तप और करुणा से भरे हैं महिलाओं के व्रत -त्यौहार (vrat tyohar)
पिछले लेख में हमने ” व्रत उपवास से अनंत पुण्य और आरोग्य की प्राप्ति ” इस बारे में संक्षेप में चर्चा की इस लेख में “तप और करुणा से भरे हैं महिलाओं के व्रत -त्यौहार” (vrat tyohar) इस विषय में संक्षेप में चर्चा करेंगे |
यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को दो शब्दों में मापना हो तो ये दो शब्द होंगे – तप एवं करुणा | भारतीय नारी के जीवन में ये दोंनो ही अन्योन्याश्रित हैं | उसके तप का प्रेरणाश्रोत है करुणा और करुणा की अभिवृद्धि होती है दिन पर दिन बढ़ने वाली तप की प्रखरता से |
महिलाओं के हर व्रत की विशेषता
उसका यह तप ही उसके द्वारा अनुष्ठित व्रत उपवासों में दिखाई देता है | महिलाओं के द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक व्रत किसी न किसी विशेष प्रयोजन से सम्बद्ध है | ये व्रत उसकी कोरी भावुकता नहीं है अपितु इसके पीछे ऋषिप्रणीत विज्ञान है | उत्तरायण- दक्षणायन की गोलार्ध स्थिति, चन्द्रम की घटती बढाती कलाओं, नक्षत्रों का भूमि पर आने वाला प्रभाव, सूर्य की किरणों का मार्ग इन सबका महिलाओं के शरीरगत ऋतू-परिवर्तन एवं अग्नियों के साथ सम्बन्ध होने से विशिष्ट परिणाम को ध्यान में रखकर ही व्रत उपवासों का निर्धारण किया गया है | महिलाओं के हर व्रत की अपनी विशेषता है जो संवत्सर के प्रारम्भ से ही शुरू हो जाते हैं |
चैत्र की नवरात्र के बाद महिलाएं वैशाख कृष्णपक्ष की अष्टमी को शीतला देवी का पूजन करतीं हैं | पवित्र मन से शीतलाष्टमी का व्रत करके शीतलादेवी को प्रसन्न करतीं हैं | ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की अमावस्या को सावित्री पूजन किया जाता है | महिलायें अपने अखंड सुहाग के लिए यह व्रत करतीं हैं |
आषाढ़मास तथा श्रावणमास के vrat tyohar
कोकिलाव्रत आषाढ़मास की पूर्णिमा को दक्षिणभारत में मनाया जाता है | लड़कियां सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को किया करतीं हैं | श्रावणमास का प्रत्येक मंगलवार मंगला गौरी पूजन के नाम से जाना जाता है | इसी तरह इस मास के सोमवार का व्रत कुवांरी लड़कियां अपने लिए उत्तम वर की प्राप्ति हेतु करतीं हैं | लड़कियों एवं महिलाओं के लिए श्रावणमास की पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है | इस दिन रक्षाबंधन के रूप में भाई की कलाई में राखी बांधकर बहनें अपने भाई के सुखद जीवन की मंगल कामना करतीं हैं |
भाद्रपद मास के vrat tyohar
भाद्रपद तृतीया को कजरी तीज विशेष उत्सव के रूप में मनाई जाती है | ग्रामीण बालाएं वर्षा ऋतू में इस दिन अपने पति के सुखद जीवन के लिए गीत गातीं हैं | इस महीने की कृष्णपक्ष चतुर्थी को माताएं पुत्रों के रक्षा हेतु बहुला चौथ का व्रत करतीं हैं | इसी के दो दिन बाद हलषष्ठी का व्रत होता है जो पुत्र और सुहाग के रक्षार्थ किया जाता है | हरितालिका तीज इस महीने का सुप्रसिद्ध व्रत है | वह व्रत इस महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है | इसे कुंवारी और विवाहिता दोंनो ही करतीं हैं | शिव पार्वती के पूजन के साथ इसे उत्तम वर की प्राप्ति एवं सुखद दाम्पत्य के लिए संपन्न किया जाता है | भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को राधा लक्ष्मी एवं महाअष्टमी व्रत किये जाते हैं | इन्हें करने पर महिलाओं की अपनी छोटी-मोटी भूल का प्रयाश्चित हो जाता है |
अश्वनी मास
अश्वनी कृष्ण नवमी को मातृनवमी कहा जाता है | जिस प्रकार पुत्र अपने पिता-पितामह आदि पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध,तर्पण आदि करते हैं उसी प्रकार सुगृहणियां भी अपनी दिवंगत सास, माता आदि के निमित्त इस दिन ब्राम्हण भोजन आदि करतीं हैं | कार्तिक कृष्णपक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को करवाचौथ व्रत किया जाता है यह भी स्त्रियों का मुख्य व्रत है | इस दिन का उपवास दाम्पत्य प्रेम को बढ़ाने वाला होता है क्योंकि इसदिन की गोलार्ध स्थिति, चंद्रकलाएँ, नक्षत्र प्रभाव एवं सूर्य मार्ग का समिश्रण शरीरगत अग्नि के साथ समन्वित होकर शरीर एवं मन की स्थिति को ऐसा उपयुक्त बना देता है जो दाम्पत्य सुख को सुदृढ़ और चिरस्थाई बनाने में बड़ा सहायक होता है |
इसी महीने शुक्लपक्ष की द्वतीय को भाईदूज मनाई जाती है इसमें बहनें भाई के अभ्युदय के लिए मंगलकामना करतीं हैं | कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को महिलाएं सूर्य षष्ठी व्रत सूर्योपासना के साथ संपन्न करतीं हैं | इस व्रत का धन- धान्य एवं पति- पुत्र की समृद्धि के लिए विशेष महत्त्व है |
कार्तिक स्नान
इस महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी का महत्त्व कार्तिक स्नान करने वालीं महिलाओं के लिए विशिष्ठ है | शीतलषष्ठी व्रत माघ कृष्णपक्ष की षष्ठी को महिलाएं करतीं हैं | इसे करने से आयु तथा संतान की कामना फलवती होती है | इसका महत्त्व अधिकतर बंगाल में है | यहाँ इसका महत्त्व ठीक उसी तरह से है जैसे बिहार में सूर्य में षष्ठी का | इन व्रतों के अतिरिक्त जिस अमावस्या को सोमवार हो उसी दिन सोमवती अमावस्या व्रत विधान होता है | यह भी नारियों का प्रमुख व्रत है | प्रत्येक पक्ष की त्रियोदशी को महिलाएं संतान कामना के लिए प्रदोष व्रत का भी पालन करतीं हैं | अपने तप- व्रत के द्वारा घर की समस्त आपदाओं- विपदाओं, शंकतों का शमन करतीं हैं | ऐसी व्रतपरायणा सदाचारसम्पन्ना नारियों ने भारतीय मातृत्व के गौरव को बढ़ाया है | इसलिए इन देवियों को मातृरूप देकर नमन किया गया है –
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
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