नवरात्रि का पहला दिन: माँ शैलपुत्री की पूजा विधि, कथा और महत्व
नवरात्रि, जो नौ रातों का एक दिव्य महोत्सव है, हमें एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाता है। यह यात्रा माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के माध्यम से बुराई पर अच्छाई की विजय और आध्यात्मिक जागरण का संदेश देती है। इस पवित्र पर्व का शुभारंभ होता है पहले दिन की देवी माँ शैलपुत्री के पूजन से, जो प्रकृति की अटूट शक्ति और आस्था की दृढ़ता का प्रतीक हैं।
कौन हैं माँ शैलपुत्री? नाम का रहस्य और पौराणिक कथा
‘शैल’ का अर्थ है पर्वत, और ‘पुत्री’ का अर्थ है बेटी। इस प्रकार, माँ शैलपुत्री का नाम ‘पर्वत की बेटी’ है। यह नाम केवल एक परिचय नहीं है, बल्कि उनके जन्म और जीवन की एक महत्वपूर्ण गाथा को दर्शाता है।
माँ शैलपुत्री की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने पूर्व जन्म में वे प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और उनका नाम सती था। सती ने अपनी इच्छा से भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन उनके पिता दक्ष इस विवाह के विरुद्ध थे। एक बार, दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, सिवाय भगवान शिव के। इस अपमान से आहत होकर, सती ने अपने पति के सम्मान की रक्षा के लिए बिना बुलाए यज्ञ में जाने का निर्णय किया।
जब वह अपने पिता के यज्ञस्थल पर पहुँचीं, तो दक्ष ने उनके सामने भगवान शिव का अपमान करना जारी रखा। अपने पति के प्रति घोर अपमान सहन न कर पाने के कारण, सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में स्वयं को भस्म कर दिया। इस हृदयविदारक घटना से दुखी और क्रोधित होकर, भगवान शिव ने तांडव करते हुए दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया।
सती ने अपने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म लिया और पार्वती कहलाईं। अपने इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। उनकी यह दृढ़ता और तपस्या ही उन्हें ‘शैलपुत्री’ (पर्वत की पुत्री) के रूप में प्रतिष्ठित करती है, जो धैर्य और संकल्प का सर्वोच्च प्रतीक है।
दिव्य स्वरूप और गहन प्रतीकात्मकता
माँ शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत ही सौम्य, शांत और दिव्यता से परिपूर्ण है। उनका हर अंग और शस्त्र एक गहरा आध्यात्मिक संदेश देता है:

- कमल का फूल (बाएँ हाथ में): उनके एक हाथ में कमल का फूल है, जो जीवन के संघर्षों और भौतिक दुनिया की दलदल में रहते हुए भी आध्यात्मिक रूप से पवित्र और निर्मल बने रहने का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हम संसार में रहते हुए भी अपनी शुद्धता और नैतिकता को बनाए रख सकते हैं।
- त्रिशूल (दाहिने हाथ में): उनके दूसरे हाथ में त्रिशूल है, जो उनके पति भगवान शिव का भी प्रमुख अस्त्र है। यह त्रिशूल सत्व, रजस और तमस (सृष्टि के तीन गुण) पर नियंत्रण का प्रतीक है। यह हमें यह भी बताता है कि माँ शैलपुत्री तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) की समस्त शक्तियों पर राज करती हैं।
- वृषभ (वाहन): उनका वाहन एक बैल है, जिसे ‘वृषभ’ कहते हैं, इसलिए वे ‘वृषारूढ़ा’ भी कहलाती हैं। बैल को धर्म और न्याय का प्रतीक माना जाता है। यह दर्शाता है कि माँ शैलपुत्री धर्म के मार्ग पर अडिग हैं और अपने भक्तों को भी इसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
नवरात्रि में माँ शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करना हमारी आध्यात्मिक यात्रा का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
- मूलाधार चक्र का जागरण: योग और तंत्र शास्त्र के अनुसार, माँ शैलपुत्री हमारे भीतर स्थित मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। यह चक्र हमारी रीढ़ के सबसे निचले हिस्से में स्थित होता है और यह हमारी स्थिरता, सुरक्षा और आधार का प्रतिनिधित्व करता है। इनकी पूजा करने से यह चक्र जागृत होता है, जिससे हमारे भीतर की सुप्त ऊर्जा सक्रिय होती है और हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हो पाते हैं।
- दृढ़ता और संकल्प की शक्ति: जिस प्रकार पर्वत अपनी जगह पर अटल रहता है, उसी प्रकार माँ शैलपुत्री की पूजा हमें जीवन के हर उतार-चढ़ाव में धैर्य और दृढ़ता बनाए रखने की शक्ति देती है। यह हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक मार्ग हो या सांसारिक जीवन, सफलता केवल तभी मिलती है जब हमारा संकल्प अटल हो।
- सकारात्मकता का संचार: इस दिन की पूजा से व्यक्ति के मन में साहस, आत्मविश्वास और आत्म-निर्भरता का संचार होता है। वे सभी नकारात्मक शक्तियों और भय को दूर कर जीवन में एक नई शुरुआत करने की प्रेरणा देती हैं।
नवरात्रि का पहला दिन: माँ शैलपुत्री की पूजन विधि और मंत्र: कैसे करें माँ की आराधना
नवरात्रि के प्रथम दिन, कलश स्थापना के बाद माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
- शुभ मुहूर्त और तैयारी: सूर्योदय के बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। माँ शैलपुत्री को लाल रंग अति प्रिय है, इसलिए लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- संकल्प: हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें।
- पूजा: माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। उन्हें सिंदूर, अक्षत, फूल, चंदन, और लाल वस्त्र अर्पित करें।
- भोग: शुद्ध घी का भोग लगाएं। यह माना जाता है कि घी का भोग लगाने से व्यक्ति निरोगी रहता है और उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
- मंत्र और आरती: माँ शैलपुत्री के मंत्रों का जाप करें और श्रद्धापूर्वक उनकी आरती उतारें।
माँ शैलपुत्री का बीज मंत्र: ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
ध्यान मंत्र:
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
निष्कर्ष
माँ शैलपुत्री की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाने का पहला कदम है। वे हमें यह सिखाती हैं कि त्याग, तपस्या और दृढ़ संकल्प से ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्रि की यह यात्रा, माँ शैलपुत्री के आशीर्वाद से आरंभ होकर, हमें यह संदेश देती है कि हमारा पहला कदम हमेशा मजबूत, अटूट और आस्था से भरा होना चाहिए।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. माँ शैलपुत्री की पूजा किस दिन की जाती है?
माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। इस दिन कलश स्थापना भी होती है, जिसके साथ ही नौ दिनों के इस पवित्र पर्व का शुभारंभ होता है।
2. माँ शैलपुत्री को किस रंग का वस्त्र या फूल अर्पित करना चाहिए?
माँ शैलपुत्री को लाल रंग अति प्रिय है। उनकी पूजा में लाल रंग के वस्त्र, फूल और सिंदूर का प्रयोग करना बहुत शुभ माना जाता है।
3. माँ शैलपुत्री को क्या भोग लगाना चाहिए?
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री को गाय के शुद्ध घी का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि इससे भक्तों को आरोग्य और रोगमुक्ति का आशीर्वाद मिलता है।
4. माँ शैलपुत्री का वाहन क्या है?
माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है, इसी कारण उन्हें ‘वृषारूढ़ा’ भी कहा जाता है। बैल धर्म और शक्ति का प्रतीक है।
5. क्या माँ शैलपुत्री और माँ पार्वती एक ही हैं?
जी हाँ, माँ शैलपुत्री ही अपने पूर्व जन्म में सती थीं और उन्होंने ही पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म लेकर पार्वती का रूप धारण किया था। वे ही माँ दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं।
इन्हें भी देखें :-
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?