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krishna janmashtami (श्रीकृष्णजन्माष्टमी)

श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव

इस वर्ष krishna janmashtami श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर लोग दुविधा में हैं कि व्रत किस दिन किया जाय | मित्रो भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को हुआ था | उसी परंपरा के अनुसार हम आज भी इसी तिथि को जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं |

इस वर्ष जन्मोत्सव मनाने का सही मुहूर्त 24/8/2019 गुरुवार को है | इसी दिन सभी विद्द्वानों का मत है, और प्रायः सभी बड़े-बड़े धार्मिक स्थलों पर आज ही मनाया जायेगा |

जानिये कृष्ण जन्म की वैदिक कथा – krishna janmashtami

krishna janmashtami – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा नगरी के कारागार में वासुदेवजी की पत्नि देवकी के गर्भ से षोडश कला सम्पन्न भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था।

इस व्रत में सप्तमी सहित अष्टमी का ग्रहण निषिद्ध है ।

साधारणतया इस व्रत के विषय में दो मत हैं। स्मार्तलोग अर्धरात्रि का स्पर्श होने पर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं, किन्तु वैष्णवलोग सप्त्मी का किंचिन मात्र स्पर्श होने पर द्वतीय दिवस ही उपवास करते हैं।

निम्बार्क सम्प्रादायी वैष्णव तो पूर्व दिन अर्धरात्रि से यदि कुछ पल भी सप्तमी अधिक हो तो भी अष्टमी को न करके नवमी में ही उपवास करते हैं। शेष वैष्णवों में उदयव्यापिनी अष्टमी एवं रोहणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती है।

पूर्ण पुरुषोतम विश्र्वम्भर प्रभु का भाद्रपदमास के अंधकारमय पक्ष – कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के समय प्रादुर्भाव होना निराशा में आशा का संचार स्वरूप है।

श्रीमद्भागवत में कहा गया है –

निशीथे तम उद्भूते जायमाने जनार्दने ।

देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः ।

आविरासीद यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः॥

अर्थात अर्धरात्रि के समय जबकि अज्ञानरूपी अंधकार का विनाश और ज्ञान रूपी चंद्रमा का उदय हो रहा था, उस समय देवरूपिणी देवकी के गर्भ से सबके अंतःकरण में विराजमान पूर्ण पुरुषोत्तम व्यापक परब्रम्ह विश्र्वम्भर प्रभु भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, जैसे कि पूर्वदिशा में पूर्ण चंद्र प्रकट हुआ।

आज के दिन भगवान का प्रादुर्भाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतया उपवास, जागरण एवं विशिष्ट रूप से श्रीभगवान की सेवा – श्रंगारादि का है।

दिन में उपवास और रात्रि में जागरण एवं यथोपलब्ध उपचारों से भगवान का पूजन, भगवत कीर्तन इस उत्सव के प्रधान अंग हैं। श्रीनाथ द्वारा और व्रज (मथुरा- वृन्दावन)- में यह उत्सव बडे विशिष्ट ढंग से मनाया जाता है।

इस दिन समस्त भारतवर्ष के मंदिरों में विशिष्टरूप से भगवानका श्रंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में गली मुहल्लो एवं आस्तिक गृहस्थों के घरों में भी भगवान श्रीकृष्ण की लीला की झांकियाँ सजायीं जातीं हैं, एवं श्री कृष्ण की मूर्ति का श्रंगार करके झूला झुलाया जाता है।

स्त्री पुरुष रात्रि के बारह बजे तक उपवास रखते हैं एवं रात के बारह बजे शंख तथा घण्टों के नांद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है।

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