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parvati katha

जगन्माता पार्वती जी का तपोव्रत (parvati katha)

parvati katha – जगन्माता पार्वती जी का तपोव्रत

parvati katha – पिछले लेख में हमने  \” हनुमानजी का सेवाव्रत \” इस सन्दर्भ में संक्षेप में चर्चा की थी इस लेख में  \” जगन्माता पार्वती जी का तपोव्रत \” के सन्दर्भ में सक्षेप में चर्चा करेंगे |  

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संस्कृत वांग्मय में भगवती पार्वती के तपोव्रत का वर्णन विस्तार से किया गया है | शिव पुराण में parvati katha आती है कि ब्रम्हाजी के आदेसनुसार भगवान शंकर के लिए वरन करने के लिए पार्वती ने कठोर ताप किया था | ब्रम्हा के आदेशोपरांत महर्षि नारद ने पार्वती को पंच्चाक्षर मन्त्र – शिवाय नमः – की दीक्षा दी | दीक्षा लेकर पार्वती सखियों के साथ तपोवन में जाकर कठोर तपस्या करने लगीं | उनके कठोर तप का वर्णन शिवपुराण में इस प्रकार आया है –

हित्वा मतान्यनेकानि वस्त्राणी विविधानि च |

वल्कलानी धृतान्याशु मौज्जीं बद्ध्वा तु शोभनाम ||

हित्वा हारं तथा चर्म मृगस्य  परमं धृतम |

जगाम तपसे तत्र गंगावतरण प्रति ||

( रुद्रसंहिता पार्वतीखंड २२ | २९ | ३० )

पार्वती जी की व्रत की तैयारी :-

माता पिता की आज्ञा लेकर पार्वती ने सर्वप्रथम राजसी वस्त्रों तथा अलंकारों का परित्याग किया | उनके स्थान पर कटि में मूँज की मेखला धारण कर वल्कल वस्त्र पहन लिया | हार को गले से निकालकर मृगचर्म धारण किया और गंगावतरण नामक क्षेत्र में सुन्दर वेदी बनाकर वे तपस्या में बैठ गयीं |

पार्वती की उग्र तपस्या का वर्णन शिवपुराण में पुनः इस प्रकार किया गया है –

ग्रीष्मे च परितो वहिन्न प्रज्वलन्तं दिवानिशम |

कृत्वा तस्थौ च तन्मध्ये सततं जपती मनुम ||

सततं चैव वर्षासु स्थण्डिले सुस्थिरासना |

शीलपृष्ठे च संसिक्ता बभूव जलधारया ||

शीते जलांतरे शश्वतस्थौ सा भक्ति तत्परा |

अनाहारातपत्तत्र नीहारेषु निषासु च ||

एवं तपः प्रकुर्वाणा पञ्चाक्षरजपे रता |

दाध्यौ शिवम् शिवा तत्र सर्वकामफलप्रदम ||

( रुद्रसंहिता पार्वतीखण्ड 22 | 40-43 )

भाव यह है कि मन और इन्द्रियों का निग्रहकर पार्वती जी ग्रीष्मकाल में अपने चारों ओर अग्नि जलाकर बीच में बैठ गयीं तथा ऊपर से सूर्य के प्रचण्ड ताप को सहन करतीं  हुईं  तन को तपातीं रहीं | वर्षाकाल में वे खुले आकाश के नीचे शिलाखण्ड पर बैठ कर अहिर्निश जलधारा से शरीर को सींचतीं रहीं | भयंकर शीतऋतु में जल के मध्य रत दिन बैठकर उनहोंने कठोर तप किया | इस प्रकार निराहार रहकर पार्वती ने पंचाक्षर मन्त्र का जप परते हुए सकल मनोरथ पूर्ण करने वाले भगवान सदाशिव के ध्यान में मन को लगाया |

श्री तुलसीदास द्वारा तप का वर्णन :-

महाकवि तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में (parvati katha) पारवती के तप का वर्णन अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है | सायानी पारवती को देखकर माता मैना और पिता हिमालय को पुत्री के विवाह की चिंता हुई | इतने में महर्षि नारद वहां आ गए | नारद जी को घर में आया देखकर राजा रानी ने कन्या के भविष्य के बारे में पूछा –

त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ तुम्ह गति सर्वत्र तुम्हारि  |

कहहु सुता के दोष गुन मुनिवर हृदय विचारि ||

parvati katha में नारद जी की भविष्यवाणी :-

नारदजी ने पार्वती का हांथ देखकर जो भविष्यवाणी की वो इस प्रकार है —

कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु वानी | सुता तुम्हारि सकल गुन खानी ||

सुन्दर सहज सुशील सयानी | नाम उमा अम्बिका भवानी ||

सब लच्छन संपन्न कुमारी | होइहि संतत पियहि पिआरी ||

सदा अचल एही कर अहिवाता | एहि तें जसु पैहहिं पितु माता ||

हिमवान ने बेटी के अवगुण पहले पूछे थे  \’कहहु सुता के दोष गुन\’ किन्तु नारदजी ने पहले पार्वती के गुणों का वर्णन किया | नारदजी चतुर और मनोवैज्ञानिक वक्ता हैं | अतः माता-पिता से पार्वती के दिव्य गुणों की चर्चा करते हैं | सद्गुणों के एक लम्बी सूची नारदजी ने प्रस्तुत की किन्तु जब हिमवान ने पूछा कि महाराज कुछ दोष हों तो वो भी बतलादें | पुनः नारदजी ने कहा – \’ सुनहु जे अब अवगुण दुइ चारी \’ – दो चार अवगुण भी हैं उन्हें भी सुनलो —

सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी | सुनहु जे अब अवगुण दुइ चारी ||

जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष |

अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त अस रेख ||

नारदजी ने कहा कि आपकी पुत्री तो सर्वगुणसम्पन्न है किन्तु इसका पति जटाजूटधारी, नग्न तथा अमंगलवेश वाला होगा | नारदजी की बात सुनकर माता-पिता तो उदास हो गए किन्तु पार्वती को आतंरिक प्रसन्नता हुई —

सुनि मुनि गिरा सत्य जियं जानी | दुःख दंपतिहि उमा हरषानी ||

नारदहूँ यह भेद न जाना | दसा एक समुझब बिलगाना ||

पिता-माता का उदास होना :-

माता-पिता की उदासी का कारण यह है कि सर्वगुणसम्पन्न कुमारी को ऐसा अमंगलवेशधारी पति मिलेगा और पार्वती इसलिए प्रसन्न हैं कि हमें भगवान शिवजी मिलेंगे | राजा रानी की उदासी को दूर करते हुए नारदजी ने आगे स्पष्ट कर दिया —

जे जे वर के दोष वखाने | ते सब शिव पहिं मैं अनुमाने ||

जौं विवाहु शंकर सन होई | दोषउ गुन सम कह सब कोई ||

नारदजी ने कहा जिन दोषों का वर्णन मेने किया वे सभी शंकर जी में हैं और पार्वती का विवाह यदि भगवान शंकर से हो गया तो ये दोष भी गुण में परिणित हो जायेंगे क्योंकि समर्थवान को दोष नहीं लगता —

समरथ कहुं नहीं दोष गुसाईं | रवि पावक सुरसरि की नाईं ||

और अंत में नारदजी ने यहां तक कह दिया कि शिव को छोड़कर संसार में पार्वती के लिए दूसरा वर है ही नहीं किन्तु आशुतोष होने पर भी शंकरजी दुराराध्य हैं | यानि शिवजी कठोर उपासना से प्रसन्न होते हैं | उनको प्राप्त करने का एक ही उपाय है कि पार्वती वन में जाकर कठोर तप करें —

संभु सहज समरथ भगवाना | एहि विवाह सब बिधि कल्याना ||

दुराराध्य पै अहहिं महेसू | आसुतोष पुनि किऐं कलेसू ||

जौं तप करै कुमारि तुम्हारी | भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ||

हिमालय के गहन वन में तपस्या (parvati katha)

नारदजी की प्रेरणा से माता-पिता की आज्ञा लेकर पार्वती जी हिमालय के गहन वन में तपस्या करने चलीं जातीं हैं | उनकी कठोर तपस्या का वर्णन श्रीरामचरित मानस में विस्तार से किया गया है –

उर धरि उमा प्रानपति चरना | जाइ विपिन लागी तप करना ||

अति सुकमारि न तन तप जोगू | पति पद सुमिरि तजेउ सब भोगू ||

नित नव चरण उपज अनुरागा | बिसरी देह तपहिं मन लागा ||

सम्बत सहस मूल फल खाए | सागु खाए सत बरष गवाए ||

कछु दिन भोजन बारि बतासा | किए कठिन कछु दिन उपवासा ||

बेल पाती महि परइ सुखाई | तीन सहस सम्बत सोइ खाई ||

पुनि परिहरे सुखानेउ परना | उमहि नाम तब भयउ अपरना ||

देखि उमहि तप खीन शरीरा | ब्रम्हगिरा भै गगन गम्भीरा ||

भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिराजकुमारि |

परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ||

पार्वती जी के तप में हठ से अधिक शिवपद में आतंरिक अनुराग है अतः शिवजी के चरणों का ध्यान करते हुए उनहोंने सम्पूर्ण भोगों तथा सुख के साधनों का परित्याग कर दिया |

क्या हुयी भविष्यवाणी :-

ब्रम्हवाणी ने एक विचित्र बात कह दी – अब तक ऐसी तपस्या किसी धीर, मुनि, ज्ञानी ने नहीं की | जिनकी तपस्या की सराहना स्वयं ब्रम्हवाणी करे भला उनकी प्रसंसा सामान्य ब्यक्ति क्या कर सकता है ?

अस तपु काहुं न कीन्ह भवानी | भए अनेक धीर मुनि ज्ञानी ||

अर्थात तपस्वियों की – व्रतियों की अग्रिम पंक्ति में पार्वती प्रथम स्थान पर सुपूजित हैं | उनका तपो व्रत पातिव्रत्य का आदर्श है तथा सर्वथा अनुकरणीय है | 

इस लेख में हमने \” जगन्माता पार्वती जी का तपोव्रत \” इस सन्दर्भ में संक्षेप में चर्चा की थी अगले लेख में  \” भक्तराज प्रह्लाद – शीलव्रत के आदर्श  \” के सन्दर्भ में सक्षेप में चर्चा करेंगे |

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