गंगा दशहरा पूजन विधि एवं कथा
ganga dussehra ka mahatva – गंगा जी देव नदी हैं, वह मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आयीं | धरती पर उनका आगमन “जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी” को हुआ था | अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई |
दशमी शुक्लपक्षे तु ज्येष्ठमासे बुधेहनि |
अवतीर्णा यतः स्वर्गाद्धस्तर्क्षे च सरिद्वरा ||
इस तिथि को यदि सोमवार और हस्त नक्षत्र हो तो यह तिथी सब पापों का हरण करने वाली होती है |
ज्येष्ठशुक्ल दशम्यां भवेत्सोम्यदिनं यदि |
ज्ञेया हस्तार्क्ष्यसंयुक्ता सर्वपापहरा तिथि ||
जेष्ठ शुक्ल दसवीं संवत्सर का मुख कही जाती है | इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है | इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से दस प्रकार के पापों का नाश होता है | इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा गया है |
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इस दिन गंगा जी में अथवा सामर्थ ना हो तो समीप की किसी पवित्र नदी या सरोवर के जल में स्नान कर अभय मुद्रा युक्त मकर वाहिनी गंगा जी का ध्यान करें | और निम्न मंत्र से आवाहन आदि षोडशोपचार पूजन करें | ओम नमः शिवाय नारायण्ये दशाहराये गंगाये नमः |
पूजन में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, 10 दीपक, 10 प्रकार के नवेद, 10 तांबूल, एवं 10 फल होने चाहिए | दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देनी चाहिए | किंतु उन्हें दान में दिए जाने वाले जो और तिल 16-16 मुट्ठी होने चाहिए | भगवती गंगा जी सर्व पाप हारणी है, अतः 10 प्रकार के पापों की निवृत्ति के लिए सभी वस्तुएं 10 की संख्या में ही निवेदित की जाती हैं | स्नान करते समय गोते भी 10 बार लगाए जाते हैं | इस दिन सत्तू का दान किया जाता है | इस दिन गंगा की कथा सुनने का विधान है | वह कथा संक्षेप में इस प्रकार है |
कथा (ganga dussehra ka mahatva)
जिस सूर्यवंश में भगवान श्री राम जी का जन्म अयोध्या में हुआ था उनके एक पूर्वज थे महाराज सगर | महाराज सगर चक्रवर्ती सम्राट थे | उनकी केशनी और सुमति नाम की दो रानियां थी | केशनी के पुत्र का नाम असमंजस था और सुमति के 60000 पुत्र थे | असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था | राजा सगर के असमंजस सहित सभी पुत्र अत्यंत उदंड और दुष्ट प्रकृति के थे | परंतु पुत्र अंशुमान धार्मिक और देव गुरु पूजक था | पुत्रों से दुखी होकर महाराज सगर ने असमंजस को देश से निकाल दिया और अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया | सगर के साठ हजार पुत्रों से देवता भी दुखी रहते थे |
एक बार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया | और उसके लिए घोड़ा छोड़ा | इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ के उस घोड़े को चुराकर पाताल में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया | परंतु ध्यानावस्थित मुनि इस बात को जान ना सके | सगर के साठ हजार अहंकारी पुत्रों ने पृथ्वी का कोना-कोना छान मारा परंतु के घोड़े को ना पा सके | अंत में उन लोगों ने पृथ्वी से पाताल तक मार्ग खोद डाला, और कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे | वहां घोड़ा बंधा देखकर वे क्रोधित हो शस्त्र उठाकर कपिल मुनि को मारने दौड़े | तपस्या में बाधा पड़ने पर मुनि ने अपनी आंखें खोली उनके तेज से सगर के साठ हजार उद्दंड पुत्र तत्काल भस्म हो गए |
ganga dussehra ka mahatva
गरुड़ के द्वारा इस घटना की जानकारी मिलने पर अंशुमान कपिल मुनि के आश्रम में आए, तथा उनकी स्तुति की | कपिल मुनि उनकी विनय से प्रसन्न होकर बोले अंशुमान घोड़ा ले जाओ और अपने पितामह का यज्ञ पूरा कराओ | ये सगरपुत्र उदंड, अहंकारी और अधार्मिक थे | इनकी मुक्ति तभी हो सकती है जब गंगाजल से इनकी राख का स्पर्श हो | अंशुमान ने घोड़ा ले जाकर अपने पितामह महाराज सगर का यज्ञ पूरा कराया |
महाराज सगर के बाद अंशुमान राजा बने परंतु उन्हें अपने चाचाओं की मुक्ति की चिंता बनी रही | कुछ समय बाद अपने पुत्र दिलीप को राज्य का कार्यभार सौंप कर वे वन में चले गए, तथा गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने लगे |और तपस्या में ही उनका शरीरान्त भी हो गया | महाराज दिलीप ने भी अपने पुत्र भगीरथ को राज्य भार देकर स्वयं पिता के मार्ग का अनुसरण किया | उनका भी तपस्या में ही शरीरान्त हुआ, परंतु देवी गंगाजी को पृथ्वी पर ना ला सके | महाराज दिलीप के बाद भगीरथ ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की |
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अंत में तीन पीढ़ियों की इस तपस्या से प्रसन्न हो पितामह ब्रह्मा ने भगीरथ को दर्शन देकर वर मांगने को कहा | भगीरथ ने कहा हे पितामह, मेरे 60000 पूर्वज कपिल मुनि के शाप से भस्म हो गए हैं | उनकी मुक्ति के लिए आप गंगा जी को पृथ्वी पर भेजने की कृपा करें | ब्रह्मा जी ने कहा मैं गंगा जी को पृथ्वी लोक पर भेज तो अवश्य दूंगा, परंतु उनके बेग को कौन रोकेगा | इसके लिए तुम्हें देवाधिदेव भगवान शंकर की आराधना करनी चाहिए | भगीरथ ने एक पैर पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना शुरू कर दी | इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा जी को अपनी जटाओं में रोक लिया, और उसमें से एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड़ दिया | इस प्रकार गंगा जी पृथ्वी की ओर चली |
अब आगे-आगे राजा भगीरथ का रथ और पीछे-पीछे गंगाजी थी | मार्ग में जह्नुऋषि का आश्रम पड़ा | गंगा जी उनके कमंडल दंड आदि बहाते हुए जाने लगी, यह देख ऋषि ने उन्हें पी लिया | कुछ दूर जाने पर भगीरथ ने पीछे मुड़कर देखा तो गंगा जी को ना देख कर वे ऋषि के आश्रम जाकर उनकी वंदना करने लगे | प्रसन्न हो ऋषि ने अपनी पुत्री बनाकर गंगा जी को दाहिने कान से निकाल दिया | इसलिए देवी गंगा जान्हवी नाम से भी जानी जाती हैं |
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भगीरथ की तपस्या से अवतरित होने के कारण उन्हें भागीरथी भी कहा जाता है | इसके बाद भगवती भागीरथी गंगा जी मार्ग को हरा-भरा, सत्य श्यामल करते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची, जहां महाराज भगीरथ के 60000 पूर्वज भस्म की ढेरी बने पड़े थे | गंगाजल के स्पर्श मात्र से वे सभी दिव्य रूप धारी हो दिव्य लोक को चले गए |