जो करते हैं दुर्गासप्तशती का पाठ वो रखें इन बातों का खास ध्यान Durga saptashati path vidhi
durga saptashati path vidhi – कलिकाल में शक्ति की उपासना एवं साधना शीघ्र प्रभावशाली एवं तत्काल फलदायी मानी गई है। शक्ति उपासना में तांत्रिक मंत्र विशिष्ट शक्तिशाली माने गए हैं। तांत्रिक मंत्रों कि दृष्टि से दुर्गासप्तशती सर्वोपरि है। श्रीमार्कण्डेयपुराण के अंतर्गत देवी महात्म्य का वर्णन 700 श्लोकों में होने से यह सप्तशती के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। 13 अध्यायों में विभक्त अनुष्टुप छंदों में निर्मित, ये सभी श्लोक तन्त्रोक्त होने से ‘मंत्र’ कहलाते हैं। इसका पाठ करने वाले कुशल साधक अनेक प्रकार की दुर्लभ सिद्धियों, शक्तियों व उपल्ब्धियों को सहज में ही प्राप्त कर लेते हैं।

प्रत्येक नवरात्रि में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुर्गासप्तशती के पठन पाठन व हवन की परम्परा है। जिसे हम नवरात्रि कहते हैं। दुर्गासप्तशती में दुर्गा के नव स्वरूप – 1 – शैलपुत्री, 2- ब्रम्ह्चारिणी, 3- चन्द्रघण्टा, 4- कूष्माण्डा, 5- स्कंदमाता, 6- कात्यायनी, 7- कालरात्रि, 8- महागौरी, व 9- सिद्धिदात्री हैं। प्रत्येक देवी के निमित्त एक-एक पाठ अर्पण करते हुए नव दिनों में नवदुर्गा का एक अनुष्ठान पूरा होता है।
कौनसे वाद्ध्ययंत्र नहीं बजने चाहिए
देवीपाठ पर वंशवाद्ध, शहनाई व मधुरी भूलकर भी न बजावें।
भगवती दुर्गा का आह्वान बिल्वपत्र, बिल्वशाखा, त्रिशूल या श्रीफल पर किया जा सकता है परंतु दूर्वा से भगवती का पूजन कभी न करें।
देवी को केवल रक्त कनैर और नाना सुगंधित पुष्प प्रिय हैं, सुगंधहीन व विषैले पुष्प देवी पर कभी न चढ़ावैं।
रुद्रयामल के अनुसार मध्यरात्रि में देवी के प्रति किया गया हवन शीघ्र फलदाई व सुखकर होता है।
भगवती की प्रतिमा हमेशा रक्तवस्त्र (लाल) से वेष्ठित होती है तथा इनकी स्थापना उत्तराभिमुखी कभी नहीं होती।
पूजन काल में साधक यम-नियमों का पालन करते हुए निराहार व्रत रखे व पाठ के तत्काल बाद दुग्धपान करे तो भगवती शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
उपासक के गले तथा गौमुखी में रुद्राक्ष या मूँगे की माला होना चाहिये। देवी प्रतिमा की केवल एक ही प्रदक्षिणा होती है।
durga saptashati path vidhi कवच तथा अर्गला का महत्त्व
देवी कवच से शरीर की रक्षा होती है तथा पुरुष अकाल मृत्यु से बचा रहता है। कवच पाठ करने से मनुष्य बाहरी बाधाओं से सुरक्षित हो जाता है। कवच शक्ति का बीज है अतः दुर्गा पूजन के पूर्व इसका पाठ अनिवार्य है।
अर्गला लोहे की होती है जिसके लगाने से किवाड़ नहीं खुलते। घरमें प्रवेश करने हेतु मुख्यद्वार की अर्गला का जितना महत्व होता है उतना ही महत्व सप्त्शती में ‘अर्गला’ पाठ का होता है। इसके पाठ करने से किसी प्रकार की बाधा घर में नहीं आ सकती।
कीलक को सप्तशती पाठ में उत्कीलन की संज्ञा की गई है इसलिए कवच अर्गला व कीलक क्रमशः दुर्गापूजन के पूर्व अनिवार्य हैं।
चतुर्थ अध्याय के मंत्र 24 से 27 की अहूति वर्जित है। इन चार मंत्रोंकी जगह ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ से चार बार हविष्यान्न समर्पित करना चाहिये।
हवनात्मक प्रयोग में प्रत्येक अध्याय के आदि व अंत के मंत्रों को शर्करा, घृत व लोंग से युक्त क्षीर की आहुति देनी चाहिये।
पाठांत में ‘श्रीसिद्ध कुंजिका स्त्रोत’ पढ़ने पर ही दुर्गा पाठ का फल मिलता है। अनेक प्रभावशाली बीजाक्षरों एवं शावरमंत्रों से युक्त यह स्त्रोत दुर्गापाठ के सफलता की कुंजी (चाबी) कहलाती है। इसके बिना दुर्गापाठ का फल नहीं मिलता।
durga saptashati path vidhi पाठ करने की सही विधि
सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती प्रथमचरित्र (1) मध्यम चरित्र (2,3,4) व उत्तरचरित्र (5,6,7,8,9,10,11,12,13) इन तीनों भागों में विभक्त है| किसी भी चरित्र या अध्याय का अधूरा पाठ नहीं करना चाहिये। सही durga saptashati path vidhi यही है |
विशेष कार्य की सिद्धि हेतु अभीष्ट मंत्रों का सम्पुट दिया जाता है। यह सम्पुट पाठ दो प्रकार के होते हैं, एक उदय और दूसरा अस्त, वृद्धि के लिए उदय और अभिचार के लिये अस्तसम्पुट का प्रयोग किया जाता है।
घर में तीन शक्ति ( देवी प्रतिमायें ) नहीं होंनी चाहिये।
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1 thought on “Durga saptashati path”
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