पितृ तर्पण की सम्पूर्ण विधि मन्त्रों सहित
Pitru Tarpan Vidhi – भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्वनि अमावस्या तक पितर पक्ष 16 दिन का होता है इस अवधि में लोग अपने पितरों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हैं | और उनके लिए पिण्ड दान करते हैं | इसे सोलह श्राद्ध भी कहा जाता है | पितर पक्ष पितरों अर्थात पूर्वजों के लिए समर्पित है | इसकी विधि लगभग सभी प्रान्तों में एक जैसी ही है | भाद्रपद पूर्णिमा को पितरों का आवाहन होता है तथा अश्वनि अमावस्या को विदा किया जाता है | इन सोलह दिनों में दूध में तिल, चावल, जौ, मिलाकर स्नान कर गीले वस्त्रों में ही उपरोक्त सामग्री अंजली में लेकर मन्त्रों के साथ देव, ऋषि, यम, पितर और भीष्म तर्पण किया जाता है |
पितर पक्ष का महत्व –
हमारे हिन्दू वेद-शास्त्रों में देव पूजा के साथ पितरों की पूजा का भी विधान है | कहते हैं कि यदि पितर प्रसन्न हों तो देवता भी जल्दी प्रसन्न होते हैं | इसीलिए हमारे मानव धर्म में घर के बड़े वुजुर्गों का आदर सम्मान किया जाता है | मृत्योपरांत देश काल के अनुसार उनका श्राद्ध किया जाता है | इसके बाद पितर पक्ष में तर्पण किया जाता है | शास्त्रों के अनुसार पितरों का तर्पण न किया जाय तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भटकती रहती है |
हमारे ज्योतिष शास्त्र में भी पितर पक्ष को माना जाता है | ज्योतिष में ग्रहों की एक विशेष स्थिति को पितृ दोष माना जाता है | यह दोष काफी हानिकारक होता है | इसके प्रभाव से व्यक्ति सफलता के नजदीक पहुंचकर आखिरी में असफल हो जाता है | संतान उत्पत्ति में तथा संतान सुख में परेशानियां आतीं हैं | धन हानि होती रहती है | यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष है तो उसकी शान्ति अवश्य करानी चाहिए |
जानें पितृ दोष शांति कैसे होती है
श्राद्ध कब करें – (Pitru Tarpan Vidhi)
शास्त्रों के अनुसार जिस तिथि में हमारे प्रियजन का स्वर्गवास हुआ हो पितर पक्ष में उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए | किन्तु यदि आपको उनकी तिथि याद न हो तो पितरमोक्ष अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए | ध्यान रखें जिन व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए | यदि किसी कारणवश अमावस्या को श्राद्ध न कर सकें तो पिताजी के लिए अष्टमी तथा माता जी के लिए नवमी तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है |
पितृ तर्पण की विधि
Pitru tarpan vidhi
प्रथम स्नान
करके गीले वस्त्र धारण किए हुए पूर्वाभिमुख बैठकर मानसिक शुद्धि का मंत्रोचारण
करें ।
ऊॅ अपवित्रः
पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा ।
यः स्मरेत्
पुण्डरीकाक्षं स बाहांभ्यान्तरः शुचिः ।।
तत्पश्चात्
आचमन करें ।
ऊॅ केशवाय
नमः। ऊॅ नारायणाय नमः। ऊॅ माधवाय नमः ।।
आचमन के बाद
दोनों हाथों में कुशा की पेंती पहिनकर हांथ में कुश जल, दूध मिश्रित चावल, कालीतिल, तथा जौ लेकर संकल्प पढ़ें। (जहां-जहां
अमुक शब्द का प्रयोग किया गया है वहां गोत्र, मास, पक्ष, तिथि, दिन आदि का उच्चारण
करना चाहिए) |
ऊॅ
विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अमुक गोत्रः श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थ
श्रीमद्भग्वतो
महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रम्हणः
द्वितीय
प्रहराद्र्धे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे
कलि प्रथम
चरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बुद्धीपे भागीरथ्याः
पश्चिमे तीरे
विक्रम शके बौद्धावतारे अमुक संवत्सरे
अमुकायने
अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ चा अमुकवासरे चन्द्र सूर्ये गुरौ च
देवर्षि
मनुष्य पितृ तर्पणमहं करिष्ये।।
देव तर्पण -Pitru tarpan vidhi
तत्पश्चात् हांथ में कुश तथा मिश्रित सामग्री लेकर निम्न लिखित आवाहन करें । देवताओं के नाम के आगे (तृपन्यताम् ) बोलें ।
ऊॅ ब्रम्हादयो
देवा आगच्छन्तु गृहणत्वेतां जलन्जलीन्।
ऊॅ
ब्रम्हातृपन्यताम्। ऊॅ विष्णुस्तृपन्यताम्। ऊॅ रूदस्तृ 0। ऊॅ
प्रजापतिस्तृ 0। ऊॅ देवास्तृ 0। ऊॅ छन्दासितृ 0। ऊॅ वेदास्तृ 0।
ऊॅ ऋषयस्तृ 0। ऊॅ पुराणाचार्यास्तृ 0। ऊॅ गन्धर्वास्तृ 0। ऊॅ
इतराचार्यास्तृ
0। ऊॅ संवत्सरसा वयवस्तृ 0। ऊॅ देव्यस्तृ । ऊॅ
अप्सरस्तृ 0। ऊॅ देवानुगास्तृ 0। ऊॅ नागास्तृ 0। ऊॅ सागरास्तृ 0।
ऊॅ पर्वतास्तृ
0। ऊॅ सरितस्तृ 0। ऊॅ मनुष्यास्तृ 0।
ऊॅ रक्षास्तृ 0। ऊॅ रक्षांसितृ 0। ऊॅ पिशाचास्तृ
0। ऊॅ
सुपर्णास्तृ 0। ऊॅ भूतानिस्तृ 0। ऊॅ पशवस्तृ 0। ऊॅ वनस्पतयस्तृ 0।
ऊॅ ओषधयस्तृ 0। ऊॅ भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृपन्यताम्।।
ऋषि तर्पण
इन ऋषियों केा भी पूर्वमुख सव्य हो देववत् तर्पण करना चाहिए।
ऊॅ मरिच्यादि
दश ऋषयः आगच्छन्तु गृहणतवेतां जलन्जलीन।।
ऊॅ
मरीचिस्तृप्यताम्। ऊॅ अत्रिस्तृ 0। ऊॅ
अंगिरास्तृ 0। ऊॅ
पुलस्त्यस्तृ 0। ऊॅ पुलहस्तृ 0। ऊॅ कृतुस्तृ 0। ऊॅ प्रचेतास्तृ 0। ऊॅ
वसिष्ठस्तृ 0। ऊॅ भृगुस्तृ 0। ऊॅ नारद<br366;>स्तृप्यताम्।।
दिव्य मनुष्य
तर्पण
उत्तर मुख होकर जनेउ गमछा कण्ठी के समान कन्धे पर रखकर दो दो अंजली जल कुश और यव के साथ निम्न सात मुनियों को दें ।
ऊॅ सनकादयः
सप्तमुनयः आगच्छन्तु गृहणतवेतां जलन्जलीन।।
ऊॅ
सनकस्तृप्यताम्। ऊॅ सनन्दनस्तृ 0। ऊॅ
सनातनस्तृ 0।
ऊॅ कपिलस्तृ 0। ऊॅ आसुरिस्तृ 0। ऊॅ वोढुस्तृ 0।
ऊॅ
पन्चशिखस्तृप्यताम्।।
दिव्य मनुष्य
पितृतर्पणम्
दक्षिणाभिमुख होकर मोटक ले अपसव्य (अपसव्य में जनेऊ दांये कंधे पर आ जायेगा इसे अवसव्य कहते है) होकर तीन तीन अंजली जल दें।
ऊॅ
काव्यवाडवानलादयो दिव्य पितर आगच्छन्तु गृहणतवेतां जलन्जलीन।।
ऊॅ
काव्यवाडवानलस्तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा। ऊॅ सोमस्तृप्यतामिदं 0।
ऊॅ
यमस्तृप्यदामिदं 0। ऊॅ अर्यमा
तृप्यतामिदं 0। ऊॅ
अग्निष्वात्ताः
पितरस्य तृप्यतामिदं 0।
ऊॅ सोमपाः
पितरस्तृप्यतामिदं 0। ऊॅ बर्हिषदः
पितरस्तृप्यदामिदं तस्मै स्वधा।
यमादि तर्पणम् – Pitru tarpan vidhi
बाऐं घुटने को
जांघ के नीचे दबाकर दक्षिणाभिमुख बैठ तीन तीन अंजली जल निम्न 14 यमों को दें |
ऊॅ यमादि
चतुर्दश देवा आगच्छन्तु गृहणतवेतां जलन्जलीन।।
ऊॅ यमाय नमः।
ऊॅ धर्मराजाय नमः। ऊॅ मृत्यवे नमः। ऊॅ अन्तकाय नमः। ऊॅ वैवस्वताय नमः। ऊॅ कालाय
नमः। ऊॅ सर्वभूतक्षयाय नमः। ऊॅ औदुम्बराय नमः। ऊॅ दध्नाय नमः। ऊॅ नीलाय नमः। ऊॅ
परिमेष्ठने नमः। ऊॅ वृकोदराय नमः। ऊॅ चि़त्राय नमः। ऊॅ चित्रगुप्ताय नमः।।
पिता जी का
तर्पण
तत्पश्चात्
पितरों को कुश मोटक तिलों के साथ तीन तीन अंजली जल दें ।
नाभिमात्रे
जले स्थित्वा चिन्तये दूध्र्वमानसः।
आगच्छन्तु मे
पितर इमान् गृहणतवेतां जलन्जलीन।।
ऊॅ अमुक
गोत्रो अस्मत्पिता वसुस्वरूपस्तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा।
इसी को तीन बार दुहराऐं।
पितामह का तर्पण
ऊॅ अमुक
गोत्रो अस्मत्पितामहो रूद्रस्वरूपस्तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा।
इसी को तीन बार दुहराऐं।
प्रपितामह का तर्पण
ऊॅ अमुकगोत्रो अस्मत्प्रपितामहो आदित्यस्वरूपस्तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा ।
इसी को तीन बार दुहराऐं।
(माता,पितामही तथा प्रपितामही का तर्पण)
ऊॅ अमुकगोत्रो
अस्मन्माता अमुकी देवी गायत्री स्वरूपा तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा।
ऊॅ अमुकगोत्रो
अस्मत्पितामही अमुकी देवी सावित्री स्वरूपा तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा ।
ऊॅ अमुकगोत्रो
अस्मत्प्रपितामही अमुकी देवी सरस्वती स्वरूपा तृप्यतामिदं तस्मै स्वधा
ऊॅ अमुकगोत्रो
अस्मत्सापत्न्माता अमुकी देवि वसुस्वरूपा तुप्यतामिदं तस्मै स्वधा।
भीष्मतर्पणम् (सव्येन)
पुनः सव्य होकर आचमन कर भीष्म तर्पण करें |
ऊॅ
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवरय च। अपुत्राय ददाम्येतज्ज्लं भीष्माय वम्र्मणे।
भीष्म को जल
देने के बाद सूर्य को निम्न मंत्र से जल दें
एहि सूर्य
सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्य मां
भक्तया गृहाणाध्र्य दिवाकर।।
पितर मोक्ष
अमावस्या के दिन तर्पण करने के पश्चात् निम्न श्लोक से अपसब्य होकर तीन अंजली जल
दे तथा कुशा विसर्जित कर दें । कुशा विसर्जन करते समय मोटक को खोल देना चाहिए |
गयायां
पितृरूपेण त्वयमेव जनार्दनः ।
तं दृष्टवा
पुण्डरीकाक्ष मुच्यते च ऋणत्रयात्।।
।। इति देवर्षि पितृतर्पण विधिः समाप्तः।।
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