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Shattila Ekadashi Vrat Katha

षटतिला एकादशी: भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का अवसर

Shattila Ekadashi Vrat Katha – षटतिला एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

Shattila Ekadashi Vrat Katha
Shattila Ekadashi Vrat Katha

पदम् पुराण के अनुसार षटतिला एकादशी व्रत के बारे में विधि पूर्वक बताया गया है | नीचे इस व्रत की सही विधि बताई गयी है |

युधिष्ठिर ने पूछा – हे कृष्ण ! हे आदिदेव ! हे जगतपति माघ मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी होती है | उसके लिए क्या विधि है, तथा उसका फल क्या है | महाप्रज्ञ कृपा करके यह सब बातें बताइए |

श्री भगवान बोले – नृपश्रेष्ठ ! सुनो माघ मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, वह विख्यात है | जो सब पापों का नाश करने वाली है | अब तुम षटतिला की पाप हारिणी कथा सुनो, जिसे मुनि श्रेष्ठ पुलस्त्य ने दालभ्य से कहा था |

दालभ्य ने पूछा – ब्राह्मन ! मृत्यु लोक में आए हुए प्राणी प्रयाप कर्म करते हैं | उन्हें नर्क में न जाना पड़े, इसके लिए कौन सा उपाय है ? बताने की कृपा करें |

षटतिला एकादशी व्रत की विधि क्या है?

पुलस्त जी बोले – महाभाग ! तुमने बहुत बात पूछी है, बतलाता हूं सुनो | माघ मास आने पर मनुष्य को चाहिए कि वह नहा धोकर पवित्र हो इंद्रियों को संयम में रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली आदि बुराइयों को त्याग दे |  भगवान का स्मरण करके जल से पैर धोकर भूमि पर पड़े हुए गोबर का संग्रह करे | उसमें तिल और कपास मिलकर 108 पिंडीकाएं बनाए |

फिर माघ में जब आद्रा या मूल नक्षत्र आए तब कृष्ण पक्ष की एकादशी करने के लिए नियम ग्रहण करे | स्नान करके पवित्र हो शुद्ध भाव से देवाधिदेव श्री विष्णु की पूजा करे | नैवेद्ध  आदि सामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले देव देवेश्वर श्रीहरि की हरि की पूजा करे | तत्पश्चात् भगवान का स्मरण करके बारंबार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए नारियल आदि से भगवान को विधि पूर्वक अर्घ्य दे | अन्य सब सामग्रियों के अभाव में 100 सुपरियों द्वारा भी पूजन और अर्घ्य दान किया जा सकता है |

अर्घ्य  देने का मंत्र इस प्रकार है :- Shattila Ekadashi Vrat Katha

अर्थ – हे सच्चिदानंद  स्वरूप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु है | हम आश्रयहीन जीवन के आप आश्रय दाता हैं | हे पुरुषोत्तम ! हम संसार समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइए | हे कमलनयन ! आपको नमस्कार है | सुब्रमण्यम ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है | हे जगतपते ! आप लक्ष्मी जी के साथ मेरा दिया हुआ अर्घ्य दान स्वीकार करें |

तत्पश्चात ब्राह्मण की पूजा करें | उसे जल का घड़ा दान करें | साथ ही छाता, जूता और वस्त्र भी दान करते समय ऐसा कहें, इस दान के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों | अपनी शक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गाय का दान करें | श्रेष्ठ व्रतकर्ता को चाहिए कि वह तिल से भरा हुआ पात्र भी दान करे | उन तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्षों तक वह स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित होता है | तिल से स्नान करें, तिल का उबटन लगायें, तिल से होम करें, तिल मिलाया हुआ जल पियें, तिलका दान करें और तिल को भोजन के काम में लें | इस प्रकार छह कामों में तिल का उपयोग करने से यह एकादशी षटतिला कहलाती है जो सब पापों का नाश करने वाली है |

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न – Shattila Ekadashi Vrat Katha

षटतिला एकादशी कब होती है?

यह षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होती है।

षटतिला एकादशी का महत्व क्या है?

एकादशी एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो व्रत करने वालों को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को धन, वैभव, संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए?

इस षटतिला एकादशी व्रत में केवल तिल से बने पकवान खाना चाहिए। इनमें तिल के लड्डू, तिल के बने पूरी, तिल के हलवे आदि शामिल हैं।

षटतिला एकादशी व्रत का पारण कब करना चाहिए?

एकादशी व्रत का पारण द्वादशी के दिन करना चाहिए। पारण के समय स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। फिर तिल से बने पकवान खाकर व्रत का पारण करें।

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