jyotish shastr ज्योतिष शास्त्र
ज्योतिष शास्त्र (jyotish shastr) हमारे ऋषि मुनियों की देन है | हम पर अशीम कृपा कर हमारे ऋषि मुनियों ने लगातार साधना करके इस खगोल की रचना से हमें अवगत कराया | खगोल में होने वाली घटनाओं को लिपिबद्ध कर हमें उपहार स्वरूप दिया |
आज हम तिथि, माह, पंचक, त्यौहार, पर्व और हमारे जीवन में होने वाली शुभ अशुभ घटनाएँ जो देख और समझ पा रहे हैं, वो सब हमारे ऋषि मुनियों की देन है | हम सदा उनके आभरी रहेंगे | जिन ऋषि मुनियों ने हमें ज्योतिष शास्त्र जैसे ग्रन्थ दिए हैं | हम उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं |
यत्पिण्डे तत्वब्रम्हाण्डे के आधार पर आज से हजारों वर्ष पूर्व भारतीय मनीषियों ने अपनी अन्तर्मुखी सूक्ष्म प्रज्ञा शक्ति द्वारा गहन पर्यवेक्षण करके यह निष्कर्ष निकला था, कि प्रत्येक वस्तु का मूलाधार सूक्ष्म परमाणु है | तथा असंख्य परमाणुओं का समाहार स्वरूप निर्मित मानव शरीर का आकार आकाशीय सौर जगत से न केवल मिलता-जुलता ही है, अपितु आकाशचारी गृह नक्षत्रों का मानव शरीरस्थ सूक्ष्म सौर जगत से अन्योन्य सम्बन्ध भी रखता है |
और यही कारण है कि आकाशीय ग्रहो की स्थिति के अनुसार पृथ्वीतलवासी मनुष्य के जीवन में अहिर्निशि बिभिन्न प्रकार के परिवर्तन आते रहते हैं |
जीवों पर ग्रहों का प्रभाव
मनुष्य जिस समय पृथ्वी पर जन्म लेता है उस समय भचक्र (आकाश -मण्डल ) में विभिन्न ग्रहों की जो स्थिति होती है उसका प्रभाव जातक के जीवन को निरंतर प्रभावित करता रहता है |
जन्म कुण्डली जातक के जन्म समय में आकाश मण्डल में विभिन्न ग्रहो की स्थिति की ही परिचायक होती है | यदि उसका गहन अध्यन किया जाय तो जातक के जीवन में क्षण क्षण पर घटने वाली सभी घटनाओं का सम्यक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है |
jyotish shastr के विभिन्न अंगो में गणित तथा फलित का स्थान मुख्य है | गणित के माध्यम से जन्म के समय गणित द्वारा ग्रहों की सही जगह पर स्थापना की जाती है जिसे हम कुण्डली कहते हैं | जैसे लग्न कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, होरा, द्रेष्काण चक्र, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, त्रंशाश आदि चक्रों का निर्माण होता है | तत्पश्चात इसी गणित के माध्यम से ग्रह स्पष्ट, विमशोत्तरी दशा, चार दशा आदि का ज्ञान किया जाता है |
गणित द्वारा जानकारी (jyotish shastr)
गणित द्वारा सभी प्रकार की रचना के बाद फलित का खंड आरम्भ होता है | फलित ज्योतिष द्वारा मानव जीवन पड़ने वाले आकाशीय ग्रहो की गतिबिधियों के प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है | जैसे जातक का बाल्यकाल कैसा व्यतीत होगा | शिक्षा का स्तर कैसा रहेगा, जातक को किस विषय में शिक्षा ग्रहण करना चाहिए | रोजगार में नौकरी होगी या व्यापार करना चाहिए और व्यापार करें तो कौनसा व्यापार करना चाहिए | विवाह कब होगा वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा, दाम्पत्य सुख होगा कि नहीं होगा | संतान सुख में संतान कब तक होगी, संतान सुख होगा की नहीं होगा | धन-संपत्ति का सुख होगा की नहीं और होगा तो कैसा रहेगा तथा स्वास्थ, दुर्घटना आदि मानव जीवन से जुडी सभी शुभ तथा अशुभ घटनाओं का निष्कर्ष फलित से निकला जाता है |
हजारो वर्षो के अनुभवों तथा अन्वेषणों के आधार पर यह विद्या अब एक सुनिश्चित विज्ञान का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है | तथा प्राणी मात्र के लिए परम उपयोगी सिद्ध हुई है |
ग्रह वर्णन
ज्योतिष शास्त्र में नों ग्रह, बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र कहे गए हैं | और इन नों ग्रहों को बारह राशियों तथा सत्ताईस नक्षत्रो में स्थापित किया गया | सूर्य की राशि सिंह, चन्द्र की कर्क राशि, मंगल की मेष तथा वृश्चिक राशि, बुध की मिथुन और कन्या राशि, गुरु की धनु तथा मीन राशि, शुक्र की वृषभ और तुला राशि, शनि की मकर तथा कुंभ राशि राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है | इसलिए इनकी कोई राशि नहीं है | किन्तु फल देने में राहु-केतु अन्य पांच ग्रहों के सामान ही हैं |
प्रत्येक ग्रह को तीन-तीन नक्षत्रों में स्थापित किया गया | सूर्य के तीन नक्षत्र हैं कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, और उत्तराषाढ़ा, चन्द्र के नक्षत्र रोहणी, हस्त, श्रवण | मंगल के मृगशिरा, चित्रा, धनिष्टा | बुध के अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती | गुरु के पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद | शुक्र के पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी | शनि के पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद | राहु के आद्रा, स्वाती, शतभिषा | और केतु के अश्वनि, मूल, मघा |
बारह भावों से विचार (jyotish shastr)
इसी प्रकार बारह राशियों के अनुसार बारह भावों का निर्माण हुआ | और बारह भावों के अलग- अलग फल बताये गए | जैसे प्रथम भाव से क्या विचारना चाहिए, द्वतीय भाव से तृतीय आदि से प्रथम भाव को लग्न भी कहते हैं, और इस भाव से शरीर, रंग, आकृति, रूप, बल, मष्तिष्क, विवेक, शील, गौरव, स्वभाव आदि | दुसरे भाव् से – धन-धान्य, संपत्ति, कुटुम्ब, मृत्यु, वाणी, जिव्हा, दांया नेत्र, पडोसी, दान, सत्य आदि का विचार करते हैं |
तृतीय भाव् से – छोटे भाई-बहिन, पराक्रम, धैर्य, गुप्त शत्रु, स्वंश सम्बन्धी रोग. यात्रा. लेखन कार्य आदि | चतुर्थ भाव से – भूमि, भवन, वाहन, माता, सुख, अचल संपत्ति, गडा धन, फेफड़े आदि | पंचम भाव से – संतान, विद्या, यश, धर्म, ह्रदय रोग, प्रसन्नता आदि | षष्ठ भाव से – शत्रु, रोग, कर्ज, चिंता, कोट-कचहरी, अपयश, शोक, दुःख, आदि | सप्तम भाव से – जीवन साथी, मित्र, सांझेदारी, दैनिक व्यवसाय, मृत्यु, जननेद्रियाँ आदि |
अष्टम भाव से – आयु, जीवन, कष्ट, अकस्मिक धन लाभ, दुर्घटना, असाध्य रोग आदि | नवम भाव से – भाग्य, धर्म, तीर्थ यात्रा, यश, सन्यास, गुरु, आचार्य आदि | दशम भाव से – पिता, राज्य, कर्म, कारोबार, पद, प्रतिष्ठा, सफलता आदि | एकादश भाव से – आय, लाभ, इच्छा पूर्ति, ज्येष्ठ भ्राता-भगिनी आदि | द्वादश भाव से – व्यय, मोक्ष, शैया सुख, हानि, विदेश, बांया नेत्र आदि का विचार करते हैं |
जन्म कुण्डली का सूक्षम विचार
जन्म कुण्डली के किस भाव में स्थित कौन सा गृह जातक के जीवन पर क्या प्रभाव डालता है, इसके लिए ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्ध, युति,अंश,उच्च-नीचादि स्थिति विंशोत्तरी दशा,चार दशा, तथा तात्कालिक गोचरादि पर विचार कर शुभ अशुभ समय ज्ञात किया जाता है |
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