्थित शुक्र की महादशा में कलाओं का जानने वाला, परोपकारी और कुआं तालाब बगीचा इत्यादि का निर्माण करने वाला तथा दुष्ट जनों को दंड देने वाला, गुणी एवं आदर्श होता है |
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अति मित्र ग्रह शुक्र की दशा में राजा से सुखी और सम्मानित, राजसी आडंबर युक्त तथा घोड़ा हाथी ग्राम इत्यादि से सुख प्राप्त होता है | उसके यहां वृती आदि का समूह रहता है | समगृही शुक्र की महादशा में प्रमेह, गुल्म और नेत्रों तथा गुप्त मार्ग के रोग से पीड़ा होती है | राजा, चोर और अग्नि का भय एवं थोड़ा सुख होता है | परंतु अपने नाम से कोई पुस्तक आदि प्रकाशित करता है | शत्रु गृही शुक्र की दशा में स्त्री पुत्र की मृत्यु, धन की हानि और राज्य से भय होता है | ऐसे जातक पाप कर्म में निरत रहते हैं और उसी में सुख अनुभव करता है | अति शत्रु गृही शुक्र की महादशा में घर में झगड़े से शरीर में खिन्नता, पुत्र स्त्री और धन इत्यादि की हानि तथा प्लीहा, ग्रहणी एवं नेत्र रोग आदि से पीड़ा होती है |
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उच्च राशि में स्थित ग्रह के साथ शुक्र रहने से उसकी महादशा में राज्य की उन्नति, युद्ध में विजय, एवं अपने विभाग का नायक तथा भूषण वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, मनुष्य से ढोए जाने वाला वाहन तथा बाजा इत्यादि राजसी आडंबर से घोषित होता है | नीच ग्रह से युक्त शुक्र की महादशा में पाप कर्म, अपवाद से कलंकित और दुखी होता है | यदि शुक्र शुभ ग्रहों के साथ हो तो उसकी महादशा में पुत्र और मित्र आदि से युक्त, राजा से पूज्य बहुत से हाथी घोड़ों से सुसज्जित तथा वाहन एवं रत्न आदि से शोभित होता है |
और यदि पाप ग्रह से युक्त शुक्र की महादशा चल रही हो तो उसमे स्थान से पतन, बन्धु जनों का विरोधी, आचार विचार से कलह प्रिय और कृषि भूमि तथा स्त्री एवं संतान आदि से रहित होता है | वह स्वधर्म विरुद्ध कार्य करता है | सूर्य के साथ शुक्र के रहने से उसकी दशा में नाना प्रकार की आपत्ति होती है | रोग के उद्वेग से दुखी रहता है | जीर्ण एवं टूटे-फूटे मकानों में वास और स्त्री एवं भाइयों की मृत्यु होती है |
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शुभ ग्रहों से दृष्ट शुक्र की महादशा में धन एवं वस्त्र आदि का लाभ करने वाला, राज्य से सम्मानित, मनुष्यों पर अधिकार रखने वाला और स्त्री पुत्र मित्र आदि से सुखी एवं कांति मान होता है | पाप ग्रहों से दृष्ट शुक्र की महादशा में जातक को सर्वदा दुख, मान एवं अर्थ की हानि, पद से पतन, विदेश वास, कर्म हीनता और स्त्रियों से झगड़ा होता है | वक्री शुक्र की महादशा में राजा से अनेक प्रकार का सम्मान, राजसी आडंबर अर्थात मृदंग भेरी आदि वाजों से सुसज्जित और नाना प्रकार के वस्त्र आभूषण की प्राप्ति होती है |
उच्च नवांश में स्थित यदि कुंडली में नीच का शुक्र है और वह नवांश में उच्च राशि में स्थित है तो उसकी दशा में कृषि, पृथ्वी और वाणिज्य से धन-धान्य की वृद्धि होती है | लग्न कुंडली में शुक्र उच्च का हो किंतु नवांश कुंडली में नीच राशि में स्थित हो तो उसकी महादशा में राज्य, गृह और पद आदि का नाश तथा बड़ा कष्ट होता है |
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