somvar vrat katha- सोमवार व्रत कथा से पायें शिव पार्वती का आशीर्वाद
पिछले लेख में भगवान सूर्य नारायण के रविवार के व्रत के बारे में संक्षिप्त में चर्चा की इस लेख में भूतभावन भगवान भोले नाथ का सोमवार के व्रत (somvar vrat katha) के वारे में चर्चा करेंगे
somvar vrat katha सोमवार व्रत कथा
आर्यावर्त में चित्रवर्मा नामके एक प्रसिद्ध राजा रहते थे | दुष्टों को दंड देने के लिए यमराज के समान समझे जाते थे | वे धर्म मर्यादाओं के रक्षक, कुमार्गगामी पुरुषों को दंड देकर रह पर लेन वाले, समस्त प्रकार के यज्ञों का अनुष्ठान सरने वाले और शरणार्थियों की रक्षा करने में समर्थ थे | भगवान शिव और विष्णु में उनकी बड़ी भक्ति थी |
राजा चित्रवर्मा ने अनेक पराक्रमी पुत्रो को पाकर अंत में एक सुन्दर मुख वाली कन्या प्राप्त की | एक दिन राजा ने जातक के लक्षण जानने वाले श्रेष्ठ ब्राम्हणों को बुलाकर कन्या की जन्म कुंडली के अनुसार भावी फल पूछे तब उन ब्राम्हणों में से एक बहुत विद्वान ने कहा महाराज यह आपकी कन्या सीमंतिनी नाम से प्रसिद्ध होगी | यह भगवती उमा के भांति मंगलमयी, दमयंती की भांति परम सुंदरी, सरस्वती के समान सब कलाओं को जानने वाली तथा लक्ष्मी की भांति अत्यंत सद्गुणों से सुशोभित होगी |
ब्राम्हणों ने की भविष्यवाणी
यह दस हजार वर्षों तक अपने स्वामी के साथ आनंद भोगेगी और आठ पुत्रो को जन्म देकर उत्तम सुख का उपभोग करेगी | तत्पश्चात एक दुसरे ने कहा यह कन्या चौदहवें वर्ष में विधवा हो जाएगी | यह बज्राघात के समान दारुण वचन सुनकर राजा दो घडी तक चिंता में डूबे रहे | तदनंतर सब ब्राम्हणों को विदा करके रजा ने सब भाग्य पर छोड़ दिया |
सीमंतनी धीरे धीरे सायानी हुई अपनी सखी के मुख से भावी वैधव्य की बात सुनकर उस बड़ा खेद हुआ | उसने चिंतामग्न होकर याज्ञवल्क मुनि की पत्नी मैत्रेयी से पूछा – माता जी में आपकी शरण में आई हूं मुझे सौभाग्य बढाने वाले सत्कर्म का उपदेश दीजिये | इस प्रकार शरण में आई हुई राज कन्या से पतिव्रता मैत्रेयी ने कहा – सुंदरी तू शिव सहित पार्वती जी की शरण में जा और सोमवार को एकाग्रचित्त हो स्नान और उपवास पूर्वक स्वच्छ वस्त्र धारण करके शिव और पार्वती की आराधना करती रहो | इससे बड़ी भारी आपत्ति पड़ने पर भी तू उससे मुक्त हो जाएगी |
घोर से घोर एवं भयंकर महाक्लेष में पड़कर भी शिव पूजा न छोड़ना | उसके प्रभाव से भाव से पार हो जाओगी | इस प्रकार सीमंतिनी को आश्वासन देकर पतिव्रता मैत्रेयी आश्रम को चली गयीं | राजकुमारी ने उनके कथनानुसार भगवान शिव का पूजन प्रारंभ किया |
सीमंतिनी का विवाह
यहाँ निषध देश में नल की पत्नी दमयंती के गर्भ से इन्द्रसेन नामक पुत्र हुआ था | रजा इन्द्रसेन के पुत्र चंद्रान्ग्द हुए | नृपश्रेष्ठ चित्रवार्मा ने राजकुमार चंद्रान्ग्द को बुलाकर गुरुजनों की आज्ञा से उन्हीं के साथ अपनी पुत्री सीमंतिनी का विवाह कर दिया | उस विवाह में बड़ा उत्सव हुआ था | विवाह के पश्चात् चंद्रान्ग्द कुछ काल तक ससुराल में ही रहे |
यमुना में नाव का डूबना
एक दिन राजकुमार यमुना के पर जाने के लिए कुछ मित्रों के साथ नव पर सवार हुए | भाग्यवश नाव यनुना के भंवर में मल्लाहों सहित डूब गयी | यमुना के तट पर बड़ा ही हाहाकार मच गया इस दुर्घटना को देखने वाले समस्त सैनिकों के बिलाप से सारा आकाश मंडल गूंज उठा डूबने वालों में से कुछ तो मर गए और कुछ ग्राहों के पेट में चले गए तथा राजकुमार आदि कुछ लोग उस महाजल में अदृश्य हो गए | यह समाचार सुनकर राजा चित्रवर्मा बड़े ही ब्याकुल हुए और यमुना किनारे आकर मूर्छित होकर गिर पड़े |
जब सुना दुखद समाचार
सीमंतिनी ने भी जब यह समाचार सुना तब वह अचेत होकर धरती पर गिर पड़ी | राजा इन्द्रसेन ने अपने पुत्र के डूबने का समाचार पाकर रानियों सहित बहुत दुखी हुए और सुध-बुध खोकर गिर पड़े | तदनंतर बड़े बूढों के समझाने पर राजा चित्रवार्मा धीरे-धीरे नगर में आये और उन्होंने अपनी पुत्री को धीरज बंधाया |
राजा चित्रवार्मा ने जल में डूबे हुए अपने दामाद का और्ध्वदैहिक कृत्य वहां आये हुए उनके बंधू- बांधवों से करवाया | पतिव्रता सीमंतिनी ने चिता में बैठकर पतिलोक में जाने का विचार किया किन्तु उनके पिता ने स्नेहवश रोक दिया | तब वह विधवा जीवन ब्यतीत करने लगी |
विधवा होने पर भी नहीं छोड़ा व्रत
मुनि पत्नी मैत्रेयी ने जिस शुभ सोमवार व्रत का उपदेश दिया था उसे सदाचार परायणा सीमंतिनी ने विधवा होने पर भी नहीं छोड़ा | इस प्रकार चौदहवें वर्ष की आयु में अत्यंत दारुण दुःख पाकर वह भगवान शिव के चरणारविन्दों का चिंतन करने लगी | शिवाजी की आराधना करते-करते उसके तीन वर्ष ब्यतीत हो गए | उधर पुत्र शोक से दुखी राजा इन्द्रसेन को बलपूर्वक दबाकर भाइयों ने सारा राज्य छीन लिया और उन्हें पत्नी सहित पकड़कर कारगार में डाल दिया |
यहाँ इन्द्रसेन के पुत्र चंद्रान्ग्द यमुना के जल में डूबने पर नीचे गहराई में उतरने लगे | बहुत निचे जाने पर उन्होंने नागवधुओं को जलक्रीडा में निमग्न देखा | राजकुमार को देखकर वे भी विस्मित हुई और उन्हें पाताललोक में ले गयीं | वहां चंद्रान्ग्द ने तक्षक नांग के अद्भुत रमणीय नगर में प्रवेश किया और इन्द्रभवन के समान मनोहर एक सुन्दर महल देखा जो बड़े बड़े रत्नों की प्रकाशमान किरणों से उदीप्त हो रहा था |
नागराज की सभा में राजकुमार
परम बुद्धिमान राजकुमार ने प्रणाम किया और हाँथ जोड़कर खड़े हो गये | नांगराज भी मनोरम राजकुमार को देखकर उन नागिनों से पूछा – यह कौन है और कहाँ से आया है | उन्होंने उत्तर दिया – हमने इसे यमुना जल में देखा और इसके कुल तथा नाम का परिचय न होने के कारण आपके पास ले आये हैं | तब तक्षक ने राजकुमार से पूछा – तुम किसके पुत्र हो ? कौन हो ? कौन सा तुम्हारा देश है ? और यहाँ पर तुम्हारा कैसे आगमन हुआ | राजपुत्र ने उदारता पूर्वक सारा वृतांत सुनाया |
इस प्रकार अत्यंत मनोहर उदारतापूर्ण वचन सुनकर तक्षक ने कहा – राजकुमार तुम भय न करो धैर्य रखो और बताओ तुम सम्पूर्ण देवताओं में किसकी पूजा करते हो |
व्रत के बारे में बताया
राजकुमार ने कहा जो सम्पूर्ण देवों के महादेव कहे जाते हैं उन्हीं विश्वात्मा उमापति भगवान शिवाजी की में पूजा करता हूं | जो विधाता के भी विधाता और तेजों में सर्वोत्कृष्ट हैं |
राजकुमार की यह बात सुनकर तक्षक का चित्त प्रसन्न हो गया उनके ह्रदय में महादेव के प्रति नूतन भक्तिभाव का उदय हो आया और वे उनसे इस प्रकार बोले | हे राजेन्द्र नंदन – तुम्हारा कल्याण हो में तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि तुम बालक होकर भी सर्वोत्कृष्ट परात्पर शिवतत्व को जानते हो इसलिए तुम अपनी इच्छानुसार यहाँ विचरण करो और यथायोग्य सुख भोगों का उपभोग करो |
प्रार्थना करते राजकुमार
नागराज के एसा कहने पर राजकुमार हाँथ जोड़कर बोले – नागराज मेने समय पर विवाह किया है मेरी पत्नि उत्तम व्रत somvar vrat katha का पालन करने वाली और शिवपूजा परायणा है और में अपने माता पिता का इकलौता पुत्र हूँ | वे सब लोग इस समय मुझे मरा हुआ मानकर महान शोक से घिर गए होंगे | अतः मुहे किसी प्रकार भी यहाँ अधिक समय तक नहीं ठहरना चाहिए | आप कृपा करके मुझे उसी मृत्युलोक में पहुंचा दीजिये |
नागराज ने कहा – राजकुमार तुम मुझे जब-जब याद करोगे तब- तब में तुम्हारे सामने प्रगट हो जाऊंगा | एसा कहकर उन्होंने राजकुमार को एक सुन्दर अश्व भेंट किया जो इच्छा के अनुसार चलने वाला था | ढेर सारे रत्न आभूषण भेंट कर नागराज बोले जाओ कहकर प्रेम पूर्वक विदा किया
दिव्य अश्व पर चंद्रान्ग्द
चंद्रान्ग्द उस घोड़े पर सबार हो निकले और थोड़ी ही देर में यमुना के जल से बाहर आकर उस दिव्य अश्व पर चढ़े हुए ही नदी के रमणीक तट पर घूमने लगे | इसी समय पतिव्रता सीमंतिनी अपनी सखियों से घिरी हुई यहाँ स्नान करने के लिए आयीं | उसे यमुना के तट पर मनुष्य रूप धारी नागकुमार के साथ भ्रमण करते हुए राजकुमार चंद्रान्ग्द को देखा दिव्य अश्व पर आरूढ़ हुए अपूर्व आकर वाले उन राजकुमारों को देखकर वह उन्हीं की ओर दृष्टि लगाये खड़ी हो गई | उसे देखकर चंद्रान्ग्द ने भी मन ही मन विचार किया जन पड़ता है इसे मैंने पहले कभी देखा है |
नदी के किनारे भ्रमण
तत्पश्चात वे घोड़े से उतरकर नदी के किनारे आ बैठे और उस सुंदरी को बुलाकर समीप बैठकर पूछा – तुम कौन हो किसकी स्त्री हो ? और किसकी कन्या हो ? सीमंतिनी लज्जा बस कुछ बोल न सकी तब उसकी सखी ने सब बातें बतायीं | इसका नाम सीमंतिनी है यह निषधराज इन्द्रसेन की पुत्रवधू, युवराज चंद्रान्ग्द की रानी तथा महाराज चित्रवर्मा की पुत्री है | दुर्भाग्यवश इसके पति इस महाजाल में डूब गये अत्यंत प्रबल शोक में ही इसने तिन वर्ष व्यतीत किये हैं | आज सोमवार है इसलिए यहाँ यमुनाजी में स्नान करने के लिए आयीं है | इसके शशुर का राज्य भी शत्रुओं ने छीन लिया है | और ये महाराज अपनी पत्नि के साथ उनकी कैद में पड़े हैं |
somvar vrat katha का मिला फल
उत्तम व्रत का पालन करने वाली सीमन्तिनी ने अपनी सखी के मुख से सब बातें कहलवाकर स्वयं भी राजकुमार से पूछा – आप कौन हैं ? और ये दोनों पुरुष कौन है ? महाबाहो मुझे एसा जन पड़ता है कि पहले मैंने कभी आपको देखा है | तदनंतर सीमंतिनी राजकुमार की ओर बारम्बार निहारने लगीं उसने पहले देखे हुए अन्गचिन्हों, स्वर आदि लक्षणों, अवस्था के प्रमाण तथा रूप रंग आदि की परीक्षा करके यह निश्चय किया कि अवश्य यही मेरे पति हैं क्योंकि मेरा ह्रदय प्रेम से अधीर होकर इन्हीं में अनुरक्त हुआ है |
मुनि पत्नि मैत्रेयी के कथन की आई याद
परन्तु क्या मुझ अभागिनी को अपने मरे हुए पति का दर्शन हो सकता है यह स्वप्न है या भ्रम अथवा मुनि पत्नि मैत्रेयी ने जो मझे यह कहा था कि तुम भारी से भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस व्रत का पालन करते रहना उसी का तो यह फल नहीं है | उन ब्राम्हण देवता का यह वचन अवश्य सत्य होगा | यह ईश्वर के शिव कौन जान सकता है | इधर प्रतिदिन मुझे मंगलसूचक शुभ शकुन दिखाई देता हैं | पार्वती देवी के प्राणनाथ भगवान शिव के प्रसन्न होने पर देह धारियों के लिए कौन सी वास्तु दुर्लभ है इस प्रकार भांति-भांति के विचार करके उसका संदेह दूर हो गया |
ख़ुशी की लहर
नागाकुमारों से सूचना पाकर राजा इन्द्रसेन हर्ष से विह्वल हो गए उन्होंने अपने मन ही मन यही माना कि मेरी पुत्रवधू ने भगवान महेश्वर की आराधना करके इस अनुपम सौभाग्य का अर्जन किया है | निषधराज ने यह मंगलमयी वार्ता दूतों के द्वरा महाराज चित्रवर्मा को भी कहला दी यह अमृतमयी वार्ता सुनकर महारज चित्रवर्मा आनंद से विह्वल हो गए और संदेस वाहकों को ढेर सारे उपहार दिए | फिर अपनी पुत्री को बुलाकर उन्होंने उससे वैधव्य के चिन्हों का परित्याग करवाया और उसे नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित किया | तत्पश्चात बड़ा भारी उत्सव हुआ सब लोगों ने राजकुमारी सीमंतिनी के सदाचार की बड़ी प्रसंशा की |
सीमंतनी को पति की प्राप्ति
चित्रवार्मा ने इन्द्रसेन के पुत्र चंद्रान्ग्द को बुलाकर सीमंतिनी को उनके साथ विदा कर दिया | चंद्रान्ग्द ने तक्षक के घर से लाये हुए रत्न आदि आभूषण दिए जो मानव मात्र के लिए अत्यंत दुर्लभ हैं | इस प्रकार शुभ मुहूर्त में अपनी पत्नि को साथ लेकर सशुर की आज्ञा से चंद्रान्ग्द पुनः अपनी नगरी में आये | महाराज इन्द्रसेन ने अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बिठाकर तपस्या द्वारा भगवान शिव की आराधना करके योगी पुरुषों को होने वाली उत्तम गति प्राप्त की | राजा चंद्रान्ग्द ने अपनी धर्मपत्नि सीमंतिनी के साथ दस हजार वर्षों तक नाना प्रकार के विषयों का उपभोग किया |
उन्होंने आठ पुत्रों और एक कन्या को जन्म दिया सीमंतिनी प्रतिदिन भगवान महेश्वर की पूजा करतीं हुई अपने स्वामी के साथ सुख पूर्वक रहने लगीं | उसने सोमवार व्रत (somvar vrat katha) के प्रभाव से अपना खोया हुआ सौभाग्य प्राप्त किया |
|| इति श्री स्कन्द पुराणानुसार सोमवार व्रत कथा समाप्त ||
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