अनंत चतुर्दशी व्रत विधि एवं कथा
Anant chaturdashi vrat – इस व्रत को प्रातः काल अर्थात उदया तिथि लेना चाहिए, क्योंकि प्रातः काल का सही पूजन का समय रहता है | क्योंकि ब्रह्म पुराण में लिखा है कि जो एकाग्र चित्त से प्रातः काल अनंत का पूजन करता है वह भगवान की कृपा से अनंत सिद्धि को प्राप्त पाता है | इस बचन से यह सिद्ध हो गया कि पूजा का मुख्य समय प्रातः काल का है | यदि प्रातः काल में चतुर्दशी ना मिले तो पूर्वाही ग्रहण कर लेना चाहिए |
अनंत व्रत विधि –
प्रातः काल नदी आदि में स्नान कर नित्य कर्म समाप्त करके पवित्र होकर एकाग्र चित्त तो होकर हृदय में अनंत का ध्यान करना चाहिए | पूजन घर में या सर्वतो भद्र मंडल बनाकर उस पर कलश रख दें वहां अष्टदल कमल पर विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए | संभव हो तो 7 फलों का नाग बनवाना चाहिए या मिट्टी का बनाना चाहिए | अनंत, अच्युत, कृष्ण, अनिरुद्ध, पद्म्ज, दैत्यारि, पुंडरीकाक्ष, गोविंद, गरुड़ध्वज, कूर्म, जलनिधि, विष्णु यामन, जलाशायी इन 14 नामों से प्रतिवर्ष क्रम से पूजा करना चाहिए | उसके आगे कुमकुम से रंगा हुआ मजबूत डोरा बांधना चाहिए | उसमें 14 गांठ हो उसे सामने रखकर उसकी पूजा करना चाहिए | इसके पीछे मूल मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) से चतुर्भुज को नमस्कार कर के प्रार्थना करना चाहिए |
भगवान से बार-बार प्रार्थना कर अपने उद्धार, मुक्ति, मोक्ष, यश, धन, वैभव की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हुए अनंत को धारण करना चाहिए | अनंत धारण करने के बाद कथा सुननी चाहिए | कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए | दक्षिणा में घी के बने पकवान तथा फल-फूल आदि यथाशक्ति ब्राह्मण को दान देना चाहिए, और ब्राह्मण से अपना अनंत व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो इसके लिए ब्राह्मण से आशीर्वाद लेना चाहिए | कथा इस प्रकार है |
कथा
सूत जी बोले कि पहले गंगा किनारे धर्म में तत्पर रहने वाले धर्मराज ने राजसूय यज्ञ प्रारंभ कर दिया | अपने चारों भाई और श्रीकृष्ण के साथ युधिष्ठिर जी ने अनेक रत्नों से सुशोभित यज्ञशाला बनाई | अनेकों मुक्ता लगाए उनसे वह इंद्र के घर जैसी प्रतीत होती थी | बड़े प्रयत्न से यज्ञ के लिए राजाओं को इकट्ठा किया हे राजन् उस समय गंधारी का पुत्र दुर्योधन यज्ञशाला को आता था | भवन कुछ इस तरह सजा था जहां प्रथ्वी को देखने में ऐसा प्रतीत होता था मानो आंगन में पानी भरा है | दुर्योधन उसमें कपड़े ऊंचे करके धीरे-धीरे चलने लगा परन्तु जहां पानी था उसमें गिर गया | यह सब देखकर द्रोपती आदि सुंदरिया, राजा, ऋषि मुनि आदि ने उसकी हंसी की | दुर्योधन भी सामान्य नहीं था उसे क्रोध आया और वह रुष्ट होकर मामा के साथ अपने राज्य को चलने लगा |
उस समय उससे शकुनी मीठे मीठे वचन बोला कि हे राजन क्रोध छोड़ आगे अभी बड़े कार्य करना है | हमारे पास ऐसे पांसे हैं जो आपके अनुकूल ही अंक देंगे | इससे हम जुआ से सभी राज्यों को जीत सकते हैं | अभी यज्ञशाला चलें शकुनि के इस प्रकार कहने पर यज्ञशाला चला आया | यज्ञ के पूरा होते ही जब सब राजा अपने-अपने राज्य में चले आए तब दुर्योधन भी चला गया |
पीछे दुर्योधन हस्तिनापुर में आकर योजना के तहत पांडवों को बुलाकर जुआ खेलना प्रारंभ किया | दुर्योधन ने छल से सब राज्य जीत लिया | निष्पाप पांडव भी जुआ से जीत लिए गए | इसके बाद वे वन में भटकने लगे | इस वृतांत को जान चारों भाइयों के साथ युधिष्ठिर को देखने की इच्छा से जगदीश्वर कृष्ण उपस्थित हुए | सूत जी बोले – कि वनवासी दुखों के सताए पांडवों ने महा प्रभु श्री कृष्ण को देख उनके चरणों में सिर टेक पीछे धर्मराज बोले कि मैं भाइयों के साथ बहुत दुखी हूं |
(Anant chaturdashi)
इस अनंत दुख सागर से हम कैसे छूटे किस देव को पूजने से अपने श्रेष्ठ राज्य को पा सकूंगा | क्या मैं कोई व्रत करूं जो आपकी कृपा से कल्याण हो जाए | यह सुन श्री कृष्ण बोले कि सब पापों का नाश करने वाला पवित्र एक अनंत व्रत है ! हे युधिष्ठिर वह स्त्री और पुरुषों के सब कामों को पूरा करने वाला है | वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन होता है | उसके करने मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं | यह सुन युधिष्ठिर जी बोले हे प्रभो आपने अनंत यह क्या कहा क्या वह शेषनाग है अथवा तक्षक है, परमात्मा है या साक्षात ब्रह्म है किसका अनंत नाम है |
हे केशव यह सत्य बताइए यह सुन कृष्ण जी बोले कि हे पार्थ मैं अनंत हूं आप मेरे उस रूप को समझें जो काल, आदित्य आदि ग्रह रूप हैं | जिसके की काल, मुहूर्त, दिन और रात्रि शरीर हैं पक्ष, मास, रितु, वर्ष और योग आदि की जिसकी व्यवस्था है वही काल है उसी को अनंत मैंने कहा है | वही काल रूप कृष्ण में भूमि के भार को उतारने और दैत्यों को मारने के लिए प्रकट हुआ हूं | सज्जनों के पालन के लिए वसुदेव के कुल में पैदा हुए मुझे आदि, मध्य और अंत रहित कृष्ण, विष्णु, हरि, शिव, बैकुंठ भास्कर, सोम, सर्वव्यापी, ईश्वर, विश्वरूप, महाकाल और सृष्टि संघार और पालन करने वाला जान |
व्रतों के भेद (Anant chaturdashi)
पहले विश्वास के लिए मैंने अर्जुन को वह रूप दिखाया था, जो योगियों के ध्यान करने योग्य सर्वश्रेष्ठ है | जो कि विश्वरूप अनंत है, जिसमें 14 इंद्र, बसु, बारहों आदित्य, और ग्यारहों रुद्र हैं | सातों ऋषि, समुद्र, पर्वत, सरित, द्रुम, नक्षत्र, दिशा, भूमि, पाताल और भूर्भुव आदिक हैं | युधिष्ठिर इसमें संदेह ना करिए यह करने लायक है | युधिष्ठिर जी बोले कि हे श्रेष्ठ जानकार अनंत के व्रत का महत्व और विधि कहिए इसका पुण्य फल, दान और पूजन कौन है | पहले किसने किया इस मनुष्य लोक में कैसे आया यह सब अनंत व्रत का विषय विस्तार से कहिए | श्री कृष्ण बोले कि पहले सतयुग में एक सुमंतु नामक वशिष्ठ गोत्त्री ब्राह्मण था |
हे राजन उसने भृगु की दीक्षा नामक लड़की के साथ विवाह किया था | उस स्त्री से उसे एक अमित उच्च लक्षणों वाली सुशीला नाम की लड़की पैदा हुई | उसके ही घर पर बड़ी होने लगी | कुछ काल बाद लड़की की मां ज्वर के दाह से पीड़ित होकर नदी के ही किनारे अमर हो स्वर्ग चली गई | क्योंकि वह पतिव्रता थी | हे राजन सुमन्तु ने कन्या के लालन-पालन के लिए दूसरा विवाह करा लिया | उसके चरित्र अच्छे नहीं थे | वह कर्कशा चंडी थी | नित्य लड़ाई करती थी |
इस प्रकार पिता के घर में बढ़ने लगी | कुछ दिन बाद पिता ने उसे देखा कि कन्या सयानी हो गयी है | उसे देखकर पिता ने उसके योग्य वर देखने लगे और सोचने लगे कि इसे किसको दूं | ऐसा विचार कर वह एकदम दुखी हो गए | उसी समय परम वैदिक एवं धनी श्रीमान मुनिराज कोडिन्य वहां चले आए और बोले कि परम सुंदरी तेरी कन्या के साथ में शादी करना चाहता हूं | सुशीला के पिता ने अच्छे दिन उसके साथ अपनी कन्या ब्याह दी |
मंगलागौरी व्रत विधि एवं कथा (Anant chaturdashi)
हे राजन गृहसूत्र के अनुसार विवाह की तयारी हुई | स्त्रियां मंगल गाने लगी ब्राह्मण स्वस्ति पाठ और बंदी गण जय-जयकार करने लगे | विवाह करके ब्राह्मण ने अपनी पत्नि से कहा कि जमाई को सुंदर दहेज देना चाहिए | इतना सुनते ही कर्कशा को इतना क्रोध आया कि घर से मंडप भी उखाड़ डाला | अच्छी तरह पेटियों को बांधकर कह दिया कि घर जाओ, तथा भोज-भोजन से बचे हुए को उनका रास्ते के लिए दोसा (रास्ते के लिए भोजन) कर दिया | बोली कि हमारे घर धन नहीं है जो है उसे देख लीजिए | यह सुन हे पार्थ मुनि सुमंतु कुछ उदास हो गए |
कोडिन्य भी ब्याह कर बैलों के रथ में सुशीला को चढ़ा के धीरे-धीरे रास्ता चलते चलते पवित्र यमुना जी को देख रथ को रोक नित्य कर्म करने उतर पड़े | रथ पर शिष्यों को नियुक्त कर दिया | मध्यान्ह काल में भोजन के समय नदी किनारे उतर सुशीला ने लाल कपड़े वाली स्त्रियों का समुदाय देखा | वह अनंत चतुर्दशी के दिन भक्ति भाव के साथ जनार्दन देव की पूजा कर रही थीं | उसके पास जा शीला ने धीरे से पूछा हे सुयोग्यो, यह मुझे बताइए कि ऐसा कौन सा व्रत है ? बे सब सुशीला से बोलीं कि यह अनंत व्रत है | इसमें अनंत की पूजा होती है | शीला बोली कि मैं भी इस उत्तम व्रत को करूंगी |
वरलक्ष्मी व्रत कथा (Anant chaturdashi)
इसका विधि विधान क्या है ? किसकी पूजा होती है ? स्त्रियां बोली हे शीले, एक प्रस्थ अच्छा अन्य होना चाहिए जो उसकी वस्तु बने उसका पुलिंग का नाम हो जैसा कि मोदक नाम है | आधा ब्राह्मण को दक्षिणा के साथ दे दें तथा आधा अपने खाने के लिए रख लें | नदी के किनारे श्रद्धा के साथ इसका पूजन करना चाहिए | कुशाओं का शेष बना बांस के पात्र पर रखना चाहिए | स्नान कर मंडल पर दीप, गंध, पुष्प, धूप एवं अनेक तरह के पकवानों के साथ तैयार किए नैवेद्य से अनंत की पूजा करनी चाहिए | उसके आगे कुमकुम का रंगा हुआ 14 गांवों का डोरा रखकर पवित्र गंध आदि से उसकी पूजा करें | इसके पीछे पुरुष के दाएं हाथ तथा स्त्री के बाएं हाथ में उसे बांधना चाहिए | इस डोरे को हाथों में बांधकर भगवान की इस कथा को सुनें |
विश्वरूप नारायण अनंत भगवान का ध्यान करके भोजन आचमन कर पीछे अपने घर जाना चाहिए | हे भद्र मैंने तुम्हें यह व्रत कह दिया | श्री कृष्ण बोले कि है राजेंद्र प्रसन्न चित्त शीला ने भी हाथ में डोरा बांधकर व्रत किया | जो पाथेय (रास्ते में चलने वाले के लिए भोजन) लाई थी, उसमें से आधा ब्राह्मण के लिए दिया तथा आधा आपने खाया | उसके बाद बैलों के रथ में बैठकर प्रसन्नता के साथ पति के साथ अपने घर चले आए |
उसे थोड़े ही समय में ही व्रत पर विश्वास हो गया कि इसी अनंत व्रत के प्रभाव से उसके घर में बड़ा भारी गोधन हो गया | धन-धान्य के साथ गृह लक्ष्मी से भरपूर हो गया | वह अतिथि पूजन में आकुल-व्याकुल हुई अच्छी लगती थी, एवं मुक्ता, माणिक जड़ी हुई पूजनीय तथा मुक्ता हार से विभूषित रहा करती थी | देवांगना की तरह संपन्न तथा सावित्री की तरह सुशोभित हो रही थी | घर में पति के समीप ही सुख रूपा होकर बिचरा करती थी |
बहुला चौथ (Anant chaturdashi)
एक दिन अपने पति के समीप बैठी हुई थी हाथ में धागा बंधा हुआ डोरा मुनि ने देखा | यह डोरा क्यों धारण किया है यह सत्य बताइए ? शीला बोली कि जिस की कृपा से धन-धान्य आदि सभी संपत्तियां मनुष्य पाते हैं वहीं अनंत मैंने धारण कर रखा है | शीला के इन वचनों को सुन धनमदांध उस ब्राह्मण ने निंदा पूर्वक कहा कि क्या अनंत-अनंत लगा रखा है अनंत क्या होता है पीछे मूर्खता के बसु उसे तोड़ डाला |
एवं उस पापी ने उसे दहकती आग में डाल दिया | शीला हाय-हाय कहकर भागी एवं उस सूत्र को उठा दूध में डाल दिया | उसी कर्म विपाक से वह दरिद्री हो गया | गायें चोर ले गए, घर जल गया, धन चला गया, जैसे घर में आया था वैसे ही अनायास चला गया | स्वजनों से कलह तथा भाइयों से फटकार मिलने लगी | अनंत की निंदा करने के कारण घर में दारिद्रय आ गया |
(Anant chaturdashi)
हे युधिष्ठिर अब उसके साथ कोई बात भी नहीं करता था | शरीर से संतप्त और मन से दुखी रहा करता था | परम वैराग्य को प्राप्त हो वह अपनी प्यारी से बोला कि हे शीले एकदम यह शोक का कारण कहां से पैदा हो गया, जिससे हमें दुख और सब धन का नाश हो गया है | स्वजनों से घर में कलह रहता है, मुझसे कोई बात भी नहीं करता, शरीर में संताप एवं मन में दारुण खेद रहता है | ना जाने क्या पाप हुआ क्या करें जिससे कल्याण हो |
यह सुन शील ही जिसका भूषण है ऐसा सुशीला बोली कि अनंत की उपेक्षा करने के कारण ऐसा हुआ है | फिर सब कुछ हो जाएगा यदि प्रयत्न करोगे तो | इतना कहते ही मन तो भगवान के चरणों में लग गया वैराग्य था ही कोडिन्य वन को चल दिए | वायु भौजी हो तप का निश्चय कर लिया | मन में यही एक बात थी कि भगवान महाप्रभु अनंत को कब देखूंगा, जिनकी कृपा से सम्पन्न हुए एवं जिसकी निंदा करने से सब धन चला गया वही मुझे सुख और दुख दोनों देने वाला है |
तप और करुणा से भरे हैं महिलाओं के व्रत -त्यौहार (Anant chaturdashi)
ऐसा ध्यान करते हुए रास्ते में जो भी मिले सभी से अनन्त का पता पूछते हुए वन में भटकने लगे | अंततः निराश होकर उसने अपने प्राण प्राण देने का निश्चय किया | युधिष्ठिर जब तक उसने गले में फांसी लगाई तब तक कृपालु अनंत देव प्रत्यक्ष हो गए | वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उससे बोले कि यहां से आओ | दांया हाथ पकड़कर गुफा में ले गए | वहां दिव्य स्त्री पुरुषों वाली अपनी पुरी उसे दिखा दी |
वहां पर दिव्य सिंहासन पर विराजमान शंख, चक्र, गदा, पद्म और गरुड़ से सुशोभित विश्वरूप अनंत को दिखा दिया | जो कि अनंत विभूतियों के भेद से विराजमान अमित मान, अमित बलशाली कौस्तुभ से सुशोभित एवं वन माल से विभूषित देवेश अपराजिता अनंत को देख वंदना करता हुआ जोर से जय जयकार करके कहने लगा | मैं पापी हूं, पाप कर्म करने वाला हूं, आप रूप एवं पापसे ही पैदा हुआ हूं | हे पुंडरीकाक्ष मेरी रक्षा कर मेरे सब पापों का हरने वाला बन जा | आज मेरा जन्म सफल हो गया, जीवन सुखी बन गया, आज आपके चरणों में मेरा माथा भौंरा बन गया |
Anant chaturdashi
यह सुन अनंत देव प्रेममयी वाणी से बोले | हे ब्राह्मण देव डरो ना जो मन में हो तो कहो | कोडिन्य बोला की माया और भौतिक अभिमान में आकर मैंने आपका डोरा तोड़ डाला था उसी पाप के कारण मेरी विभूति नष्ट हो गई | स्वजनों के साथ घर में लड़ाई रहती है, मेरे साथ कोई बात नहीं करता, इसी दुख से मैं बन में आपको देखने के लिए चला आया | आपने कृपा करके अपने दर्शन दिए वह जो आपके डोरा तोड़ने का मुझसे पाप हुआ उसकी शांति मुझे बता दीजिए |
यह सुन अनंत देव कोडिन्य से बोले आप अपने घर जाएं देर ना करें वहां भक्ति के साथ 14 वर्ष तक अनंत का व्रत करें सब पापों को मिटाकर उत्तम सिद्धि प्राप्त कर सकोगे | पुत्र, पौत्र पैदा कर चाहे हुए भोग सभी प्राप्त होंगे | अंत काल में मेरा स्मरण करके निश्चय ही मुझे पाओगे | एक और मैं तुम्हें सब लोगों के कल्याण के लिए वर देता हूं इस कथा और शीला की व्रत की बातों को जो मनुष्य इस शुभ व्रत को करता हुआ करेगा, वह मनुष्य पापों से छूट कर परम गति को पा जाएगा | हे ब्राम्हण जिस शीघ्रता से तुम घर से आए थे उसी तरह जाओ |
व्रत उपवास से अनंत पुण्य और आरोग्य की प्राप्ति (Anant chaturdashi)
ऐसा कहकर भगवान वही अंतर्ध्यान हो गए यह सब उस ब्राह्मण के लिए स्वप्न सा हो गया | सब कुछ देख अपने घर चला आया | उसने उतने ही वर्ष अनंत के व्रत से बिताए जैसी अनंत भगवान की आज्ञा थी | उन सब बातों को भूलकर हे पांडुनंदन अंत में मेरे स्मरण को प्राप्त होकर अनंतपुर में चला गया | हे राजन आप भी कथा सुनते हुए व्रत करिए आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी | जैसा कि अनंत महाराज का वचन है | जो फल उस ब्राह्मण को 14 वर्षों में मिला था वही फल कथा सहित व्रत के करने से 1 वर्ष में मिल जाता है |
हे राजन् मैंने तुम्हें यह सर्वश्रेष्ठ व्रत सुना दिया इस व्रत के करने से सब पापों से मुक्त हो जाते हैं इसमें संदेह नहीं है | जो कथा कहते हुए को सुनते तथा पढ़ते हैं वे सब पापों से छूट कर भगवान के पद को पहुंच जाते हैं | जो शुद्ध बुद्धि वाले मनुष्य संसार रूपी गहन गुफा में सुख पूर्वक विचरना चाहते हैं वे तीनों लोकों के अधिपति अनंत देव को पूजकर दाएं हाथ में अनंत का डोरा बांधते हैं | यह श्री अनंत भगवान की व्रत की कथा पूरी हुई |
प्रदोष व्रत कथा (Anant chaturdashi)
युधिष्ठिर बोले कि हे कृष्ण आपकी कृपा से मैंने अनंत का व्रत सुन लिया, अब आप मुझे अनंत के व्रत का उद्यापन बताइए | श्री कृष्ण बोले कि है पांडव सुनो में अनंत व्रत के उद्यापन को कहता हूं | जिसको करने से व्रत निश्चय ही सफल हो जाता है | जब 14 वर्ष पूर्ण हों तब प्रातः काल चतुर्दशी के दिन स्नान करके पवित्र हो देश और काल का स्मरण कर उपवास का संकल्प करें | इसके बाद नदी तथा संगम पर या अपने घर पर स्नान ध्यान कर ब्राह्मणों से पूजन पाठ कराएं |
ब्राह्मणों को नए वस्त्र इत्यादि दान कर एक चौक बनाएं उसके बीच में धान्य रख दें | कलश आदि स्थापित करा कर भगवान विष्णु की चांदी स्वर्ण पीतल या मिट्टी की मूर्ति रखकर उनकी पूजा करें | उन्हें पंचामृत से स्नान कराकर विधिवत पूजन करें | पूजन के बाद पीपल की समिधा से हवं करें | ब्राम्हण को भोजन कराकर दान दक्षिणा आदि देकर सम्मान के साथ विदा कर अपने बंधू-बांधवों के साथ प्रसाद पायें | भगवान का भजन कीर्तन करें |
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?