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होलिका दहन

होली के संकेत – 

holika dahan – वसंत पंचमी आते ही प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन आने लगता है | ठंड कम होने लगती है | पतझड़ शुरू हो जाता है | आम में बौर आने लगती है | वृक्षों में कहीं-कहीं नवीन पत्तों के दर्शन होने लगते हैं | प्रकृति में एक नयी मादकता का अनुभव होने लगता है | इस प्रकार होली पर्व के आते ही एक नवीन रौनक, नवीन उत्साह एवं उमंग की लहर दिखाई देने लगती है |

holika dahan
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होली रंगों का त्यौहार –  होली जहाँ एक ओर एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार है, वहीं यह रंगों का त्यौहार भी है | बालवृद्ध, नर-नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं | यह एक देशव्यापी त्यौहार भी है | इसमे वर्ण एवं जातिभेद को कोई स्थान नहीं है | इस अवसर पर लकड़ियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिका पूजन किया जाता है | फिर उसमे आग लगाई जाती है | पूजन के समय निम्नलिखित  मन्त्र का उच्चारण किया जाता है |

holika dahan – पूजन के समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें |

असृक्या भयसंत्रतै कृता त्वं होलि बालिशै |

अतस्त्वां पुजयिश्यामी भूते भूतिप्रदा भव ||

इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ पर्व भी कहा जाता है | खेत से नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परंपरा भी है | उस अन्न को होला कहते हैं | इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा है |

होलिकोत्सव क्यों मानते हैं –  होलिकोत्सव मनाने के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं | यहाँ कुछ प्रमुख मतों का उल्लेख किया गया हैं –

 एसी मान्यता है कि इस holika dahan नामक पर्व का सम्बन्ध “काम दहन” से है | भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था | तभी से इस त्यौहार का प्रचलन हुआ |

फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है | भारत के कई प्रदेशों में होलाष्टक शरू होने पर एक पेड़ की शाखा काटकर उसमे रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकडे बांधते हैं | इस शाखा को जमीन में गाड़ा जाता है | सभी लोग इसके नीचे होलिकोत्सव मनाते है |

यह त्यौहार हिरण्यकशिपु की बहिन की स्मृति में भी मनाया जाता है | शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव् से अग्नि में नहीं जलती थी | हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने को कहा | उसने समझा था कि ऐसा करने से प्रह्लाद जल जायेगा तथा होलिका बच जाएगी |

हिरण्यकशिपु की बहन ने ऐसा ही किया, होलिका तो जल गई, किन्तु प्रह्लाद जीवित बच गए | तभी से इस त्यौहार के मनाने की प्रथा है |

भविष्यपुराण में कहा गया है कि एक बार नारदजी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा – राजन फाल्गुन की पुर्णिमा के दिन सब लोगों को अभयदान देना चाहिए | जिससे सम्पूर्ण प्रजा उल्लास पूर्वक हँसे | बालक गाँव के बाहर से लकड़ी-कंडे लाकर ढेर लगायें | होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत पूजन करें | holika dahan करें | ऐसा करने से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं |

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होली एक आनंद उल्लास का पर्व है | इसमे जहाँ एक ओर उत्साह उमंग की लहरें हैं, तो वहीँ दूसरी ओर कुछ बुराइयां भी आ गयीं हैं | कुछ लोग इस अवसर पर अबीर गुलाल के स्थान पर कीचड़, गोबर, मिटटी आदि का उपयोग करते हैं | ऐसा करने से मित्रता के स्थान पर शत्रुता का जन्म होता है | अश्लील एवं गंदे हंसी मजाक एक दुसरे के ह्रदय को चोट पहुंचाते है | अतः इन सबका त्याग करना चाहिए |

होली सम्मिलन, मित्रता एवं एकता का पर्व है | इस दिन द्वेषभाव भूलकर सबसे प्रेम और भाईचारे से मिलना  चाहिए | एकता, सद्भावना एवं हर्सोल्लास का परिचय देना चाहिए | यही इस पर्व का मूल उद्द्येश एवं सन्देश है |

 

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